BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, January 9, 2016

काला रजिस्टर में दर्ज कालिया नहीं रहे उनका वह काला रजिस्टर तो जार्ज आरवेल के समयसंदर्भ में आज का सबसे बड़ा सच है।इसलिए उनका प्रोफाइल खंगालने की भी रीढ़हीन प्रजातियों के इस दुस्समय में मुझे जरुरी नहीं लग रहा है। अब शायद सत्ता के सीने में मूंग दलनेवाला कोई दूसरा शख्स भी नहीं है,जिनसे उनकी कमी पूरी हो। पलाश विश्वास

काला रजिस्टर में दर्ज कालिया नहीं रहे

उनका वह काला रजिस्टर तो जार्ज आरवेल के समयसंदर्भ में आज का सबसे बड़ा सच है।इसलिए उनका प्रोफाइल खंगालने की भी रीढ़हीन प्रजातियों के इस दुस्समय में मुझे जरुरी नहीं लग रहा है।


अब शायद सत्ता के सीने में मूंग दलनेवाला कोई दूसरा शख्स भी नहीं है,जिनसे उनकी कमी पूरी हो।

पलाश विश्वास

खबर तो सुबह ही हो गयी थी।फेसबुक पर लिख भी रहे थे मित्र।मगर हम उम्मीद कर रहे थे कि जैसे कामरेड एबी वर्धन के सम्मान में मौत के पांव ठिठक गये थे,वैसे ही हमारी जिनेचिक्स के बेलगाम हिंदी साहित्यकार  संपादक रवींद्र कालिया के सम्मान में भी मौत के पांव कहीं न कहीं चिछक जायेंगे।ऐसा मगर नहीं हुआ और खबरों ने पुष्टि कर ही दी।


रवींद्र कालिया कितने बड़े साहित्यकार या संपादक हैं,यह तय करना हमारा काम नहीं है लेकिन उनका जैसा तेवर और किसी का मैंने हिंदी में कम ही देखा है।


उनका वह काला रजिस्टर तो जार्ज आरवेल के समयसंदर्भ में आज का सबसे बड़ा सच है।इसलिए उनका प्रोफाइल खंगालने की भी रीढ़हीन प्रजातियों के इस दुस्समय में मुझे जरुरी नहीं लग रहा है।


रवींद्र कालिया और ममता कालिया कुछ साल पहले वागार्थ और भारतीय भाषा परिछद के सौजन्य से कोलकाता में भी रहे।


वैसे इलाहाबाद में शेखर जोशी और शैलेश मटियानी,अमरकांत और मार्केंडय,भैरवप्रसाद गुप्त के सौजन्य से उस जनपद के साहित्यकारों का जो साझा परिवार रहा है,वहां हमारी घुसपैठ भी रही है और हम उनको उनके कोलकाता प्रवास से काफी पहले से जान रहे थे।


अब साहित्य की दुनिया से तड़ीपार हूं तो मुलाकातें उस तरह नहीं हुई,लेकिन पिरभा मिलना हुआ है।


आखिर में हम ममता कालिया के लेखन के ज्यादा कायल हुए लेकिन छात्र जीवन में उनका काला रजिस्टर ने तो तहलका मचाया हुआ था और हमारे वे हीरो बन गये।


वह काला रजिस्टर अब भी असहिष्णुता का बहीखाता है और हम देख बूझ रहे हैं कि काला रजिस्टर का करिश्मा कैसे फासिज्म का राजकाज है।


उनके पिता ने इलाहाबाद में उनसे प्रेस खोलकर दिल्ली और मुंबई के सीने में मूंग दलने का जो कार्यभार सौंपा था,वे तजिंदगी वही करते रहे और कालिया ने कमसकम मठाधीशों की कदमबोशी की हो,ऐसा बदनाम उन्हें कोई कर नहीं सकता।


कालिया के मूल्यांकन में भी इस सच का खासा योगदान है।वैसे कालिया की कहानी 'नौ साल छोटी पत्नी'अकहानी आंदोलन के युग की शुरुआत थी। भाषा, विषय और कथ्य के मामले में यह सबसे अलग कहानी थी। इसी नाम से उसका एक कहानी संग्रह भी है। धर्मयुग में काम करते हुए कालिया ने 'काला रजिस्टर' कहानी लिखी जो काफी चर्चित हुई थी। वह सही मायने में उस पीढ़ी का स्तंभ था। इलाहाबाद में रहते हुए कालिया ने 'खुदा सही सलामत है' उपन्यास लिखा। यह हिन्दू-मुस्लिम एकता, भाईचारे का सर्वोत्तम उपन्यास रहा। इसके बाद कालिया अपने संस्मरणों के कारण चर्चा में आया। पत्रिका 'हंस' में एक धारावाहिक प्रकाशित हुआ 'गालिब छूटी शराब'।


