BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Wednesday, May 4, 2016

निर्णायक लड़ाई उसी नंदीग्राम में इस बार भी मोदी दीदी का गठबंधन गुपचुप है और भाजपा के वोट बढ़े तो अगले चुनावों में दीदी मोदी गठबंधन संसद में मोदी को खुल्ला समर्थन का तरह खुल्लमखुल्ला होने के आसार हैं। अगर मुसलमान यह समझ रहे होंगे तो यह भी कहना मुश्किल है कि भाजपा को हराने के लिए दीदी ही उनका एकमात्र विकल्प होंगी।मुसलमान दूसरा विकल्प क्या चुन सकते हैं,नतीजे बतायेंगे।बाकी बंगाल में जो हुआ हो,हुआ होगा,नंदीग्राम में लड़ाई आसान नहीं है और वाम कांग्रेस गठबंधन ने सीधे दीदी के अश्वमेधी घोड़े पर निशाना साधा है। फिलहाल चुनाव आयोग ने फर्जी मतदान की तैयारी के लिए पुलिस अफसरान के साथ सांसद शुभेंदु अधिकारी की बैठक के आरोप को खारिज कर दिया है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

निर्णायक लड़ाई उसी नंदीग्राम में
इस बार भी मोदी दीदी का गठबंधन गुपचुप है और भाजपा के वोट बढ़े तो अगले चुनावों में दीदी मोदी गठबंधन संसद में मोदी को खुल्ला समर्थन का तरह खुल्लमखुल्ला होने के आसार हैं।

अगर मुसलमान यह समझ रहे होंगे तो यह भी कहना मुश्किल है कि भाजपा को हराने के लिए दीदी ही उनका एकमात्र विकल्प होंगी।मुसलमान दूसरा विकल्प क्या चुन सकते हैं,नतीजे बतायेंगे।बाकी बंगाल में जो हुआ हो,हुआ होगा,नंदीग्राम में लड़ाई आसान नहीं है और वाम कांग्रेस गठबंधन ने सीधे दीदी के अश्वमेधी घोड़े पर निशाना साधा है।

फिलहाल चुनाव आयोग ने फर्जी मतदान की तैयारी के लिए पुलिस अफसरान के साथ सांसद शुभेंदु अधिकारी की बैठक के आरोप को खारिज कर दिया है।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
हस्तक्षेप
बाकी देश के लिए अब नंदीग्राम और सिंगुर देश के तमाम उजाड़े जा रहे हरे भरे खेत खलिहानों वाले इलाकों की तरह अजनबी नहीं हैं।इसी नंदीग्राम ने सिंगुर के साथ मिल कर ममता बनर्जी के सत्ता तक पहुंचने की राह बनाई थी। अब इस बार होने वाले चुनावों में इस नंदीग्राम में उद्योग ही मुद्दा हैं।यह इतना खतरनक मुद्दा है कि किसी वोट बैंके के अटूट रहने के आसार नहीं है जो सत्ता के लिए सरदर्द का सबब है।

दीदी ने नंदग्राम जीतने के लिए भारी दांव खेला है और भूमि अधिग्रहण आंदोलन को लेकर राज्य की राजनीति की सुर्खियों में रहनेवाला पूर्व मेदिनीपुर के नंदीग्राम इलाके से इस बार जिले के कद्दावर नेता व सांसद शुभेंदू अधिकारी खुद तृणमूल कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं।जो नारदा स्टिंग वीडियोमें रिश्वतखोरी करते देखे गये हैं। इनके अलावा तमलुक से निर्बेद राय, पांशकुड़ा से फिरोजा बीबी, महिषादल से पर्यावरण मंत्री सुदर्शन घोष दस्तीदार, दक्षिण कांथी से दीपेंदू अधिकारी, एगरा से सहकारिता मंत्री ज्योतिर्मय कर सारे के सारे हैवीवेट दीदी के लिए मैदान फतह करने उतरे हैं।

गैरतलब है कि नंदीग्राम पूर्ब मेदिनीपुर ज़िले का एक ग्रामीण क्षेत्र है। यह क्षेत्र, कोलकाता से दक्षिण-पश्चिम दिशा में 70 कि॰मी॰ दूर, औद्योगिक शहर हल्दिया के सामने और हल्दी नदी के दक्षिण किनारे पर स्थित है। यह क्षेत्र हल्दिया डेवलपमेंट अथॉरिटी के तहत आता है।

