अजेय कुमार जनसत्ता 27 अप्रैल, 2013: वेनेजुएला में चौदह अप्रैल को हुए राष्ट्रपति चुनाव में चावेज के उत्तराधिकारी निकोलास मादूरो की अपने प्रतिद्वंद्वी हेनरिक काप्रिल्स पर बहुत कम अंतर से दर्ज की गई जीत पर अमेरिकी मीडिया ने उतनी निराशा प्रकट नहीं की है जितनी चावेज द्वारा पिछले साल उन्हीं काप्रिल्स को हराने के वक्त की थी। तब चावेज को लगभग चौवन फीसद और काप्रिल्स को पैंतालीस फीसद के करीब वोट मिले थे। इस बार यह अंतर मात्र डेढ़ प्रतिशत रह गया। चावेज की लोकप्रियता और करिश्मे का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कॉप्रिल्स ने अपने चुनाव अभियान में 'उन भाइयों से अपील की, जो चावेज के आदर्शों में विश्वास करते हैं पर मादूरो को पसंद नहीं करते।' हम भारतीयों के लिए यह समझना मुश्किल नहीं है कि चुनाव में वैयक्तिक करिश्मे का क्या महत्त्व होता है। इस बात की प्राय: मीडिया ने अनदेखी की है कि चावेज ने एक पूर्व बस ड्राइवर और ट्रेड यूनियन नेता को अपना उत्तराधिकारी चुना, जिसका वेनेजुएला के मध्यवर्ग में उतना ही लोकप्रिय होना कठिन था। मादूरो, अपने करिश्मे और कार्यशैली के बल पर नहीं बल्कि गरीबों और साधारणजनों के लिए चावेज द्वारा किए गए अनथक प्रयासों के कारण चुनाव जीते हैं। मादूरो के काम करने का ढंग तो अभी सामने आना है, पर चावेज की विरासत उनका सबसे बड़ा हथियार है। प्राय: वामपंथी बुद्धिजीवी जन-नेता नहीं होते और जन-नेता बुद्धिजीवी नहीं होते। चावेज की खूबी यह थी कि वे दोनों थे। प्राय: अपने साप्ताहिक टीवी कार्यक्रम में वे दो या तीन पुस्तकों की चर्चा जरूर करते। वेनेजुएला के राष्ट्रीय साक्षरता कार्यक्रम के तहत उन्होंने सेरवान्तेस की मशहूर पुस्तक 'दोन किखोते'- जो कि स्पेन के सत्ताधारियों और तथाकथित शूरवीरों पर एक तीखा व्यंग्य है- की दस लाख प्रतियां राज्य के खर्चे पर छपवा कर मुफ्त बंटवार्इं। फिदेल कास्त्रो ने भी इस पुस्तक को कुछ वर्ष पहले क्यूबा के नागरिकों में मुफ्त बंटवाया था। नोम चोम्स्की की पुस्तक 'हेजेमनी ऐंड सरवाइवल' को दर्शकों को दिखाते हुए ऊगो चावेज ने 20 दिसंबर 2006 को संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए कहा था, ''यह मेज, जहां से मैं आपको संबोधित कर रहा हूं, अभी भी गंधक की तरह महक रही है। कल इसी हाल में अमेरिका के राष्ट्रपति, जिन्हें मैं 'शैतान' कहता हूं, आए थे और इस तरह बात कर रहे थे मानो दुनिया उनकी जागीर हो।...साम्राज्यवादियों को हर तरफ उग्रवादी ही नजर आते हैं। ऐसा नहीं है कि हम उग्रवादी हैं। हो यह रहा है कि दुनिया अब जाग गई है। चारों तरफ लोग उठ खड़े हो रहे हैं। मिस्टर साम्राज्यवादी तानाशाह! इसमें संदेह नहीं कि आप जहां कहीं भी नजर दौड़ाएंगे, हम अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ खड़े नजर आएंगे।'' चुनाव जीतने के लिए केवल करिश्मा नहीं, कार्यशैली, विचारधारा और जनता के लिए काम करने की प्रबल इच्छाशक्ति का होना अत्यंत जरूरी है। प्राय: अतिवामपंथी हलकों में चावेज को महज एक सुधारवादी कह कर, जो साम्राज्यवाद और पूंजीवाद से समझौता करके सत्ता में बना रहा है, उनका मजाक उड़ाने की प्रवृत्ति दिखाई पड़ती है। यह बात सही है कि देश में चावेज द्वारा गठित संयुक्त समाजवादी पार्टी (वेनेजुएला) के सत्तासीन होने से वहां समाजवाद नहीं आ गया। अर्थव्यवस्था पूंजीवादी बनी रही। फिर भी क्या कारण है कि चावेज के सत्तासीन होने पर साम्राज्यवादी मीडिया इतना बौखला उठा। मार्क वेसब्रॉट और रिचर्ड सेमूर की एक रिपोर्ट के अनुसार, 'फाइनेंशियल टाइम्स' ने चावेज के दुबारा चुने जाने को देश के लिए एक गहरा आघात बताया। एपी ने अपनी खबर में बार-बार 'तो भी' और 'फिर भी' का इस्तेमाल करते हुए बताया