कुडनकुलम परमाणु संयंत्र पर देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पर्यावरण आंदोलन को गहरा धक्का!
पलाश विश्वास
कुडनकुलम परमाणु संयंत्र पर देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पर्यावरण आंदोलन को गहरा धक्का लगा है। सबसे बड़ी बात है कि मामनीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसे आर्थिक विकास के लिए बेहद जरुरी बताया है। यह युक्ति भविष्य में भारतीय बहुसंख्य जनता के लिए कारपोरेट एकाधिकारवादी आक्रमण के सिलसिले में जनसंहार संस्कृति के तहत बेहद मारक साबित हो सकती है। गौरतलब है आदिवासियों की बेदखली का औचित्य, मौलिक अधिकारों के हनन, बायोमेट्रिक नागरिकता, सशस्त्र सैन्य बल विशेषाधिकार कानून जैसे दमनकारी आईन के प्रयोग, संविधान की धारा ३९ बी और ३९ सी , पांचवीं और छठीं अनुसूचियों के उल्लंघन के मामलों में भी राष्ट्रहित और विकास के तर्क ही दिये जाते हैं।
तमिलनाडु के कुडनकुलम न्यूक्लियर प्लांट से जुड़ी याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज इसे हरी झंडी दे दी है। कोर्ट के मुताबिक, आर्थिक विकास और जनहित में इस प्लांट का शुरू होना जरूरी है। कोर्ट ने साथ ही सरकार को सुरक्षा संबंधित जरूरी कदमों का ध्यान रखने की हिदायत भी दी है।सुप्रीम कोर्ट ने कुडनकुलम परमाणु संयंत्र को सुरक्षित बताते हए उसे शुरू करने की इजाजत दे दी है। समाचार एजेंसियों के मुताबिक़ अदालत ने सोमवार को कहा कि सार्वजनिक हित और देश की आर्थिक वृद्धि को देखते हुए यह करें संयंत्र बहुत जरूरी है।इससे पूर्व इस याचिका में सुरक्षा का हवाला देते हुए न्यूक्लियर प्लांट को शुरू होने से रोकने की मांग की गई थी।इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने प्लांट में फ्यूल लोड करने का काम शुरू करने की इजाजत दे दी थी, जिसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। प्रधानमंत्री सहित सरकार के कुछ मंत्री पहले ही कह चुके हैं कि दिसबंर से प्लांट चालू हो जाएगा। प्लांट के आसपास के गांववाले अपनी सुरक्षा का हवाला देते हुए न्यूक्लियर प्लांट का पुरजोर विरोध करते रहे हैं।
कुडनकुलम परमाणु संयंत्र शुरू करने को जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस दीपक मिश्र की बेंच ने हरी झंडी दी। इस बेंच ने तीन महीने तक चली सुनवाई के बाद अपना फ़ैसला सोमवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया था।
न्यायालय ने कहा कि देश की वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की ज़रूरत है। कुडनकुलम संयंत्र को सरकार ने लोगों के कल्याण के लिए बनवाया है।सुप्रीम कोर्ट ने आज कुडनकुलम परमाणु संयंत्र शुरू करने पर रोक लगाने और इस परियोजना को खत्म करने के लिए दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए आज फैसला दिया। कुडनकुलम परमाणु परियोजना को सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किये जाने के आधार पर चुनौती दी गई थी। कहा गया था कि प्लांट में सुरक्षा के बारे में विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर अमल नहीं किया गया। परमाणु कचरे के निष्पादन और प्लांट का पर्यावरण पर प्रभाव से जुड़े सवाल भी उठाए गए।प्लांट के आसपास रहने वाले लोगों की सुरक्षा का सवाल भी उठाया गया।
गौरतलब है कि कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा प्लांट का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों ने अनोखा तरीक़ा अपनाया । अपना विरोध प्रदर्शन दर्ज कराते हुए उन्होंने समंदर में एक मानव शृंखला बनाई।कुडनकुलम के निकट इंडिनतकराई तट के पास बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी जुटे।मध्य प्रदेश के खंडवा में हुए जल सत्याग्रह से प्रेरणा लेते हुए प्रदर्शनकारी समंदर में घुस गए।
न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने हालांकि सरकार को सुरक्षा और संयंत्र के संचालन की देखरेख पर एक विस्तृत निर्देश जारी किया।कोर्ट ने अधिकारियों से परमाणु उर्जा संयंत्र में कामकाज शुरू करने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वालों पर दर्ज आपराधिक मामले वापस लेने की कोशिश करने के लिए कहा। कोर्ट ने ने संयंत्र की शुरुआत, इससे संबंधित सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर 15 दिशा निर्देश दिए।
जनसंगठनों के लिए इस परमाणु संयंत्र और जैतापुर परमाणु क्लस्टर समेत तमाम परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों के लिए आंदोलन जारी रखने में यह फैसला बड़ा बाधक साबित होने जा रहा है।अदालत ने कहा कि कई विशेषज्ञ समूहों ने कहा है कि विकिरण के कारण परमाणु संयंत्र के आसपास के इलाके में खतरे की कोई सम्भावना नहीं है। अदालत ने कहा कि लोगों को होने वाली थोड़ी असुविधा की जगह व्यापक जनहित को तरजीह दी जानी चाहिए। अदालत ने भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को संयंत्र की सुरक्षा के लिए सभी कदम उठाने का निर्देश दिया।
जनहित का परिप्रेक्ष्य पर्यावरण से जोड़े बिना न्याय नहीं हो सकता, इसलिए शुभ बुद्धसंपन्न तमाम लोगों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय से आवेदन करना चाहिए कि इस फैसले पर पुनर्विचार अवश्य किया जाये!
