BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Wednesday, May 1, 2013

बांग्लादेश की हृदय विदारक कहानियों से कुछ अलग नहीं नोएडा

बांग्लादेश की हृदय विदारक कहानियों से कुछ अलग नहीं नोएडा

बांग्लादेश की राजधानी ढाका के बाहरी इलाके साभर में राना प्लाज़ा नामक एक आठ मंजिली इमारत के ढह जाने की त्रासदी की परतें धीरे धीरे खुल रही हैं। इस हादसे में अब तक 350 से अधिक लोगों के मौत की पुष्टि हो चुकी है और 900 अधिक मजदूर अभी भी लापता हैं। इस इमारत में विदेशी कम्पनियों के लिए सिले सिलाये वस्त्रों को तैयार करने की कम से कम चार फैक्टरियाँ थी।
 इस इमारत में दरार पड़ चुकी थी और बाशिंदों से इसको खाली कर देने का आदेश दिया जा चुका था। पहली मंजिल में स्थित दुकानों और एक निजी बैंक ने ऐसा कर भी दिया था और बांग्लादेश गारमेण्ट मैनुफक्चरर्स एसोशियेशन ने इन फैक्टरियों के मालिकों से फैक्टरियाँ बन्द कर देने का सुझाव दिया था। मजदूरों से भी चले जाने को कहा गया था लेकिन अगले दिन यानी 24 अप्रैल को मालिकों द्वारा उन्हें पगार काट लेने और नौकरी से निकालने के धमकी देकर वापस बुला लिया गया। इन फैक्टरियों में कम करने वाले 3,500 मजदूरों के 70 फ़ीसदी जिनमें से बहुलांश महिलायें थी, उस इमारत में मौजूद थे जब यह जोरों की आवाज के साथ बैठ गयी। गारमेण्ट एक्सपोर्ट के कारखाने में विगत एक वर्ष के भीतर हुआयह दूसरा हादसा है
 विगत 24 नवम्बर 2012  को ढाका के बाहरी इलाके में स्थित ताजरीन फैशंस की फैक्टरी में आग निचली मंजिल में फ़ैली और फिर इस नौ मंजिली इमारत के ऊपरी मंजिलों के लोग वहीं फँस गये। अधिकारीयों के अनुसार आग से बचाव की बाहरी सीड़ियाँ नहीं थीं और बहुत सारे लोग आग से बचने के लिये कूदने के चलते मारे गये। इस हादसे में करीब डेढ़ सौ लोग मारे गए थे।
 इस दुर्घटना ने जो निश्चित तौर पर मानव-निर्मित है, एक बार फिर इस बात को सामने ला दिया है कि गारमेण्ट एक्सपोर्ट के क्षेत्र में किन अमानवीय परिस्थितियों में काम होता है और विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और उनके स्थानीय एजेण्टों के मुनाफे की अन्धी हवस के सामने मजदूरों के जान की कीमत कितनी कम है। यह बात सिर्फ बांग्लादेश के लिए ही सही नहीं है बल्कि  भारत और तीसरी दुनिया के अन्य गरीब मुल्कों के बारे में भी सही है जहाँ गारमेण्ट एक्सपोर्ट उद्योग में तैयार होने वाले कपड़े पश्चिमी देशों के सुपर मार्केटों और चेनों में मशहूर ब्राण्ड नामों के अन्तर्गत बिकते हैं।
 भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के गुडगाँव या नोएडा हों, पश्चिमी तमिलनाडु का तिरुपुर हो या कर्णाटक का बेंगलुरु हो, हर जगह जहाँ गारमेण्ट एक्सपोर्ट की छोटी बड़ी फैक्टरियाँ हैं, वहाँ मजदूरों को इन्ही अमानवीय परिस्थितियों में ही काम करना होता है। भारत में इस क्षेत्र में लाखों मजदूर कार्यरत है जिनमें से एक बड़ी संख्या महिलाओं की है और यह करोड़ों की विदेशी मुद्रा अर्जित करती है लेकिन किसी भी प्रकार के नियम कानून का, किसी भी तरह की विनियमन की व्यवस्था का पूर्ण अभाव है।
 नोएडा स्थित गारमेण्ट एक्सपोर्ट की सैकड़ों छोटी बड़ी इकाइयों में काम की जिन परिस्थितियों से हम वाकिफ हैं वे बांग्लादेश की इस ध्वस्त इमारत से निकल कर आ रही हृदय विदारक कहानियों से कुछ अलग नहीं हैं।
साभार रेड टूलिप्स

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