कि किस तरह वेनेजुएला की जनता राजनीतिक यथार्थ को समझने में नाकाम रही। वे खुद कम्युनिस्ट नहीं थे, पर वेनेजुएला की कम्युनिस्ट पार्टी को उन्होंने अपने गठबंधन में शामिल किया, फिदेल कास्त्रो के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया और इसी के कारण उनकी विचारधारा में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ। उन्होंने पूरे लातिन अमेरिका में वामपंथ को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया। वर्ष 1999 में उनकी पहली जीत के बाद ब्राजील, बोलीविया, इक्वाडोर, उरुग्वे, अल-सल्वाडोर, होंडुरास और निकरागुआ में वामपंथी गठबंधनों को चुनावी जीत हासिल हुई। चावेज की विचारधारा में आए परिवर्तन को देखना हो तो कोपेनेगन में 22 दिसंबर, 2009 को दिए गए उनके भाषण को देखना चाहिए। उन्होंने कहा, ''बाहर सड़कों पर नौजवान लड़कों और लड़कियों ने जो नारे लिख रखे हैं, उनमें से कुछ को मैंने पढ़ा है। इनमें से दो नारों का जिक्र मुझे जरूरी लग रहा है, आप भी उन्हें सुन सकते हैं- पहला, जलवायु को नहीं, व्यवस्था को बदलो। इसलिए मैं इसे हम सबके लिए चुनौती के तौर पर लेता हूं। हम सबको सिर्फ जलवायु बदलने के लिए नहीं, बल्कि इस व्यवस्था को, इस पूंजी के तंत्र को बदलने के लिए प्रतिबद्ध होना है और इस तरह हम इस दुनिया को, इस ग्रह को बचाने की शुरुआत भी कर सकेंगे। पूंजीवाद एक विनाशकारी विकास का मॉडल है, जो जीवन के अस्तित्व के लिए ही खतरा है। यह संपूर्ण मानव जाति को ही पूरी तरह खत्म करने पर आमादा है।'' अक्सर अपने भाषणों में चावेज रोजा लग्जमबर्ग के नारे 'समाजवाद या बर्बरता' का जिक्र करते थे, धरती को मनुष्यता का मकबरा बनने से रोकने की बात करते थे। अपनी युवावस्था मेंचावेज साम्राज्यवाद-विरोधी राष्ट्रवाद के चलते वामपंथी विचारों के नजदीक आए, पर वे कभी लेनिन की परंपरा के कम्युनिस्ट नहीं हुए। पहली खासियत चावेज की राजनीतिक विरासत की यह थी कि वे व्यापक जन-समर्थन और इसके फलस्वरूप चुनावों में जीत कर सत्ता में आए। 1999 में वेनेजुएला की बागडोर संभालने के बाद सोलह चुनाव हुए जिनमें चावेज पंद्रह चुनावों में जीते। इसका मुख्य कारण यह रहा कि चावेज जन-अधिकारों और जन-स्वतंत्रताओं के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने संवैधानिक अधिकारों को केवल एक पुस्तक तक महदूद नहीं रखा बल्कि इन्हें जनता के हाथों में दिया। उन्होंने एक जुझारू लोकतंत्र का निर्माण किया। सामुदायिक परिषदों, मजदूरों द्वारा संचालित कारखानों के साथ-साथ सामुदायिक रेडियो और टीवी चैनलों के माध्यम से उन्होंने अफसरशाही को खत्म करने का प्रयास किया। यह अफसरशाही अपने चरित्र के अनुसार भ्रष्ट थी। इसीलिए पहली बार जब चावेज चुनाव जीते तो उन्होंने संविधान की कसम तो खाई मगर साथ में यह भी कहा कि ऐसे संविधान को बदलना होगा। सत्ता में आते ही नए संविधान का निर्माण किया, जिसे जनता का बहुत व्यापक समर्थन प्राप्त था। बाकायदा जनता की राय मांगी गई, सर्वेक्षण करवाए गए और नीतियों को तभी लागू किया गया जब इन नीतियों से प्रभावित लोगों की सहमति मिली। उदाहरण के तौर पर हर गांव में शिक्षा, स्वास्थ्य और साफ-सफाई के मामलों में सामुदायिक परिषदों द्वारा ग्रामीण जनता से राय-मशविरा करने के बाद ही योजनाएं बनाई जाती थीं। पंद्रह वर्ष से ऊपर का बच्चा भी इन परिषदों के कामकाज पर बहस कर सकता था। इन नीतियों के परिणाम किसी भी साधारण नागरिक को चौंकाने वाले हैं। दिसंबर 2005 तक ही, यूनेस्को का मानना था कि वेनेजुएला में निरक्षरता खत्म हो गई है। 