आर्थिक विकास की युक्ति से राष्ट्रहित की दुहाई देकर प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े समुदायों के हितों की अनदेखी नहीं की जाये, सर्वोच्च न्यायालय से यह आवेदन अवश्य ही किया जाना चाहिए।
खासकर, कन्याकुमारी से जुड़़े इस इलाके की बहुसंख्य जनता अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लोग हैं, इन वंचितों के साथ न्याय हो, इसे अवश्य ही नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
कन्याकुमारी से लेकर चेन्नई तक बंगाल की खाड़ी से संयुक्त समुद्री तटवर्ती इलाके को सुनामी के थपेड़े भी सहने पड़े हैं, निकट अतीत की इस अभिज्ञता के मद्देनजर इसे सुरक्षित ठहराने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से हिमालयी क्षेत्र में विनाशकारी ऊर्जा परियोजनाओं को भी वैधता मिल जाती है।
समुद्रीतट सुरक्षा हेतु अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत इस इलाके के भौगोलिक चरित्र में कोई भी परिवर्तन निषिद्ध है। बायोसाइकिल और जैव विविधता बनाये रखना अनिवार्य है।पर्यावरण संरक्षण के अलावा इन प्रावधानों के तहत वहां और ऐलसे तमाम इलाकों में, जिनमें बंगाल का प्रस्तावित संयंत्र स्थल हरिपुरा भी शामिल है, परमाणु संयंत्र का निर्माण खतरे से खाली नहीं है।
सत्ता वर्ग ने परमाणु ऊर्जा नीति लागू करने में जनहित का कभी ख्याल ही नहीं रखा। मसलन परमाणु संयंत्रों से रेडिएशन की हालत में नई दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसी सघन आबादी पर पड़ने वाले असर का परिमाप ही नहीं किया गया।कुडनकुलम न्यूक्लियर प्लांट भी कोई अपवाद नहीं है। यह इलाका तमिलनाडु के पिछड़े और सघन आबादी वाले क्षेत्र में अन्यतम है।नगरकोयल और क्नायकुमारी जैसे शहर निकट वर्ती हैं तो केरल की राजधानी त्रिवेंद्रम मात्र सत्तर किमी दूर।
ऐसी परियोजनाएं लागू करने में पर्याप्त जन सुनवाई भी नहीं होती और न ही स्थानीय निकायों की सहमति ली जाती है।
परमाणु केंद्र सघन आबादी के बीच ,यहां तक कि महानगरीय इलाकों के दायरे में भी कलपक्कम मद्रास के निकट, नरौरा दिल्ली के पास और जैतापुर मुंबई के सन्निकट बनाये गये हैं और बनाये जा रहे हैं।
भोपाल गैस त्रासदी के अनुभवों से इस देश की सरकार और सत्तावर्ग ने कोई सबक नहीं सीखा, क्योंकि जन सरोकार से उनका कोई वास्ता नहीं है और कारपोरेट हित में सरकार चाहे कोई भी हो, १९९१ से नीतियों की निरंतरता अबाध पूंजी प्रवाह के अभिमुख की ओर स्थिर और अटल है।
सरकार से हम जब अपेक्षा कुछ नहीं रख सकते , तब सर्वोच्च न्यायालय से ही जनता का तरणहार बनने की अपेक्षा रखी जाती है। वहां भी अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं तो विकल्प ही क्या बचता है?
विकासगाथा की अनंत कथा और परंपराओं के मुताबिक आदिवासियं की बेदखली और उनके दमन के तंत्र को भी न्यायिक समर्थन मिसल जाता है, जो मुक्त बाजार व्यवस्था में कारपोरेट नीति निरधारण केतहत बेहद खतरनाक है।
विशेषज्ञों से अपेक्षा है कि इन तमाम बिंदुओं की, जिनकी हम साधारण लोग विश्लेषण करने की हालत में नहीं हैं, ओर माननीय सर्वोच्च न्यायालय का ध्यानाकर्षण करायें।
सर्वोच्च अदालत के विवेक पर संदेह नहीं है। लेकन मुकदमे की प्रस्तुति में तथ्य जैसे रखे गये, न्यायाधीशों का फैसला भी उसी मुताबिक आया होगा। इस सिलसिले में सर्वोच्च न्यायालय की दृष्टि अंतरराष्ट्रीय अनुभवों की ओरभी आकर्षित किये जाने की दरकार है।
कुडनकुलम परमाणु संयंत्र मामले के विपरीत, सुप्रीम कोर्ट ने स्टरलाइट इंडस्ट्रीज को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने स्टरलाइट इंडस्ट्रीज़ को 100 करोड़ रुपए का मुआवजा देने के लिए कहा है।
तमिलनाडु के कॉपर स्मेल्टिंग प्लांट के जरिए पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए ब्रिटेन के वेदांता ग्रुप की कंपनी स्टरलाइट को 100 करोड़ रुपए का मुआवजा देने के लिए कहा गया है।
पर्यावरण कानून के उल्लंघन के लिए अगपर भारत सरकार दोषी नहीं है तो वेदांता ने क्या अपराध किया है?
