बामसेफ एक सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन है और इसका उद्देश्य व्यवस्था परिवर्तन है. बामसेफ का उद्देश्य ब्राह्मण-वाद जो की गैर बराबरी की भावना है, को जड़ से उखाड़ कर समतामूलक समाज (संबिधान के प्रस्तावना में दिए गए शब्द स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व, न्याय एवं मानवता पर आधारित समाज) की स्थापना करना है. हमारा विरोधाभास ब्राह्मण-वाद जो की गैर बराबरी की भावना है, से है. बामसेफ का उद्देश्य संबिधान सम्मत है. संबिधान की मूल भावना और बामसेफ के उद्देश्य में कोई भी विरोधाभास नहीं है. बामसेफ, एक गैर-राजनीतिक(Non-Political), गैर-आंदोलनात्मक(Non-Agitational) एवं गैर-धार्मिक (Non-Religious), पढे-लिखे कर्मचारियों और शिक्षित प्रोफेसनल जैसे कि वकील, डाक्टर, एंजिनियर, वास्तुविद, इत्यादि...का, सांस्कृतिक संगठन है। बामसेफ़ के वर्तमान राष्ट्रिय अध्यक्ष माननीय अशोक परमार जी है। इसके अलावा हम लोग लगभग 25 एकड़ जमीन पर रिंगनबाड़ी-नागपुर मे यशकाई श्री डी के खापरडे मेमोरियल ट्रस्ट का निर्माण कर रहे हैं। जहा से डी के खापरडे पब्लिकेसन, और राष्ट्रिय स्तर का प्रशिक्षण केंद्र और मूलनिवासी बहुजन समाज के कल्याण की अन्य गतिविधिया संचालित होगी। बामसेफ का मानना है कि विचार में परिवर्तन हुए बिना आचरण में परिवर्तन संभव नहीं है और यदि विचार में परिवर्तन नहीं होता है तो हमारा आदमी भी यदि पोजीसन ऑफ़ पावर पर पहुचता है तो वह ब्राह्मणवादी एजेंडा को ही आगे बढ़ाने में लगा रहता है. इस लिए हमारे अपने समाज के लोगो में अपने महापुरुषों- तथागत बुद्ध, सम्राट अशोक, राष्ट्रपिता फुले, बाबा साहब आंबेडकर, नारायणा गुरु, संत कबीर ,संत रैदास, गुरु घासीदास, पेरियार, साहू जी महाराज॰ राम स्वरूप वर्मा, ललई सिंह यादव इत्यादि की विचारधारा को स्थापित करना होगा और बामसेफ यही कार्य अपने स्थापना काल से कर रहा है। राष्ट्रीय अधिवेशन, कैडर कैम्प, सेमिनार, वर्कशाप, मूलनिवासी मेला, प्रबोधन सत्र लगा कर अपने समाज के मानव संसाधन को अपने महापुरुषों की विचार धारा में प्रशिक्षित करने एवं प्रशिक्षित मानव संसाधन को तैयार करने में लगा हुआ है. व्यक्ति का विचार परिवर्तन आसान नहीं अपितु यह अत्यंत कठिन कार्य है. वह भी तब और कठिन है जबकि प्रतिगामी शक्तिया इसके विरोध अर्थात काउंटर करने में अपने भारी बित्तीय एवं मानव संसाधन को लगा रही है. यशकाई डी के खापर्डे साहेब का कहना था की ऐसा मानव संसाधन तैयार करना जो की फुले-आंबेडकर की विचार धारा के अनुरूप सोच सके, रिवोलुसन है. हमारा सम्बन्ध बामसेफ संगठन से है. इसका का 29 वां राष्ट्रिय अधिवेशन 25 दिसम्बर 2012 से 28 दिसम्बर 2012 तक कुरुक्षेत्र हरियाणा में संपन्न हुआ है. हम संस्थागत नेतृत्व एवं प्रजातान्त्रिक संगठन में विश्वास करते है..हमारे यहाँ उद्देश्य, विचारधारा और संगठन का महत्त्व है न की व्यक्ति विशेष का...व्यक्ति आते जाते रहेंगे पर संगठन चलता रहेगा. व्यक्ति केन्द्रित संगठन व्यक्तियों के साथ पैदा होतें हैं और उन्ही के साथ ख़त्म हो जाते हैं. इस लिए संगठन को हमने व्यक्ति से सर्वोपरि माना है.. हमारे यहाँ लोकतंत्र है, हर दुसरे वर्ष लोकतान्त्रिक पद्धति से नया अध्यक्ष चुन लिया जाता है. अध्यक्ष व केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्यो का चुनाव लोकतान्त्रिक पद्धति से जनरल बॉडी द्वरा किया जाता है। हमारे यहा जनरल बॉडी निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है जो सारे नीतिगत निर्णय लेती है और केंद्रीय कार्यकारिणी इन निर्णयो को क्रियान्वित करती है। जनरल बॉडी मे सभी राज्यो से उनके बामसेफ की सदस्यता के अनुपात मे सदस्य चयनित होते है। बहरहाल 2003-2007 तक हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय बी डी बोरकर जी थे...अभी वे केन्द्रीय कार्यकारणी के सदस्य है. 2007-2009 तक हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ चंदू म्हस्के जी थे.. 2009-2011 हमारे राष्ट्रीय माननीय अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह धम्मी जी थे...