BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Sunday, July 7, 2013

बहुत बड़े पुलिस वाले शामिल थे इशरत जहां के फर्जी इनकाउंटर में

बहुत बड़े पुलिस वाले शामिल थे इशरत जहां के फर्जी इनकाउंटर में


शेष नारायण सिंह

Ishrat Jahan, इशरत जहाँ, इशरत जहांगुजरात में हुये इशरत जहां के फर्जी इनकाउंटरकेस में सीबीआई ने पहली चार्जशीट दाखिल कर दिया है। आरोपपत्र में लिखा है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो और गुजरात पुलिस ने मिलकर फर्जी इनकाउंटर को अंजाम दिया था और पुलिस की कस्टडी में पहले से ही लिये जा चुके लोगों को साजिशन मार डाला।

मामला मुंबई की एक लडकी इशरत जहां का है जिसे गुजरात पुलिस के बड़े अधिकारी डी जी वंजारा ने तथाकथित आतंकियों के साथ अहमदाबाद में जून 2005 में फर्जी मुठभेड़ में मार डाला था। इनकाउंटर के बाद बताया गया कि इशरत जहां चार लोगों के साथ अहमदाबाद जा रही थी और उन लोगों का इरादा मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की ह्त्या करना था। लेकिन इशरत जहां की माँ पुलिस की इस बात को मानने को तैयार नहीं थीं कि उनकी लड़की आतंकवादी है। मामला अदालतों में गया और सिविल सोसाइटी के कुछ लोगों ने उनकी मदद की और जब सर्वोच्च न्यायालय की नज़र पड़ी तब जाकर असली अपराधियों को पकड़ने की कोशिश शुरू हुयी। न्याय के उनके युद्ध के दौरान इशरत जहां की माँ, शमीमा कौसर को कुछ राहत मिली जब गुजरात सरकार के न्यायिक अधिकारी, एस पी तमांग की रिपोर्ट आयी जिसमें उन्होंने साफ़ कह दिया कि इशरत जहां को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया था और उसमें उसी पुलिस अधिकारी, वंजारा का हाथ था जो कि इसी तरह के अन्य मामलों में शामिल पाया गया था। एस पी तमांग की रिपोर्ट ने कोई नयी जाँच नहीं की थी, उन्होंने तो बस उपलब्ध सामग्री और पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट के आधार पर सच्चाई को सामने ला दिया था।

इशरत जहां के मामले में मीडिया के एक वर्ग की गैर जिम्मेदाराना सोच भी सामने आ गयी थी। अपनी बेटी की याद को बेदाग़ बनाने की उसकी मां की मुहिम को फिर भारतीय लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था में विश्वास हो गया।

एस पी तमांग की रिपोर्ट आने के बाद इशरत जहां की माँ,शमीमा कौसर ने बहुत कोशिश की। निचली अदालतों से उसे कोई राहत नहीं मिली। शमीमा कौसर ने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार की और देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला आया तब जाकर इशरत जहां केस के फर्जी मुठभेड़ से सम्बंधित सारे मामलों की जाँच शुरू हुयी। सीबीआई की मौजूदा चार्ज शीट उसी प्रक्रिया का नतीजा है।