दूधनाथ सिंह के शब्दों मेंःनौ साल छोटी पत्नी' और 'एक डरी हुई औरत' जैसी कहानियां लिखकर कालिया रातों रात प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंच गया। '5055' एक कहानी भी है और एक घर का नंबर भी जहां चार मित्र (हमदम, प्रयाग शुक्ल, गंगा प्रसाद विमल और संभवत: रवीन्द्र कालिया) एक साथ रहते थे। मोहन राकेश जालंधर में कालिया के अध्यापक थे। राकेश जी ने ही उसे धर्मयुग में भिजवाया। उसकी एक अलग कहानी है जिसकी परिणति 'काला रजिस्टर' जैसी महान कहानी के रूप में लिखकर हुई। कालिया तभी 1970 के आसपास इलाहाबाद आया। शुरू में वह अश्क जी के घर 5, खुशरोबाग में उनके साथ रहा।


गनीमत यह है कि धत तेरे की,कहते हुए उनने साहित्य की दुनिया को लावारिश गाय की लाश में तब्दील हो जाने का विकल्प नहीं चुना।


11 नवंबर 1938 को पंजाब के जालंधर में जन्में रवीन्द्र कालिया इलाहाबाद में बस गये थे और 60 के दशक में धर्मयुग पत्रिका में मशहूर लेखक धर्मवीर भारती के सहयोगी भी थे। वह कोलकाता से प्रकाशित पत्रिका वागर्थ के संपादक भी थे। बाद में वह दिल्ली भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक तथा ज्ञानोदय पत्रिका के संपादक बनकर दिल्ली चले आए और तब से वह यहीं रहने लगे थे। वह कैंसर के भी मरीज थे, और वह उससे उबरने भी लगे थे। फिर उन्हें लीवर सिरोसिस हो गया और उनकी किडनी भी खराब हो गयी थी। खुदा सही सलामत है, गरीबी हटाओ, गालिब छुटी शराब,काला रजिस्टर, नौ साल छोटी पत्नी, 17 रानडे रोड, एबीसीडी आदि उनकी ..चर्चित कृतियां हैं।

रवींद्र कालिया

परिचय


जन्म : 11 नवंबर 1938, जालंधर (पंजाब)

भाषा : हिंदी

विधाएँ : कहानी, उपन्यास, संस्मरण, व्यंग्य

मुख्य कृतियाँ


कहानी संग्रह : नौ साल छोटी पत्नी, काला रजिस्टर, गरीबी हटाओ, बाँके लाल, गली कूचे, चकैया नीम, सत्ताइस साल की उमर तक, जरा सी रोशनी, रवींद्र कालिया की कहानियाँ

उपन्यास : खुदा सही सलामत है, ए बी सी डी, 17 रानडे रोड

संस्मरण : स्मृतियों की जन्मपत्री, कामरेड मोनालिज़ा, सृजन के सहयात्री, ग़ालिब छुटी शराब, रवींद्र कालिया के संस्मरण

व्यंग्य : राग मिलावट मालकौंस, नींद क्यों रात भर नहीं आती

संपादन : वागर्थ, नया ज्ञानोदय, गंगा जमुना, वर्ष (प्रख्यात कथाकार अमरकांत पर एकाग्र), मोहन राकेश संचयन, अमरकांत संचयन सहित अनेक पुस्तकों का संपादन

सम्मान


उ.प्र. हिंदी संस्थान का प्रेमचंद स्मृति सम्मान, म.प्र. साहित्य अकादेमी द्वारा पदुमलाल बक्शी सम्मान, उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा लोहिया सम्मान, पंजाब सरकार द्वारा शिरोमणि साहित्य सम्मान

संपर्क


बी 3ए/3/3,सुशांत एक्वापोलिस, क्रासिंग रिपब्लिक के विपरीत, एन. एच-24 धुनदहेरा, गाजियाबाद-201016



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