गौरतलब है कि 2007 में, पश्चिम बंगाल की सरकार ने सलीम ग्रूप को 'स्पेशल इकनॉमिक ज़ोन' नीति के तहत, नंदीग्राम में एक 'रसायन केन्द्र' (केमिकल हब) की स्थापना करने की अनुमति प्रदान करने का फ़ैसला किया। ग्रामीणों ने इस फ़ैसले का प्रतिरोध किया जिसके परिणामस्वरूप पुलिस के साथ उनकी मुठभेड़ हुई जिसमें 14 ग्रामीण मारे गए और पुलिस पर बर्बरता का आरोप लगा।
नंदीग्राम गोलीकांड के खिलाफ तब पूरा बंगाल सड़कों पर उतरा तो 35 साल के वाम जमाने का अवसान हो गया।इसलिए यह समझना बेदह दिसचस्प है कि भीतर ही भीतर नंदीग्राम में अबकी दफा पक क्या रहा है।

बहरहाल इसी सिंगुर और नंदीग्राम में वाम जमाने में अंधाधुंध शहरीकरण और औद्योगीकरण के अभियान के प्रतिरोध में उतरी ममता बनर्जी बंगाल की मुख्यमंत्री हैं।

सिंगुर में पिछले चरण के मतदान में वोट पड़े चुके हैं तो अंतिम चरण के मतदान में पूर्व मेदिनीपुर के 16 और कूच बिहार के नौ सीटों का मतदान वृहस्पतिवार को होना है।

इन पच्चीस सीटों में सबसे अहम नंदीग्राम है।

जमीन आंदोलन में जिस शेर पर सवार हो गयी ममता बनर्जी,अब भी उसी शेर पर वे सवार हैं और शेर की पीठ से उतरने की जोखिम उटाने से उन्होंने उसी तरह परहेज किया है जैसे निर्णायक मुस्लिम वोट बैंक को बनाये रखने की उनने हर चंद कोशिश जारी रखी है।

शारदा से लेकर नारदा के सफर में उनकी साख जितनी गिरी हो,जमीन आंदोलन की पूंजी और मुसलमानों के वोट के दम पर वे अब भी उसीतरह आक्रामक हैं और पहले ही बहुमत हासिल कर लेने का दावा कर रही हैं।

विकास के पीपीपी माडल के बावजूद शहरीकरण के अलावा विकास हुआ नहीं है और बंगाल में पूंजी निवेश के लिए जमीन देने से दीदी कदम कदम पर इंकार करती रही हैं तो वाम जमाने में चालू कारखानों,जूट मिलों और चायबागानों के बंद होने का सिलिसिला जारी है और नये उद्योग धंधे शुरु ही नहीं हुए।

जाहिर है कि 2011 के विधानसभा चुनावों में बाजार की जो ताकतें दीदी की ताजपोशी में उद्योग और कारोबार के स्वर्णकाल के इंतजार में बारी निवेश किया था,वे अब दीदी के साथ नहीं है।

दूसरी तरफ,जमायत से चुनावी गठजोड़ करके सिदिकुल्ला चौधरी को साथ लेकर दीदी ने दक्षिण बंगाल के मुसलमान वोट बैंक को अटूट बनाये रखने की कोशिश की है।

गौरतलब हैकि  नंदीग्राम सिंगुर से लेकर कोलकाता के उपनगरों और तमाम दूसरे इलाकों में जमीन से बेदखल हो रहे मुसलमान सच्चर कमेटी की रपट के खुलासे के बाद यकबयक वामपंथ के खिलाफ खड़े हो गये और इस गोलबंदी की शुरुआत नंदीग्राम से हुई।अब यह गोलबंदी बनी रहेगी या नहीं,तयभी करेगा नंदीग्राम।

नंदीग्राम में फिर जमीन अधिग्रहण हुआ नहीं है लेकिन सिंगुर में जो जमीन ली गयी,दीदी उसे वापस दिलाने में नाकाम रही हैं और इस दरम्यान खैरात के अलावा मुसलमानों को कुछ खास मिला नहीं है।जाहिर है कि अब यह कहना मुश्किल ही है कि दीदी का मुसलमान वोट कितना अटूट है।

दूसरी ओर, पिछले लोकसभा चुनाव में दीदी और मोदी के अघोषित गठबंदन की वजह से वाम कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया तो भाजपा को पूरे राज्य में 17 फीसद वोट मिले तो दीदी के गढ़ दक्षिण बंगाल में भाजपा को सर्वत्र 20 से 26 फीसद वोट मिले हैं।

अब केसरिया सुनामी दीदी की मदद के लिए भयंकर है तो दक्षिण बंगाल में भाजपा के वोट घटने के आसार नहीं है।

इस बार भी मोदी दीदी का गठबंधन गुपचुप है और भाजपा के वोट बढ़े तो अगले चुनावों में दीदी मोदी गठबंधन संसद में मोदी को खुल्ला समर्थन का तरह खुल्लमखुल्ला होने के आसार हैं।

