BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Friday, January 29, 2016

पूर्व टिहरी रियासत में राजा के कारिंदे अथवा चमचे अवश्य काली टोपी पहनते थे । इसकी वजह यह थी कि राजा के सम्मुख नंगे सर न जाने की बाध्यता थी । बड़े राज कर्मी तो पगड़ी पहनते थे , लेकिन जन सामान्य टोपी से काम चलाता था । पगड़ी में कपड़ा बहुत लगता था , जो जन सामान्य के वश की बात नहीं थी ।सफेद टोपी चूँकि स्वाधीनता सेनानी पहनते थे , जिन्हें राज शत्रु माना जाता था । अतः राज भक्तों ने सफेद के धुर उलट काली टोपी अपनायी । कालान्तर में इस क्षेत्र में आर एस एस का प्रकोप बढ़ने पर अवश्य उनके अनुयायी काली टोपी पहनने लगे । वस्तुतः काली टोपी गुलामी का द्योतक है ।

अलग राज्य बनने के बाद काली टोपी को उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक पहचान घोषित करने का रिवाज़ ज़ोर शोर से चल पड़ा है । अच्छे भले समझदार और पढ़े लिखे लोग भी इस झांसे में आते देखे गए हैं । सच यह है कि काली टोपी उत्तराखण्ड की परम्परागत धरोहर हर्गिज़ नही है । यहां के कतिपय निवासी इस तरह की टोपी अवश्य पहनते रहे हैं , लेकिन , आवश्यक नहीं कि वह काली ही हो । किसी भी रंग की पहन लेते थे । पूर्व टिहरी रियासत में राजा के कारिंदे अथवा चमचे अवश्य काली टोपी पहनते थे । इसकी वजह यह थी कि राजा के सम्मुख नंगे सर न जाने की बाध्यता थी । बड़े राज कर्मी तो पगड़ी पहनते थे , लेकिन जन सामान्य टोपी से काम चलाता था । पगड़ी में कपड़ा बहुत लगता था , जो जन सामान्य के वश की बात नहीं थी ।सफेद टोपी चूँकि स्वाधीनता सेनानी पहनते थे , जिन्हें राज शत्रु माना जाता था । अतः राज भक्तों ने सफेद के धुर उलट काली टोपी अपनायी । कालान्तर में इस क्षेत्र में आर एस एस का प्रकोप बढ़ने पर अवश्य उनके अनुयायी काली टोपी पहनने लगे । वस्तुतः काली टोपी गुलामी का द्योतक है । अतः यदि आप आर एस एस के अनुयायी या राजा के गुलाम हैं तो अवश्य काली टोपी पहनिए , अन्यथा इसे तुरन्त उतार फेंकिए और बाज़ार से इसमें फल , सब्ज़ी , मूंगफली लाने का काम कीजिये । अथवा इसे चिड़िया भगाने के लिए खेत के बीचों बीच एक डंडे पर टांग दीजिये ।आपको उत्तराखण्डी होने के लिए कोई भी टोपी आवश्यक नहीं है । ठण्ड से बचने के लिए कान ढकने वाली गर्म टोपी पहनिए । टोपी एक अनावश्यक आडम्बर है । गांधी जी भी पहले पहनते थे । बाद में इसे फज़ूल समझ कर उन्होंने उतार फेंका । आप भी उतारिये । नंगे सर घूमिये । फैशन के लिए पहननी हो तो कोई अन्य टोपी पहनिए , न कि काली । चूँकि हमारे पड़ोसी पहाड़ी देश नेपाल में गोर्खाली टोपी का रिवाज़ है , अतः कुछ लोगों को लगता होगा कि हमारी भी एक टोपी होनी चाहिए । नकलची मत बनो । नेपाली तो भैंस खाते हैं , और शौच के बाद पानी नहीं बरतते । क्या तुम भी ऐसा करोगे ? अब आप किसी के गुलाम नहीं हैं । देश आज़ाद हुए 70 वर्ष होने को हैं ।
Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna's photo.

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