BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Monday, July 29, 2013

आंदोलन से पहले

  • आंदोलन से पहले

    मित्रों जब कोई समाज में आस पास हो रहे गैर कानूनी कामो को होने देता है और उसमे खुद भी शामिल होने लगता है, गलत लोगो को इज्जत देता है, नेताओं को हार पहनता है भले ही उसे मालूम हो कि वो नेता भ्रष्ट है, अपनी जाति, धर्मं और भाषा के आधार पर अपनी प्राथमिकता तय करता है. नदियों के किनारे खुद ही कोशिश करता है कि कुछ निर्माण हो जाये. समाज में मुद्दों पर कोई बात नहीं करता, तो ऐसा समाज सब कुछ कर सकता है लेकिन अपने नागरिक अधिकारों के लिये आन्दोलन नहीं कर सकता. आप मानो या ना मानो कोमोबेश आज उत्तराखण्ड की स्थिति भी यही है ! 

    आन्दोलन तो अपने आप खड़े होते, जब हम अपने चारों और गलत हो रही बातों पर ऊँगली उठाना शुरू करते है तो एक स्थिति ऐसी आती है कि आन्दोलन अपने आप ही खड़े हो जाते है. राज्य के लोगो के बेच एक ऐसा वर्ग भी है जो बांध चाहता है, ये लोग विरोध करने पर चेहरे पर कालिख लगा देते है फिर उस कालिख पोतने वाले को इनाम देते है. इनका विरोध या इनके विरुद्ध कोई जन आक्रोश नहीं होता ? चंद लोगो के निजी से बना पंजीपति वर्ग एक ऐसा बड़ा वर्ग है जो लोगो को अपनी और खींच लेता है. इस समाज में HIV /AIDS, भूर्ण हत्या जैसे मुद्दों पर काम करने वालों पर समाज ध्यान नहीं दिया देता, आम आदमी अपनी छोटी छोटी चीजों से जूझता रहता है, उनकी बात को भी सुनना हम सभी का फ़र्ज़ होता है ताकि वो एक बड़ी चीज़े के लिए तैयार रहे.

    इसलिए शाह जी आप लोग जितने भी पर्यावरण में काम करने वाले लोग है, चाहे वो आन्दोलन से जुड़े हो, आप सभी को किसी भी कारण से हो, उनको एक साथ कोई रणनीति बनाने के लिए एकत्रित करना जरुरी है ताकि सरकार के सामने कुछ ऐसा दस्तावेज दे सकें की सरकार को सुनना ही पड़े. हम आज तक ये सुनिश्चित नहीं कर सके है कि हमारी असल में मूलभूत समस्या क्या है ? 

    आम आदमी अभी पूरी तरह अस्वस्त नहीं है. उसको कंपनी वाला कह देता है तेरे मंदिर ठीक करा दूंगा तो वो मान जाता है. अपने को आंदोलनकारी कहने वाले ये तथाकथित सामाजिक लोग छोटे मोटे मुद्दों पर बात नहीं करते और मजे की बात है कि छोटे मोटे मुद्दे ही अन्दोलनो को या तो होने ही नहीं देते या फिर कमजोर बनाते है ? कितने ही लोग है जो बीमारी से जूझते रहते है उनकी न तो सरकार सुनती न ही एक्टिविस्ट ना आन्दोलनकारी क्योंकि उसके लिए ये मुद्दा ही नहीं होता. 

    मैंने बागेश्वर की सरयू नदी पर हो रहे अतिक्रमण की बात उठाई तो बहुत से पर्यावरणविद कहने लगे ये कोई गंभीर मुद्दा नहीं है ये तो केवल goverance का मामला है, यह बात १३ जून को वन शौध संस्थान, देहरादून की सेमिनार के दौरान की है. १६-१७ जून की त्रासदी में यही मुद्दा एक बड़े रूप में सामने आगया. पंचेश्वर के मुद्दे पर पहले भी बातें हुई थी लेकिन टिहरी आन्दोलन और अन्य आन्दोलन के रहते उस पर ध्यान नहीं दिया गया. १९९८ में कितने सामाजिक कार्यकर्ता वहां पर गए थे उन गाँव में जहाँ पर ये घटना हुई थी. आन्दोलन भी बिना किस संसाधन के नहीं हो सकता है. जब किसी आन्दोलन का प्रचार अधिक हो जाता है तो उसमे बहुत से लोग आने लगते है जो संसाधन से लैस होते है. तो फिर नेतृत्व की समस्या भी सामने आ जाती है. जब तक आम आदमी उसमे नहीं जुड़ सकेगा जब तक कोई बड़ा आन्दोलन खड़ा नहीं किया जा सकता है. समाज के सभी वर्ग जाति के लोग जब तक एक मंच पर नहीं आ सकेगे जब तक ये कठिन है. अब तक ऐसा ही हुआ है. 

    एक बात और जरुरी है कि हम ये बात पक्की तौर पर कहे दे कि हमें बाँध चाहिए की नहीं. होता क्या है हम कहते है कि हमें बांध नहीं चाहिए गाँव के स्तर पर लेकिन हमारी रिपोर्ट और कोर्ट केस हमेशा परियोजना को सही करने के लिए होते है. तो पहले हमें तय करना है कि हमारी प्राथमिकता है क्या ?हम एक बात को तय करे और फिर आगे बढे ताकि टूटने का मौका ना रहे. जो बाँध बनाने से रोके गये हैं उस पर एक वर्ग है जो उसको चालू करने की बात कहता है, इनको भी हमें समझाना है. 

    जेपी आन्दोलन तो साफ़ था कि कांग्रेस और इंदिरा को हटाना है. जेपी सम्पूर्ण क्रांति की बात कह रहे थे लेकिन अधिकाँश लोगो को तो सत्ता को बदलना था, वो बदली और जनता सरकार आई फिर सब कुछ बदल गया, सम्पूर्ण क्रांति की बात कहीं खो गई, वो केवल कहने के लिए ही रहा. यही परिणति आंदोलनों की भी हो जाती है. वो कहते no dam लेकिन उनके पेपर और कोर्ट केस उस परियोजना को सही करने के लिए होते है. इस बात को समझ कर ही आगे बढ़ा जाये तो एक ठोस बात निकल कर आ सकती है. आन्दोलनकारी अगर राजनीति से दूर रहेगा तो ज्यादा ठोस तरीके से काम कर सकता है. 
    अब समय आगया है की इस पर गंभीरता से ध्यान देना ही पड़ेगा. 

    साभार : रमेश कुमार मुमुक्षु

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...