अगर मुसलमान यह समझ रहे होंगे तो यह भी कहना मुश्किल है कि भाजपा को हराने के लिए दीदी ही उनका एकमात्र विकल्प होंगी।मुसलमान दूसरा विकल्पक्या चुन सकते हैं,नतीजे बतायेंगे।

उत्तर 24 परगना,दक्षिण 24 परगना,हावड़ा,हुगली,वर्दवान और नदिया के मुसलमानों ने इल पहेली का क्या हल निकाला है,यह 19 मई को ही पता चलेगा।फिलहाल लड़ाई उस नंदीग्राम में हैं जहां से मुसमान वोट बैंक दीदी के खाते में चला गया है।

सिर्फ 25 सीटों का मतदान बाकी है और पक्ष विपक्ष का दावा मान लें तो किसी न किसी को बहुमत पहले ही मिल गया है।

फिरभी अभूतपूर्व चुनावी हिंसा का माहौल बना हुआ है तो साफ है कि लड़ाई कांटे की है और किसी भी पक्ष को जीत हासिल कर लेने का भरोसा नहीं है।

इसलिए अंतिम चरण में भी हालात वही पहले चरण का जैसा जस का तस है और सत्ता की बहाली में भूत बिरादरी की भूमिका क्या होगी,सारा दारोमदार इसी पर है।

पूर्व मेदिनीपुर की ये 16 सीटें कांथी के अधिकारी परिवार का साम्राज्य माना जाता रहा है जहां सांसद शिशिर अधिकारी और सांसद शुभेंदु अधिकारी का राजकाज चलता है।

वैसे भी ऐतिहासिक तौर पर मेदिनीपुर में कोलकाता से राजकाज कभी चला नहीं है।यहां की जनता दीघा में समुंदर की लहरों की तरह आजाद हैं और उनने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1757 में पलाशी की हार के तुरंत बाद लड़ाई शुरु करके आजादी मिलने से पहले तमलुक को केंद्र बनाकर वह लड़ाई जारी भी रखी है।

उस तमलुक से नंदीग्राम बहुत दूर नहीं है और आम लोगों का आजाद मिजाज तनिको बदला नहीं है और वर्चस्व की
धज्जियां उड़ाने की उनकी विरासत है।

बाकी बंगाल में जो हुआ हो,हुआ होगा,नंदीग्राम में लड़ाई आसान नहीं है और वाम कांग्रेस गठबंधन ने सीधे दीदी के अश्वमेधी घोड़े पर निशाना साधा है।

फिलहाल चुनाव आयोग ने फर्जी मतदान की तैयारी के लिए पुलिस अफसरान के साथ सांसद शुभेंदु अधिकारी की बैठक के आरोप को खारिज कर दिया है।

अंग्रेज़ों के ज़माने के भारतीय इतिहास में, बंगाल के इस क्षेत्र का कोई सक्रिय या विशेष उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन यह क्षेत्र ब्रिटिश युग से ही सक्रिय राजनीति का हिस्सा रहा है। 1947 में, भारत के वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त करने से पहले, "तमलुक" को अजय मुखर्जी, सुशील कुमार धाड़ा,सतीश चन्द्र सामंत और उनके मित्रों ने, नंदीग्राम के निवासियों की सहायता से, अंग्रेज़ों से कुछ दिनों के लिए मुक्त कराया था (आधुनिक भारत का यही एकमात्र क्षेत्र है जिसे दो बार आजादी मिली)।यहीं अस्सी साल की  मातंगिनी हाजरा तिरंगा लहराते हुए पुलिस की गोली से शहीद हुईं तो आजादी की लड़ाई में घर घर से बेटियों और बहुओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
भारत के स्वतंत्र होने के बाद, नंदीग्राम एक शिक्षण-केन्द्र रहा था और इसने कलकत्ता (कोलकाता) के उपग्रह शहर हल्दिया के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई. हल्दिया के लिए ताज़ी सब्जियां, चावल और मछली की आपूर्ति नंदीग्राम से की जाती है। हल्दिया की ही तरह, नंदीग्राम भी, व्यापार और कृषि के लिए भौगोलिक तौर पर, प्राकृतिक और अनुकूल भूमि है। नंदीग्राम की किनारों पर, गंगा (भागीरथी) और हल्दी (कंशाबती के अनुप्रवाह) नदियाँ फैली हुईं हैं और इस तरह ये दोनों नदियाँ यहाँ की भूमि को उपजाऊ बनातीं हैं।
हालांकि इस क्षेत्र की आबादी में 60% लोग मुसलमान हैं, पर फिर भी, यह क्षेत्र कभी भी हिन्दू-मुस्लिम के दंगों के चंगुल में नहीं फंसा. नंदीग्राम शहर में ब्राह्मणों (तिवारी, मुखर्जी, पांडा इत्यादि) का अधिक बोलबाला है।

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