BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Monday, November 23, 2015

हमारे बदलाव के ख्वाबों के शहंशाह जियो युसूफ साहेब । जी रौ हजार बरीस! " उसने की पुर्शसे हालात तो मुंह फेर लिया दिले ग़मगीं के ये अंदाज़ ख़ुदा ख़ैर करे । "

 हमारे बदलाव के ख्वाबों के  शहंशाह जियो  युसूफ साहेब । जी रौ हजार बरीस!

" उसने की पुर्शसे हालात तो मुंह फेर लिया
दिले ग़मगीं के ये अंदाज़ ख़ुदा ख़ैर करे । "

पलाश विश्वास


हमने शायद ही दिलीप कुमार की कोई फिल्म कभी मिस की होगी।

नैनीताल में सत्तर के दशक में आफ सीजन में और कासकर विनाश कारी पौधे की मीसाई अफवाह से जब 19575-77 को दरम्यान नैनीताल उजाड़ हुआ करता था,हम छात्रों की आवास की कोई दिक्कत न होती थी, लेकिन पूरे पहाड़ बेरोजगार मातम मना रहा होता तो अमूमन नैनीताल में होने वाली  नई फिल्मों की बहार की बजाय सदाबहार पुरानी फिल्में तीन तीन हाल में अलग अलग शो पर दिखायी जाती थीं।


हमने हर हाल में दो दो के हिसाब से एक ही दिन छह छह फिल्में देखकर मूक वधिर दिनों के तीस चालीस दशक से लेकर साठ के दशक की बेशुमार फिल्में और हालीवूड की क्लासिक फिल्में उन्हीं दिनों देखी हैं।तमामो क्लासिक फिल्में नैनीताल के उन बंद हालों में।अंधेरे में गिरदा गैंग की सोहबत में अंधेरेे को रोशन करने वास्ते बदलाव के ख्वाब से जिगरा जलाते हुए।

तब हम चिपको के दौर में थे तो गिरदा गैंग आकार भी लेने लगा था और इसी गैंग में थे हमारे प्राचीन मित्र कामरेड राजा बहुगुणा जो माले के बड़का नेता हुए जैसे इलाहाबाद विवि के छात्र संघ जीतने वाले जुबिली हाल के वाशिंदे अखिलेंद्र भइया।

तीस पैसे के टिकट पर घटी दरों पर।क्लासिक फिल्म।

अब नैनीताल के वे सारे हमारे ख्वाबगाह न जाने कब से बंद हैं,जहां अंधेरे में रोशनी जगाकर हमारी पीढ़ी ख्वाब जगाती थी।

जाहिरा तौर पर हमारे उन ख्वाबों के शहंशाह थे दिलीप कुमार।सदाबहार भारतीय फिल्मों के नायक।

आज फेसबुक वाल पर राजा बहुगुणा के पोस्ट पर दिल में फिर नैनीझील बेताब गहराइयों तलक कि बहुत दिनों से मीडिया ब्लिट्ज ने इस बेहतरीन अदाकार और हर दिल अजीज किनारे कर दिया।

गंगा जमुना में इन्हीं दिलीपकुमार और बैजंती माला ने बिना आधुनिकतम डबिंग और तकनीक के जो बेधड़क भोजपुरी का लोक जगाया,तभी से वही जागर मेरे बीतर खलबलाता है तो भद्रलोक भाखा के बदले अपना अशुध देसी में छंलागा मारकर दौड़ता हूं।डरता नहीं कि कोई टोक दें यापिर ठोंके दें।

शुक्रिया,दिलीप कुमार।जो धर्म से मुसलमान भी हुए,लेकिन हिंदू किरदार निभाने में उनसे उस्ताद कोई दूसरा हो तो बतायें।

गोपी से लेकर हर फिल्म में उनके भजन,नया दौर से लेकर सगीना महतो तक भारतीय भारत तीर्थ की सहिष्णुता और बहुलता का यह हरदिल अजीज मुसलमान है और मीडिया ने उन्हें ऐसे भुलाया है जैसे कि वे शायद इस दुनिया में हों ही नहीं।

शुक्रिया राजा,तूने  तो इस चमकदार मीडिया का बाजा दिया बजा।

कस हालचाल छन
नानतिन कतो हैगे

 आगे राजा बहुगुमा के  वाल से
आजन्म भद्र , आमरण भद्र दिलीप कुमार साहेब की यह ताज़ा तस्वीर शब्द साधक आदरणीय Arvind Kumar जी ने शेयर की है । इसे देख लगभग 20 - 25 साल पुराना एक संस्मरण सजीव हो उठा ।
90 के दशक की बात है । दिलीप कुमार साहेब एक अर्द्ध निजी कार्यक्रम में जयपुर आये थे । एक रिपोर्टर के नाते मैं वहां तैनात था । वह तब भी 70 + तो थे ही । लेकिन चुस्त दुरुस्त और सुरुचिपूर्ण वस्त्र विन्यास । गर्मी में भी कोट पहने थे । शायद जेंटल मैन दिखने की मज़बूरी के चलते । केशराजि अवलेह से रंग कर चिट काली बना रखी थी । अचानक वह सबकी नज़र चुरा कर स्टेज के पीछे चले गए । आखिर क्यों गए , इस जिज्ञासा के कारण मैं भी उनके पीछे पीछे पँहुच गया । देखता क्या हूँ कि एक भृत्य सामने दर्पण थामे खड़ा है , और बड़े मियां अपने बाल संवार रहे हैं । हठात् मुझ पर नज़र पड़ी तो लजा गए और कंघा जेब में रख लिया । मैंने कहा- कर लीजिये पूरा सिंगार । माशा अल्लाह अभी तो हुज़ूर साठा सो पाठा हैं । लेकिन वह और लजा गए । कोई और एक्टर होता तो अपनी निजता में ख़लल डालने के लिए मारने दौड़ता । जियो युसूफ साहेब । 
" उसने की पुर्शसे हालात तो मुंह फेर लिया
दिले ग़मगीं के ये अंदाज़ ख़ुदा ख़ैर करे । " 

सवाल यह है कि क्या हम फिर आपरेशन ब्लू स्टार का विकल्प चुनने की राह पर है?


सवाल यह भी है कि क्या यह हिंदू राष्ट्र फिर सिखों का नरसंहार दोहराने पर आमादा है?


सैफई का जश्न समाजवाद नहीं!


और न क्षत्रप वंश वर्चस्व जनादेश!


बंगाल में भयंकर राजनीतिक हिंसा,

फासीवादी गठजोड़ फिर

महागठबंधन का चेहरा!


महागठबंधन का महाजिन्न भी विकल्प नहीं!


जिसका चेहरा फिर वही बिररिंची बाबा!


परिपक्व जनतंत्र में सरबत खालसा भी!


न अलगाववाद है और न राष्ट्रद्रोह!


आत्मनिर्णय का अधिकार भी


लोकतांत्रिक मानवाधिकार!


मसलों को संबोधित करना सबसे जरुरी तो सैन्य दमन तंत्र सबसे बड़ा,सबसे खतरनाक आतंकवाद, मनुस्मृति राष्ट्र!


https://youtu.be/wS97K_GXnoY

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