BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Thursday, January 28, 2016

इस आन्दोलन से एक शुभ संकेत यह मिल रहा है, बहुजनस्वामी टाइप, टुकड़खोर दलित नेतृत्व, टोपी-दाढी वाला मुस्लिम ठेकेदार कयादत एकदम नंगा हो चुका है, जाहिर है गोटीबाज़ी फिट करने वाली राजनीति सडकों पर अपना वक्त जाया नहीं करती. कोई भी संघर्ष नागपुर को ध्वस्त किये बिना अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच सकता, लब्बे लुआब यही है...रोहित के प्रश्न पर देशभर में सड़क पर उतरे साथियों को लाल सलाम.

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Shamshad Elahee Shams


::: रोहित के सवाल का फलक बहुत बड़ा है ::::::
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चलिए फ़र्ज़ कीजिये अप्पा राव की जगह किसी दुसाध, बंडारू की कुर्सी पर उदित राज और स्मृति के मंत्रालय में उमा भारती को बैठा कर देशभर के अशांत छात्रों की मांग को मंज़ूर कर ली जाती है, तब क्या मसला हल हो जायेगा? इस वैचारिक विद्रूपता की निर्मम समीक्षा ३० जनवरी को रोहित के जन्मदिन पर आहूत विशाल प्रदर्शन में जरुर की जानी चाहिए.
सांप को कुचलने के लिए उसकी पूँछ नहीं सर पर वार करने की जरुरत है. अस्मितावादी राजनीति की सीमाओं का पर्दाफाश जरुरी है, वो जातिवादी वैचारिक आधार को सिर्फ एक तर्क से धूल धूसरित कर देंगे कि उनका नेता ही तेल्ली (शूद्र) है.
हमने अरब बसंत को मात्र पांच साल में बर्फ की सिल्ली बनते देख लिया है, बिना सशक्त विचारधारा के कोई आन्दोलन किसी मूलभूत बदलाव का संवाहक नहीं बनता. सरकार अथवा व्यक्ति (मंत्री) बदलने से जीवन में मूलभूत बदलाव नहीं आते. छात्र नौजवानों में यदि नया रचने की दक्षता नहीं तो फिर किसमें होगी? सवाल व्यक्तियों को बदलने का नहीं, नीतियों को बदलने का है जिसके चक्र में फंसे छात्र, किसान, नौजवान आत्महत्या करने को मजबूर हैं, आदिवासी, दलितों औरअल्पसंख्यकों की धुटन अपने चरम बिंदु पर है. इस हत्यारी-शोषक व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का है, नया भारत रचने का है, जाहिर है इस एजेंडे पर अम्बेडकरवादी उर्फ़ जॉन डूई की सीमाओं को ख़ारिज करने की भी जरुरत है जिनकी मान्यता है कि सत्ता सर्वोच्च चिंतनशील संस्था है जिसे नाराज़ नहीं किया जाना चाहिए, उसे जनांदोलनों के जरिये प्रभावित कर अपनी मांगे मनवाई जा सकती है, इस मेक्स वेबेरियन थाट को कचरे में अधपके लोग(नेता) नहीं बल्कि छात्र-नौजवान ही कूड़ेदान में डाल सकते हैं. वामपंथी संगठनों को भी सचेतन रूप से मनुवादी क्रियाकलापों को अपने संगठन ही नहीं विचार-व्यवहार क्षेत्र से भी निकाल फेंकने का सबसे अच्छा समय यही है, बहुत हो चुकी लिप सर्विस, अभी अमल दिखाने का वक्त है.
इस आन्दोलन से एक शुभ संकेत यह मिल रहा है, बहुजनस्वामी टाइप, टुकड़खोर दलित नेतृत्व, टोपी-दाढी वाला मुस्लिम ठेकेदार कयादत एकदम नंगा हो चुका है, जाहिर है गोटीबाज़ी फिट करने वाली राजनीति सडकों पर अपना वक्त जाया नहीं करती. कोई भी संघर्ष नागपुर को ध्वस्त किये बिना अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच सकता, लब्बे लुआब यही है...रोहित के प्रश्न पर देशभर में सड़क पर उतरे साथियों को लाल सलाम.
Comments
Santosh Kumar
Santosh Kumar बिना सशक्त विचारधारा के कोई आन्दोलन किसी मूलभूत बदलाव का संवाहक नहीं बनता. सत्य वचन ।
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Jayant Khafra
Jayant Khafra शासक वर्ग तो यही चाहता है कि रोहित वेमुला काण्ड पर बंडारु/ईरानी को हटा कर किसी पिछड़े/दलित को कुर्सी पर बैठा दो तो पिछड़ा/दलित वर्ग शांत हो जायेगा। वह जानते है कि इस तरह के प्रतीकात्मक कार्यों से होने वाला कुछ नहीं बस यह सब "safety valve " का काम करेंगे। जब तक धर्म की जड़ों पर निर्मम प्रहार नहीं होता और इसे जड़ समेत नहीं फेंका जाता, समस्या रहेगी और फलेगी भी।
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Ghanshyam C. Gupta
Ghanshyam C. Gupta "सवाल व्यक्तियों को बदलने का नहीं, नीतियों को बदलने का है", सही बात है। योजना आयोग का नाम बदल कर नीति आयोग कर देने से मुराद नहीं है। नीतियां बदली जायें, और वो भी सही दिशा में। यानी अच्छे दिन नहीं ला सकते तो कम से कम और बुरे तो न लाओ। मौन बुरा था तो बेसुरी दहाड़ ही कौन सी कर्णप्रिय है।
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कलीम अव्वल
कलीम अव्वल तथाकथित विकल्प के रूप में उभरी पार्टी वास्तविक विकल्प नहीं बन पाई !! वस्तुतः / ये पार्टी पूर्ववर्ती पार्टी के सम्यक /सदृश भी नहीं बन पायी !! रीति- नीति पूंजीवाद को रहन हो गयीं !! आमजन /झांसे में आकर/ पिस कर रह गया !!!ये/दुर्भाग्यपूर्ण है !!!
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Vinod Bhaskar
Vinod Bhaskar अगर आदमी बदलने से फर्क पड़ता तो यूपी में दलित समस्या हल हो गई होती.
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