BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Friday, May 13, 2016

दलित हैं तो साधु होने के बावजूद दलित ही रहेंगे अस्पृश्यता का यह सौंदर्यशास्त्र संघ परिवार का समरस हिंदुत्व एजंडा दरअसल टूट रही जाति वयवस्था क बनाये रखने के लिए अस्पृश्यता, रंगभेद, नस्लभेद और पितृसत्ता के पाये पर खड़े वर्णवर्चस्वी प्रभुत्व को बनाये रखने की इस समरसता से असल संदेश यही है कि न जाति खत्म होगी और न अस्पृश्यता।न रंगभेद खत्म होगा और न नस्ली आततायी आचरण और न पितृसत्ता का अंत है।यही हिंदुत्व की समरसता है।


दलित हैं तो साधु होने के बावजूद दलित ही रहेंगे

अस्पृश्यता का यह सौंदर्यशास्त्र संघ परिवार का समरस हिंदुत्व एजंडा

दरअसल टूट रही जाति वयवस्था क बनाये रखने के लिए अस्पृश्यता, रंगभेद, नस्लभेद और  पितृसत्ता के पाये पर खड़े वर्णवर्चस्वी प्रभुत्व को बनाये रखने की इस समरसता से असल संदेश यही है कि न जाति खत्म होगी और न अस्पृश्यता।न रंगभेद खत्म होगा और न नस्ली आततायी आचरण और न पितृसत्ता का अंत है।यही हिंदुत्व की समरसता है।

पलाश विश्वास

हिंदू परंपरा के मुताबिक  संन्यास का मतलब है कि पूर्व आश्रम यानी शैशव और यौवन के साथ साथ ग्राहस्थ्य आश्रमों का त्याग। इसलिए संन्यासी बनने से पहले अपना ही श्राद्धकर्म करने का प्रावधान है।इसीलिए साधु की कोई जाति नहीं होती।


साधु होने का मतलब है जाति वर्ण से मुक्ति।हिंदुत्व के दलित एजंडे के मुताबिक साधु भी मनुस्मृति अनुशासन से मुक्त नहीं हैं और वे अगर दलित हैं तो साधु होगें तो दलित साधु ही कहलावेंगे।


इस देश में हिंदुत्व का अमृत चाखने वालों के लिए मरणपर्यंत जाति का बंधन तोड़ पाना अंसभव है।भारत के राष्ट्रपति बन जाने के बावजूद उनकी कुल पहचान दलित है।उसीतरह जैसे चाहे स्त्री किसी भी चरमोत्कर्ष को छू लें,वह दासी और शूद्र है।बलात्कार और भोग के लिए शिकार देहमात्र,जिंदा मांस का दरिया।


दलित के चरण चिन्ह जहां भी पड़े,उसे गंगाजल से पवित्र करना बाकी हिंदुत्व का पहला कर्तव्य है।वरना हिंदुत्व अपवित्र।


दलित राजनेता हो या दलित पत्रकार,दलित साहित्यकार हो या दलित उद्यमी, दलित कोई भी उपलब्धि हासिल कर लें,आईएएस टाप करलें,अंतरिक्ष पर पहुंचे,संत रविदास की तरह परम संत और विद्वान हो, अपने माध्यम और विधा में सर्वश्रेष्ठ हो ,उसकी कुल औरकात यही है कि वह आखिरकार दलित है।


सिंहस्थ से यही संदेश मिला है।जहां दलित साधुओं के साथ हिंदुत्व वैदिकी अश्वमेध के सिपाहसालार ने सहस्नान सहभोज करके उन्हें कृतार्थ किया है।


दरअसल नई दिल्ली के जंतर मंतर में जहां देश के पीड़ित नागरिक न्याय की गुहार लाते हुए रोज जमा होते हैं,वहा हिंदी सेना का ट्रंप समर्थक आयोजन से सिंहस्थ का यह दलित स्नान किसी मायने में अलग नहीं है और यह सारा आयोजन फासीवादी राजधर्म का अंध धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद है,जो दरअसल फासिस्ट है।


दरअसल टूट रही जाति व्यवस्था क बनाये रखने के लिए अस्पृश्यता, रंगभेद, नस्लभेद और  पितृसत्ता के पाये पर खड़े वर्णवर्चस्वी प्रभुत्व को बनाये रखने की इस समरसता से असल संदेश यही है कि न जाति खत्म होगी और न अस्पृश्यता।


न रंगभेद खत्म होगा और न नस्ली आततायी आचरण और न पितृसत्ता का अंत है।यही हिंदुत्व की समरसता है।


रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या के बाद देश भर में जाति उन्मूलन के एजंडे को अभूतपूर्व छात्र युवा समर्थन और विश्वविद्यालयों में थोक बाव से मनुस्मृति दहन से हिंदुत्व के एजंडे के लिए भारी खतरा पैदा हो गया है और संघ परिवार की राजनीति के लिए अनिवार्य दलित वोट बैंक को बनाये रखने की भारी चुनौती है।


सिंहस्थ मेले के मौके पर मध्य प्रदेश में केसरिया राजधर्म सलवाजुड़ुम राजकाज के तहत लगे हाथों संघ परिवार ने दलितों को रिझाने के लिए साधु संतों की बिरादरी से दलितों को अलग छांट लिया और क्षिप्रा में उनके लिए अलग स्नान का बंदोबस्त कर दिया।आदिवासियों को जल जंगल जमीन की लड़ाई से भटकाने के लिए उन्हें भी हिंदुत्व में समाहित करने का सलवा जुड़ुम है।


