BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, May 11, 2013

आख़िर देश और दुनिया की तमाम खबरों से स्त्रियाँ इतनी अनजान क्यों है?

आख़िर देश और दुनिया की तमाम खबरों से स्त्रियाँ इतनी अनजान क्यों है?

  सारदा बनर्जी

 स्त्रियों की एक भयानक नकारात्मकता यह है कि वे देश और दुनिया की तमाम खबरों से एकदम अनजान रहती हैं। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर घट रही विभिन्न घटनाओं से वे बिल्कुल बेखबर हैं। उन्हें इन सबसे कोई लेना-देना नहीं। वैसे इस अज्ञता की वजह से उन्हें कोई अपराध बोध भी नहीं होता। वे अपनी तरह मस्त रहा करती हैं। जब टी.वी. चैनलों में रुचि लेने लगती हैं तो फिल्मी गाने सुनती हैं, फ़िल्म देखती हैं, कोई सीरियल, कोई प्रोग्राम देख हँस-हँसकर लोट-पोट होती हैं, दुखी भी होती हैं। और भी कई प्रतिक्रियायें करती हैं। लेकिन खबरों में स्त्रियों की दिलचस्पी एकदम शून्य के बराबर है। यह बहुत कम देखा गया है कि स्त्रियाँ न्यूज़ में रुचि ले रही हैं, उसे नियमित रूप से सुन रही हैं, विभिन्न सोश्यल साइट्स पर इन खबरों को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही हैं। यही वो जगह है जहाँ पुरुष स्त्रियों को मात दे जाते हैं।

देखा गया है कि पुरुष तुलनात्मक तौर पर खबरों में खास दिलचस्पी लेते हैं। इसे जीवन का ज़रूरी हिस्सा मानकर चलते हैं और देश-विदेश की खबरों के सम्बंध में अपनी राय भी रखते हैं, उसे इज़हार भी करते हैं। जब दोस्तों के साथ बैठे होते हैं तो फ़ेक गॉसिप के साथ-साथ इन मामलों में भी रुचि लेते हैं। आलोचना-प्रत्यालोचना का एक ज़बरदस्त माहौल बनता है। लेकिन स्त्रियों के गॉसिप के विषय घर से ही शुरु होकर घर पर ही खत्म हो जाता है। यही है चिन्ता की बात। स्त्रियों की बातचीत का विषय बहुत सीमित होता है। इसकी वजह है कि स्त्रियाँ अपने आप को घर की चारदीवारी में कैद करके रखती हैं। ये सोचने वाली बात है कि स्त्रियाँ आज बाहर निकल रही हैं, लिख-पढ़ रही हैं, नौकरी कर रही हैं, घर की ज़िम्मेदारियाँ भी बखूबी सँभाल रही हैं फिर क्यों वे देश-विदेश की हकीकतों से अनजान बनी रहती हैं? क्यों उनकी मानसिकता घर के बाहर नहीं निकलती? ऐसा भी नहीं है कि घर में उन्हें समाचार देखने से रोका जाता है या पुरुष सदस्य द्वारा किसी समाचार

सारदा बनर्जी

sarada banerjee, सारदा बनर्जी, कलकत्ता विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं

चैनल को घुमाकर दूसरे चैनल में देने को कहा जाता है चूँकि पुरुष खुद समाचार में रुचि रखते हैं। अपितु ये देखा गया है कि स्त्रियाँ खुद समाचार से भाग रही हैं। जैसे ही घर के पुरुष सदस्यों का समाचार सुनना बन्द होता है स्त्रियाँ तुरन्त अपना प्रिय सीरियल लगा लेती हैं। आख़िर स्त्रियों का समाचार सुनने से भागने वाला व्यवहार क्यों है?

नौकरी करने वाली स्त्रियाँ मजबूर होकर दुनिया का हाल-ओ-हकीकत जान तो लेती हैं लेकिन जब बात छेड़ी जाती है तो वे किसी विषय पर परिचर्चा या विचार-विमर्श करना पसन्द नहीं करतीं। राजनीति पर बात होगी तो रवैया यही कि 'ये सब तो फालतू चीज़ें हैं, नेता खराब है, राजनीति ही खराब है, दुनिया खराब है' लेकिन इससे आगे क्या? देखा गया है कि अधिकतर स्त्रियाँ राजनीतिक पेचीदगियों में रुचि नहीं लेतीं, राजनीति पर बात होती है तो पसन्द नहीं करती, तुरन्त विषय परिवर्तित करने के लिये कहती हैं। अगर समाचार बलात्कार पर है तो पुरुष समुदाय को दस गाली देने के बाद फिर अपने पुराने पुंसवादी रवैये में आ जाती हैं। 'क्यों रात को निकली थी, छोटे कपड़े पहनेगी तो तेरे साथ होगा या मेरे साथ' या कहेंगी 'आजकल लड़कियाँ भी कम नहीं, छोटे कपड़े पहनकर पुरुषों को आकर्षित करती हैं अपनी तरफ़, फिर रेप-रेप करती हैं।' इस तरह की टिप्पणी कर ये स्त्रियाँ अपनी संकीर्ण मनोदशा का परिचय दे देती हैं। अगर समाचार किसानों, मज़दूरों, दलितों, अल्पसंख्यकों की बदहाली पर है तो प्रतिक्रिया दकियानूसी बातों द्वारा होती है, 'देखो समाज में क्या क्या हो रहा है…अब ये ज़्यादा दिन नहीं चलेगा…पृथ्वी का ध्वंस करीब है।'

स्त्रियों का समाचारों से पलायन करने की इस मानसिकता के लिये ज़िम्मेदार वस्तुतः स्त्रियाँ खुद हैं। उन्हें अपने विज़न को बढ़ाना होगा, बड़े फलक पर जीवन को देखना होगा। समाचार को जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा मानना होगा अन्यथा इसमें रुचि नहीं बढ़ेगी और जब रुचि नहीं होगी तो जायज़ है समाचार सुना-समझा नहीं जायेगा। समाचार के प्रति उदासीन भाव बरकरार रहेगा। स्पष्ट होता है कि स्त्रियाँ सामाजिक माहौल से अपने आप को जोड़ ही नहीं पा रही हैं। वे भले ही बाहर निकलें, स्वच्छन्द जीवन जियें पर कहीं न कहीं मानसिक तौर पर समाज, देश और दुनिया की तमाम वास्तविकताओं से कटी हुयी रहती हैं और घर की गुलाम मानसिकता से छुटकारा नहीं पाती। ये ज़रूर है कि अल्पसंख्यक स्त्रियाँ न्यूज़ में रुचि लेती भी हैं, वे राजनीतिक कार्यों में शिरकत भी करती हैं लेकिन अधिसंख्यक स्त्रियाँ नहीं लेतीं।

इसलिये हर एक स्त्री को समाचार में दिलचस्पी पैदा करनी होगी। अपने ज्ञान के संकुचित दायरे को फैलाना होगा। विश्वपटल में घट रही विभिन्न घटनाओं से अवगत होना कोई खराब काम नहीं है, ये स्त्रियों को समझना है। जायज़ है जब ये बात समझ में आयेगी तो फिर धीरे-धीरे समाचारों के प्रति अभिरुचि भी बढ़ती जायेगी।


http://hastakshep.com/intervention-hastakshep/womens-issues/2013/05/11/after-all-the-reports-of-the-country-and-the-world-why-women-are-so-ignorant#.UY5UJKKBlA0

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