BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Sunday, March 24, 2013

एक अद्भुत प्रेम कहानी जल जंगल जमीन के हक हकूक के लिए!

एक अद्भुत प्रेम कहानी जल जंगल जमीन के हक हकूक के लिए!

वीणा का जन्म दिल्ली के करोल बाग़ में एक पंजाबी परिवार में हुआ. वीणा के पिता वस्त्र निर्यात का व्यवसाय करते थे . इनका परिवार पकिस्तान से बंटवारे के समय भारत आया था . वीणा की दादी की फुफेरी बहन सुशीला नय्यर थीं . सुशीला नय्यर गांधीजी की शिष्या और चिकित्सक थीं . बाद में वह भारत की स्वास्थ्य मंत्री भी बनी थी . वीणा अक्सर सुशीला नय्यर के पास जाती थी . उन्ही से वीणा को भी समाज सेवा की प्रेरणा मिली . सुशीला नय्यर ने वीणा से कहा कि टाइपिंग सीख लो और मेरी सचिव का काम करो . टाइपिंग सीखते सीखते वीणा का सम्पर्क सामाजिक कार्यकर्त्ता वीणा बहन से हुआ जो विनोबा भावे के आदेश से दिल्ली के सीलम पुर क्षेत्र में महिला चेतना केन्द्र नामक संस्था के मार्फत काम कर रही थीं . वीणा ने इस संस्था के साथ दिल्ली के निकट महरौली क्षेत्र के गाँव में शराबखोरी के कारण विधवा होने वाली महिलाओं के लिये काम किया. कुछ वर्ष यहाँ काम करने के बाद वीणा राजघाट स्थित हिन्दुस्तानी साहित्य सभा के साथ जुडी . यह संस्था प्रसिद्ध भाषाविद और साहित्यकार काका कालेलकर द्वारा स्थापित करी गई थी . काका कालेलकर रविन्द्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में पढाते थे . गांधी जी ने गुरुदेव से हिन्दी के प्रचार के लिये काका कालेलकर को मांग लिया था . तब से एक कहावत प्रसिद्ध हुई कि 'एक गुजराती( गांधी ) ने एक बंगाली ( टैगोर )से एक मराठी( कालेलकर ) को हिन्दी के लिये मांग लिया '
वीणा ने कुछ वर्ष यहाँ भारतीय भाषाओँ के प्रचार के लिये काम किया . इसके बाद सन १९८९ में वीणा महाराष्ट्र के नंदूरबार में महिलाओं और बच्चों के शिक्षण का काम किया . 

सन १९१९२ में वीणा की शादी हिमांशु कुमार से हुई . दोनों शादी के एक ही महीने बाद दिल्ली से छत्तीसगढ़ के बस्तर चले गये .बस्तर में वीणा ने आदिवासियों की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिये काम करना शुरू किया. बस्तर में आदिवासियों की ज़मीने खाली करने के लिये सरकार ने २००५ में सलवा जुडूम शुरू किया . सरकार ने गाँव जलाना , आदिवासियों की हत्याएं और महिलाओं के साथ बलात्कार का अभियान शुरू किया . आदिवासी सहायता पाने के लिए वीणा और हिमांशु के पास आने लगे . वीणा सरकारी हिंसा की शिकार महिलाओं की तकलीफ सुनती थी . उन्हें ढाढस बंधाती थी .जिन लोगों के घर और खेत जला दिये जाते थे वीणा तुरंत उन सब के लिये कपडे और अनाज का इंतजाम करती थी . आश्रम में सरकार के सताए हुए आदिवासियों की संख्या बढ़ने लगी . सरकार इस सब के कारण आश्रम से चिढ़ गई . सरकार ने एक दिन आश्रम को तोड़ दिया . वीणा और हिमांशु ने एक किराए के मकान में फिर से अपना काम शुरू कर दिया . वीणा और हिमांशु ने हिंसा के शिकार आदिवासियों को अदालत ले जाकर न्याय मांगना प्रारम्भ किया गया . सरकार इस सब से और भी ज़्यादा चिढ़ गई . आश्रम के साथ काम करने वाले आदिवासी साथियों और अदालत में गुहार करने वाले पीड़ित आदिवासियों का पुलिस ने अपहरण कर उन्हें गायब कर दिया .
इसके बाद छत्तीसगढ़ में रह कर आदिवासियों के लिये आवाज़ उठाना असम्भव हो गया . जिन आदिवासियों को पुलिस ने गायब कर दिया था उन्हें आज़ाद कराने का काम सामने था . वीणा और हिमांशु २०१० में छत्तीसगढ़ से बाहर आ गये . तब से दोनों सर्वोच्च न्यायालय में गुहार कर उन आदिवासियों की मुक्ति और उन्हें न्याय दिलाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं .
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