BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Monday, May 6, 2013

खीर खायी सबने, पर अपनी गिरेबां में झांकने को कोई तैयार ही नहीं।

खीर खायी सबने, पर अपनी गिरेबां में झांकने को कोई तैयार ही नहीं।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​




चिटफंड कारोबार कोयला कीखोठरी से कम काला नहीं है। इस कोठरी में हर चेहरे पर कालिख पुती है। हर शख्स नंगा हो रहा है। लेकिन सारे लोग अपनी अपनी छवि को दूध धुली बनाये रखने के लिए दूसरे की छवि खराब करने में लगा है। आपीएल में अब कोई मजा नहीं है। महिलाएं तक सीरियल छोड़कर समाचार देखने लगी है। अपराध, सेक्स, साजिश,भंडाफोड़ और कानून का लंबा हाथ, किसी बालीवूड फिल्म का बेहतरीन मसाला है। आइटमों की भी कमी नहीं है। देवयनी ने मुंह खोलना शुरु किया तो एक और सुंदरी ऐंद्रिला पकट हो गयी, जो कोलकाता से फरार होते वक्त रांची तक सुदीप्त के साथ थीं। उनकी हरम के भी खूब च्ररचे हैं।महिलाओं पर खर्च के मामले में बादशाहों कोभी शर्मिंदा कर दें, ऐसा कारनामा। धंधी फर्जी चिटफंड के कारोबार का , परर अंडरवर्ल्ड से लेकर कोयलामापिया तकको साधते हुए बड़े कारपोरेट घराने कीतर्ज पर राजनीतिक लाबिइंग। बोस्टन में सर्वर। स्पेशल साफ्टवेयर। फिर वहां से , एजंटो से , नजदीकी सहकर्मियों और राजनेताओं से दगा खाकर यह दुर्गति।वाम जमाना हो या परिवर्तन काल, राइटर्स  में  लोग उनके पे रोल पर। तब असीम दासगुप्त और गौतम देव जैसे मंत्रियों के निजी सहायक उनके मददगार थे तो अब सीएमओ से लेकर मंत्री, सांसद, संतरी कौन नही है उनके अपने लोग!


पूरा बंगाल अब कुरुक्षेत्र में तब्दील है। राज्य आत्महत्या प्रदेश में तब्दील है। बीस बीस लाख फील्डवर्कर है कंपनियों के शारदा समूह के भंडाफोड़ के बावजूद सीनाजोरी के साथ गोरखधंधा जारी। वर्चस्व की लड़ाई तेज। जांच टीम से लेकर जांच आयोग। सीबीआई जांच की मुहिम और सीबीआई को रोकने  के लिए केंद्र का तख्ता पलट देने की तैयारी।इधर ममता बनर्जी अपने तमाम दागी नेताओं को बचाते हुए सबकी फाइलें खोलकर सबको जेल में बरने की धमकी दे रही हैं। पोस्टर बना देने की बात कर रही है। फिर उनके राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर गृहयुद्ध तो बुद्धदेव सिंगुर नंदीग्राम प्रकरणों का इतिहास पीछ ठोड़कर एकबार फिर माकपा के सेना नायक । दहाड़ रहे हैं , हिसाब मांगने का वक्त है। असीम दासगुप्त और गौतम देव को अपने निजी सहायकों की खबर नहीं थी तोदीदी के सीएमओ से लेकर अपने घर की ही खबर नहीं। पार्टी में घमासान है तो घर में भी भाई ने बगावत कर दी। इन सबसे बेखबर दीदी जांच के बहाने विरोधियों को घेरने की तैयारी में। गौतम देव के खिलाफ सीआईडी जांच। तो मालदह में  कांग्रेसी सांसद डालू मियां की `सिट' के जरिये जांच।फर्जीवाड़े की जांच हो या न हो, रिकवरी हो न हो, आम लोगों को राहत मिल  न मिले , राजनीतिक समीकरण जरुर सधे चाहिए। कोई मौका छोड़ने को तैयार नहीं। कोई किसी से रियायत करने के मूड में नहीं।


सबसे मजे की बात तो यह है कि जिन एजंटों ने सीधे फील्ड में तरह तरह के हथकंडे केजरिये करोड़ों लोगो की जमापूंजी चिटफंड कंपनियों की झोलीमें डालकर शारदा समूह के भंडाफोड़ न होने तक चांदी काट रहे थे, मातमपुर्सी में वे सबसे आगे हैं। मुावजा मागने में भी। धरना प्रदर्शन और आंदोलन में भी। मुआवजे की लाइन में वे सबसे आगे हैं। जबकि कानूनी हालत यह है कि संचयिता मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करके एजंटों को कोई मुआवजा देने से साफ इंकार कर दिया था। क्योंकि आम लोगों के साथ हुई धोखाधड़ी के माध्यम तो वे ही हैं और सबसे ज्यादा मजे भी उन्हीं के। भंडाफोड़ हो गया,तो कंपिनियों के सरगना को अगर सजा होती है तो उनके शागिर्दों को क्यों नहीं होनी चाहिए?


