BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Sunday, January 5, 2014

फिर उसी मुक्तिबोध के अंधेरे में- गेरुआ मौसम उड़ते हैं अंगार जंगल जल रहे जिन्दगी के अब जिनके कि ज्वलंत-प्रकाषित भीषण फूलों से बहती वेदना नदियां जिनके कि जल में सचेत होकर सैकड़ों सदियां, ज्वलंत अपने बिम्ब फेंकती।

फिर उसी मुक्तिबोध के अंधेरे में-

गेरुआ मौसम उड़ते हैं अंगार

जंगल जल रहे जिन्दगी के अब

जिनके कि ज्वलंत-प्रकाषित भीषण

फूलों से बहती वेदना नदियां

जिनके कि जल में

सचेत होकर सैकड़ों सदियां, ज्वलंत अपने

बिम्ब फेंकती।


पलाश विश्वास


फिर उसी मुक्तिबोध के अंधेरे में-

गेरुआ मौसम उड़ते हैं अंगार

जंगल जल रहे जिन्दगी के अब

जिनके कि ज्वलंत-प्रकाषित भीषण

फूलों से बहती वेदना नदियां

जिनके कि जल में

सचेत होकर सैकड़ों सदियां, ज्वलंत अपने

बिम्ब फेंकती।


आज का संवाद

फिर भी हम मुक्तिबोध के उस आह्वान के प्रत्युत्तर में निरुत्तर ही हैं कि तय करो कि किस ओर हो तुम!



मुक्तिबोध थे कि मध्यवर्ग के अवसरवाद और समझौतापरस्त चरित्र की शिनाख्त करती उनकी यह कविता आगे बढ़ती है और ऐसी लड़ाई में उसकी किसी भी प्रकार की सकारात्मक भूमिका को सिरे से तब तक खारिज करती है जब तक कि वह खुद को वैचारिक रूप से डीक्लास करके सर्वहारा वर्ग में शामिल न कर ले। विडंबना अब यह है कि इसी मध्यवर्गीय पहचान को सर्वहारा का अमोघ मुक्तिमार्ग बतौर स्थापित करने वाले मध्यवर्गीय ईश्वरों के आध्यात्मिक तिलिस्म में पूरा का पूरा देश अंधंरे में डूब गया है और फिर भी हम मुक्तिबोध के उस आह्वान के प्रत्युत्तर में निरुत्तर ही हैं कि तय करो कि किस ओर हो तुम!



आह्वान टीम के लिए


Palash Biswas असहमति के बावजूद हम चाहते हैं कि इस अनिवार्य मुद्दे पर स‌ंवाद जारी रहे।आह्वान टीम अपने असहमत स‌ाथियों के स‌ाथ जो निर्मम भाषा का प्रयोग करती है,उसे थोड़ा स‌हिष्णु बनाने का यत्न करें तो यह विमर्श स‌ार्थक स‌ंवाद में बदल स‌कता है।


तेलतुंबड़े अंबेडकरवादियों में एकमात्र ऎसे विचारक हैं जो स‌मसामयिक य़थार्थ स‌े टकराने की कोशिश करते हैं।


सबकी अपनी स‌ीमाबद्धता है।अंबेडकर की भी अपनी स‌ीमाबद्धता रही है। मार्क्स भी स‌ीमाओं के आर पार नहीं थे।न माओ।लेकिन स‌बने इतिहास में निश्चित भूमिका का निर्वाह किया है।


हम मानते हैं कि आह्वाण की युवा प्रतिबद्ध टीम भी एक ऎतिहासिक भूमिका में है और उसे इसका निर्वाह और अधिक वस्तुवादी तरीके स‌े करना चाहिए।लेकिन जब हम आम जनता को स‌ंबोधित करते हैं तो हमें इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि वे अकादमिक या वस्तुवादी भाषा में अनभ्यस्त हैं और उनका स‌ंसार पूरी तरह भाववादी है।


इस द्वंद्व के स‌माधान के लिए भाषा की तैयारी मुकम्मल होनी चाहिए।


आप अंबेडकर,तेलतुंबड़े और दूसरे तमाम स‌मकालीन प्रतिबद्ध असहमत लोगों के प्रति भाषा की स‌ावधानी बरतें तो हमें लगता है कि आपका यह प्रयास और ज्यादा स‌ंप्रेषक और प्रभावशाली होगा।


याद करें कि आपके आधारपत्र और वीडियो रपट देखने के बाद हमें तत्काल बहस स‌े बाहर जाना पड़ा। क्योंकि हम जिन लोगों के स‌ाथ काम कर रहे हैं वे इस भाषा में अंबेडकर का मूल्यांकन करना नहीं चाहते।


दरअसल मूर्तिपूजा के अभ्यस्त जनता स‌े आप स‌ीधे तौर पर उनकी मूर्तियां खंडित करने के लिए कहेंगे तो स‌ंवाद की गुंजाइश बनेगी ही नहीं।


उन्हें अपने स्तर तक लाने स‌े पहले उनके स्तर पर खड़े होकर उनके मुहावरों में संवाद हमारा प्रस्थानबिंदु होना चाहिए।


माओ ने इसीलिए जनता के बीच जाकर जनता स‌े सीखने का स‌बक दिया था।


भारतीय यथार्थ गणितीय नहीं है और न ही उसे स‌ुलझाने का कोई गणितीय वैज्ञानिक पद्धति का आविस्कार हुआ है।


हर प्रदेश,हर क्षेत्र की अपनी अपनी अस्मिता है।हर स‌मुदाय की अस्मिता अलग है।ये असमिताएं आपस में टकरा रहीं हैं,जिसका स‌त्तावर्ग गृहयुद्ध और युद्ध की अर्थव्यवस्था में बखूब इस्तेमाल कर रहा है।


मनुस्मृति भी एक बहिस्कार और विशुद्धता के स‌िद्धांत पर आधारित अर्थशास्त्र ही है,ऎसा हम बार बार कहते रहे हैं।


हमें आपकी दृष्टि स‌े कोई तकलीफ नहीं है,न आपके विश्लेषण स‌े। हम स‌हमत या असहमत हो स‌कते हैं। लेकिन हम चाहते हैं कि जिस ईमानदारी स‌े आप स‌ंवाद और विमर्श का बेहद जरुरी प्रयत्न कर रहे हैं,वह बेकार न हों।


तेलतुंबड़े को झूठा स‌ाबित करना मेरे ख्याल स‌े क्रांति का मकसद नहीं हो स‌कता।बाकी आपकी मर्जी।


आप इस बहस को आह्वान के मार्फत व्यापक पाठकवर्ग तक पहुंचा रहे हैं,इसके लिए आभार।हम इस प्रयत्न का अपनी असहमतियों के बावजूद स्वागत करते हैं।संवादहीन समाज में समस्याओं की मूल वजह संवादहीनता की घनघोर अमावस्या है,आप लोग उसे तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।


आपकी आस्था वैज्ञानिक पद्धति में है।हमारी भी है।लेकिन शायद आपकी तरह दक्षता हमारी है नहीं है।


हम अपने सौंदर्यबोध में वस्तुवादी दृष्टि के साथ जनता को संबोधित करने लायक भाववादी सौंदर्यशास्त्र का भी इस्तेमाल करते हैं अपने नान प्रयोग में इसी संवादहीनता को तोड़ने के लिए।


कृपया इसे समझने का कष्ट करें कि आपके शत्रु वास्तव में कौन हैं और मित्र कौन।


पचास साल बाद भी मुक्तिबोध की कविता अंधेरे में आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना जब वह रची गयी थी।बल्कि अह अंधेरा बेहद गहरा गया है और उसे अंधेरे के प्रहार से हम रात दिन सातों दिन बारह महीने अविराम र्काक्त हुए जाते हैं।लेकिन इस अधंरे को तोड़कर कोई आलोकपथ के निर्माम की दिशा अब भी बनी नही है।


छायावादी कविता की सतह से उठकर मुक्तिबोध के सौजन्य से ही भारतीय कविता,हां महज हिंदी नहीं,गौर करें,भारतीय कविता सामाजिक यथार्थ की जमीन पर मजबूती से खड़ी हुई।


बांग्ला में सुकांत भट्टाचार्य की घोर यथार्थवादी कविताओं और इप्टा के नाट्यांदोलन के बावजूद बांग्ला कविता साठ के दशक से लेकर अब तक शक्ति सुनील के आत्मध्वंसी कवित्व में उलझी हुई है।


बीच में सत्तर का दशक आया और चला गया। मृत्यु उपत्यका की चीखें कभी बांग्ला कविता का मुख्य स्वर या स्थायी भाव  नहीं बन सका। बाकी भारतीय भाषाओं में हमारी जानकारी के मुताबिक कमोबेश यही स्थिति है।


इसके विपरीत यह मानना होगा कि जीवन में कभी प्रतिष्ठा का चेहरा न देखने वाले गजानन माधव मुक्तिबोध ने अपनी प्रखर दृष्टि से हिंदी भाषा और हिंदी कविता के लिए एक सुप्रशस्त आलोकपथ का निर्माण कर गये।ध्यान देने योग्य है कि उनकी कविता में न कोई पोस्टर है और न बंदूक की ऊंचाई का कोई पौधा है और न गीतों का उद्वेलित करने वाला कोई आह्वान।


गजानन माधव मुक्तिबोध  की कोई भी कविता गहीनतम समुद्र में गोताखोरी के अहसास से कम नहीं है।अंधेरे की गहराइयों को हम आज तक नाप ही नहीं सके हैं।


सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने भी छायावाद को तोड़ा है। उनकी कविताओं से भी यथार्थ की रोशनी फूट निकलती है लेकिन उनपर राविंद्रिक प्रभाव भी प्रबल है।जबकि मुक्तिबोध का सामाजिक यथार्थ सीधे मध्यमवर्ग की तिलस्मी दीवारों को तोड़ते हुए एकदम सतह पर या सतह से भी नीचे जो सर्वहारा है,उसको हिंदी कविता में स्थापित करता है और उसीके पक्ष में जनपक्षधरता का निर्माण करता है।


भाषा शैली के मामले में उनकी कविताएं कला और सौंदर्यबोध,दक्षता और बिंब संयोजन,शब्द चयन में सत्तर के दशक से प्रचलित भारतीय जनवादी कविता से कहीं मेल नहीं खाती,लेकिन इसके बावजूद सच यह है कि तमाम कोलाहली जनकवियों के मध्य सबसे बड़ा भारतीय जनकवि आज भी मराठी मूल के अहिंदीभाषी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं।


हिंदी में और हिंदी समाज में पूरे भारत को और भारत की तमाम अस्मिताओं को स्थान देने की जो आत्मशक्ति है,उसकी बेहतरीन उपलब्धियां हैं गजानन माधव मुक्तिबोध  की कविताएं।


उनकी उस छायावादी जैसी लगने वाली भाषा का हर बिंब उनकी प्रखर वस्तुवादी दृष्टि से आलोकित है जो पल प्रतिपल अंधेरे के तिलिस्म से टकराती हुई नजर आती है।


माफ करना बंधुओं ,कालजयी तमाम कवियों के मुकाबले हमें तो अपने यही मुक्तिबोध भारतीय परिप्रेक्ष्य में अकेले महाकवि नजर आते हैं ठीक वैसे ही जैसे तालों में ताल नैनीताल,बाकी ताल तलैया।


अंग्रेजी के क्रांतिकारी कवि टीएस इलियट ने परंपरा का बहुत खूबसूरती से इस्तेमाल किया है तो आलोचक काडवेल ने इल्यजन माया को तार तार किया है।लेकिन कविता के मायावी संसार को परंपरा को प्रस्थानबिंदू बनाकर सामाजिक प्रतिबद्धता से जोड़ने वाले दुनियाभर के कवियों में शायद गजानन माधव मुक्तिबोध का कोई जोड़ है ही नहीं।


कोई जादुई यथार्थ का उत्तरआधुनिकताबोध और विचारहीन अराजकता मुक्तिबोध की कविता को जल जंगल जमीन से बेदखल कर ही नहीं सकती।


