BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Wednesday, July 31, 2013

चलो भाग चलें अमेरिका की ओर

चलो भाग चलें अमेरिका की ओर

By  


पूरी दुनिया दो बातों की दीवानी हो चली है। एक अमेरिका का पिज्जा और दूसरा अमेरिका का वीजा। जिसे देखो वह अमेरिकन पिज्जा खाना चाहता है और मौका मिलते ही अमेरिकी वीजा हथियाकर अमेरिका भाग जाना चाहता है। वैसे आज के अमेरिका के लिए यह कोई नया काम नहीं है। यह देश ही भगोड़े, नालायकों और अपराधियों का बसाया हुआ देश है। यूरोप के नालायकों ने जब अमेरिका में कदम रखा तो सबसे पहले वहाँ के मूल निवासियों को अपना गुलाम बनाया और फिर पैसा बनाने के धंधे में लग गए।

चूँकि सबका अमेरिका जाने का मकसद अधिक से अधिक धन एकत्र करना था इसलिए जितनी भी चीजें इस काम में सहायक थीं सब विकसित की गयीं। लुटेरों की कोई सामाजिक संस्कृति नहीं होती है इसलिए उन्होंने अपने मनमाने कायदे -कानून तय किये। कम समय में भोजन करने और थके दिमाग और शरीर को रिलैक्स करने के उपाय ढूंढ़े जिसको अमरीकन कल्चर कहा जाता है। पूरी दुनिया इस अमरीकन कल्चर को गाली देती है लेकिन इसके चंगुल में बुरी तरह फँस चुकी है, दुनिया के लगभग सभी देश अमरीका से घृणा करते हैं। चूँकि लुटेरों की खास प्रवृत्ति होती है कि वो हर किसी को अपने जूते की नोक पर रखना पसंद करते हैं इसलिए अमेरिका भी इसी का पोषक है।

माल कमाने की होड़ में बौद्धिक विकास को बहुत तरजीह नहीं दी जाती है क्योंकि इस प्रक्रिया में बुद्धिमान लोगों को खरीद कर अपनी खराद पर चढ़ा दिया जाता है। अमेरिका ने भी तमाम दिमागदारों को खरीद कर अपने धंधे में शामिल कर लिया है, दुनिया भर के लोग उसकी प्रयोगशालाओं में खट रहे हैं। अमेरिकन्स की अपनी बुद्धि का आलम ये है कि जब अफगानिस्तान पर हमला करने की बात आई तो अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने सलाहकार से पूछा ये देश है किधर जब उनको समझाया गया कि चाहे जहाँ हो पर बिन लादेन ग्रुप और उसकी सहयोगी अमेरिकी कंपनियों के आर्म्स एंड कंस्ट्रक्सन बिजनेस के लिए हमला जरुरी है तो मिस्टर प्रेसीडेंट ने हमले का आदेश दिया। कहा गया कि हफ्ते भर का मामला है लेकिन बाद में पता चला की आर्थिक मंदी से उबरने के लिए हथियार कम्पनियाँ चाहती हैं कि युद्ध चलता रहे तो तब से कई प्रेसीडेंट चले गए लेकिन युद्ध जारी है। सद्दाम हुसैन और कर्नल गद्दाफी ने ये हिम्मत दिखाई थी कि संयुक्त राष्ट्र संघ में खुले आम कहा था कि ये संस्था दुनिया का नहीं अमेरिकी हितों का प्रतिनिधित्व करती है और यहाँ बैठने वाले अमेरिकी टट्टू हैं फिर उनका क्या हाल हुआ दुनिया जानती है। गली -मोहल्ले के दादा के खिलाफ बोलने वाला एक्सीडेंट में मारा जाता है तो दुनिया के दादा के खिलाफ बोल कर कोई कैसे बच सकता है। ईराक पर रिपोर्ट तैयार करवाई गयी कि उसके पास खतरनाक रासायनिक हथियार हैं जो मानवता के लिए खतरा हैं, हमला हुआ, ईराक आज तक कराह रहा है। जिन नदियों के किनारे मानव सभ्यता का एक अंग विकसित हुआ था आज वहाँ मातम है, ये अलग बात है कि रिपोर्ट तैयार करनेवाली टीम के मुखिया ने बाद में आत्महत्या करली थी क्योंकि वो झूठी रिपोर्ट दबाव में लिखवाई गयी थी।

