BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Sunday, March 31, 2013

मार्क्सवादी' धूर्तता की पराकाष्ठा ,डॉ आंबेडकर की स्थापनाओ को ही दुहराकर ,डॉ आंबेडकर को विफल चिन्तक बता रहे है



मार्क्सवादी' धूर्तता की पराकाष्ठा ,डॉ आंबेडकर की स्थापनाओ को ही दुहराकर ,डॉ आंबेडकर को विफल चिन्तक बता रहे है!
मार्क्सवादी' धूर्तता की पराकाष्ठा ,डॉ आंबेडकर...
Ashok Dusadh 7:17pm Mar 31
मार्क्सवादी' धूर्तता की पराकाष्ठा ,डॉ आंबेडकर की स्थापनाओ को ही दुहराकर ,डॉ आंबेडकर को विफल चिन्तक बता रहे है

अरविन्द स्मृति का चंडीगड़ के अपने ''जाति -प्रश्न और मार्क्सवाद " में ब्राह्मणवादी दावा करते है की डॉ आंबेडकर चिन्तक के रूप में विफल रहे क्योंकि उनके पास जाति उन्मूलन की कोई परियोजना नहीं थी !!

परन्तु डॉ आंबेडकर ने जो जात -पात तोड़क मंडल 1936 में जो स्थापना दी थी उसी को लगभग दुहराते हुए , डॉ आंबेडकर को ख़ारिज करने की मनुवादी मानसिकता के खुर्रम खां बनना चाहते है ,उद्धरण निम्न है :---

'' 1) कोई भी व्यक्ति भारत के समाजवादियों द्वारा अपनाई गई इतिहास की आर्थिक व्याख्या के सिद्धांत पर प्रहार कर सकता है . किन्तु मैं यह स्वीकार करता हूँ कि इतिहास की आर्थिक व्याख्या इस समाजवादी दावे की वैद्धता के लिए आवश्यक नहीं है की सम्पति का समानीकरण ही एकमात्र वास्तविक सुधार है और इसे अन्य सभी बातों से वरीयता दी जानी चाहिए .फिर भी ,समाजवादियों से पूछना चाहता हूँ की क्या आप सामाजिक पहले सामाजिक व्यस्था में सुधार लाये बिना आर्थिक सुधार कर सकते है ? ''

2)अन्य बाते सामान रहने पर ,केवल एक बात जो किसी व्यक्ति को इस बात की कार्यवाही करने के लिए प्रेरित करेगी ,वह यह भावना है की दूसरा आदमी जिसके साथ वह काम कर रहा है ,वह समानता ,भाईचारा और इनसे भी बढ़कर न्याय की भावना से प्रेरित है .लोग जब तक यह नहीं जानेगे कि क्रांति के बाद उनके साथ समानता का व्यवहार होगा और जाति और नस्ल का कोई भेदभाव नहीं होगा ,तब तक वे सम्पति के समानीकरण में भागीदार नहीं होंगे ..क्रांति का नेतृत्व करनेवाले किसी समाजवादी का यह आश्वासन कि मैं जातिप्रथा में विश्वास नहीं करता ,मेरे विचार से काफी नहीं है .

3) तर्क के लिए मान लिया जाए की सौभाग्य से क्रांति हो जाती है और समाजवादी सत्ता में आ जाते है ,तो क्या उन्हें उन समस्यायों से निपटाना होगा ,जो भारत में प्रचलित विशेष समाज व्यस्था से उत्पन हुई है ? मैं नहीं समझता की उन पक्षपातों द्वारा उत्पन समस्यायों का सामना किये बिना ,जो जो भारतीय लोगो में उंच -नीच ,स्वच्छ -अस्वच्छ के भेदभाव पैदा करती है ,भारत में कोई सामाजिक राज्य एक सेकंड भी कार्य कर सकता है .

4) भारत में फैली सामाजिक व्यस्था ऐसा मामला है ,जिससे समाजवादी को निपटना होगा , .जब तक वह वैसा नहीं करेगा ,तब तक वह क्रांति नहीं ल सकता और सौभग्य से क्रांति लता है भी तो उसे अपने आदर्श को प्राप्त करने के लिए इस समस्या से जूझना होगा .मेरे विचार से यह एक ऐसा तथ्य है ,जो निर्विवाद है .यदि वह क्रांति से पहले जाति की समस्या पर ध्यान नहीं देता है ,तो उसे क्रांति के बाद उस पर ध्यान देना पड़ेगा ......आप जब इस दैत्य (जाति ) को नहीं मरोगे ,आप न कोई राजनीतिक सुधार कर सकते है ,न कोई आर्थिक सुधार . ( बाबासाहेब डॉ आंबेडकर सम्पूर्ण वांग्मय खंड -1)

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अब आप मार्क्सवादियों के उस होड़बोंग निष्कर्ष जिसमे जाती प्रथा को ख़त्म करने की बात करते है को देखिये ,जिसके बदौलत वो डॉ आंबेडकर को विफल बता रहे है -------

हाँ इतना तय है की सर्वहारा राज्य के स्थापना के बाद भी उत्पादन संबंधो के समाजवादी रूपांतरण और समाजवादी -सामाजिक -राजनीतिक -शैक्षणिक -संस्कृतक ढांचे के क्रमशः उच्चतर होते जाने के सुदीर्घ प्रक्रिया के साथ -साथ विचार और सांस्कृतिक धरातल पर भी सतत क्रांति की प्रक्रिया चलानी होगी --चंडीगड़ में अरविन्द स्मृति के ''जाति-प्रश्न और मार्क्सवाद '' के पेपर के पेज 1.

अब देखना होगा की 1936 के बाबासाहेब के कथनों को थोडा शाब्दिक हेर -फेर कर 2013 में ये मार्क्सवादी केवल दुहरा भर रहे है ,उसपर यह तुर्रा की डॉ आंबेडकर विफल थे ,इसे ही कहते की 89 साल में चले मात्र ढाई डेग . अब तो इनकी ब्राह्मणवादी मानसिकता की डॉ आंबेडकर असफल चिन्तक थे की पोल खुल गयी ?

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