वे जन्मजात छत्तीसगढ़ी थे और छत्तीसगढ़ी जलसंघर्ष की परंपराएं ही उनकी कविताओं की असली ताकत है,जिसका उन्होंने शायद ही कभी जिक्र किया है।किया भी हो तो हम जैसे अपढ़ व्यक्ति को मालूम ही नहीं है।


  • Abhinav Sinha पलाश जी, आपके सुझावों का स्‍वागत है। लेकिन यह समझने की आवश्‍यकता है कि राजनीतिक बहस में एक-दूसरे का गाल नहीं सहलाया जा सकता है। इसमें call a spade a spade की बात लागू होती है। तेलतुंबडे जी ने अपने लेख में हमारे प्रति कोई रू-रियायत नहीं बरती है, और न ही हमने अपने लेख में उनके प्रति कोई रू-रियायत बरती है। इसमें दुखी होने, कोंहां जाने, कोपभवन में बैठ जाने वाली कोई बात नहीं है। यह शिकायत जब तेलतुंबडे जी की ही नहीं है (क्‍योंकि वे स्‍वयं भी उसी भाषा का प्रयोग अपने लेख में करते हैं, जिस पर पलाश जी की गहरी आपत्ति है) तो फिर किसी और के परेशान होने की कोई बात नहीं है।

  • दूसरी बात, यहां बहस व्‍यक्तियों की सीमाबद्धता की है ही नहीं। यहां बहस विज्ञान पर है। सवाल इस बात का है कि अंबेडकर के पास दलित मुक्ति की कोई वैज्ञानिक परियोजना थी? क्‍या उनके पास एक समतामूलक समाज बनाने की कोई वैज्ञानिक परियोजना थी ? निश्चित रूप से सीमाओं से परे न तो मार्क्‍स हैं और न ही माओ। ठीक वैसे ही जैसे आइंस्‍टीन या नील्‍स बोर भी नहीं थे। लेकिन अंबेडकर से अलग मार्क्‍स ने सामाजिक क्रांति का विज्ञान दिया। अंबेडकर अपने तमाम जाति-विरोधी सरोकारों के बावजूद सुधारवाद, व्‍यवहारवाद के दायरे से बाहर नहीं जा सके; सामाजिक परिवर्तन के विज्ञान को समझने में वे नाकाम रहे। और हमारे लिए अंबेडकर की अन्‍य व्‍यक्तिगत सीमाओं का कोई महत्‍व नहीं है, लेकिन उनकी इस असफलता का महत्‍व दलित मुक्ति की पूरी परियोजना के लिए है।

  • इसलिए व्‍यक्तियों की सीमाएं होती हैं, इस सर्वमान्‍य तथ्‍य पर बहस ने हमने अपने लेख में की है, और न ही हम आगे ऐसी बहस कर सकते हैं।

  • अगर भाषा के आधार पर ही बहस से बाहर जाना उचित होता हो, साथी, तो फिर हमें तेलतुंबडे जी द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा पर तुरंत ही बहस से बाहर जाना चाहिए था। हमारे लिए भाषा तब भी उतनी अहमियत नहीं रखती थी, और अब भी नहीं रखती है। मूल बात है बहस के आधारभूत मुद्दे। अगर भाषा पर ही आपकी पूरी आपत्ति ही है तो आपको यह सीख पहले तेलतुंबडे जी को देनी चाहिए, जो बेवजह ही हमें अपना शत्रु समझते हैं। विचारधारात्‍मक बहस आप तीखेपन से चलायें तो सही है, अगर हम चलायें तो ग़लत। यह कहां की नैतिकता है? तेलतुंबडे जी ने अपने वक्‍तव्‍य में असत्‍यवचन कहा था। तो अब हम क्‍या करें ? क्‍या इस बात की ओर इंगित न करें ? क्‍या इसी प्रकार से बहस चलायी जाती है ? हमें लगता है कि यह बौद्धिक-राजनीतिक बेईमानी होगी।

  • जहां तक भारत की जटिलता का प्रश्‍न है, तो आपके अस्मिताओं, गणितीय-गैरगणितीय यथार्थ और उनके गणितीय व गैर-गणितीय समाधानों के बारे में विचारों पर अपनी प्रतिक्रिया हम संक्षेप में नहीं दे सकते हैं। लेकिन इस पर आह्वान के उपरोक्‍त लेख में ही हमारे विचार स्‍पष्‍ट हैं। आप उन्‍हें ही संदर्भित कर सकते हैं। संक्षेप में इतना ही कि इस जटिलता से हम भी वाकिफ हैं और हम इसका कोई 'दो दुनाई चार' वाला समाधान प्रस्‍तावित भी नहीं कर रहे हैं। अगर आप गौर से हमारे लेख का अवलोकन करें तो स्‍वयं ही यह बात स्‍पष्‍ट हो जायेगी।

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  • Palash Biswas अभिनव जी,हम आपका लेख पढ़ चुके हैं और वक्तव्य भी स‌ुन चुके हैं। हम कोई तेलतुंबड़े जी का पक्ष नहीं ले रहे हैं और न आपके पक्ष का खंडन कर रहे हैं। हम स‌ारे लोग अलग अलग तरीके स‌े भारतीय यथार्थ को स‌ंबोधित कर रहे हैं। अगर हम राज्यतंत्र में परिवर्तन चाहते हैं और उसके लिए हमारे पास परियोजना है,तो उस परियोजना का कार्यान्वयन भी बहुसंख्य जनगण को ही करना है।

  • हीरावल दस्ते के जनता के बहुत आगे निकल जाने स‌े स‌त्तर के दशक की स‌बसे प्रतिबद्ध स‌बसे ईमानदार पीढ़ी का स‌ारा बलिदान बेकार चला गया।क्योंकि जनता स‌े स‌ंवाद की स्थिति ही नहीं बनी।

  • विचारधारा अपनी जगह स‌ही है,लेकिन उसे आम जनता को,जो हमसे भी ज्यादा अपढ़ और हमसे भी ज्यादा भाववादी है,उस तक आप वैज्ञानिक पद्धति स‌े वस्तुपरक विश्लेषण स‌ंप्रेषित करके उन्हें मुक्ति कामी जनसंघर्ष के लिए देशभर में तमाम अस्मिताओं के तिलिस्म तोड़कर कैसे स‌ंगठित करेंगे,जनपक्षधर मोर्चे की बुनियादी चुनौती यही है।

  • अवधारणाएं और विचारधारा अपनी जगह स‌ही हैं,लेकिन तेलतुंबड़े हों या आप,या हम या दूसरे लोग,हम स‌ामाजिक यथार्थ के मद्देनजर मुद्दों को टाले बिना एकदम तुरंत जनता को स‌ंबोधित नहीं कर पा रहे हैं।

  • यह आह्वान टीम ही नहीं,पूरे जनपक्षधर मोर्चे की भारी स‌मस्या है।शत्रू पक्ष के लोगों में वैचारिक स‌ांगठनिक असहमति होने के बावजूद जबर्दस्त स‌मन्वय और अविराम औपचारिक अनौपचारिक स‌ंवाद है।

  • लेकिन आप जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं,वैसे देश के अलग अलग हिस्से में हमारे तमाम लोग बेहद जरुरी काम कर रहे हैं।लेकिन हमारे बीच कोई आपसी स‌ंवाद और स‌मन्वय नहीं है।

  • जब हमारा बुनियादी लक्ष्य मुक्तिकामी जनता को राज्यतंत्र में बुनियादी परिवर्तन के लिए जातिविहीन वर्गविहीन स‌माज की स्थापना के लिए स‌ंगठित करना है,तो आपस में स‌ंवाद में हार जीत और रियायत के स‌वाल गैरप्रासंगिक हैं।

  • जब आप स‌ांगठनिक तौर पर नीतियां तय कर रहे होते हैं,तो वस्तुपरक दृष्टि स‌े पूरी निर्ममता स‌े चीजों का विश्लेषण होना ही चाहिए।

  • लेकिन जब आप स‌ार्वजनिक बहस करते हैं या लिखते हैं तो आपको जनता के हर हिस्से को और खासकर जिस बहुसंख्य स‌र्वहारा वर्ग को आप स‌ंबोधित कर रहे हैं,उसपर होने वाले असर का आपको ख्याल रखना होगा।

  • यह कोप भवन में जाने की बात नहीं है। हम जिन तबकों के स‌ाथ जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं,वे मसीहों और दूल्हों के शिकंजे में फंसे मूर्ति पूजक स‌ंप्रदाय है तो स‌ीधे अंबेडकर की मूर्ति को एक झटके स‌े गिराकर उनके बीच आप काम नहीं कर स‌कते हैं।वे तो आपको स‌ुनते ही नहीं है। न वे विचारधारा स‌मझते हैं,न राज्य का चरित्र जानते हैं,न राजकाज की गतिविधियों पर उनकी दृष्ठि है और न वे अर्थव्यवस्था के बुनियादी स‌िद्धांतों के जानकार हैं।

  • जाति विमर्श जब आप चला रहे थे,तब आपके आक्रामक तेवर से जो बातें संप्रेषित हो रही थीं,उसे आगे बढ़ते देने से अंबेडकर के पुनर्मूल्यांकन का काम और मुश्किल हो जाता।यह अनिवार्य कार्यभार है और आपने इस पर विमर्श की पहल करके भी बढ़िया ही किया है।लेकिन इस विमर्श और संवाद में अंबेडकर अनुयायियों को जबतक शामिल नहीं करते तब तक यह सत्तावर्ग का विमर्श बना रहेगा,सर्वस्वहाराओं का विमर्श बनने की जगह।आप जो कह रहे हैं,वे बातें अंततः रंग बिरंगे अंबेडकरी आंदोलन के परचम के नीचे धर्मोनमादी राष्ट्रवाद की पैदल सेनाओं में तब्दील वंचित तमाम समुदाय जो वास्तव में भारत में बहुसंख्य हैं,उनके दिलो दिमाग में पहुंचनी चाहिए।तेलतुंबड़े या पलाश विश्वास क्या बोलते लिखते समझते हैं,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।इस मोड में बहस में शामिल होते रहने से जमीनी स्तर पर अंबेडकरवादियों से दशभर में जो मेरा संवाद का क्रम जारी है,वह तभी भंग हो जाता।आगे काम और बेहतर तरीके से करने के लिए बेहतर है कि इस समस्या को आप सारे युवाजन समझ लें और हमसे बेहतर तरीके से इसे संबोधित भी करें।

अब देशभर में कश्मीर से लेकर कन्याकुमरी तक हजारों की तादाद में ऐसे पुरातन बीएसपी और बामसेफ के कार्यक्रता भी हमारे साथ हैं,जो अंबेडकरी आंदोलन की चीड़फाड़ के लिए तैयार हैं और अस्मिताओं से ऊपर उठकर अंबेडकर के जाति उन्मूलन के मूल एजंडा के तहत ही उनका मूल्यांकन करने को तैयार हैं और जनसंहारी अर्थ व्यवस्था के विरुद्ध देश व्यापी जनप्रतिरोध के साझ मोर्चे के लिए तैयार हैं। जब आपने विमर्श चलाया तब यह हालत नहीं थी।तेलतुंबड़े जी भी इस बहस को जारी रखने के हक में हैं।देश भर में और भी लोग जो वाकई बदलाव चाहते हैं, इस विमर्श को जारी रखने की अनिवार्यता मानते हैं।


अब बुनियादी समस्या लेकिन वही है कि हमें उस भाषा और माध्यम पर मेहनत करनी होगी, जिसके जरिये हम वंचितों को तृणमूल स्तर पर इस विमर्श में शामिल कर सकें,ताकि अस्मिताओं का तिलिस्म टूटे और अंधेरा छंटे। विश्लेषण आप भले ही सही कर रहे हों,उसे आडियेंस तक सहीतरीके से संप्रेषित करना आपकी सबसे बड़ी चुनौती है।