खबरों के मुताबिक गुजरात से राष्ट्रीय राजनीति में धूमकेतु बनकर उभरे शहंशाह ने बुधवार को सिंहस्थ कुंभ में पधारकर दलित साधुओं के साथ क्षिप्रा नदीं में अलग से स्नान किया।


जाहिर है कि दलित साधुओं के लिए अलग स्नान की व्यवस्था कुंभ में थी और यह आयोजन समरसता के हिंदुत्व एजंडे वाले संघ परिवार की ओर से है।


अब सवाल उठता है कि जब साधु जाति से ऊपर नहीं है तो आम लोगों के साथ अस्पृश्यता और रंगभेदी तंत्र मंत्र यंत्र यथावत रखने की यह समरसता दलितोद्धार का कौन सा तरीका है।


मजे की बात है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि ने संघ परिवार के इस आयोजन का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि यह आयोजन साधु संतों को भी जाति के आधार पर बांटने का प्रयास है।


इसके जवाब में संघ परिवार समरसता का अलाप दोहराता रहा और उसका तर्क है कि जाति से ही समाज में भेदभाव खत्म होगा।


बहरहाल ऐन वक्त पर सामाजिक समरसता कार्यक्रम को संत समागम में बदलकर विवाद सुलझाने का उपक्रम भी हुआ।


जाहिर है कि उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा के अहम माने जा रहे इस समरसता स्नान कार्यक्रम के तहत शाह  हिन्दुओं के धार्मिक मेले सिंहस्थ कुंभ में शामिल होने यहां पहुंचे।


मजहबी सियासत और सियासती मजहब के लिए संघ परिवार हिंदू धर्म की परंपरा और कुंभ मेले जैसे पर्व का ऐसा घनघोर राजनीतिक इस्तेमाल जेएनयू में छात्रों के अनशन और विश्वविद्यालयों में मनुस्मृति शासन के अश्वमेध समय पर कर रहा है तो इसका आशय गहराई से समझना भी जरुरी है।


बहरहाल शंहशाह ने क्षिप्रा नदी के वाल्मीकि घाट पर दलित साधुओं सहित अन्य साधुओं के संग स्नान किया।


इसके बाद शंहशाह ने दलित साधुओं सहित अन्य साधुओं के साथ समरसता भोज कार्यक्रम के तहत भोजन भी ग्रहण किया।अछूतोद्धार का यह हिंदुत्व कार्यक्रम भी नया नहीं है।


बहरहाल क्षिप्रा में स्नान करने के पहले भाजपा प्रमुख शाह, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और अन्य नेता वाल्मीकि धाम में आयोजित संत समागम में शामिल हुए।


इसके अलावा इस आयोजन का शुरु में विरोध कर रहे संत अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के प्रमुख महंत नरेंद्र गिरी के अलावा  जूना अखाड़ा पीठ के महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी और वाल्मीकि धाम के पीठाधीश्वर उमेशनाथ भी समागम में मौजूद थे।


शंकराचार्य जयंती से जोड़कर हिंदुत्व के इस दलित एजंडा की पवित्रता भी अक्षुण्ण रखी है संघ परिवार ने।


इस मौके पर शहंशाह ने कहा, देश में भाजपा ऐसी संस्था है जो देश की संस्कृति को मजबूत करना चाहती है। हम वसुधैव कुटुम्बकम को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं। यह स्नान और महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि आज शंकराचार्य जी की जयंती है, जिन्होंने मात्र 32 वर्ष की युवा आयु में ही हिंदू धर्म को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य किया था।


महाकाल में पूजा

स्नान के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने महाकाल के दर्शन किए और मंदिर में पूजा अर्चना भी की। इस समय उनके साथ उनकी पत्नी और पुत्र भी मौजूद थे।

पहले संतों में था विरोध

स्नान से पूर्व द्वारका शारदा और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने समरसता स्नान की निंदा करते हुए कहा था कि साधु की कोई जाति नहीं होती। कुंभ में कोई भी नदी में पवित्र स्नान करने के लिए स्वतंत्र है। आरएसएस के वरिष्ठ नेता और भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभाकर केलकर ने आठ मई को कहा था कि समरसता स्नान से भेदभाव बढ़ेगा। समरसता स्नान की घोषणा से ऐसा लगता है, जैसे इससे पहले सिंहस्थ में दलित वर्ग के साथ भेदभाव किया जा रहा था, जबकि वास्तविकता यह है कि किसी स्नान में जाति नहीं पूछी जाती।


सिंहस्थ में मोहन भागवत के भी चरण चिन्ह

सिंहस्थ कुंभ में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत क्षिप्रा तट पर आदिवासियों के साथ गुरुवार को भोजन करने का कार्यक्रम भोपाल से जारी हुआ।


आरएसएस की सहायक संस्था वनवासी कल्याण परिषद के प्रांत संगठन सचिव प्रवीणजी डोलके ने बताया, आरएसएस प्रमुख शाम 4 बजे जनजाति सम्मेलन को सम्बोधित करेंगे। भागवत आदिवासियों के साथ भोजन भी कर सकते हैं।





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