अभी वे केन्द्रीय कार्यकारणी के सदस्य है. वर्तमान (2011-2013) में हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय अशोक परमार जी व राष्ट्रीय महासचिव धनीराम आर्य जी है और राष्ट्रीय प्रचारक माननीय हेमराज सिंह पटेल जी है. हमारे यहाँ अध्यक्ष हर दुसरे वर्ष लोकतान्त्रिक पद्धति से चुना जाता है. हमारे यहाँ तो बामसेफ और मूलनिवासी संघ का अध्यक्ष अलग-अलग व्यक्ति होते होते है. वर्तमान में मूलनिवासी संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी डी बोरकर जी है. हमारा तीसरा कोई भी संगठन नहीं है। अगर भबिश्य में तीसरा संगठन बनता है तो उसका अध्यक्ष कोई तीसरा व्यक्ति होगा, जिससे कि सांस्कृतिक/सामाजिक और आंदोलनात्मक और राजनीतिक तीनो संगठन सामानांतर में चलते रहे है और उनमे कोआप्रेसन और को-आर्डिनेसन भी बना रहे. हम जानते है की बामसेफ एक नॉन -पोलटिकल, नॉन एजीटेसनल संगठन है...इस लिए इसका नेत्रित्व भी नॉन -पोलटिकल, नॉन एजीटेसनल व्यक्ति के हाथ में रहना चाहिय...तीनो विंग का कार्य महत्वपूर्ण है और तीनो का महत्व बराबर है और तीनो संगठन अपने -अपने क्षेत्र में ही परस्पर कोआप्रेसन और को-आर्डिनेसन के साथ कार्य करे तो बेहतर होगा. इस लिए एक व्यक्ति के हाथ में तीनो संगठन सौपने की भूल हम रिपीट नहीं करेंगे..हमने इतिहास से सबक ले लिया है...हमने लोगो को ट्रेनिंग देने के लिए सिलेबस तैयार किया है..एक बार ट्रेनिंग लेकर सिलेबस के अनुसार कोई भी ट्रेनिंग दे सकता है..हम लाखो ट्रेनर तैयार करना है..इस लिए नए लोगो को ट्रेनिग देना और उनको अवसर दे कर उनकी प्रतिभा का विकास हम कर रहे हैं..एक व्यक्ति के सहारे हम बैठे नहीं है..हमारे यहाँ सभी सत्रों की अध्यक्षता अलग अलग केंद्रीय कार्यकारणी के सदस्य करते है...जिससे की संगठन में सबको बढ़ने का और सबकी प्रतिभा को निखारने का सामान अवसर मिल सके...क्योकि हम नहीं चाहते की हम व्यक्ति को तैयार करे और फिर दुश्मन उस व्यक्ति की कोई कमजोरी को पकड़ कर पूरे संगठन और पूरे आंदोलन को नियंत्रित कर ले .एक व्यक्ति या एक परिवार के इर्द-गिर्द घूमने वाले, व्यक्ति-वादी संगठन एक व्यक्ति का , उसके कुछ नजदीकी रिश्तेदार का , व कुछ एक चापलूस एवं चाटुकार समर्थको का भला तो कर सकते है, पर पुरे मूलनिवासी बहुजन समाज का कत्तयी नहीं. ...एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमने वाले, व्यक्ति-वादी संगठन व्यक्तियों के साथ पैदा होतें हैं और उन्ही के साथ ख़त्म हो जातें हैं ........ व्यक्ति-वादी संगठन कोई भी हो अंत में ब्राह्मणवाद के तरफ ही जायेगा....क्योकि तानाशाही और ब्राह्मणवाद सहोदर भाई है और प्रजातंत्र और ब्राह्मणवाद एक दुसरे की धुर विरोधी. कुछ व्यक्तिवादी एवं परिवारवादी संगठन का ब्राह्मणवाद से सम्बन्ध उजागर हो चूका है और कुछ व्यक्तिवादी एवं परिवारवादी संगठन का ब्राह्मणवाद से सम्बन्ध आने वाले भबिश्य में उजागर हो जायेगा. लोकतंत्र चाहिए तो हमारे साथ आइये और तानाशाही चाहिए तो व्यक्ति-वादी संगठन में जाइये..फैसला आप को करना है....ब्राह्मण-वाद जो की गैर बराबरी की भावना है...ब्राह्मण जब तक अपनी पहचान ब्राह्मण के रूप में बनाये हुए है तब तक ब्राह्मण एवं ब्राह्मणवाद, दोनों में कोई भी अंतर नहीं है. इन दोनों से ही हमारा मुख्य विरोधाभास है..ब्राह्मण वाद जब कमजोर पड़ता है, या आमने- सामने लड़ने में घबराता है, तो मूलनिवासी बहुजन समाज के भीतर अपने चमचे कह लो या एजेंट कह लो, पाल लेता है...और फिर इन चमचो या एजेंटो के माध्यम से आन्दोलन को कमजोर करता है और मूलनिवासी बहुजन समाज को फिर इन्ही चमचो के माध्यम से नियंत्रित करता है. हम भ्रमित हो जाते है की ये तो अपने लोग है... व्यक्तिवादी एवं परिवारवादी संगठन एवं व्यक्तिवादी एवं परिवारवादी लीडरशिप आधुनिक चमचे है.. चाहे व्यक्तिवादी संगठन नया हो या पुराना....कुछ का ब्राह्मणवाद से सम्बन्ध उजागर हो चूका है...कुछ का आने वाले भबिश्य में उजागर हो जायेगा...इस लिए मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगो व्यक्तिवादी एवं परिवारवादी संगठन का मोह छोड़ो... प्रजातान्त्रिक संगठन एवं उसमे संस्थागत नेतृत्व ही व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई को लड़ सकता है |
Current Real News
7 years ago
No comments:
Post a Comment