  • दुनियाभर में इसलिए क्रांतिकारी आंदोलन में लोगों तक स‌ाहित्य और अध्ययन चक्र की परंपरा रही है।ताकि हम जो कहते ,लिखते हैं, वह एकतरफा न हो,हम आम जनता को भी स‌ंवाद में शामिल कर स‌कें।

  • हालात तो तभी बदलेंगे जब अभिनव स‌िन्हा जो स‌ोचते हैं,वैसा तेलतुंबड़े या पलास विश्वास न भी स‌ोचें तो चलेगा,लेकिन आम जनता की स‌मझ में बात आनी चाहिए।हमारा निवेदन स‌िर्फ इतना है कि हम स‌भी,माननीय तेलतुंबड़े जी भी और आप भी यह कोशिश करें कि कैसे हम मूक भारतीय जनगण को उनकी आवाज कम स‌े कम लौटा स‌कें।

  • वे जब बोलने लगेंगे,चीजों को स‌िलसिलेवार वैज्ञानिक दृष्टि से स‌मझने लगेंगे,तब जाकर बात बनेगी।

  • हमारी तुलना में आप लोग युवा हैं, तकनीक दक्ष हैं,विश्लेषण पारंगत प्रतिबद्ध टीम है तो अब आपको इस चुनौती का स‌ामना तो करना ही होगा कि बेहतर तरीके स‌े हम अपनी बात कैसे वंचित तबके तक ले जायें।

  • क्योंकि अंबेडकर के खिलाफ वंचित तबके के लोग कुछ भी स‌ुनना नहीं चाहते।वे तेलतुंबड़े को भी नही पढ़ते हैं और न स‌ुनते हैं।

  • पहले उन्हें इस विमर्श के लिए मानसिक तौर पर तैयार करना होगा वरना आप जो कर रहे हैं,वह स‌त्तावर्ग की स‌मझ में तो आयेगा लेकिन स‌र्वहारा जिस हालत में हैं, वे वहां स‌े एक कदम आगे नहीं बढ़ेंगे।

  • आगे भविष्य आप लोगों का है,हम लोग तेजी स‌े अतीत में बदल रहे हैं।

  • आपसे ही उम्मीदे हैं कि आप इन स‌मस्याओं का स‌माधान निकालकर माध्यमों का बेहतर इस्तेमाल करके वंचित स‌मुदायों स‌मेत देश भर के स‌र्वहारा स‌र्वस्वहारा तबकों को बुनियादी परिवर्तन के लिए स‌ंगठिक करेंगे।

  • मैं कोई आपकी आलोचना के लिए आपको यह स‌ुझाव नहीं दे रहा हूं,बल्कि जो काम आप लोग कर रहे हैं,उसे अति महत्वपूर्ण मानते हुए उसको पूरे देश को स‌ंप्रेषित करने की गरज स‌े ऎसा कर रहा हूं।

  • जैसा कि आप बार बार बोलते लिखते रहे हैं ,इस प्रकरण में न अभिनव स‌िन्हा महत्वपूर्ण है,न तेलतुंबड़े और न पलाश विश्वास।महत्वपूर्ण है भारत का स‌र्वहारा और स‌र्वस्वहारा वर्ग,अंततः जिन्हें हमें स‌ंबोधित करना है।

  • हाशिया

  • hashiya.blogspot.com/

  • 26-12-2013 - मुक्तिबोध की कविता अंधेरे में के पचास साल पूरे होने पर इस कविता और मुक्तिबोध के बारे में बहस एक बार फिर तेज हुई है. नए संदर्भों और हालात में कवि और कविता को देखने का आग्रह बढ़ा है. कवि, कार्यकर्ता और भोर के प्रधान संपादक रंजीत ...

  • आपने इस पृष्ठ पर कई बार विज़िट किया है. पिछला विज़िट: 11/12/13

  • गजानन माधव मुक्तिबोध - कविता कोश - हिन्दी ...

  • www.kavitakosh.org/kk/गजानन_माधव_मुक्तिबोध

  • 11-09-2013 - ... नयी कविता का आत्मसंघर्ष, नये साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र(आखिर रचना क्यों), समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक ... लम्बी कविताएँ. अंधेरे में / गजानन माधव मुक्तिबोध · एक अंतर्कथा / गजानन माधव मुक्तिबोध · कहने दो उन्हें जो यह ...

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  • 'अंधंरे में' मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कविता है। इस रचना के पचास साल पूरे हो रहे हैं। यह कविता परम अभिव्यक्ति की खोज में जिस तरह की फैंटेसी बुनती है तथा इसमें जिस तरह की बहुस्तरीयता व संकेतोंमें विविधता है, इसे लेकर हिन्दी के विद्वान ...

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  • 26-08-2013 - मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में' का लेखन-प्रकाशन जवाहरलाल नेहरू के समय हुआ. इसकी 50वीं वर्षगांठ उस समय मनायी जा रही है, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू और वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में ...

  • मुक्तिबोध | Sahapedia

  • sahapedia.org/मुक्तिबोध/

  • 'अंधेरे में' और 'ब्रह्मराक्षस' मुक्तिबोध की सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण रचनायें मानी जाती हैं. 'ब्रह्मराक्षस'कविता में कवि ने 'ब्रह्मराक्षस' के मिथक के जरिये बुद्धिजीवी वर्ग के द्वंद्व और आम जनता से उसके अलगाव की व्‍यथा का मार्मिक चित्रण किया ...

  • कभी-कभार : अंधेरों में कविता - जनसत्ता

  • www.jansatta.com/index.php/component/.../53134-2013-10-20-05-11-1...

  • 20-10-2013 - निराला की पुण्यतिथि के अवसर पर अपने वार्षिक आयोजन में निराला साहित्य संस्थान इलाहाबाद ने कवि अरुण कमल, कवि ... किया कि निराला के अंधकार-बोध के हवाले से हममुक्तिबोध की लंबी और क्लैसिक कविता 'अंधेरे में' पर विचार करें।

  • हिंदी दिवस: सौ बरस, 10 श्रेष्ठ कविताएं - BBC Hindi - भारत

  • www.bbc.co.uk/.../130914_hindi_special_mangalesh_dabaral_poem_ak...

  • 14-09-2013 - अंधेरे में – गजानन माधव मुक्तिबोध. आधुनिक हिंदी कविता में सन् 2013 एक ख़ास अहमियत रखता है क्योंकि इस वर्ष गजानन माधव मुक्तिबोध की लंबी कविता 'अंधेरे में' की अर्धशती शुरू हो रही है. सन् 1962-63 में लिखी गई और नवंबर 1964 की ...

  • आंतरिक संघर्ष और अन्तर्द्वन्द्व के कवि - मुक्तिबोध

  • rsaudr.org/show_artical.php?&id=2543

  • मुक्तिबोध की शेष कविताओं में ऐसा द्वंद्वग्रस्त और विभाजित व्यक्तित्व कवि उभर कर सामने आता है, जिसके हृदय का घोर असंतोष ... ऐसी कविताओं में 'चांद का मुंह टेढा है', 'अंधेरे में', 'जब प्रश्नचिह्न बौखला उठे', 'लकडी का बना हुआ रावण', 'एक भूतपूर्व ...

  • मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में' पर लखनऊ में ...

  • mediamorcha.com/.../मुक्तिबोध-की-कविता-'अंधेरे-में'-प...

  • 26-08-2013 - लखनऊ। वह कविता महत्वपूर्ण होती है जो एक साथ अतीत, वर्तमान और भविष्य की यात्रा करे। यह क्षमता मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में' है। अपने रचे जाने के पचास साल बाद भी हमें प्रेरित करती है। इ...

  • जनपक्ष: मुक्तिबोध की याद

  • jantakapaksh.blogspot.com/2013/11/blog-post_2567.html

  • 13-11-2013 - अंधेरे में पर हिन्‍दी में बहुत चर्चा हुई है। मैं मुक्तिबोध के कविता-संसार में जाता हूं तो चकमक की चिनगारियां भी उससे कम महत्‍वपूर्ण नहीं लगती। मुक्तिबोध की कविता के विशद विवेचन में जाना हो तो अंधेरे में और यदि नए कवियों को ...



अंधेरे में / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध


ज़िन्दगी के...
कमरों में अँधेरे
लगाता है चक्कर
कोई एक लगातार;
आवाज़ पैरों की देती है सुनाई
बार-बार....बार-बार,
वह नहीं दीखता... नहीं ही दीखता,
किन्तु वह रहा घूम
तिलस्मी खोह में ग़िरफ्तार कोई एक,
भीत-पार आती हुई पास से,
गहन रहस्यमय अन्धकार ध्वनि-सा
अस्तित्व जनाता
अनिवार कोई एक,
और मेरे हृदय की धक्-धक्
पूछती है--वह कौन
सुनाई जो देता, पर नहीं देता दिखाई !
इतने में अकस्मात गिरते हैं भीतर से
फूले हुए पलस्तर,
खिरती है चूने-भरी रेत
खिसकती हैं पपड़ियाँ इस तरह--
ख़ुद-ब-ख़ुद
कोई बड़ा चेहरा बन जाता है,
स्वयमपि
मुख बन जाता है दिवाल पर,
नुकीली नाक और
भव्य ललाट है,
दृढ़ हनु
कोई अनजानी अन-पहचानी आकृति।
कौन वह दिखाई जो देता, पर
नहीं जाना जाता है !!
कौन मनु ?


बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार, तालाब...
अँधेरा सब ओर,
निस्तब्ध जल,
पर, भीतर से उभरती है सहसा
सलिल के तम-श्याम शीशे में कोई श्वेत आकृति
कुहरीला कोई बड़ा चेहरा फैल जाता है
और मुसकाता है,
पहचान बताता है,
किन्तु, मैं हतप्रभ,
नहीं वह समझ में आता।


अरे ! अरे !!
तालाब के आस-पास अँधेरे में वन-वृक्ष
चमक-चमक उठते हैं हरे-हरे अचानक
वृक्षों के शीशे पर नाच-नाच उठती हैं बिजलियाँ,
शाखाएँ, डालियाँ झूमकर झपटकर
चीख़, एक दूसरे पर पटकती हैं सिर कि अकस्मात्--
वृक्षों के अँधेरे में छिपी हुई किसी एक
तिलस्मी खोह का शिला-द्वार
खुलता है धड़ से
........................
घुसती है लाल-लाल मशाल अजीब-सी
अन्तराल-विवर के तम में
लाल-लाल कुहरा,
कुहरे में, सामने, रक्तालोक-स्नात पुरुष एक,
रहस्य साक्षात् !!


तेजो प्रभामय उसका ललाट देख
मेरे अंग-अंग में अजीब एक थरथर
गौरवर्ण, दीप्त-दृग, सौम्य-मुख
सम्भावित स्नेह-सा प्रिय-रूप देखकर
विलक्षण शंका,
भव्य आजानुभुज देखते ही साक्षात्
गहन एक संदेह।


वह रहस्यमय व्यक्ति
अब तक न पायी गयी मेरी अभिव्यक्ति है
पूर्ण अवस्था वह
निज-सम्भावनाओं, निहित प्रभावों, प्रतिमाओं की,
मेरे परिपूर्ण का आविर्भाव,
हृदय में रिस रहे ज्ञान का तनाव वह,
आत्मा की प्रतिमा।
प्रश्न थे गम्भीर, शायद ख़तरनाक भी,
इसी लिए बाहर के गुंजान
जंगलों से आती हुई हवा ने
फूँक मार एकाएक मशाल ही बुझा दी-
कि मुझको यों अँधेरे में पकड़कर
मौत की सज़ा दी !