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने तूतीकोरिन प्लांट को बंद करने का निर्देश देने से इनकार किया। कोर्ट ने मुआवजे की रकम 5 साल में अदा करने के लिए कहा है। मामले की सुनवाई कर रही खंडपीठ के अध्यक्ष पीके पटनायक ने कहा कि इस कंपनी के कारखाने से लंबे समय से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है और इसके लिए उसे मुआवजा देना होगा। कोर्ट ने कहा कि मुआवजे का डर होना चाहिए और इसकी राशि कंपनी की भुगतान क्षमता देख कर तय की जानी चाहिए। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में 100 करोड़ से कम की राशि के मुआवजे के बिना कानून का डर पैदा नहीं होगा।
2010 में मद्रास हाई कोर्ट ने पर्यावरण नियमों के उल्लंघन की वजह से प्लांट बंद करने का फैसला दिया था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि लंदन स्थित वेदांता ग्रुप की कंपनी स्टरलाइट समुद्र तट से 25 किलोमीटर की सीमा के अंदर काम कर रही है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि कंपनी ने अपनी यूनिट के 250 मीटर के दायरे में एक ग्रीन बेल्ट विकसित नहीं की है।
हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ कंपनी सुप्रीम कोर्ट गई। अक्टूबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें स्टरलाइट इंडस्ट्रीज के तूतीकोरिन कॉपर स्मेल्टिंग प्लांट को बंद करने का निर्देश दिया गया था।
तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्टरलाइट इंडस्ट्रीज को कुछ निश्चित शर्तों के साथ कॉपर और सल्फ्यूरिक ऐसिड की यूनिट लगाने की परमिशन दी थी। कंपनी ने ग्रीन बेल्ट की शर्त को पूरा करने के बजाय इसकी चौड़ाई 250 मीटर से घटाकर 10-15 मीटर तक किए जाने की मांग की थी।
30 मार्च, 2013 को तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्टरलाइट इंडस्ट्रीज के तूतीकोरिन कॉपर प्लांट को बंद करने का आदेश दिया था। 16 मार्च को प्लांट से हानिकारक गैस के लीक होने के बाद प्रदूषण बोर्ड ने यह आदेश दिया था।
3G: हाई कोर्ट से एयरटेल को राहत
दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को देश की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी भारती एयरटेल को अपना अंतिम आदेश आने तक 3जी इंट्रा-सर्कल रोमिंग सुविधा जारी रखने की इजाजत दे दी।
टेलिकॉम डिपार्टमेंट (डॉट) ने पिछले सप्ताह कंपनी को उन सात सर्कल में इंट्रा-सर्कल 3जी रोमिंग बंद करने का आदेश दिया था, जिनमें कंपनी के पास स्पेक्ट्रम नहीं है। इसके अलावा लाइसेंस के नियम और शर्तों का उल्लंघन करने के लिए कंपनी पर 350 करोड़ रुपए (50 करोड़ रुपए प्रति सर्कल) की पेनल्टी भी लगाई गई थी।
जस्टिस राजीव शकधर ने कहा, '3जी रोमिंग अंतिम आदेश आने तक जारी रहेगी लेकिन सरकार के आदेश पर रोक लगाने के लिए एयरटेल की याचिका पर बाद में एक अंतरिम आदेश दिया जाएगा।'
कोर्ट ने भारती एयरटेल को 3जी सुविधा से मिलने वाली आमदनी एक अलग अकाउंट में रखने को कहा। मामले की अगली सुनवाई 8 मई को होगी।
कोर्ट ने इससे पहले आइडिया सेल्युलर की इसी तरह की याचिका पर एक स्टे ऑर्डर पास किया था। एयरटेल ने टेलिकॉम मिनिस्ट्री के उस ऑर्डर को चुनौती दी है जिसमें उसे उन सात जोन में 3जी सर्विसेज बंद करने के लिए कहा गया है जिनमें कंपनी के पास अपना स्पेक्ट्रम नहीं है और यह अन्य टेलिकॉम कंपनियों के साथ एग्रीमेंट कर सर्विसेज दे रही है।
मिनिस्ट्री ने कहा था कि ये एग्रीमेंट गैरकानूनी हैं। उसने भारती को 350 करोड़ रुपए की पेनल्टी चुकाने का आदेश दिया था। इस मुद्दे पर कंपनी ने अपना पक्ष दिल्ली हाई कोर्ट के अक्टूबर 2012 के निर्देश के मुताबिक डॉट द्वारा गठित कमिटी के सामने रखा था।
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