चार्जशीट में जो बातें सामने आयी हैं, वे सरकार की मंशा और पुलिस वालों की बर्बरता को रेखांकित करती हैं। सीबीआई ने जो चार्जशीट दाखिल की है वह अभी अधूरी है। यह जाँच ऐसी नहीं है जिसमें सीबीआई अधिकारी नियम कानून से हटकर मनमानी कर सकेंगे। इसमें कोई हेराफेरी की संभावना नहीं है। यह जाँच और इसके नतीजों पर आराम से विश्वास किया जा सकता है। जून 2005 में इशरत जहां का फर्जी इनकाउंटर हुआ था। गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि उन्होंने तो कुछ नहीं किया था, उनको तो गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाली संस्था इंटेलिजेंस ब्यूरो ने बता दिया था कि चार आतंकवादी नरेंद्र मोदी को मारने जा रहे हैं। उनको पहचान लिया गया और जब गुजरात पुलिस ने उनको चैलेन्ज किया तो उन लोगों ने गोलियाँ चलाना शुरू कर दिया। गुजरात पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की और चारों आतंकी मार डाले गये। लेकिन जानकारों ने तुरन्त कहना शुरू कर दिया कि यह फर्जी इनकाउंटर था। जहाँ तक केंद्रीय सरकार की तरफ से आयी जानकारी की बात है, वह भी फर्जी थी और उसे इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक अफसर ने मनगढ़ंत तरीके से तैयार किया था। इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि आम तौर पर इंटेलिजेंस ब्यूरो इस तरह के खतरनाक खेल में शामिल नहीं होती जिसके कारण एक संगठन के रूप में उसकी पोजीशन खराब हो। पुलिस के बहुत बड़े अफसरों से बात हुयी तो उन लोगों ने भी इस बात की संभावना को बहुत दूर की कौड़ी बताया। लेकिन जब सीबीआई की जाँच शुरू हुयी और जाँच की दिशा सही ढर्रे पर चल निकली तो गुजरात सरकार चलाने वाली राजनीतिक पार्टी के सर्वोच्च स्तर से इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक अधिकारी को बचाने की कोशिश शुरू हो गयी। देश के सबसे ज़्यादा सर्कुलेशन वाले अखबार में बीजेपी के बहुत बड़े नेता ने मुख्य लेख लिखकर सरकार से अपील किया कि अगर इंटेलिजेंस ब्यूरो को किसी जाँच में दोषी पाया गया तो देश के बहुत नुक्सान होगा।

जब इतने बड़े पैमाने पर उस अधिकारी को बचाने का अभियान चलाया गया तो तस्वीर साफ़ हो गयी कि जो बातें शुरू में शक के दायरे में थीं वे वास्तव में सही थीं। अपनी शुरुआती चार्जशीट में सीबीआई ने इंटेलिजेंस ब्यूरो के लोगों पर आरोप तय नहीं किया है लेकिन उनके नाम हैं। यह लिखा है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो के चार अधिकारियों ने गलत सूचना देकर इशरत जहां और तीन अन्य लोगों को फँसाने में सहयोग किया था और वारदात के वक़्त वहाँ मौजूद थे। अभी जाँच जारी है। आगे की जाँच सच्चाई को सामने लाने में कामयाब होगी,ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।

सीबीआई की चार्जशीट में गुजरात पुलिस के अधिकारी पी पी पाण्डेय का नाम है। पी पी पांडे आजकल फरार हैं और गुजरात पुलिस उन्हें तलाश नहीं पा रही है। सीबीआई की चार्जशीट के आनुसार मुंबई के एक कॉलेज में पढ़ने वाली इशरत जहां और तीन अन्य लोगों को अहमदाबाद के क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने पहले अपहरण किया, कुछ दिन तक गैरकानूनी तरह से हिरासत में रखा और बाद में मार डाला। गुजरात पुलिस के जिन अधिकारियों पर आरोप लगाये गये हैं उनमें उन डी जी वंजारा का नाम भी है जो इस तरह के कई फर्जी इनकाउंटर के मामलों में अभियुक्त हैं। डी जी वंजारा उस वक़्त डी आई जी थे। उनके बॉस पी पी पांडे, पुलिस अधीक्षक, एन के अमीन, जी एल सिंहल, जे एस परमार और तरुण बारोट भी चार्जशीट में बतौर अभियुक्त दर्ज किये गये हैं। इन पुलिस वालों पर ह्त्या, आपराधिक साज़िश, अपहरण, गैरकानूनी तरीके से किसे एको पकड़ कर रखना और सबूत नष्ट करने के आरोप हैं। आर्म्स एक्ट की धाराओं में भी इन लोगों को दोषी पाया गया है। आरोप बहुत गंभीर हैं क्योंकि उनमें लिखा है कि जब इन लोगों को पकड़ कर डी जी वंजारा के एक दोस्त के फ़ार्म हाउस पर गैरकानूनी तरीके से रखा गया था तो वंजारा, पी पाण्डेय और इंटेलिजेंस ब्यूरो के बड़े अफसर राजेन्द्र कुमार ने इन लोगों से बातचीत की थी। बाद में पी पी पाण्डेय, वंजारा और राजेन्द्र कुमार ने वंजारा के घर पर बैठकर साज़िश रची थी। आरोप है कि मारे गये लोगों में से दो, जीशान जौहर और अमजद अली तो अप्रैल 2004 से ही क्राइम ब्रांच की गैरकानूनी कस्टडी में थे, उनको सरकारी रिकॉर्ड में कहीं भी गिरफ्तार नहीं दिखाया गया था। डी जी वंजारा सारे मामले के सरगना लगता है क्योंकि उसी ने जी एल सिंहल को हथियारों का इंतज़ाम करने को कहा था और उसने ही सिंहल को निश्चिन्त किया था कि घबराओ मत। उसी ने सिंहल को फर्जी इनकाउंटर के होने के पहले ही वह एफआईआर दिखा दिया था जिसे बाद में पुलिस में फ़ाइल किया जाना था। जाहिर है कि अगर इतने बड़े अधिकारियों ने मारे गये लोगों से बातचीत की थी तो पुलिस की यह बात बिलकुल बेबुनियाद साबित हो जायेगी कि मारे गये लोगों को सही इनकाउंटर में मारा गया था।

शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार है. इतिहास के वैज्ञानिक विश्लेषण के एक्सपर्ट. सामाजिक मुद्दों के साथ राजनीति को जनोन्मुखी बनाने का प्रयास करते हैं. उन्हें पढ़ते हुए नए पत्रकार बहुत कुछ सीख सकते हैं.

उम्मीद की जानी चाहिये कि इस मामले की जाँच के बाद पुलिस वालों के मन में फर्जी इनकाउंटर करने की ललक कम होगी और न्याय का निजाम कायम होगा क्योंकि सर्वोच्च न्यायालयने फर्जी मुठभेड़ के मामलों में बहुत ही सख्त रुख अपनाया है। राजस्थान के फर्जी मुठभेड़ के अक्टूबर 2006 के एक मामले की सुनवाई के दौरान माननीय सर्वोच्च न्यायालयने कहा कि ऐसे मामलों में शामिल पुलिस वालों को फाँसी दी जानी चाहिए। माननीय सर्वोच्च न्यायालयने कहा था कि अगर साधारण लोग कोई अपराध करते हैं तो उन्हें साधारण सज़ा दी जानी चाहिए लेकिन अगर वे लोग अपराध करते हैं जिन्हें अपराध रोकने की ज़िम्मेदारी दी गयी है तो उसे दुर्लभ से दुर्लभ अपराध मानकर उन्हें उसी हिसाब से सज़ा दी जानी चाहिए।

राजस्थान के इस मामले में पुलिस के बहुत बड़े अधिकारी भी शामिल थे। दारा सिंह नाम के एक व्यक्ति को पुलिस ने यह कहकर मार डाला था कि वह हिरासत से भाग रहा था। जबकि उस व्यक्ति की पत्नी ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने सोचे समझे षड्यंत्रके तहत उसकी हत्या की थी। बात सर्वोच्च न्यायालयतक पंहुच गयी और देश की सर्वोच्च अदालत ने सख्ती का रुख अपनाया और सीबीआई को आदेश दिया कि मामले की फ़ौरन जाँच की जाए। इस बात में दो राय नहीं है कि आम आदमी को अपने हिसाब से फौरी इंसाफ़ दिलवाने की कोशिश में पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग करती रहती है। लेकिन फर्जी मुठभेड़ों के कुछ ऐसे मामले भी प्रकाश में आये हैं जो सभ्य समाज के माथे पर कलंक से कम नहीं हैं। लेकिन यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय हर मामले संज्ञान में लेगा। ज़रूरत इस बात की है कि देश का हर नागरिक अन्याय के खिलाफ हमेशा चौकन्ना रहे और अगर ज़रूरत पड़े तो आम आदमी लामबंद होकर न्याय के लिये आन्दोलन तक करने के लिये तैयार रहे। अगर ऐसा हुआ तो न्याय का राज कायम होने की संभावना बहुत बढ़ जायेगी ।


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