BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Thursday, February 18, 2016

पूरे देश में इस समय कुछ लोग देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति के ठेकेदार बने हुए हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में कोई हिस्सा नहीं लिया था!


   
Satya Narayan
February 18 at 9:19am
 
पूरे देश में इस समय कुछ लोग देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति के ठेकेदार बने हुए हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में कोई हिस्सा नहीं लिया था! ये वे लोग हैं जिन्होंने अमर शहीद भगतसिंह और उन जैसे तमाम युवा आज़ादी के मतवालों के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ों के लिए मुखबिरी की थी! ये वे लोग हैं जो हिटलर और मुसोलिनी को अपना आदर्श मानते थे और आज़ादी के पहले ब्रिटिश रानी को सलामी दिया करते थे! ये कब से देशभक्ति के ठेकेदार बन बैठे? सत्ताधारी पार्टी और संघ परिवार के ये लोग आज देश को धर्म और जाति के नाम पर तोड़ रहे हैं और साम्प्रदायिकता की लहर पर सवार होकर सत्ता में पहुँच गये हैं। इन्होंने देशभक्ति को सरकार-भक्ति से जोड़ दिया है। जो भी सरकार से अलग सोचता है, उसकी नीति की आलोचना करता है, जो भी अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाता है उन्हें तुरन्त ही देशद्रोही और राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया जाता है। अम्बानियों और अदानियों के टुकड़ों पर पलने वाला कारपोरेट मीडिया भी इन तथाकथित "देशभक्तों" के सुर में सुर मिलाता है और अपने स्टूडियो में ही मुकदमा चला डालता है! 

यह पूरा मामला जेएनयू में भारत-विरोधी नारे लगने के बाद गरमाया हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को धार्मिक कट्टरपंथी फासीवादी गुण्डे अदालत के भीतर तोड़ रहे हैं और दिल्ली पुलिस तमाशबीन बन कर देख रही है। कोर्ट के भीतर पत्रकारों और नागरिकों पर हमला किया गया, पत्थर फेंके गये! ऐसा तो हिटलर के जर्मनी और मुसोलिनी के इटली में हुआ था जब कानून का शासन ख़त्म हो गया था और इसी प्रकार के देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति के ठेकेदार सड़कों पर अपनी गुण्डागर्दी चला रहे थे। ऐसे समय में हम आपसे कुछ बातों पर सोचने का आग्रह करते हैं। 

अब यह साफ़ हो चुका है कि जेएनयू में भारत-विरोधी नारे लगाने वाले लोग कुछ अराजकतावादी तत्व थे जिनमें से अधिकांश जेएनयू के छात्र भी नहीं थे। वास्तविक आरोपियों को तो पुलिस अभी तक गिरफ्तार भी नहीं कर पायी है लेकिन एक बेगुनाह छात्र कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया है। इसके अलावा, कुछ अन्य छात्रों पर भी फ़र्जी मुकदमे डाल दिये हैं। क्या आप जानते हैं कि इन्हें क्यों निशाना बनाया गया है? ये छात्र वे ही हैं जिन्होंने अतीत में मज़दूरों के शोषण, महँगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी थी; ये वे ही छात्र हैं जिन्होंने मोदी सरकार की छात्र-विरोधी, मज़दूर विरोधी और ग़रीब-विरोधी नीतियों का विरोध किया था! ऐसे में, मोदी सरकार कुछ अराजकतावादी तत्वों की हरक़त का बहाना बनाकर इन बेगुनाह छात्रों और पूरे जेएनयू को निशाना बना रही है। तो भाइयो और बहनो! ज़रा सोचिये कि क्या हो रहा है! मायापुरी में एक मज़दूर की काम के दौरान मौत के बाद जब मज़दूरों ने इंसाफ़ और मुआवज़े की माँग की तो उनपर भी पुलिस ने लाठियाँ बरसायीं और उनके नेताओं पर भी देश-विरोधी होने का आरोप लगा दिया। ऐसा ही एफटीआईआई के छात्रों के साथ भी किया गया था। और ऐसा ही दिल्ली के हरेक मेहनतकश और मज़दूर के साथ किया जाता है जब वह अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाता है। 