किसी काले डैश की घनी काली पट्टी ही
आँखों में बँध गयी,
किसी खड़ी पाई की सूली पर मैं टाँग दिया गया,
किसी शून्य बिन्दु के अँधियारे खड्डे में
गिरा दिया गया मैं
अचेतन स्थिति में !


http://www.kavitakosh.org/kk/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%87_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_/_%E0%A4%97%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A8_%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%B5_%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A7#.UslRJNIW3p9




Jagadishwar Chaturvedi

मनमोहन सरकार तुरंत हस्तक्षेप करके चुनाव आयोग और गूगल में हुए करार को रद्द कराने की व्यवस्था करे। यह करार भारत के गोपनीयता कानून और अन्य निजता कानूनों का सीधे उल्लंघन है ।

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Jagadishwar Chaturvedi

समाचार टीवी चैनलों को चुनाव आयोग और गूगल कंपनी के बीच हुए करार के खिलाफ हर हालत में आवाज बुलंद करनी चाहिए। यह समझौता भारत के नागरिकों के अधिकारों का हनन है । भारत के नागरिक की सूचनाएं जानने का किसी भी कंपनी को कोई कानूनी हक नहीं है । चुनाव आयोग ने करार करके गलत फैसला किया है । विभिन्न राजनीतिक दलों को भी खुलकर इस मसले पर अपनी राय जाहिर करनी चाहिए।

गूगल और सीआईए के बीच करार है और भारत के नागरिकों की निगरानी अप्रत्यक्षतौर पर अमेरिका के जरिए होने लगेगी।

मनमोहन सरकार ने यह करार करके साइबर गुलामी की दिशा में फैसला लिया है । तुरंत पीएमओ से हस्तक्षेप होना चाहिए और राहुल गांधी को भी इस दिशा में सोचना चाहिए ।

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  • Palash Biswas पंडित जी,नागरिकों की निजता ौर गोपनीयता भंग करने के उपक्रम पर आप जरा विस्तार स‌े लिखें तो बड़ी कृपा होगी।

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सामाजिक-राजनीतिक सिंबल के तौर पर झाड़ू का इस्तेमाल पहले भी एक बार हुआ है. झाड़ू से उन्हें काफी पुराना प्यार है. आरक्षण विरोधी आंदोलन में रेल ट्रैक पर झाड़ू लगाते इंजीनियरिंग और मेडिकल स्टूडेंट्स की तस्वीर. वर्ष -2006

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Dilip C Mandal shared his photo.

भारतीय इतिहास में झाड़ू का प्रतीक के तौर पर यह तीसरा इस्तेमाल है. पहली बार गांधी ने किया. जब उन्होंने अपना टॉयलेट (दूसरों का नहीं) साफ करके एक भ्रम पैदा किया.


दूसरी बार इसका व्यापक इस्तेमाल आरक्षण विरोधी इस्तेमाल में हुआ. यह बताने के लिए कि देखिए सरकार ने SC-ST-OBC को रिजर्वेशन देकर हम ऊंची जात वालों का क्या हाल कर दिया है कि हमारे सामने ऐसा गंदा काम करने की नौबत आ गई है.


झाड़ू का तीसरा इस्तेमाल केजरीवाल ने किया है.


झाड़ू जिनकी मजबूरी नहीं है, वे उसका बहुत "क्रिएटिव" इस्तेमाल करते हैं. है कि नहीं?

सामाजिक-राजनीतिक सिंबल के तौर पर झाड़ू का इस्तेमाल पहले भी एक बार हुआ है. झाड़ू से उन्हें काफी पुराना प्यार है. आरक्षण विरोधी आंदोलन में रेल ट्रैक पर झाड़ू लगाते इंजीनियरिंग और मेडिकल स्टूडेंट्स की तस्वीर. वर्ष -2006

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Aam Aadmi Party

2 hours ago

The #AAP government in Delhi will get CWG scam investigated.

||

आम आदमी पार्टी दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम घोटालों की जांच कराएगी. — with Kaushik K Roy Chowdhury and 2 others.

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Aam Aadmi Party

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  • Aam Aadmi Party
  • about an hour ago

  • With the Lok Sabha elections just months away, the Aam Aadmi Party held its two-day National Executive meeting in Delhi to launch itself at the national level. AAP ideologue Yogendra Yadav said the party will conduct a membership drive from January 10 to engage the 'aam aadmi' in their campaign. The membership drive will be carried on till January 26, he said.

  • "Any person from across the country can put in the application at the district level. All applications will be screen...See More

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Aam Aadmi Party shared a link.

8 hours ago

Delhi government on Friday announced that it would be opening 100 new night shelters across the city over the next few days with a view to provide relief to the homeless from the biting cold.


Urban Development Minister Manish Sisodia: "At some places, the SDMs found more than 100 homeless in flocks... at some places, 30-40 people, while at many others, they found 15 to 20 people who were without shelter. Of these 212 locations, we have found that we need to provide shelters at 100 places. Some of the night shelters will be bigger, accommodating 100 to 300 people. Such shelters will be opened near hospitals, railway stations and bus terminuses."

100 new night shelters to be opened for homeless: Sisodia

www.firstpost.com

Delhi government on Friday announced that it would be opening 100 new night shelters across the city over the next few days with a view to provide relief to the homeless from the biting cold.



Jagadishwar Chaturvedi

'आप 'पार्टी की दिल्ली विजय और आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा ने टीवी चैनलों पर मोदीउन्माद को कम कर दिया है ।

दूसरी ओर भाजपा की दो दलीय चुनाव रणनीति को नष्ट कर दिया है ।

आगामी लोकसभा चुनाव को दो दलीय राजनीतिक ध्रुवीकरण में तब्दील करने की कोशिशों को 'आप 'के राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव में कूदने से बुनियादी अंतर आया है । ख़ासकर युवाओं में भ्रष्टाचार विरोधी ईमेज को वोट में तब्दील करने की मोदी की कोशिशों को इससे धक्का लगा है ।

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Jayantibhai Manani shared पी एन बैफलावत's photo.

जयपाल सिंह मुंडा का जन्म का जन्म 3 जनवरी 1903 को झारखंड राज्य के जिला रांची के उपखंड खूंटी के रेमोटे तपकारा गाँव में हुवा था. तपकारा गाँव में अधिकांश मुंडा लोग रहते है जो इसाई है. प्रारंभिक शिक्षा गाँव के चर्च में हुई उसके बाद सेंट पाल्स स्कुल रांची गए..

जयपाल सिंह प्रतिभाशाली छात्र थे बहुत कम उम्र में उनमे अदभुत नेतृत्व क्षमता पनप चुकी थी मिशनरीज इस क्षमता और प्रतिभा को पहचानकर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड युनिवेर्सिटी इंगलैंड भेज दिया गया. मुंडा जी ऑक्सफ़ोर्ड युनिवेर्सिटी इंगलैंड की हाकी टीम के सद्श्य बन गए..

वे सविधान सभा के सद्श्य भी बने सविधान की पाचवी और छठी अनुसूची व आदिवासियों के लिए अन्य प्रावधान उनके सहयोग से ही बनाये गए उन्होंने सविधान में आदिवासी शब्द को जुडवाने के लिए भी भरपूर कोशिश की पर सफलता नहीं मिली.

सविधान सभा की बैठक में आदिवासियों के अधिकारों पर मजबूती से पक्ष रखा. संविधान सभा में जयपाल सिंह मुंडा जी ने कहा था की "मैं भी सिंधु घाटी की सभ्यता की ही संतान हूं. उसका इतिहास बताता है कि आप में से अधिकांश बाहर से आए हुए घुसपैठिए है. जहां तक हमारी बात है, बाहर से आए हुए लोगों ने हमारे लोगों को सिंधु घाटी से जंगल की ओर खदेड़ा. हम लोगों का समूचा इतिहास बाहर से यहां आए लोगों के हाथों निरंतर शोषण और बेदखल किए जाने का इतिहास है."

आजाद भारत में आदिवासी बुलंद आवाज !!! जन्म दिन पर हार्दिक नमन !! जयपाल सिंह मुंडा का जन्म का जन्म 3 जनवरी 1903 को झारखंड राज्य के जिला रांची के उपखंड खूंटी के रेमोटे तपकारा गाँव में हुवा था | तपकारा गाँव में अधिकांश मुंडा लोग रहते है जो इसाई है | प्रारंभिक शिक्षा गाँव के चर्च में हुई उसके बाद सेंट पाल्स स्कुल रांची गए After initial schooling at the village church school, Jaipal Singh shifted to St.Paul's School, Ranchi run by the Christian Missionaries of the SPG Mission of the Church of England. A keen and gifted field hockey player,जयपाल सिंह प्रतिभाशाली छात्र थे बहुत कम उम्र में उनमे अदभुत नेतृत्व क्षमता पनप चुकी थी मिशनरीज इस क्षमता और प्रतिभा को पहचानकर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड युनिवेर्सिटी इंगलैंड भेज दिया गया | मुंडा जी ऑक्सफ़ोर्ड युनिवेर्सिटी इंगलैंड की हाकी टीम के सद्श्य बन गए . The hallmark of his game a s a deep defender were his clean tackling, sensible gameplay and well directed hard hits. He was the most versatile player in the Oxford University Hockey Team. His contribution to the University Hockey Team was recognized and he became the first Indian student to be conferred "Oxford Blue" in Hockey. In 1928, while he was in England, Jaipal Singh was asked to captain the Indian Hockey Team for the Amsterdam Olympics, 1928. Under Jaipal Singh's captaincy the Indian team played 17 matches in the League Stage of which 16 were won and one drawn. Due,however, to an unfortunate incident of tiff with the English Team A.B.Rossier, Jaipal Singh left the Team after League phase and therefore could not play in the games in the knockout stage. In the final, the Indian Team defeated Holland by 3-0. On returning to India, Jaipal Singh was associated with Mohan Bagan Club of Calcutta, where he started the Hockey Team of the Club in 1929. He led its hockey team in various tournaments. After retirement from active hockey, Jaipal Singh served as Secretary of Bengal Hockey Association and as a member of Indian Sports Council. वे सविधान सभा के सद्श्य भी बने सविधान की पाचवी और छठी अनुसूची व आदिवासियों के लिए अन्य प्रावधान उनके सहयोग से ही बनाये गए उन्होंने सविधान में आदिवासी शब्द को जुडवाने के लिए भी भरपूर कोशिश की पर सफलता नहीं मिली | सविधान सभा की बैठक में आदिवासियों के अधिकारों पर मजबूती से पक्ष रखा | संविधान सभा में जयपाल सिंह मुंडा जी ने कहा था की " मैं भी सिंधु घाटी की सभ्यता की ही संतान हूं। उसका इतिहास बताता है कि आप में से अधिकांश बाहर से आए हुए घुसपैठिए हैं। जहां तक हमारी बात है, बाहर से आए हुए लोगों ने हमारे लोगों को सिंधु घाटी से जंगल की ओर खदेड़ा। हम लोगों का समूचा इतिहास बाहर से यहां आए लोगों के हाथों निरंतर शोषण और बेदखल किए जाने का इतिहास है।''

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Pushya Mitra

यह क्योंकर हुआ कि एक तरफ राहुल गांधी नियमगिरी के आदिवासियों को कहते थे कि फिक्र मत करो दिल्ली में तुम्हारा अपना आदमी बैठा है और चिदंबरम झारखंड-छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के जंगलों में आपरेशन ग्रीन हंट चलाते थे. ऐसा क्यों होता रहा कि एक तरफ भोजन के अधिकार की गारंटी के कानून बनते रहे और दूसरी तरफ सिलेंडर का कोटा तय होता रहा. क्यों एक तरफ भूमि अधिग्रहण कानून बन रहा था और दूसरी तरफ नगड़ी, चुटका, सिवनी मालवा और नियमगिरी में जमीन पर हक के लिए लड़ाइयां लड़ी जा रही थी. क्यों एक तरफ लोकपाल कानून बन रहा था और राहुल गांधी भ्रष्टाचार को मिटाने की बात कर रहे थे और दूसरी तरफ महाराष्ट्र विधानसभा आदर्श घोटाले की जांच को खारिज करने में जुटी थी. यह द्वंद्व 2008 के बाद के यूपीए की पहचान है और परमाणु करार की देन है, जिसे माननीय मनमोहन सिंह की अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं. और कहीं न कहीं परमाणु करार की सबसे बड़ी उपलब्धि वाम दलों से यूपीए का छुटकारा और कॉरपोरेट को लूट की खुली छूट मिलना ही है.

