BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Tuesday, May 7, 2013

इन्हें सिंगरौली का फेफड़ा चाहिए

इन्हें सिंगरौली का फेफड़ा चाहिए

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jairam shuklaजयराम शुक्ल

कोल ब्लॉक्स के आवंटन को लेकर घपलों के हो रहे नित नए खुलासे के बीच सिंगरौली के गरीब किसानों और खेतिहर मजूरों के लिए फिर एक वज्रपात गिरने जैसी खबर है। कोयले और थर्मल प्लान्ट्स के लिए 25 और गांवों को उजाड़ने का बन्दोबस्त किया जा रहा है। इस साल की फरवरी के पहले हफ्ते बैढ़न के रजिस्ट्रार ऑफिस के सामने पच्चीस गांवों की सूची चस्पा कर दी गई है। इन गांवों की जमीन के क्रय विक्रय और रजिस्ट्री पर रोक लगा दी गई। ये गांव उसी महान ब्लॉक के अंतर्गत आते हैं जिसे दो औद्योगिक घरानों को कोयले के लिए आवंटित करने की महीन साजिशें पिछले सात साल से चल रही हैं।

कमाल की बात यह है कि केन्द्रीय वन मंत्रालय के विरोध के बावजूद देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह एक मत हैं। महान ब्लॉक की 1000 हेक्टेयर वन भूमि पर नजर है एस्सार के मालिक शशि रुइया की व हिन्डालको के अधिनायक कुमार मंगलम बिड़ला की। पर्यावरण की अनापत्तियों के बावजूद इन्हें महान चाहिए हर हाल पर।

बैढ़न-मॉडा से सरई के बीच सघन वन प्रक्षेत्र में महान ब्लॉक फैला है। सरई-साल और महुआ के सघन वनों के बीच कई आदिवासी गांव आबाद हैं और यहां की जनसंख्या एक लाख से कम नहीं। पहाड़ के मुहानों पर गुफाओं, भित्ति चित्रों व शैलपर्णो में हमारी आदिम सभ्यता का इतिहास दर्ज है। शानदार जैव विविधता के बीच यह क्षेत्र दुर्लभ वन्य प्राणियों व पक्षियों की चहचहाहट से गूंजता है।

इसका एक छोर संजय दुबरी टाइगर रिजर्व से जुड़ता है। प्राय: हर साल छत्तीसगढ़ के जसपुर-कोरिया क्षेत्र के हाथी आकर यहीं विचरते हैं। इसे हाथियों का कॉरीडोर भी कह सकते हैं। महान, भैसानाला जैसे पहाड़ी नदी नाले बरसात में हरहराते हुए प्रकृति के उत्सव का आयोजन करते हैं। खूबसूरत गोपद नदी इस वन प्रक्षेत्र का श्रृंगार करते हुए सीधी और सिंगरौली के बीच की सीमा रेखा तय करती है।

भालू-तेंदुए और यदा-कदा बाघ भी वन और पहाड़ की कंदराओं में आश्रय पाते हैं। मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश के विस्तृत दायरे में दजर्न भर से ज्यादा ताप विद्युत संयंत्रों की गुगुआती चिमनियों के बीच महान वन प्रक्षेत्र सिंगरौली का फेफड़ा है, कोयला व बिजली के कारोबारियों को यही चाहिए भी, किसी कीमत पर, हर हाल पर। आधिकारिक तौर पर 1980 में वन संरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद से सिंगरौली क्षेत्र में 5,872.18 हेक्टेयर वन का गैर वन उपयोग के लिए डायवर्सन किया जा चुका है। सिंगरौली वन मंडल की अधिकृत सूचना के अनुसार 3,299 हेक्टेयर वन का डायवर्सन किया जाना प्रस्तावित है। महान कोल ब्लॉक में उपलब्ध 144 मिलियन टन का कोयला भंडार हिन्डालको इन्डस्ट्रीज लिमिटेड व एस्सार पॉवर लिमिटेड के ताप बिजली संयंत्रों के लिए केवल 14 वर्षो तक कोयले के आपूर्ति के लायक है। वस्तुस्थिति यह है कि महान के सघन वन-सम्पन्न जैव विविधता के उजाड़ने की कीमत दुनिया की कोई भी सरकार सौ साल तक अदा नहीं कर सकती। हमारे प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री को एस्सार व हिन्डालको के दांव पर लगे 5000 करोड़ रुपयों की ज्यादा चिन्ता है। प्रधानमंत्री कार्यालय, पर्यावरण व वन मंत्रालय पर महान की पर्यावरणीय आपत्तियां दूर करने के लिए दबाव बनाता है, तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इन दोनों के लिए दिल्ली में भूख हड़ताल तक कर चुके हैं।