सबसे बड़ी बात, जिनके वीसा पर वाद विवाद हो रहा है, उन्हें भले शांति का नोबल पुरस्कार न मिले लेकिन बता दीजिये कि उनकी कौन सी पॉलिसी अमेरिका के विरोध की है? सारे तौर तरीके अमेरिकी, वही विकास और उसी तरह नफासत से अपने रास्ते में आने वाले को किनारे लगाना, वही टेक्नोलोजी और वैसे ही बिग ओ की तरह हवाई समां बांधना क्योंकि बाज़ार को अभी जरुरत है कि माल बिकता रहे, ब्राण्ड टिका रहे। कहीं ये अमेरिकन प्रोडक्ट ही तो नहीं है?अमेरिका को बेसिकली बैंकर्स और मल्टी नेशनल कम्पनियाँ चलाती हैं यानी जिस आधार पर लुटेरों ने नया अमेरिका बनाया था वो अभी कायम है साथ ही अधिक मजबूती से पूरी दुनिया को लीलने की कोशिश में सफलता से बढ़ रहा है। अभी आर्थिक मंदी का दौर था और जेलों में अस्सी प्रतिशत ब्लैक अपराधी ही थे तो कुछ तूफानी करने के नाम पर एक ब्लैक प्रेसीडेंट बना दिया गया, जिसकी नस्ल और धर्म को लेकर भी बहस चली, कभी मिडिल नेम हुसैन तो कभी अफ्रीका, इंडोनेशिया और हवाई में अपनी जड़ तलाशने वाले प्रेसीडेंट। इनके पहली बार राष्ट्रपति बनने के बाद नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन में हफ्ते भर बचे थे, नामांकन हुआ और पुरस्कार भी मिस्टर बिग ओ को मिल गया, बोलते तो इतना बढ़िया हैं कि उनका भाषण लिखने वाले को हायर करने के लिए लोगों की लाईन लगी है। मिस्टर प्रेसीडेंट 'नोबल फॉर पीस विनर' सिविल लिबर्टी को लेकर भी बहुत चिंतित हैं, सीरिया में मानव सभ्यता का भीषणतम संघर्ष चल रहा है पर हथियार कम्पनियाँ अभी चलाये रखना चाहती हैं इसलिए बिग ओ शांत हैं। देश में गन कल्चर को रोकने के लिए तमाम लोग सड़क पर हैं पर नए नियम आगये कि हर स्कूल के बाहर कम से कम दो गनमैन रहेंगे, बच्चे जिन बंदूकों को फिल्म में देखते थे, अब स्कूल में ही देखा करेंगे।

ईराक में अमेरिकन सैनिकों द्वारा मासूम बच्चों और सामान्य खरीदारों के ऊपर हेलिकॉप्टर से गोलियाँ बरसाने की असामान्य तस्वीर को दुनिया के सामने रख देने वाला अमेरिकन सिपाही ब्रैडली मैन्निंग लगभग डेढ़ सौ साल की सजा के लिए जेल में है, इसके विरोध में हजारों लोगों के साथ मिस्टर ओ को लॉ पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर भी सड़क पर उतर चुके हैं लेकिन लिबर्टी को स्टेच्यू बना कर रख देने वाला प्रेसीडेंट मुस्कुरा रहा है। उसे मोंसेतो और मैक डोनाल्ड के सपनों को पूरा करना है। अभी एक अमेरिकन ख़ुफ़िया अधिकारी ने खुलासा किया है कि कैसे चंद डालर के लिए किसी शिया से सुन्नी मस्जिद में बम ब्लास्ट करवाया जाता है और कैसे किसी सुन्नी को फाँस कर शियाओं के कब्रिस्तान में मिटटी देने आये लोगों पर गोलियाँ चलवाई जाती हैं, फिर तो ख़ुदा के बन्दे आगे का काम खुद ही आसान कर देते हैं।

लुटेरों, माफियाओं की हवेली में जाने से पहले बहुत कड़ी जामा तलाशी होती है, अपनी करतूतों से वो ढेर सारे दुश्मन पाले रहते हैं और साथ ही गैंग के भी कुछ खास लोगों को पास फटकने की अनुमति नहीं होती। ये ख़ास लोग अंडर कवर एजेंट के रूप में काम करते हैं और अपनी दुनिया में बादशाह होते हैं, जिनका विरोध नहीं किया जा सकता क्योंकि वो बाज़ार के लिए भी मुफीद होते हैं,उनके सहारे बाज़ार विस्तार पाता है। अमेरिका में भी हर कोई घुस नहीं सकता, गेट पर नंगा कराकर तलाशी होती है और कुछ लोगों को तो बाहर ही रखा जाता है जो अमेरिकी एजेंडे पर अपनी दुनिया चलाते हैं।

सुना है एक संस्कारी पार्टी के मुखिया भी वीसा एजेंट की तरह अमेरिका में किसी का वीसा दिलवाने की बात करने गए थे, उनके साथ नीरा राडिया को भारत में स्थापित करवाने वाले अनंत प्रतिभा के धनी सज्जन भी थे लेकिन लॉबीइंग काम नहीं आई। उस पर से कोढ़ पर खाज की बात ये हुई की देश के कुछ सांसदों ने अपने मामा को ख़त भेज दिया की वीसा मत देना, अजीब हाल है अपने अंदरूनी मामलों में मामा को क्यों बुला रहे हो भाई? वो भी उसको जिसे हमेशा गाली देते हो, साथ ही जो वीसा माँगने गए थे वो खुद किसको भरम में डाल रहे हैं ? पोस्टर लग चुके हैं कि अगला प्रधानमंत्री बनने वाला है, बन जाने दो तब खुद ही स्टेट गेस्ट बन कर अमेरिका जाने का मौका मिल जाएगा या माँगने गए लोगों को खुद ही भरोसा नहीं है कि ऐसा भी कभी होगा ?

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...