हजारों ख्वाहिशें ऐसी: यूपीए 2004-2014 (चार स्टार-दो स्टार= दो स्टार)

pushymitr.blogspot.com

ये आरजू भी बङी चीज है मगर हमदम, विसाल ए यार फकत आरजू की बात नहीं

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2013: Another Year Of Slaughter In Iraq Claims The Lives Of At Least 21  Media Professionals

By Dirk Adriaensens


http://www.countercurrents.org/adriaensens040114.htm


In Iraq , at least 404 media professionals have been killed since the US invasion in 2003, among them 374 Iraqis, according to The B Russell s Tribunal statistics. The impunity in Iraq is far worse than anywhere else in the world. None of the journalist murders recorded in Iraq in the past decade has been solved. Not a single case of journalists' killings has been investigated to identify and punish the killers



Will Lebanon Survive 2014? Should It?

By Franklin Lamb


http://www.countercurrents.org/lamb040114.htm


Another week, another terrorist bombing. It's beginning to look a lot like that here in Lebanon these days. Another apparent suicide bomber detonated a car rigged with explosives in the southern suburbs yesterday killing at least five people and injuring at least 77. The health ministry released a statement just a short while ago reporting that an additional 67 people were treated in hospitals for wounds and released, while 10 people remained hospitalized with more severe injuries



Top 10 Proofs People Can Be Completely Manipulated Without Hypnosis

By David Swanson


http://www.countercurrents.org/swanson040114.htm


People have been dying since before recorded history, and yet only those who pretend to believe nobody dies can be considered serious, honest, upstanding folk. That there's another longer life helps us not worry so much about getting screwed during this one. Perhaps it also helps us in allowing our "representatives" to routinely end the lives of so many foreign, and thus ignorant, people



The Ambani Car And The Immunity For The Privileged

By Vidyadhar Date


http://www.countercurrents.org/date010413.htm


The fact is that the rich and arrogant are playing havoc on our roads. But a concerted effort is made by the car lobby to blame pedestrians. A short film shown by a prominent TV channel during the current safety week showed a pedestrian coming under the wheels of a car allegedly because of his own fault



Child Abuse At The Vavuniya Children's Home And The Lack Of

Prudent And Independent Action By Governmental Institutions

By Women's Action Network


http://www.countercurrents.org/wan040114.htm


At a time when the Sri Lankan government claims to be on a path of peace and development post war and calls Sri Lanka the wonder of Asia in international forums, it is imperative that the violence that is taking place against women and children is stopped, especially violence against women and children from minority communities



Weeding A Field: The Importance Of Self-Examination

By Maulana Wahiduddin Khan


http://www.countercurrents.org/mwk040114.htm


This weeding of a field is what every individual should do with regard to his own self. In the terminology of the Islamic law or shariah, this is called muhasabah. As in a field where crops grow along with weeds, whenever one obtains something good, along with it a 'weed' begins to grow, all on its own, from inside. It is important to be aware of the presence of this 'weed' and to remove it from inside oneself and throw it away. If you do not do this, you will face the same predicament as a field that is left without being weeded

Jignesh Mevani
http://www.truthofgujarat.com/upper-class-upper-caste-rule-modi-trying-crush-safai-workers-struggle/
Himanshu Kumar

राहत शिविरों में रहने वाले सर्दी से हलाकान हैं . लोग जाकर इन परेशान हाल लोगों से मुलाक़ात कर रहे हैं इससे पहलवान मुलायम सिंह परेशान हैं .


इसलिए सरकार ने इन पीड़ितों को अदृश्य कर देने का प्लान बनाया है . इसके लिए मुस्लिम संस्थाओं में या सार्वजनिक जगहों पर शरण लिए पीड़ितों को प्रशासन अब डंडे के जोर पर इधर उधर भगा रहा है .


कल यहाँ के एक बड़े कैम्प मलकपुर में प्रशासन ने हमला बोला लेकिन पीड़ितों के विरोध के कारण वापिस भागना पड़ा .


आज अपने साथियों के साथ मलकपुर राहत शिविर जा रहा हूँ .

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The Upper Class-Upper Caste Rule of Modi trying to crush the Safai-workers struggle - Truth Of...

www.truthofgujarat.com

Every political party swears by their name; AAP has even taken away their means of lively-hood as their symbol. But those who have been cursed as a community to use the Jhadu for centuries, have remained the most exploited community till today. For the first time when the safai-kamdars belonging to…

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Satya Narayan
तेलतुम्बडे यहाँ असत्य वचन का सहारा ले रहे हैं कि उन्होंने मार्क्सवाद और अम्बेडकरवाद के मिश्रण या समन्वय की कभी बात नहीं की या उसे अवांछित माना है। 1997 में उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में एक पेपर प्रस्तुत किया, 'अम्बेडकर इन एण्ड फॉर दि पोस्ट-अम्बेडकर दलित मूवमेण्ट'। इसमें दलित पैंथर्स की चर्चा करते हुए वह लिखते हैं, "जातिवाद का असर जो कि दलित अनुभव के साथ समेकित है वह अनिवार्य रूप से अम्बेडकर को लाता है, क्योंकि उनका फ्रेमवर्क एकमात्र फ्रेमवर्क था जो कि इसका संज्ञान लेता था। लेकिन, वंचना की अन्य समकालीन समस्याओं के लिए मार्क्सवाद क्रान्तिकारी परिवर्तन का एक वैज्ञानिक फ्रेमवर्क देता था। हालाँकि, दलितों और ग़ैर-दलितों के बीच के वंचित लोग एक बुनियादी बदलाव की आकांक्षा रखते थे, लेकिन इनमें से पहले वालों ने सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन के उस पद्धति को अपनाया जो उन्हें अम्बेडकरीय दिखती थी, जबकि बाद वालों ने मार्क्सीय कहलाने वाली पद्धति को अपनाया जो कि हर सामाजिक प्रक्रिया को महज़ भौतिक यथार्थ का प्रतिबिम्बन मानती थी। इन दोनों ने ही ग़लत व्याख्याओं को जन्म दिया। पैंथर्स को यह श्रेय जाता है कि पहली बार देश में उन्होंने इन दोनों विचारधाराओं के मिश्रण का प्रयास किया लेकिन बदकिस्मती से इन दोनों विचारधाराओं को अस्पष्ट प्रभावों से मुक्त करने के प्रयासों और उनके मिलनसार (नॉन-कॉण्ट्राडिक्टरी) सारतत्व पर ज़ोर देने के प्रयासों की अनुपस्थिति में यह प्रयास बीच में ही अवरुद्ध हो गया। न तो इन दोनों विचारधाराओं को समेकित करने का कोई सैद्धान्तिक प्रयास किया गया, और न ही जाति के सामाजिक आयामों को गाँव के परिवेश में भूमि के प्रश्न से जोड़ने जैसा कोई व्यावहारिक प्रयास किया गया।" अब पाठक ही बतायें कि तेलतुम्बडे जो दावा कर रहे हैं, क्या उसे झूठ की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए? क्या यहाँ पर 'अम्बेडकरीय' और 'मार्क्सीय' दोनों को 'अम्बेडकरवाद' और 'मार्क्सवाद' के अर्थों में यानी 'दो विचारधाराओं' के अर्थों में प्रयोग नहीं किया गया है? फिर तेलतुम्बडे यह आधारहीन और झूठा दावा क्यों करते हैं कि उन्होंने कभी 'अम्बेडकरवाद' शब्द का प्रयोग नहीं किया क्योंकि वह नहीं मानते कि ऐसी कोई अलग विचारधारा है? क्या यहाँ पर उन्होंने अम्बेडकर की विचारधारा और मार्क्स की विचारधारा और उनके मिश्रण की वांछितता की बात नहीं की? हम सलाह देना चाहेंगे कि तेलतुम्बडे के कद के एक जनपक्षधर बुद्धिजीवी को बौद्धिक नैतिकता का पालन करना चाहिए और इस प्रकार सफ़ेद झूठ नहीं बोलना चाहिए।
http://ahwanmag.com/archives/3376

जाति प्रश्न और अम्बेडकर के विचारों पर एक अहम बहस

ahwanmag.com

हिन्दी के पाठकों के समक्ष अभी भी यह पूरी बहस एक साथ, एक जगह उपलब्ध नहीं थी। और हमें लगता है कि इस बहस में उठाये गये मुद्दे सामान्य महत्व के हैं। इसलिए हम इस पूरी बहस को बिना काँट-छाँट के यहाँ प्रका...

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Rukhsana Maqsood

आम आदमी पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने बताया कि पार्टी 10 जनवरी से एक देशव्यापी अभियान शुरू करेगी, जिसका नाम होगा 'मैं भी आम आदमी'। इस अभियान में पार्टी लोगों से अपील करेगी कि आम आदमी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करें

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Vivek Chauhan was tagged in Bharat Kamdar's photo.

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India Today

After Delhi victory, AAP declares to go national

After Delhi victory, AAP declares to go national : North, News - India Today

indiatoday.intoday.in

After its stunning debut in the Delhi Assembly polls, the Arvind Kejriwal-led Aam Aadmi Party (AAP) is all set to go national.

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Mamata Banerjee

22 hours ago

I am very happy to share with all of you a landmark decision.


Essential medicines and available diagnostic services will now be provided free of cost to rural people in government run health centres and hospitals.


I am also happy to share with you that Bankura Medical College, Malda Medical College and North Bengal Medical College will soon be upgraded at an estimated cost of Rs.450 Crore and facilities of trauma care, specialized services on areas like oncology, nephrology, endocrinology, paediatric surgery and more will be provided.


This is in addition to the 35 Multi/Super-Specialty Hospitals that we are already building to boost the health infrastructure facilities in the state.

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Rajiv Nayan Bahuguna

" परान्न भोजी , चिर प्रवासी , परा वसन शायी

यावद्द्जिवेत , तावदमरणं , यन मरणं तन तस्य विश्रामम "

( दूसरों का दिया खाने वाला , घर से लम्बे समय तक दूर रहने वाला और दूसरों के द्वारा प्रदत्त वस्त्र पहनने और पराई शय्या पर सोने वाला , जब तक जीता है , तब तक मरता है , और जब सच में मर जाता है तो वह उसका विश्राम समझो ) . शास्त्र की यह उक्ति मुझ पर चरितार्थ होती है . मैं इसी लिए स्वयं को "छुट्टा पत्रकार " कहता हूँ . दिन का भोजन शायद ही कभी अपने घर पर करता हूँ . जहाँ सींग समाये , वहां चलाजाता हूँ . अक्सर मेरा दिन का भोजन अपने मामा विद्या सागर नौटियाल के घर पर होता है . लेकिन वहां जाने का मौक़ा न मिला तो लंच टाइम पर कहीं भी चला जाता हूँ . जब गृह स्वामिनी मुझे चाय के लिए पूछती है , तो तपाक से कहता हूँ की अब तो सीधे कहीं जाकर खाना ही खाऊंगा . झक मार कर उन्हें मेरे लिये खाना लगाना ही पड़ता है . जब तक न खिलाया , तब तक वहां से हिलता नहीं . एक आध बार भीतर जाकर यह भी चेक कर लेता हूँ , घर देखने के बहाने , की कहीं वह चोरी छुपे अपने पति तथा बच्चों को खिला तो नहीं रही ? महीने में पन्द्रह दिन के आस पास तो प्रवास पर रहता हूँ . एक बार घर से बाइक लेकर सब्जी लेने निकला , और काठमांडू पंहुच गया . पंद्रह दिन बाद लौटा . पिछले अठारह वर्षों से शायद ही कभी स्वयं के लिए वस्त्र खरीदे हों . कोई मुझे किसी कार्यक्रम या व्याख्यान के लिए बुलाता है , तो एक जोडी कपडे पहन कर जाता हूँ , और आयोजक से कह देता हूँ की मैं जल्दी में कपडे नहीं ला सका . अब वह भला क्यों चाहेगा , की उसका अतिथि मैले कपडे पहन कर भाषण दे . खरीद लाता है . इसी लिए मेरे पास भाँती - भाँती की वस्त्र संपदा है . ईश्वर मेरी आत्मा को शान्ति प्रदान करे

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Shewli Hira

MaR jhharu mar

Tradus posted an offer.Get Offer

Rs.5 for Aam Aadmi Ki Jhadu. Celebrate the Birth of new Corruption Free Delhi!