1998 में साठ लाख बच्चे स्कूल जाते थे, जिनकी तादाद 2011 में बढ़ कर दुगुनी से भी अधिक हो गई। स्वास्थ्य के मामले में वेनेजुएला में जो तरक्की हुई है उसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1999 से लेकर 2010 तक डॉक्टरों की संख्या में चार गुना वृद्धि हुई, इसी अवधि में शिशु मृत्यु दर में पचास प्रतिशत की कमी हुई है। आज वेनेजुएला अपने क्षेत्र का सबसे कम असमान देश है। 1980 में वेनेजुएला अपने देशवासियों के लिए नब्बे प्रतिशत अनाज आयात करता था, जबकि आज केवल तीस प्रतिशत। यह तब हुआ जब प्रतिव्यक्ति अनाज का उपभोग चावेज के शासनकाल में दुगुने से भी अधिक हो गया। बच्चों में कुपोषण चालीस प्रतिशत कम हुआ है। आज पचानबे प्रतिशत लोगों की पहुंच साफ पेयजल तक है। वर्ष 1999 से पहले तीन लाख सत्तासी हजार लोगों को पेंशन मिलती थी, जो कि 2011 में बढ़ कर इक्कीस लाख हो गई। बेरोजगारी 1998 में 15.2 प्रतिशत थी, वह घट कर 2012 में 6.4 प्रतिशत हो गई। विश्व प्रसन्नता सूचकांक में 2012 में वेनेजुएला का लातिन अमेरिका में दूसरा स्थान था, जबकि विश्व भर में इसका नंबर उन्नीसवां है और इसके मुताबिक यह जर्मनी, स्पेन जैसे देशों से भी आगे है। चावेज की खासियत यह रही कि वे वेनेजुएला की जनता के लिए सुविधाएं जुटाने के क्रम में समाजवादी बने। शुरू में उन्हें इसका आभास नहीं था कि समाजवादी नीतियां क्या होती हैं, इसलिए उन्होंने सभी तरह के विचारों को सुना। और फिर जन-कल्याण के लिए उन्हें जो सर्वोत्तम लगा, उसे क्रियान्वित किया। कई लोग कहते हैं कि वेनेजुएला के पास दुनिया का सबसे बड़ा तेल भंडार न होता, तो चावेज कुछ नहीं कर पाते। क्या सऊदी अरब के पास कम तेल भंडार हैं? सवाल तेल का नहीं, वह तो चावेज से पहले भी था। सवाल यह है कि अपने राष्ट्र की इस संपदा का इस्तेमाल जिस ढंग से चावेज ने किया, अन्य शासकों ने नहीं किया। वर्ष 2001 में जब चावेज ने 'हाइड्रो-कार्बन कानून' पास किया तभी से अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने उन्हें रास्ते से हटाने के षड्यंत्र शुरू कर दिए थे। इस कानून के तहत पश्चिमी तेल कंपनियों को कच्चे तेल के लिए रॉयल्टी की रकम एक प्रतिशत से बढ़ कर सोलह प्रतिशत देनी पड़ी। 2007 में हाइड्रो-कार्बन क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के बाद पश्चिमी तेल कंपनियों- कानोको फिलिप्स और एग्जोन मोबिल- को आदेश दिया गया कि या तो वे सरकारी शर्तों को मान लें या देश छोड़ दें। पिछले साल अक्तूबर में हुए चुनाव जीतने के बाद चावेज ने ठीक ही कहा था, ''हमने केवल कॉप्रिल्स को नहीं हराया। हमने एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन को हराया है। यह केवल एक घरेलू लड़ाई नहीं थी... वेनेजुएला के मतदाताओं को पांच लाख से अधिक स्वचालित संदेश अमेरिकी और यूरोपीय दूरसंचार कंपनियों से किए गए जिनमें कॉप्रिल्स को जिताने का संदेश था। इसके बाद भी वे चौबीस राज्यों में केवल तीन में जीत हासिल कर सके।'' इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि राष्ट्रपति ओबामा ने चावेज के परिवार को कोई शोक संदेश भेजना जरूरी नहीं समझा। चावेज की अंतिम यात्रा में लातिन अमेरिका के सभी राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी बतलाती है कि चावेज ने इन राष्ट्रों की एकता का बोलीवार का सपना पूरा किया। माओ की मृत्यु के बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने माओ के योगदान के बारे में जो निष्कर्ष निकाला था उसका अंतिम भाग यों था, ''उनके बिना कम से कम चीनी लोग अपना बहुत अधिक समय अंधेरे में रास्ता तलाशते बिताते।'' ऊगो चावेज के बारे में भी कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है। http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/43331-2013-04-27-06-22-48 |
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