इंटरपोल तक की मदद लेने के दावे किये जा रहे हैं, जबकि सीबीआई जांच के लिए  हाईकोर्ट में जनहित याचिकएं विचाराधीन। मुख्यमंत्री इसे अपने खिलाफ केंद्र, माकपा और कांग्रेस की साजिश बता रही हैं। जबकि असम की कांग्रेसी सरकार और त्रिपुरा  की वाम सरकार ने सीबीआई जांच के लिए पहल कर दी। गुवाहाटी में सीबीआई सक्रिय भी हो गयी। सघन पूछताछ और रोज रोज के भंडाफोड़ के दावे के बवजूद राज्य सरकार अभी तक एक एफ आईआर तक दर्ज नहीं करा सकी। भारतीय दंड विधान संबहिता के प्रावधान लागू नहीं हुए तो १९७८ का चिटफंड निरोधक कानून का इस्तेमाल ही नहीं हुआ। जिसके तहत संचयिता और ओवरलैंड के खिलाफ कार्रवाई हुई और बाजार से आंशिक रिकवरी हुई। अब कार्रवाई के लिए कानून बनने की प्रतीक्षा करनी होगी। पीछे से वह कानून लागू होगा कि नहीं इसपर विवाद जारी है।केंद्र से लेकर राज्य तक कानून बनाने की मुहिम है। २००३ से २०१३ तक एक विधेयक कानून नहीं बन सका तो उसे वापस लेकर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर विपक्ष और विशेषज्ञों की सलाह हाशिये पर रखकर एकतरफा तौर पर नया विधेयक पारित हो गया। फटाफट राज्यपाल ने उसपर दस्तखत भी कर दिये। अब विश्वपुत्र कहकर जिके राष्ट्रपति बनने का ही विरोध कर रही थी दीदी, उनके आगे पीछे दरबार लगाकर गुहार कर रही हैं कि कानून बना दो। मौजूदा कायदा कानून में उनकी दलचस्पी है ही नहीं।


हाईकोर्ट में दायर हलफनामे में राज्य सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही कार्रवाई करते रहने का दावा किया है जबकि मुख्यमंत्री बार बार साबित करने की कोशिश कर रही हैं कि उन्हें कुछ भी मलूम नहीं है। वे रिजर्व बैंक और सेबी को जिन्नेदार ठहरा रही हैं तो सेबी और रिजर्व बैंकका पलटकर जवाब है कि बार बार जानकारी और चेतावनी देने के बावजूद राज्य सरकार ने समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की। राज्य सरकार पुलिसिया जंच को पर्याप्त बता रही है लेकिन उस जांच से अब तक तलाशियों और पूछताछ से सुदीप्त की दो बीवियों का तो पता नहीं ला, बेटे का भी सुराग नहीं लगा, तीसरी बीवी होने के बारे में जरुर मालूम हुआ, वह सुंदरी सुंदरियों की कतार में कौन सी कन्या है, जाहिर है कि पुलिस को इसके बारे में मालूम नहीं पड़ा। २३० बैंक खातों का पता चला। १८० खातों का ब्यौरा मिला जिसमें नकद डेढ़ करोड़ से कम है। देवयानी को पित्जा खिला खिलाकर मुंह खोलने के लिए तैयार किया, सुदीप्त के खास कारिंदों से पूछताछ हुई तो सुदीप्त की तीन करोड़ रुपये की बीमा के अलावा कुछ मालूम पड़ा नहीं। जो जमीन जायदाद, कारखानों, आदि का मामला सामने आया, उनमे सेज्यादातर फर्जी हैं और मुर्गी फंसाने के काम के हैं।ज्यादातर का न पंजीकरण है और न म्युटेशन हुआ। जाहिर है कि उनकी कुर्की जब्ती से भी कुछ निकलने वाला नहीं है और यह भी शायद संभव नहीं है। सुदीप्त ने कहां पैसा छुपाया या किसने उसके डाके पर डाकाडाला, पुलिस इस सिलसिले में रोज अंधेरे में कोई न कोई तीर चला रही है और उस तीर के पीछे मीडिया से राजनेता तक दौड़ रहे हैं।​

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​सिविल सोसाइटी का मुलम्मा तो नई सरकार के पे रोल में आने से ही खुल गया। बाकी रही सही कसर शुभोप्रसन्न और अर्पिता से लेकर अपर्णा तक ने पूरी कर दी। अब भूमि आंदोलन में सबसे बड़ी भूमिका अदा करने वाली महाश्वेता देवी तक ने सीबीआई जांच की मांग कर दी है।लेकिन तमाम बुद्धजीवियों को तो सांप सूंघ गया है। वे बोलना ही भूल गये।


कुल मिाकर ताजा हाल यही है कि आम लोगों का कुछ भला नहीं हो रहा। सब अपने ्पने राजनीतिक समीकरण साधने के फिराक में हैं। जनता को राहत देने के मूड में कोई नहीं है। सबने खीर खाकर मुंह पोंछ लिये, शिव की क्या क्षमता कि पता करें कि कौन अपराधी है और कौन नहीं। संचयिता और ओवरलैंड के ठगे बाजार से रिकवरी के बावजूद मारे मारे भटक रहे हैं अब भी, जबकि यहा तो ठन ठन गोपाल है। गणेश को ही उलट दिया और गणेश चतुर्थी मना रहे हैं धूमधाम से। मौत का सिलसिला जारी रहना है और आप ळास गिने रहिये। खीर किसने खाई, किसने नहीं खाई, यह हिसाब मिलने वाला नहीं है। मजा लेने का वक्त हैं, मजा लीजिये।



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