दूसरी बात जो ग़ौर करने योग्य है दोस्तो वह यह है कि देशद्रोह या राष्ट्रद्रोह की परिभाषा हमारे संविधान में दी गयी है और सरकार से लेकर सभी पार्टियाँ उस पर अमल करने को बाध्य है। यह परिभाषा है कि कोई भी व्यक्ति सरकार की नीति की आलोचना कर सकता है, उसका शान्तिपूर्ण विरोध कर सकता है, किसी कौम के हक़ की बात कर सकता है, मगर वह सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह या हिंसा करने में लिप्त या हिंसा के लिए भड़काने में लिप्त होता है तो उस पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जा सकता है। ऐसे में, धार्मिक कट्टरपंथियों और फासीवादियों को ये हक़ किसने दिया कि वे किसी को भी देशद्रोही या राष्ट्रद्रोही करार दे दें? और ख़ासकर तब जब कि ये देशभक्ति का सर्टिफिकेट लेकर घूमने वाले वे हैं जो कि आज़ादी के आन्दोलन के ग़द्दार थे और इन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ एक ढेला उठाना तो दूर, उनके सामने मुखबिरी करने, माफ़ीनामे लिखने और सलामी देने का काम किया था?क्या आरएसएस का कोई भी व्यक्ति बता सकता है कि 1925 में उसकी स्थापना से लेकर 1947 में आज़ादी तक आरएसएस क्या कर रही थी? खुद सोचिये दोस्तो। ज़रा "राष्‍ट्रभक्त" और "राष्‍ट्रद्रोही" के प्रमाणपत्र बाँटने वालों द्वारा फैलाये जा रहे उन्माद से ऊपर उठ कर सोचिये। अगर आज बेगुनाह पत्रकार, नागरिक, मज़दूर, छात्र, शिक्षक कोर्ट के कमरे से लेकर बस्तियों तक इन कट्टरपंथियों का निशाना बन रहे हैं, तो कल अपनी आवाज़ उठाने पर ये आपको निशाना नहीं बनायेंगे? 

तीसरी बात जो ग़ौर करने योग्य है भाइयो और बहनो वह यह है कि देश कोई कागज़ पर बना नक्शा नहीं होता। देश उसमें रहने वाले आम मेहनतकश अवाम से बनता है। जो मोदी सरकार और संघ परिवार आज महँगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, शोषण और उत्पीड़न देश के करोड़ों-करोड़ मेहनतकशों, आम लोगों, छात्रों, युवाओं, दलितों, स्त्रियों और बुजुर्गों तक पर थोप रहा है, क्या वह देशभक्त है? और जो इस शोषण, उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाये वह देशद्रोही है? हाँ दोस्तो! हालत तो आज ऐसी ही हो गयी है! जो भी सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाये वह देशद्रोही और जो भी सरकार की हर बात में सिर हिलाये वह देशभक्त। यही कारण है कि सरकार में बैठी पार्टी भाजपा ने तरह-तरह के गुण्डावाहिनियों को सड़क पर खुला छोड़ दिया है कि वह ऐसे सभी"देशद्रोहियों" को सबक सिखाये जो कि मोदी और संघ परिवार की हाँ में हाँ न मिलाये! और इसके बाद आपकी हर बात को "भारत माता की जय", "वन्दे मातरम" आदि के शोर में और लातों-घूँसों की बारिश में दबा दिया जाता है। और ये वे लोग हैं जो अपने संगठन के एक व्यक्ति का नाम नहीं बता सकता है जो कि देश की आज़ादी के लिए लड़ा और शहीद हुआ हो! क्या आप ऐसे लोगों को अपनी देशभक्ति का प्रमाण देंगे? क्या आप ऐसे लोगों को"राष्‍ट्रभक्ति" का ठेकेदार बनने देंगे? इन गुण्डों की भीड़ में कौन लोग शामिल हैं? 

साथियो! अगर हम आज ही हिटलर के अनुयायियों की असलियत नहीं पहचानते और इनके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाते तो कल बहुत देर हो जायेगी। हर जुबान पर ताला लग जायेगा। देश में महँगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी का जो आलम है, ज़ाहिर है हममें से हर उस इंसान को कल अपने हक़ की आवाज़ उठानी पड़ेगी जो चाँदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं हुआ है। ऐसे में हर किसी को ये सरकार और उसके संरक्षण में काम करने वाली गुण्डावाहिनियाँ"देशद्रोही" घोषित कर देंगी! सोचिये दोस्तो और आवाज़ उठाइये, इससे पहले कि बहुत देर हो जाये। 
http://www.mazdoorbigul.net/archives/9171
कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही? - मज़दूर बिगुल
www.mazdoorbigul.net
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