BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, March 23, 2013

आनंद तेलतुंबड़े का चंडीगढ़ में पूरा भाषण, आलोचना और जवाब


 

आप इस वीडियो को देखिए. पिछले कई दिनों से चंडीगढ़ सम्मेलन के आयोजकों की तरफ से इसी वीडियो को लेकर दावे किए जा रहे थे. मेहरबानी करके इसे पूरा देखें. और अगर आप खोज सकें तो खोजें कि कहां आनंद तेलतुंबड़े ने अपनी बातें वापस ली हैं, कहां उन्होंने उससे कुछ अलग कहा है, जो वे पिछले लगभग दो दशकों से लिखते-कहते आए हैं. कहां उनकी बातों में तालमेल की कमी और असंगति लग रही है. अगर आप बता सकें तो जरूर बताएं. चूंकि वीडियो में सारी बातें आ गई हैं, इसलिए हाशिया को अलग से इस पर टिप्पणी करने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है. 

लेकिन कुछ दूसरी बातों पर कुछ टिप्पणी किए जाने की जरूरत है. अभिनव सिन्हा ने एक पोस्टमें और फिर टिप्पणियों के एक लंबे सिलसिले में बार बार यह कहा है कि हाशिया ने एक मुहिम चला रखी है और यहां साजिश रची जा रही है. हाशिया पर इस मामले पर यह सिर्फ दूसरी पोस्ट है. क्या सिर्फ एक अकेली पोस्ट को  मुहिम और साजिश मानना जायज है? हां, हाशिया ने दूसरे पक्ष या पक्षों को प्रस्तुत नहीं किया, इसलिए नहीं किया क्योंकि दूसरे पक्ष एक दूसरी वेबसाइट पर पहले से ही आ रहे थे और हाशिया को उन सबको कट-पेस्ट करने की जरूरत महसूस नहीं हुई. लेकिन हाशिया ने उन्हें नजरअंदाज भी नहीं किया और अपनी अब तक की अकेली पोस्ट में इस बहस की शुरुआती और एक मुख्य पोस्ट का लिंक भी जोड़ा था, ताकि पाठक वहां तक पहुंच सकें और दूसरे पक्ष को जान सकें. वैसे हाशिया हर मामले में इसे जरूरी नहीं समझता कि वह दोनों पक्षों को पेश करे. हाशिया की रुचि इसमें है भी नहीं, खास कर किसी ऐसे मामले में तो और भी नहीं, जब एक पक्ष की सारी और पूरी बातें पहले से ही कहीं और प्रकाशित हो रही हों. इनका एक लिंक दे दिया जाना ही काफी होगा, जैसा कि इस मामले में भी किया गया. 

हाशिया का मानना है कि बाबासाहेब अंबेडकर और जाति विरोधी संघर्षों के बाकी नायकों को देखने के नजरिए में फर्क असल में भारतीय समाज और दुनिया की व्यवस्थाओं को देखने और उन्हें बदलने के संघर्ष में फर्क से पैदा होता है. यह फर्क इससे भी आता है कि आप मार्क्सवाद को कैसे लेते हैं, उसे अपने व्यवहार में कैसे उतारते हैं. तेलतुंबड़े इस समाज को जिस तरह से देखते हैं और उसे बदलने की चाहत रखते हैं, दरअसल उनकी वही जमीन उन्हें डॉ. अंबेडकर, फुले और दूसरे नायकों के योगदानों को अहमियत देने और उनके विजन को क्रांतिकारी संघर्षों से जोड़ने की जरूरत बताती है ('अंबेडकरवाद' और मार्क्सवाद में समन्वय की बड़बोली बातों और तेलतुंबड़े की इस बात में एक मजबूत और साफ फर्क है, इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए). हाशिया मनमाने तरीके से, जान बूझ कर और जबरदस्ती अपनी स्थापनाएं, विचार और नतीजे दूसरों के सिर पर, यहां तेलतुंबड़े के ऊपर, थोपने की निंदा करता है.

यह अभिनव के बचकाने 'मार्क्सवादी' अहंकार की ही एक और मिसाल है कि बार बार उन्होंनेहाशिया को यह वीडियो पोस्ट करने की चुनौती दी. हाशिया  पर यह वीडियो पोस्ट किया जा रहा है और ऐसे मौके पर हाशिया की मंशा एकाध सुझाव देने की है. पहला तो यह कि आप ऐसी हिंदी में न बोलें, जिसको समझने के लिए उसका फिर से 
हिंदी में अनुवाद करने की जरूरत पड़े. और दूसरी यह, कि चुनौतियां देने से पहले सोच लें कि आप जिस कंटेंट के बूते चुनौती दे रहे हैं, वो पुख्ता हो. यह वीडियो आपके दावों की पुष्टि नहीं करता. तीसरी बात, आनंद ने सही कहा है कि आपके पूरे गिरोह से ब्राह्मणवादी जातीय नफरत की बू आती है. यह बात हाशिया की पिछली पोस्ट में अनिता भारती के कमेंट्स पर आपकी खुद की टिप्पणियों से सही साबित होती है. बेहतर होगा कि आप यह बेवकूफी भरी हरकतें बंद कर दें. आप महान 'मार्क्सवादी' होंगे, 'क्रांतिकारी' भी होंगे, 'दार्शनिक' और 'कार्यकर्ता' और 'विचारक' भी हो सकते हैं, लेकिन ऐसी घटिया और बेहूदगी भरी टिप्पणियां बर्दाश्त नहीं की जाएंगी.

और अंत में: अगर आप इसे मुहिम मान रहे हैं, तो हाशिया को इससे भी कोई गुरेज नहीं है.

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