6,049 people claimed this offer

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Rajiv Nayan Bahuguna

जाको हरि दारुण दुःख देहीं

वाकी मति पहले हरि लेंहीं

उत्तराखंड के अवांछित मुख्य मंत्री विजय बहुगुणा को हटाने की तैयारी कर लेने के बाद भी कांग्रेस के आकाओं ने , अज्ञात कारणों से उन्हें उत्तराखंड की प्राकृतिक वन तथा जन संपदा को प्रताड़ित करने के लिए विद्यमान रखा है . इससे यही प्रतीत होता है कि कांग्रेस आला कमान को यहाँ की पाँचों लोक सभा सीटों पर ज़मानत ज़ब्त करवाने में सघन रूचि है

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Surendra Grover

कुछ मित्रों को परेशानी है कि मैं रोजाना तीन वक्त खाना खाता हूँ.. धोबी का गधा भी तब तक ही काम करता है जब तक धोबी उस पर बोझ लाद उसे हांकता है.. पर यहाँ तो हालत ऐसी है कि हमें हर वक़्त अपने ग्राहकों को सपोर्ट देने के लिए मुस्तैद रहना पड़ता है.. कई कॉल सेंटर हमारे दिए सर्वर्स पर चलते हैं.. जिसे ज़रा सी दिक्कत होती है, भागे चले आते हैं कि यह दिक्कत हो गई.. अब दिक्कत भले ही उनके खुद के कारण पैदा हुई हो.. पर हम सिर्फ इसलिए उनकी दिक्कत दूर करते हैं कि हमारा ग्राहक है, उसकी परेशानी दूर करनी चाहिए.. इस चक्कर में दिन हो या रात हर समय काम करते रहते हैं.. अपनी इसी आय का करीब पच्चीस प्रतिशत मीडिया दरबार पर भी खर्च करते हैं..

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Anita Bharti

http://epaper.prabhatkhabar.com/c/2170098

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Uday Prakash

यह मान लेने में शायद कोई हर्ज़ नहीं है कि नेहरू परिवार या 'नेहरू डाइनेस्टी' के किसी सदस्य ने अभी तक अपनी ओर से प्रधानमंत्री बनने में कोई साफ़ दिलचस्पी नहीं दिखाई है. ऐसी कोई आधिकारिक घोषणा भी कांग्रेस पार्टी की ओर से अभी तक नहीं हुई है.

यह मान लेने में भी कोई हर्ज़ नहीं है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी में से यदि कोई ऐसा इरादा करे तो फ़िलहाल, २०१४ के चुनाव परिणाम सामने आने तक इसमें कोई अड़चन नहीं है. अगर अतीत में तेरह दिन या चालीस दिन वाले भी प्रधानमंत्री हो सकते हैं, तो अभी पांच महीने का सत्ता-सुख कम आकर्षक नहीं है. सोनिया गांधी अगर चाहतीं तो नौ साल पहले ही प्रधानमंत्री बन चुकी होतीं. या अगर राहुल गांधी चाहते तो 'पप्पू' होने का खिताब हासिल करने के बावज़ूद, पांच साल पहले यह कुर्सी पा सकते थे. अभी भी पा सकते हैं.

मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति तो नहीं हूं, लेकिन ऐसी कोई उदग्र आकांक्षा फ़िलहाल मुझे नेहरू-गांधी परिवार की ओर से दिखाई नहीं देती. अभी तक सिर्फ़ बीजेपी ने ही नरेंद्र मोदी को अपना पी.एम. का उमीदवार घोषित किया है और अपनी समूची ताकत इसमें झोंक दी है. यह भी याद आता है कि 'ज़ीरो' से राजनीति शुरू करने वाले राजीव गांधी को भी परिस्थितियों ने ही प्रधानमंत्री बनाया था और अपनी मां, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजे 'सहानुभूति की लहर' पर सवारी कर के वे सत्ता में आये थे. अपनी पत्नी सोनिया गांधी की स्पष्ट अनिच्छा के बावज़ूद. लेकिन अपनी मां की तरह ही वे भी राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए और अपनी जान गंवा बैठे.

मनमोहन सिंह के रिटायर होने की घोषणा के बाद शायद अब भी इस परिवार के भीतर इस पद पर अपने किसी सदस्य का दावा पेश करने के बारे में असमंजस होगा. भले ही दस जनपथ या चौबीस अकबर रोड के उनके सभासद इसका मनुहार करें. भ्रष्टाचार, महंगाई, चौतरफ़ा असफलता और हाल के चुनावों में सफ़ाये की ओर बढ़ते जर्जर कांग्रेस के डूबते जहाज का कप्तान बनने का साहस नेहरू-गांधी परिवार में से शायद ही किसी को होगा. (बडेरा के बारे में कुछ कह नहीं सकते.)

राहुल गांधी के इरादे कांग्रेस और उसके साथ-साथ देश के हालात दुरुस्त करने के बारे में नेक हो सकते हैं लेकिन वे आम जनता के लिए स्वीकार्य नहीं हैं. उनमें वह लोकप्रिय करिश्माती अपील नहीं है, जो किसी ज़माने में उनकी दादी इंदिरा गांधी में होती थी. अपनी टूटी-फूटी हिंदी किसी कदर बोल पाने में सफल हो पाने वाली उनकी मां सोनिया गांधी में भी एक कोई पाप्युलर करिश्मा था, जिसके बलबूते उन्होंने दो बार कांग्रेस के विरोधियों को पराजित किया. अब वे भी बीमार हो चुकी हैं. आज की तारीख़ में कांग्रेस के भीतर कोई ऐसा नहीं है, जिसे २०१४ के चुनावों में प्रधानमंत्री के पद के लिए उतारा जा सके.

ऐसे में एक सबसे बड़ा विकल्प यही है कि सांप्रदायिकता के नये राजनीतिक उभार को थाम लेने के लिए कांग्रेस राजधानी दिल्ली के ही माडल को अखिल-भारतीय माडल के बतौर स्वीकार करे.

यानी दिल्ली के मुख्यमंत्री को ही भारत का अगला प्रधानमंत्री मान कर २०१४ का चुनाव लड़े. ऐसे में यह 'पहले' और 'तीसरे' मोर्चे की अपूर्व एकता होगी.

और 'दूसरा मोर्चा' यानी एन.डी.ए. दिल्ली की तरह ही मुंह की खायेगा.


(हा ... हा ...हा ...! लेकिन क्या ऐसा हो सकेगा ? शायद नहीं . फिर भी ऐसा सोचने में क्या जाता है ? है ना ? अब 'सिस्टम' को सुधारने की बात सोचने का हक तो हर नागरिक को तो होता ही है.)

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  • Sudha Raje, Avinash Das, Mohan Shrotriya and 138 others like this.

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  • Chandramohan Jyoti आपका सोचना कतई गलत नहीं है उदय जी। वर्त्तमान परिस्थिति जन्य घटनायें ये बता रही हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में घमासान मोदी और ''आप'' के ही बीच होने वाला है। कांग्रेस-बीजेपी-आप के बीच नहीं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जो जन सहानुभूति के चलते जो गलती राजी...See More

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Uday Prakash हां, कुछ-कुछ ऐसा ही लगता है.

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Uday Prakash वैसे आज Prakash K Ray जी ने एक 'लिंक' शेयर किया है. बहुत अर्थपूर्ण और किसी सलाह या चेतावनी जैसी है.

  • 2 hours ago · Like

  • Rakesh Narayan Dwivedi केजरीवाल पर कांग्रेस गठबंधन के बाद कुछ संशय बढ़े हैं, इस सुझाव के लागू होने के बाद तो केजरीवाल की साख भी जाती रहेगी ।।

  • 53 minutes ago via mobile · Like · 1

  • Palash Biswas स‌ंवाद स‌माहित।

  • a few seconds ago · Like

Faisal Anurag and 2 other friends shared a link.

नमो के डेढ़ सौ करोड़ के दफ्तर की खबर हटाई टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने..मीडिया दरबार « मीडिया दरबार

mediadarbar.com

कॉरपोरेट्स से मीडिया के रिश्तों की ख़बरें पुरानी पड़ चुकी हैं. अब तो मीडिया और नरेन्द्र मोदी के बीच पक रही खिचड़ी सामने आ रही है. इसकी बानगी मिलती है टाइम्स ऑफ़ इ

लोकशाही रमतूला

January 5, 2014 at 8:59am

Sudha Raje

भारतीय जन मानस के लोक मिथक के

अनुसार बङहनिया झाङू

बुहारी आदि को लक्ष्मी यक्षिणी मानक

पाँव नहीं लगाते और गृहिणी सबसे पहले

झाङू लगाकर ही चाय पानी पीती है ।

तो क्यों नही चेत जाते बाकी दल कि अब

हिंदू मुसलिम दलित सवर्ण और

पूँजी मजदूर की खाईयाँ खोदने की बजाय

कर्मठ और ईमानदार प्रशासन देने के

प्लान को जनता के सामने रखें ।

माननीयगण याद रखें अब

जनता इंटरनेशनल लेबल की नॉलेज

रखती है और नेताओं की पूरी भीङ से

अधिक जीनियस और पढ़े लिखे लोग भीङ

वोटर और गली मुहल्ले में मौजूद हैं ।

कब सुधरोगे?

तो

2014के लिये जाति धरम से ऊपर

क्या एजेण्डा ला रहे हैं माननीय??

©®सुधा राजे

Thursday at 10:41am

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You, Anurag Tiwari and 26

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निरुपमा मिश्रा

2014के लिये जाति धरम से ऊपर

क्या एजेण्डा ला रहे हैं माननीय??,,,,

अपरिहार्य प्रश्न ,,,,

Unlike · 1 · Delete · Thursday at

9:53pm

Richa Srivastava

बिलकुल सत्य..

Unlike · 2 · Delete · Thursday at

9:58pm

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Lenin Raghuvanshi

New year brings many challenges such as sustainability of PVCHR and my own health. Malfunction of liver,increase of cholesterol and slight increase of blood pressure are new challenge in front of my health.We shall overcome someday.

Like ·  · Share · Yesterday at 10:02am ·

Surendra Grover

Sanjay Garg जी, क्या यही है आपका आदर्श, जो गुजरात के विकास मॉडल के सहारे देश को नए विकास पथ पर अग्रसर करना चाहता है..? इसी व्यवस्था की हिमायत कर रहे हो आप..? यदि यह व्यवस्था पूरे देश में नहीं फैली तो फिर से गुलाम हो जायेगा यह देश..?

http://www.youtube.com/watch?v=shukXgZHY50

प्राइम टाइम : गुजरात बनाम गुजरात

youtube.com

गुजरात में चुनावी माहौल गर्म है। ऐसे में जब चारों ओर विकास, विकास और विकास की ही बात हो रही है तब रवीश कुमार साबरमती के किनारे बसे अहमदाबाद के कुछ इलाकों में...

Like ·  · Share · 16 hours ago near New Delhi ·

  • 8 people like this.

  • Gulshan Kumar वास्तव में गुजरात "मॉडल" नायाब है पर समस्या ये है कि इसपर केवल मोदी और बीजेपी ही गर्व कर सकते हैं.

  • 5 hours ago · Like · 2

  • Sanjay Garg ग्रोवर साहब आदर्श तो नहीं कह सकते क्योकि मोदी की शैली में भी कई खामियां है !लेकिन आज यदि सबसे बेहतर उम्मीदवार के हिसाब से देखते हैं तो मुझे मोदी से बेहतर कोई नजर नहीं आता ! कांग्रेस ने भ्रष्टाचार ही नहीं किया वल्कि गलत नीतियों से देश को तबाह किया है अब...See More

  • 4 hours ago · Like · 2

Surendra Grover

फेसबुक पर पनपी कुछ प्रवृतियों की बानगी जानिए...

http://www.storypick.com/ultimate-list-21-types-of-facebook-friends-everyone-has/

The Ultimate List - 21 Types of Facebook Friends Everyone Has

storypick.com

Here's the ultimate list of 24 most amusing types of Facebook friends we've all encountered. Sit back, grab a drink, enjoy and share it on Facebook to see how your friends react.