कॉरपोरेट और सत्ता के नापाक गठजोड़ की शुरुआती कहानी पर जरा गौर करें। कोयला मंत्रालय ने 2006 में एस्सार और हिन्डालको को 1000 और 600 मेगावाट पॉवर प्लान्ट के लिए महान कोल ब्लॉक आवंटित किए थे। (यद्यपि आवंटन की यह प्रक्रिया भी सवालों के घेरे में है व जांच भी चल रही है, कैग ने अपनी रिपोर्ट में इसका विशेष उल्लेख किया है।) दिसम्बर 2008 में पर्यावरण मंत्रालय ने दोनों कंपनियों को अनुमति दी। लेकिन 2010 में वन मंत्रालय ने रोक लगा दी। दोनों फैसले इन विभागों के तत्कालीन मंत्री जयराम रमेश का था।

इस बीच एस्सार के शशि रुइया और हिन्डालको के कुमार मंगलम बिड़ला ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर रोक को देशहित के खिलाफ बताया। पीएमओ सक्रिय हुआ उसने जयराम रमेश को इन दोनों उद्योगपतियों के पक्ष में पत्र लिखे। प्रधानमंत्री के पत्र के जवाब में जयराम रमेश ने जनहित की अपेक्षा के अनुरूप पत्र लिखा "उन्होंने कहा मुङो समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसे उत्तम वनों को महज आंशिक जरूरत के लिए क्यों छिन्न-भिन्न किया जा रहा है।" इस पत्र में इसकी भी चर्चा की गई है कि वन सलाहकार समिति के द्वारा वन व वृक्षों के घनत्व को लेकर कम्पनियों द्वारा किए गए दावे सही नहीं हैं व इसके दोहन की स्वीकृति नहीं दी गई। इसके बाद जो घटनाक्रम हुए उससे समझ जा सकता है कि देश को सरकारें चला रही हैं या कॉरपोरेट घराने। इस पूरे प्रकरण को प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाली मंत्रिमण्डलीय समिति (जीओएम) को सौंप दिया गया, जबकि वन संरक्षण कानून 1980 के तहत मंत्रिमण्डलीय समिति को इस मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। जीओएम ने बीके चतुव्रेदी की कमेटी की उस रिपोर्ट को आंख मूदकर स्वीकार कर लिया जिसमें कहा गया है कि कोल ब्लॉक के आवंटनों में जंगलों के काटने या न काटने की अनुमति का कोई वैधानिक महत्व नहीं है। कोलगेट के खुलासे के बाद, आगे की प्रक्रिया कुछ ठंडी पड़ गई है नहीं तो महान वन प्रक्षेत्र को उजाड़ने में जरा भी वक्त नहीं लगता। बहरहाल बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी एक न एक दिन तो उसे कटना ही है।

जन-जल-जंगल और जमीन को सांविधानिक रूप से सुरक्षा का दायित्व निभाने वाली सरकारों को सिंगरौली की कराह नहीं सुनाई पड़ रही। वैज्ञानिक रिपोर्ट, सामाजिक संस्थाओं के निष्कर्ष नक्कारखाने में तूती बने हुए हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण व खनन पर अध्ययन करने वाली संस्था ग्रीन पीस ने 20 सितंबर 2011 को सिंगरौली पर अपनी रिपोर्ट जारी की। उसने कहा - यह हजारों हेक्टेयर सघन वनों का सवाल है, हाशिए पर पड़े हजारों आदिवासी एवं दूसरे समुदाय तथा इस क्षेत्र का संपूर्ण परिस्थितिकी तंत्र खतरे में है। फिर भी कुछ टन निम्नस्तरीय कोयले के लिए सरकार यहां की समृद्ध जैव-विविधता का विनाश करने पर तुली है।

पर्यावरणीय खतरों के मद्देनजर सिंगरौली नर्क बनता जा रहा है लेकिन प्रदेश व केन्द्र के सत्ताधारी दलों को यहां की आवाज उठाने की फुर्सत कहां। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व अन्य कई वैज्ञानिक संस्थानों के अनुसार देश के चुनिन्दा 88 अति प्रदूषित क्षेत्रों में पर्यावरण प्रदूषण सूचकांक पर सिंगरौली 9वें स्थान पर है, यह क्षेत्र खतरनाक स्तर पर प्रदूषित है। इलेक्ट्रिसिटे द फ्रांस की एक रिपोर्ट के अनुसार निम्न स्तरीय कोयले के उपयोग के कारण सिंगरौली के थर्मल पावर प्लांटों से हर साल लगभग 720 किलोग्राम पारा निकलता है जो मानव जीवन के लिए अत्यंत खतरनाक है। सिंगरौली क्षेत्र में प्रकृति के क्रूर संहार के साथ ही वहां के जनजीवन को भी गैस चेम्बर में धकेला जा रहा है इसके खिलाफ दिल्ली और भोपाल की नहीं सिंगरौली की अवाम को ही आवाज उठानी होगी।

लेखक – स्टार समाचार के कार्यकारी सम्पादक हैं।

http://aawaz-e-hind.in/showarticle/2483.php

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