दीदी ने आलोचकों को ओवरबाउंडरी मारने के साथ पार्थ के पर भी छांट दिये!मदन मित्र और फिरहाद हकीम पर वरदहस्त।मुकुल को अभय।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कहा जा रहा है कि बंगाल में औद्योगीकरण की प्रक्रिया को तेज करने की खातिर मुख्यमंत्री ममत बनर्जी नें संबंधित कोर कमिटी के अध्यक्ष पद से ही उद्योगमंचत्री पार्थ चटर्जी को हटाकर खुद अध्यक्ष पद संभाल रही हैं।पहले इस कमेटी के अध्यक्ष थे उद्योग व वाणिज्य मंत्री पार्थ चटर्जी। अब इसकी अध्यक्ष ममता बनर्जी हैं। इसके अलावा इस कमेटी में नये सदस्य बतौर सारदा प्रकरण में बहुचर्चित मदन मित्र के अलावा गार्डेनरीच विवाद में चर्चित नगरविकास मंत्री फिरहाद हकीम भी हैं। नये सदस्यों में हैं पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी, श्रम मंत्री पूर्णेंदु बसु और पर्यावरण मंत्री सुदर्श घोष दस्तिदार। दीदी ने मीडिया में कुत्सा करनेवालों और प्रतिपक्ष व पार्टी के भीतर आलोचकों को ओवरबाउंडरी मारने के साथ पार्थ के पर भी छांट दिये।
कायदे से इस कदम की सराहना ही की जानी चाहिए कि दो साल बीत जाने के बावजूद राज्य में उद्योग और कारोबार की हालत सुधारने के लिए कोई पहल अबतक हुई ही नहीं है। पार्थ चटर्जी औद्योगिक नीति को दिशा देने में नाकाम ही रहे। निवेश भी लाने में अक्षम रहे। न औद्योगिक नीति बनी और न ही जमीन नीति। विकास के काम अधूरे हैं।आर्थिक परिदृश्य में भी लगातार गिरावट आ रही हैं। लेकिन कमिटी में फेरबदल करने से क्या फर्क पड़ेगा, समझ में आ नहीं रहा है। इस हिसाब से तो वित्त और उद्योग दोनों विभागों के मंत्रियों को तत्काल प्रभाव से हटा देना चाहिए।
दरअसल कोई मंत्री अपने हिसाब से काम नहीं कर सकता। दीदी के तेवर अभी विपक्षी नेता की ही है। सिंगुर मामले में अनिच्छुकों को जमीन लौटाने की उनकी जिद से लेकर एकदम ताजा प्रकरण नलबन की जमीन वापस लेने के लिए राज्य सरकार की नोटिस से मामला तो कुछ और ही है। दीदी बार बार दोहरा चुकी हैं कि राज्य सरकार जमीन नीति किसी हाल में नहीं बदलेगी। अब कमेटी के मत्थ बैठकर दीदी जमीन का मसला तो हल करने से रही, जिस उदारता के साथ पार्थ चटर्जी उद्योग और कारोबार जगत से संवाद कर रहे थे, उसका भी असमय पटाक्षेप हो गया।
शारदा समूह के भंडाफोड़ के बाद अंदर बाहर चौतरफा चुनौतियों के बाच दीदी की इस कार्रवाई को बागियों के सबक देने के मकसद से उठाया गया कदम समझा जा रहा है। क्योंकि शारदा संकट में मंत्रियों, सांसदों और दूसरे नेताओं के फंसे होने के एक के बाद एक मामला खुलते जाने पर सबसे पहले उद्योगमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस करके दागियों के खिलाफ कानून अपने तरीके से काम करेगा और पार्टी उनके बचाव में नहीं आयेगा, यह घोषणा की थी।
अब स्वंय मुख्यमंत्री आरोपों के घेरे में हैं। ऐसे में वे दागियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करके जवाबी हमला करने की रणनीति अपनाकर मैदान पर उतरकर केंद्र सरकार के साथ साथ विपक्ष और खासकर माकपाइयों के खिलाफ एक साथ कई मोर्चा खोल चुकी हैं। उन्होंने बिना किसी भेदभाव सभी पार्टी नेताओं का बचाव करते हुए उल्टे प्रतिपक्ष के सभी लोगों की फाइलें खोलकर उन्हें जेल में ठूंसने और उनके पोस्टर बना देने की चेतावनी भी दे दी है।सीबीआई का डर दिखाने से बाज आने की चेतावनी देते हुए केंद्र का तख्ता पलट देने की धमकी भी दे दी।
इसी बीच यह खुलासा भी हुआ कि उनके खासमखास नंबर दो के नेता मुकुल राय से पांच अप्रैल को मुलाकात करके ही छह अप्रैल को सीबीआई को पत्र लिखकर शारदा कर्णधार सुदीप्त सेन गायब हो गये।यह भी पता चला कि मुकुल राय़ के बेटे सुभ्रांशु राय को आजाद हिंद के मालिकाने के साथ सुदीप्त के मीडिया साम्राज्य को हस्तांतरित करने की प्रक्रिया इससे पहले शुरु हो गयी थी। मुकुल राय आरोपों के घेरे में हैं कि उन्हीं की सलाह पर सीबीआई को पत्र लिखकर पूरे मामले को दफा रफा करने की रणनीति बनायी गयी है और इस बैठक में सांसद कुणाल राय के अलावा दूसरे तृणमूल नेता भी थे। इससे सीधे तौर पर आरोप यह लग रहा है कि ममता दीदी के निर्देशन में ही ऐसा हो रहा है। माकपा नेता मुहम्मद सलीम ने तो दीदी को शारदा समूह का ब्रांड एम्बेसेडर तक बता दिया और पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य खुलेआम सार्वजनिक मंच से शारदा समूह और दूसरी चिटफंड कंपनियों के पीछे मुख्यमंत्री का वरदहस्त बता रहे हैं।
दीदी सीबीआई जांच का भी विरोध कर रही हैं। लेकिन सोमेन मित्र बार बार सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं।मदन मित्र और ज्योति प्रिय मल्लिक के साथ साथ मुकुल राय दीदी के बहुत करीब है। मुकुल को तो उन्होंने तत्कालीन रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को हटाकर उनकी जगह रेलमंत्री तक बना दिया।
ऐसे में दीदी सख्ती से दागियों के खिलाफ पार्टी में बगावत रोकने की कवायद में लग गयी हैं।
No comments:
Post a Comment