Like ·  · Share · 36 minutes ago ·

Alok Putul

http://cgkhabar.com/loksabha-election-announce-20140104/

लोकसभा चुनाव 16 अप्रैल से ?

cgkhabar.com

अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो लोकसभा चुनाव 16 अप्रैल को होगा. छह चरणों में होने वाले इस चुनाव की अंतिम तारीख 13 मई हो सकती है और मतगणना 16 मई को होने की संभावना है.

Like ·  · Share · 22 hours ago ·

TaraChandra Tripathi

हमारा समाज भी क्या है? भ्रष्ट और शक्तिशाली के लिए क्षमाशील और जो सही रास्ते पर चाह्ता है, उसके पावों की विचलन को भी मिलीमीटर में नापता है. प्रतीक्षा करता है कि उसका पाँव जरा सा विचले और उस पर शब्दों की लाठी बरसाने का मौका मिले.अनाचारी भी अपनी पत्नी को परफेक्ट सती देखना चाहता है. उसके आचरण की माइक्रोस्कोपिक जाँच करने में पीछे नहीं रहता. . यही हाल हमारे राजनीतिक दुश्शासनों का भी है.

अपने करम जैसे भी हों दूसरे को सन्त होना चाहिए.

Like ·  · Share · 211 · 5 hours ago ·


Pankaj Chaturvedi

ताजे ताजे केजरीयापा से ग्रस्‍त कुछ घर बैठ कर क्रांति करने वाले अब उन सबकों गरिया रहे हैं या उन्‍हें भाजपाई कह रहे हैं जिन्‍होंने केजरीवाल के बंगले वाले मामले में चुटकी ली थीा सीधी सीधी बात यदि वह मकान लेना सही था तो खुद केजरीवाल उस नर्णिय को बदलते नहींा वे अन्‍य किसी की आलोचना से घबराने वाले इंसान तो हैं नहीं जब तक उन्‍हें नहीं लगे कि कुछ गलत है वह अपने फैसले बदलते नहीं हैंा हालांकि मेरा निजी खयाल है कि केजरीवाल को भगवानदास रोड वाला डूपलेक्‍स लेना चाहिए, अपने लिए नहीं, दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री केलिए ा उनके पास देश विदेश के महमान आएंगे, समर्थक, बिंतवार आएंगे, उन सबके लिए माकूल जगह साथ में ही काम करने का माहौल होना चाहिएा हां उन्‍हें अब समझ लेना चाहिए कि बेवजह की लफफाजी व गाली गालौच से सरकारें नहीं चलतीं , वरना वे अपने पूरे कार्यकाल में बस आलेाचना ही सुनते रहेंगे

Like ·  · Share · 8 hours ago near Sahibabad ·

Pankaj Chaturvedi

असल में अरविंद केजरीवाल एक व्‍यक्ति नहीं हैं, वे हमारी समूची व्‍यवस्‍था विधायाी, कार्यकारी के प्रतीक बन गए हैंा 45 साल से कम उम्र का एक आला अफसर जिसकी मासिक आय - पत्‍नी की मिला कर - एक लाख से उपर मासिक हो, फिर भी वह आम आदमी कहलाए- इतनी मेहनत व औसत जिंदगी जीने के बावजूद अपने साथ उच्‍च रक्‍तचाप व डायबीटिज की बीमारी रखे होा जिसके पास पूरी दिल्‍ली की सत्‍ता हो और वह अपनी मर्जी से रह तक नहीं पाता हो, जिसके तहत सैंकडो डाक्‍टर अस्‍पताल आते हों व खुद की खांसी तक नहीं ठीक करवा पाता हो ा यह हमारी व्‍यवस्‍था का प्रतीक चिन्‍ह है

Like ·  · Share · 2 hours ago near New Delhi · Edited ·

Musafir D. Baitha

वाम और अम्बेडकरवाद के 'पूजक' लोग भी जब 'शुभकामना', 'आशीर्वाद' की दक्षिणी-खेती करते पाए जाते हैं तो....!

Like ·  · Share · 7 hours ago ·

  • गंगा सहाय मीणा, Ashok Dusadh, Faisal Anurag and 19 others like this.

  • View 11 more comments

  • Buddhi Lal Pal Aisa to nahi ki mayavati dalit se sawarn hoti gai aur vp sawarn se dalit hota gaya..?

  • 3 hours ago via mobile · Like

  • Subhash Chandra Kushwaha नमस्ते की तरह ही शुभकामना देने की संस्कृति बिना किसी धार्मिकता, आग्रह और अनुग्रह के होती है यह कोई आपत्ति की बात नहीं . हाथ मिलाने , जयहिंद करने जैसा ही है. हाँ इसके पीछे कोई नीति, धार्मिक गति , आग्रह , अन्धविश्वास नहीं होना चाहिए . आख़िर हम आंबेडकर, मार्क्स के फोटो पर माला तो पहना ही देते हैं , यह जानते हुए की यह महज चित्र है . निर्जीव .

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Musafir D. Baitha सतर्कता रहनी चाहिए। शुभ अशुभ का फेरा धर्म-हदी है। बुद्धिवाद के साथ होने में किंचित बाधक! माला पहनना भी अन्धविश्वास है।

  • पटना में राजेंद्र यादव की मृत्यु पर एक स्मरण-गोष्ठी हुई। इसमें न तो उनके चित्र पर माला डाली गयी न ही मौन रखकर उनकी कथित आत्मा को शांति दी गयी।

  • विकारों-व्यर्थ के बाह्याचारों को भरसक तोड़ा छोड़ा जाए।

  • 2 hours ago via mobile · Edited · Like

  • Buddhi Lal Pal Prachalit arth me sad-ichha subhkamna happy birth day shabdon me bahut jayada antar nahi..shabd dhwani me ek se hi hain....mujhe lagta hai baitha dwara subhkamna shabd ko daxini shabd kahne ke pichhe ka aashay shayad is tarah.. subhkamna me shubh shabd pahle hai aur shubh ka arth sanatani rup me swastik chinh shubh labh ke rup me hai..?

  • about an hour ago via mobile · Edited · Like


Reuters India

Around 50 people were working at the site at the time and at least a dozen were trapped under the concrete, according to witness accounts cited in media reports.

Building collapse kills 11 in Goa, many feared trapped

in.reuters.com

At least 11 workers were killed and many feared trapped when a half-built apartment block collapsed in Goa, police and media said on Sunday, the latest disaster to draw attention to safety standards amid a construction boom.

Like ·  · Share · 2 · 21 minutes ago ·


Dilip C Mandal

कॉमनवेल्थ घोटाला हुआ ही नहीं था, तो पकड़ेंगे किसे और 70,000 करोड़ रुपए रिकवर करने का तो सवाल ही नहीं है. दिल्ली जल बोर्ड में भी कोई घोटाला नहीं हुआ था, और पुल वगैरह तो गिरते रहते हैं. पिछले 15 साल में दिल्ली में कोई घोटाला हुआ ही नहीं था. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन तो मनोरंजन के लिए था. मतलब समझिए कि नुक्कड़ नाटक का रिहर्सल टाइप.


भ्रष्टाचार एक मानसिक विचार है. एक बौद्धिक विकार है. इसके लिए कोई अफसर, नेता, ठेकेदार, सप्लायर, कंपनी दोषी नहीं होती.


भ्रष्टाचार दूर करने के लिए योगा करना चाहिए और दिन में तीन बार जनलोकपाल जिंदाबाद, भारत माता की जय, वंदे मातरम और जय हिंद बोलना चाहिए.


इसके अलावा भ्रष्टाचार दूर करने के लिए कुछ चपरासी, सफाई कर्मचारियों, बस कंडक्टरों को सस्पेंड करना काफी होगा.

Unlike ·  · Share · Yesterday at 1:20pm ·

गंगा सहाय मीणा

हम लोग विशेषज्ञों का एक ग्रुप बना रहे हैं जो 10 वीं के बाद विद्यार्थियों को उच्‍च शिक्षा और कैरियर के बारे में मार्गदर्शन करे. हमें लगता है कि छोटे शहरों और कस्‍बों में युवा आगे की शिक्षा और नौकरी के बारे में बहुत कन्‍फ्यूज हैं. इस बारे में उनकी जानकारी भी बहुत सीमित होती है. उन्‍हें उचित मार्गदर्शन की जरूरत है. इसलिए हमारी योजना है कि हम तहसील मुख्‍यालयों पर स्‍कूल-कॉलेजों में जाकर विद्यार्थियों को आगे की शिक्षा और सही जॉब चुनने के लिए गाइड करेंगे. साथ ही ऑनलाइन भी हम यह काम जारी रखेंगे. क्‍या आप हमारी टीम का हिस्‍सा होना चाहेंगे? हमें आपमें से हर किसी की जरूरत होगी अपने कस्‍बे-शहर में.

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Gladson Dungdung

In light of the allegations against TEHELKA founder and former editor-in-chief Tarun Tejpal, TEHELKA seems to have lost the credibility and high moral ground that it had achieved through its unique brand of journalism. It will be very unfortunate if an institution like TEHELKA is forced to close down because of one alleged incident of sexual assault. If that happens, India's Adivasis, who have been betrayed by the "mainstream" in almost every sphere of life, would be losing a rare friend among media organisations. That's a reputation TEHELKA has earned over the years through its indomitable coverage of issues concerning Adivasis and other marginalised sections of the society.http://www.tehelka.com/tehelka-is-the-only-voice-of-the-adivasis-in-new-delhi/

'TEHELKA is the only voice of the Adivasis in New Delhi' | Tehelka.com

tehelka.com

Gladson Dungdung | Jharkhand-based Human Rights Activist

Like ·  · Share · 19 hours ago ·


Satya Narayan

"आदमी का हृदय जब वीर कृत्यों के लिए छटपटाता हो, तो इसके लिए वह सदा अवसर भी ढूँढ लेता है। जीवन में ऐसे अवसरों की कुछ कमी नहीं है और अगर किसी को ऐसे अवसर नहीं मिलते, तो समझ लो कि वह काहिल है या फिर कायर या यह कि वह जीवन को नहीं समझता।"


-बुढ़िया इजरगिल


(मक्सिम गोर्की की कहानी 'बुढ़िया इजरगिल' की एक पात्र)

Unlike ·  · Share · 17 hours ago ·

Afroz Alam Sahil

मुज़फ़्फ़रनगर की यह न्यूज़ आपको किसी मीडिया में देखने को नहीं मिलेगी... अगर आप मुज़फ्फरनगर से ज़रा सा भी हमदर्दी रखते हैं तो यहां मुज़फ्फरनगर के असल गुनाहगारों की इस कहानी को ज़रूर पढ़े, और इसे अधिक से अधिक शेयर करें ताकि यह सच देश के हर नागिरक तक पहंच सके...http://beyondheadlines.in/2014/01/culprit-of-muzaffarnagar/

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Sudha Raje

बङा खतरनाक हाल है आज यूँही घूमने निकले ।


देखा दस दस रूपये में भीङ लगी है


क्या है??


एक पार्टी का सदस्यता मेला ।


दस रुपये में एक टोपी भी बाद में मिलेगी ।


ग्रामीण कहते जा रहे थे लै भय्या


टोपी बीस की मिल्लयई खादी आसरम पै ।


जि तै पीसा बसूल है ग्या


सँभल जाओ ।सियासत जात पात मजहब पै करने वालो!!!


@सुधा राजे

Like ·  · Share · 11 minutes ago ·

Uttam Sengupta

Politics, crane and a camera ! Read how the camera works and how it enhances a crowd of five thousand to make it look like 50,000 ! Long live journalism !!

