BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Thursday, April 25, 2013

दलित न मांगे खेत!लोकतंत्र के दोजख में जी रहे 20 करोड़!

दलित न मांगे खेत


लोकतंत्र के दोजख में जी रहे 20 करोड़

अनुसूचित जाति के छात्रावासों में रहने वाले तमाम बच्चे आज भी नहीं जानते कि दूध का स्वाद कैसा होता है.अनुसूचित जाति की 40 प्रतिशत आबादी खेत मजदूरी में लगी है और उनके पास 2 कट्ठा भी जमीन नहीं है...

कंवर पाल 


दलितों पर अत्याचारों का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है. कुछ परिवर्तन तो हुऐ हैं. खासकर आजादी के बाद आरक्षण मिलने से दलितों के एक छोटे हिस्से में जागृति की लहर आई है. कुछ प्रतिरोध होना शुरू हुआ है, लेकिन जब भी दलितों ने अपने जमीन के हकों को लेकर आवाज उठायी उनका उत्पीड़न बहुत भयानक रूप से हुआ. ऐसा भयानक कि सैकडों की संख्या में दलितों को जिन्दा जलाया गया.

dalit-hostle-burn-in-ara-bihar
बिहार के आरा जिले में फूंक दिया था दलित छात्रावास        फ़ाइल फोटो

आज जब गांव में खेतों में मजदूरी करने वाले दलित मजदूरी ज्यादा मांगते हैं, अपने अधिकारों के लिए संगठित होते है. यहां तक कि यदि कोई दलित मोटर साईकिल से ऊंची जाति वालों के घर के सामने से गुजरता है या गाँव में दलित अपना घर ऊंचा बना लेता है तो गांव की दबंग जातियों का क्रोध बढ जाता है और उनकी बेचैनी बढ जाती है. इनकी ये मजाल कि छोटी जाति के होकर हमारे सामने सर उठाते हैं. इसलिए दबंग जाति के लोग दलित जाति को सबक सिखाना चाहते है. 

जैसे ही कोई मौका मिलता है तो उनका गुस्सा सामूहिक रूप धारण कर लेता है और फिर पूरे दक्खिन टोले को उनके क्रोध का शिकार होना पड़ता है. जैसा कि 13 अप्रैल 2013 को हरियाणा राज्य के कैथल जिले के गाँव पबनावा में एक दलित युवक के उच्च जाति की युवती से प्रेम विवाह कर लेने पर उच्च जाति के दबंगो ने पुलिस की मौजूदगी में दलितों की बस्ती पर हमला बोल दिया. पुलिस की मौजूदगी के बावजूद दबंगों के डर के कारण पबनावा गांव के 200 से ज्यादा परिवार गांव से पलायन कर चुके हैं.''

पिछले दिनों अन्तर्जातीय विवाहों पर तरह-तरह से हमले ही नहीं हुए बल्कि जातिगत चेतना को ओर गहरा करने की तमाम कोशिशें की गयीं. अन्तर्जातीय विवाह के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'ऐसे विवाहों को पुलिस सुरक्षा दी जाए'. मगर ढाक के वही तीन-पांत. पुलिस की चेतना भी तो अधिकांश मामले में जातिगत चेतना को ही उजागर करती है.जैसा कि हाल ही मे उत्तरप्रदेश के अलीगढ में 18 अप्रैल की सुबह नवरात्र की अष्टमी को जहां कन्याओं को पूजने की तैयारी हो रही थी वही एक दलित कन्या दरिंदगी का शिकार हो गई. 

इस घटना का विरोध करने वाले लोगों पर पुलिस नें लाठी चलाई. यहां तक कि विलाप कर रहीं महिलाओं, बच्चों एवं बच्ची के मां-बाप का भी लाठियों से पीटा, जिससे पुलिस का जातिवादी चेहरा स्पष्ट होताहै. यही जातिगत चेतना है जो जातिय हिंसा के लिए उकसाती है. स्त्रियां उनके उत्पीडन का और ज्यादा शिकार बनतीहैं. बदला चुकाने के लिये उनके साथ बलात्कार करते है. शारीरिक अत्याचार और यौन शोषण करते हैं .

सभी जानते है कि वर्ष 1955 में बने 'प्रोटैक्शन ऑफ़ सिविल राइटस एक्ट' की सीमाओं के मददेनजर नया कानून (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम-1989) बनाया गया.इसमे कई अहम प्रावधान किये गये. इनमे से ज्यादा प्रावधान इतने शक्त है कि एक बार इनके तहत गिरफ्तारी होने पर जमानत भी नही हो पाती पर विडम्बना यह है कि इस कानून की मूल भावना के हिसाब से कभी इस पर अमल ही नहीं होने दिया गया. यहां तक कि जो दलित की बेटी दलितों की वोट बटोरकर सत्ता तक पहुंची, उसने दलितों के पक्ष में सबसे पहला काम उत्तर प्रदेश में इस कानून को निष्प्रभावी बनाने का किया.

अगर हम वर्ष 2004-05 की अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग की वर्गीकृत रिपोंर्ट को देखे तो स्पष्ट होता है कि जातिवाद का जहर गांवों में ही नही, शहरी इलाकों में भी घुला हुआ है. आंकडे बताते है -हर सप्ताह औसतन 11 दलितों की हत्या कर दी जाती है जबकि 21 दलित महिलाए बलात्कार का शिकार होती है. अनुसूचित जाति के महज 30 प्रतिशत घरों में बिजली का कनेक्शन है तो महज 9 प्रतिशत घरो में साफ-सफाई की व्यवस्था है. 

आधे से ज्यादा दलित परिवारों के बच्चे आठवीं कक्षा के पहले ही पढाई छोड देते हैं.अनुसूचित जाति के छात्रावासों में रहने वाले तमाम बच्चे आज भी नहीं जानते कि दूध का स्वाद कैसा होता है.अनुसूचित जाति की 40 प्रतिशत आबादी खेत मजदूरी में लगी है और उनके पास 2 कटठा जमीन भी नहीं है. मुल्क की लगभग 20 करोड़ से अधिक आबादी के बहुलांश की आज भी दोयम दर्जे की स्थिति दुनिया के सबसे बडे जनतंत्र मे क्या संकेत देंती है?

संविधान सभा की आखिरी बैठक मे बैठक में बोलते हुए डा0 अम्बेडकर ने समय की इसी स्थिति की भविष्यवाणी की थी. उन्होंने कहा था कि ''हमलोग अंतर्विरोधो की दुनिया में प्रवेश कर रहें है. राजनीति में हम एक व्यक्ति-एक वोट को स्वीकार करेंगें, लेकिन हमारे सामाजिक-राजनीतिक जीवन में हमारे मौजूदा सामाजिक आर्थिक ढांचे के चलते हमलोग इस सिद्धान्त को हमेशा खारिज करेंगें. कितने दिनों तक हम अंतर्विरोधों का यह जीवन जी सकते है? कितने दिनों तक हम सामाजिक आर्थिक जीवन में बराबरी से इन्कार करतें रहेंगें ?''

भारत में हर इन्साफ पसन्द आदमी के सामने यह सवाल आज भी खड़ा है.

kp-singhकेपी सिंह सामाजिक मसलों पर सक्रिय हैं.

http://www.janjwar.com/2011-06-03-11-27-02/71-movement/3939-dalit-na-mange-khet-by-kp-singh

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...