BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Friday, January 22, 2016

तिलका मांझी भारत के प्रथम स्‍वतंत्रता सेनानी हैं। 1857 की क्रांति से लगभग सौ साल पहले स्वाधीनता का बिगुल फूंकने वाले तिलका माँझी को इतिहास में खास तवज्जो नहीं दी गई।

Pramod Ranjan

तिलका मांझी भारत के प्रथम स्‍वतंत्रता सेनानी हैं। 1857 की क्रांति से लगभग सौ साल पहले स्वाधीनता का बिगुल फूंकने वाले तिलका माँझी को इतिहास में खास तवज्जो नहीं दी गई।

उन्होंने संथाल आदिवासियों द्वारा किये गए प्रसिद्ध 'संथाल विद्रोह' का नेतृत्त्व करते हुए 1771 से 1784 तक अंग्रेजों से लम्बी लड़ाई लड़ी तथा 1778 ई. में पहाडिय़ा सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप को अंग्रेजों से मुक्त कराया। 1784 में तिलका मांझी ने राजमहल के मजिस्ट्रेट क्लीवलैंड को मार डाला। इसके बाद आयरकुट के नेतृत्व में तिलका मांझी की गुरिल्ला सेना पर जबरदस्त हमला हुआ, जिसमें उनके कई लड़ाके मारे गए। कहते हैं उसके बाद अंग्रेज उन्‍हें चार घोड़ों में एकसाथ बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाये। मीलों घसीटे जाने के बावजूद वह पहाडिय़ा लड़ाका जीवित था। उनकी देह भले ही खून से लथपथ थी लेकिन उनका मस्तिष्‍क तब भी क्रोध से दहक रहा था। उनकी लाल-लाल आंखें ब्रितानी राज को डरा रहीं थीं। अंग्रेजों ने 13 जनवरी 1785 को भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष में लटकाकार उन्‍हें फांसी दे दी।

इतिहास द्वारा इस महान आदिवासी नायक की उपेक्षा का इससे बडा उदाहरण क्‍या होगा कि उनकी ऐसी कोई पेंटिंग उपलब्‍ध नहीं है, जिसे कृतज्ञ देशवासी सहेज सकें।

ख्‍यात चित्रकार डॉ. लाल रत्‍नकार ने इस कमी को फारवर्ड प्रेस के लिए तिलका मांझी के जीवन-दृश्‍यों के इन तीन चित्रों को बनाकर पूरा किया है। फारवर्ड प्रेस परिवार उनका आभारी है।

(तिलका मांझी के जन्‍म दिन 11 फरवरी, 1750 पर फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2016 अंक में प्रकाश्‍य)


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