Distortions in news broadcasting - Livemint

livemint.com

There are several threats to the future of India's news broadcasting industry, some of them being Jimmy Jib journalism, poor editorial quality and corporate ownership of news media

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  • Buroshiva Dasgupta and 5 others like this.

  • View 1 more comment

  • Sunil Umarao visual illiteracy makes things worse....earlier all the boat club demonstration for the still camera.....if you had the chance to see the demonstration n what pics communicated next day in newspapers....you were always in store for shock......there was always a consensus how group -50-200 habitual n most of the time paid could make a nice dramatic pic day in n out !

  • 4 hours ago · Like · 1

  • Avinash Bhardwaj Height of mental bankruptcy of the writer..!!! Or may be he is too fearful or corrupt to accept changes in society.

  • 3 hours ago · Like

  • Sam Appan Now started wondering how much mass the Aam Aadmi resurgence actually has!

  • 2 hours ago · Like

  • Sunil Umarao Off late AAP supporters have started behaving like Modi one...God Helppppppp!

  • about an hour ago · Like

Bodhi Sattva

कोई खो गया

कोई छूट गया

कोई रह गया

कोई मिट गया

कोई धूल हुआ

कोई राख हुआ

कोई उड़ गया

कोई मुड़ गया

कोई मिला नहीं

कोई ओझल हुआ

कोई अलोप हुआ


यह हर कोई मैं हूँ

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Dilip C Mandal

केजरीवाल अगर दूसरा गांधी है, तो समझ लीजिए कि किसी 'पूना पैक्ट' की मार पड़ने ही वाली है. लंगोटीवादी सादगी में बहुत जोखिम है. बीजेपी-कांग्रेस के मुकाबले इसे सरप्राइज एलिमेंट समझिए.

Unlike ·  · Share · 17 hours ago ·

Avinash Das

जाड़े में व्हिस्‍की-रम की दमकल रख लेते हैं

और साथ में पानी की बोतल रख लेते हैं


स्‍वेटर मफलर और जुराबें कम पड़ जाएंगी

ऐसा करते हैं कि कुछ कंबल रख लेते हैं


उबड़ खाबड़ पर हम पूरी देह टिका देंगे

सिरहाने की मिट्टी को समतल रख लेते हैं


थोड़ा काम बचा है उसको पूरा तो कर लें

अपना मिलना आज नहीं हम कल रख लेते हैं


जाने वाले जाते हैं तो जाने देते हैं

चाहत और मोहब्‍बत के कुछ पल रख लेते हैं


‪#‎DasDarbhangvi‬

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Umesh Tiwari

बहुत से मित्र आम आदमी पार्टी के नेताओं के प्रति शंका का भाव बनाकर टिप्पणी कर रहे हैं, स्वाभविक है, वो इतनी बार छले जो गए हैं। पर एक तो मसीहा, भगवान या मायावी का विशेषण आम आदमी की राजनीति के शीर्ष पर दीख रहे व्यक्तियों पर फिट नहीं बैठता, मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, इसके लिए आपको थोड़ा सा टेक्निकल होकर पार्टी संविधान पढ़ना होगा। दूसरे, जहां अच्छी संभावना दिखे उसकी सकारात्मक दृष्टि से पड़ताल करना भी तो ज़रूरी है वरना भविष्य में किसी समाजोपयोगी विचार को पनपने से पहले ही दबा देने का लांछन झेलना होगा। जहां तक केजरीवाल का प्रश्न है बहुत से कांग्रेसियों, मायावती, लालू, मुलायम और मोदी जैसे नेताओं और केजरीवाल में सबसे बड़ा फ़र्क नीयत का है।

Like ·  · Share · 15 hours ago ·

Dilip C Mandal

आप ने उसे जिताया और उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद दे दिया. काम हो गया. अब आप कौन ‪#‎aapcon‬ ?


http://timesofindia.indiatimes.com/assembly-elections-2013/delhi-assembly-elections/Once-atheist-Arvind-Kejriwal-thanks-god-calls-it-miracle/articleshow/28047228.cms

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  • Anita Bharti, गंगा सहाय मीणा, Ajit Rai and 113 others like this.

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  • Om Prakash "आम" मतलब "जनरल" ! "जनरल" मतलब "एंटी रिज़र्वेशन" ! "एंटी रिज़र्वेशन" मतलब "एंटी एससी-एसटी-ओबीसी" ! "एंटी एससी-एसटी-ओबीसी" मतलब "एंटी खास" ! "एंटी खास" मतलब आम ! आम मतलब जनरल ! जनरल मतलब "ब्राह्मण-बनिया" ! ब्राह्मण-बनिया मतलब केजरीवाल-कुमार विश्वास शर्मा !

  • अरे भाई ! ब्राह्मण-बनिया दाँव-पेंच बदलता है पर अपना अंतिम उद्देश्य (शूद्रों-अतिशूद्रों का सत्यानाश) कभी नहीं बदलता ।

  • 6 hours ago · Like · 4

  • Mukhtyar Singh आम आदमी पार्टी कॉंग्रेस और भाजपा से ज्यादा खतरनाक है

  • 6 hours ago · Like

  • Giridhari Goswami केजरीवाल से भी बड़ा कोई भ्रष्ट्र और बेईमान आम आदमी को दिख रहा है क्या? जितवाया आम आदमी के वोटों ने और सारे के सारे क्रेडिट ईश्वर,खुदा, गोड जैसे काल्पनिक लोगो को दिए जा रहा है! मुझे आज तक कोई नेता इतना अहसान फरामोश-कृतघ्न नही दिखा!

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Yashwant Singh via Bhadas4media

तीन संपादक टाइप लोग इन दिनों 'वांटेड' हैं... गुड़गांव में इनके पोस्टर चिपकाए गए हैं... नोएडा में अखबारों के साथ लोगों के घरों में इनके कारनामों से संबंधित पंफलेट गिराए भेजे जा रहे हैं... आखिर जिस किस्म का इन लोगों ने अपराध किया है, उसमें इनकी गिरफ्तारी तो बनती ही है... लेकिन मोटी चमड़ी वाला शासन प्रशासन इन कथित बड़े नामधारियों और इनके दलाल आकाओं के आगे पूंछ हिलाते हैं सो काहे की गिरफ्तारी और काहे का एक्शन...

Wanted Posters of Deepak Chaurasia, Ajit Anjum and Ajay Kumar

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अभी तो लड़ना है तब तक/ जब तक मायूस रहेंगे फूल

आज की समस्या है कि इंसानों के व्यवहार का भरोसा टूट रहा है

सुनील दत्ता

आजमगढ़। आरगम-सांस्कृतिक मंच नहीं यह एक लोक जनान्दोलन, सांस्कृतिक आन्दोलन की धारा है "तुम किसी से रास्ता न माँगना- तुम पवन की तरह गुजर जाना" आरगम 2013 एक नया संकल्प— लोक जन आन्दोलन, जन संस्कृति, लोक रंग, लोक भाषा का ठेढ़े-मेढ़े कंकरीले, पथरीले जमीन पर लोक रंग, लोक नाट्य जैसी विलुप्त होती विविध कलाओं को सहेजने के साथ ही भारतीय रंग पटल पर एक जन आन्दोलन, सांस्कृतिक आन्दोलन को दिशा और दशा देते हुए अबाध गति से "सूत्रधार" विगत दस वर्षों से सक्रिय लोक नाट्य व लोक रंग आन्दोलन के क्रम में "आरगम" 2013 स्त्री विमर्श पर प्रश्न खड़ा करने में सफल रहा है। संस्कृति के आलोक से चतुर्दिक प्रकाश फैलाता, घुमक्कड़ शास्त्र के रचयिता महापंडित राहुल सांकृत्यायन, उर्दू- फ़ारसी अदब के तवारीख अल्लामा शिब्ली नोमानी, नूरजहां जैसा महाकाव्य के प्रणेता गुरु भक्त सिंह भक्त, प्रथम खड़ी बोली के महाकाव्य "प्रिय प्रवास" के सर्जक के नाम पर स्थापित "सांस्कृतिक आन्दोलन" के गौरवशाली इतिहास को अपने पन्नों पर दर्ज करता हुआ निरंतर जन आन्दोलन को प्रवाह देने वाला खण्डहर होता हरिऔध कला भवन के प्रांगण में "बाजारवादी– उपभोक्तावादी संस्कृति के विरुद्द लोक संस्कृति के विस्तार को गति देता "आरगम" का बसाया कला ग्राम बहुत से अनछुए प्रश्न भी छोड़ गया।

भारतवर्ष में प्रत्येक प्रदेश की अपनी सांस्कृतिक- सामाजिक विशेषताएं हैं जो मुख्यत: वहाँ के लोक- संगीत- लोक नाट्य के माध्यम से व्यक्त होती हैं। परम्परा के प्रवाह में गतिशील लोक संगीत- लोक नाट्य से ही उस क्षेत्र- विशेष की राष्ट्रीय- अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनती है। ये लोक विधाएँ ही किसी सर्जक हाथों में सँवरकर शास्त्रीय विधाओं का आकार ग्रहण कर लेती हैं। यह एक बड़ी सच्चाई है कि लोक संगीत ही शास्त्रीय संगीत का प्रेरणा दाई आधारभूत उपादान है। विद्यापति की पदावली लोक भाषा तथा लोक संगीत में रची-पगी है, जिससे वे मैथिल कोकिल बने। जयदेव के गीत-गोविन्द में भी लोक गीतों जैसी सहजता, मधूरता तथा लयात्मकता है। कबीर, सूर, तुलसी, मीरा सभी के गीतों पर लोक शैली की स्पष्ट छाप विद्यमान है। उत्तर प्रदेश में लोक कलाओं और लोक संगीत की अमूल्य धरोहर विद्यमान है। भारत की अस्सी प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है कविवर सुमित्रा नन्दन पन्त के शब्दों में "भारतमाता ग्रामवासिनी" है। दूसरे शब्दों में भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। उसका हृदय स्पन्दन गाँवों में धड़कता है। उसकी उदात्त भावनाओं और उसके हर्षोउल्लास, आशाओं, आकाँक्षाओं के स्वर ग्रामवासियों के कोटि-कोटि कंठो से मुखरित होते हैं और इसी से जन्म होता है "हमारी लोक कला और लोक संस्कृति का"। बाजारवादी संस्कृति के पश्चात् लोगों में गाँवो से शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति बढ़ी है और एक ऐसे वर्ग का उदय हुआ है जो गाँवों से पूरी तरह कट गया है। नगरों की ओर पलायन पर अंकुश लगाकर गाँवों के खुशहाली और सुख समृद्दि का पथ प्रशस्त करने के लिए गाँवों में पुष्पित और पल्लवित होने वाली लोक कलाओं और लोक संस्कृति के प्रति लोगों की अभिरुचि पुन: जागृत करने और अपनी इस विरासत को अधिक समृद्द बनाने के इस आन्दोलन में आरगम 2013 के लोक संस्कृति- लोक नाट्य भारत की आधी आबादी " नारी" पर समर्पित रहा।

चार दिनों के आरगम में प्रति दिन दो सत्र में बाँटा गया था पहला सत्र लोकसंगीत, लोकनृत्य व दूसरा सत्र नारी पर समर्पित और नारी शोषण पर आधारित विषय पर नाटकों का मंचन- आरगम का प्रथम दिन के प्रथम सत्र में उद्घाटन के पश्चात् अपनी माटी के संस्कारों के साथ विरह की वेदना समेटे विरहा से इसकी शुरुआत हुई उसके बाद लोकपरम्परा में विलुप्त होती धोबिया व जाघिया नृत्य के गीतों ने आम जनमानस को एक बार फिर उसी पुरानी अपनी लोक शैली को उनके सामने जीवंत बना दिया और वो महसूस करते रहे हम किसी शहर में नहीं हम गाँव के किसी अमराई तले बैठे अपनी पुरानी मान्यताओं को देख रहे हैं। दूसरे सत्र में अभिषेक पंडित कृत व निर्देशित नाटक " नजर लागी रामा" का मंचन हुआ। समय समाज के मूल्याँकन में सांस्कृतिक स्थिति महत्वपूर्ण होती है इसमें बिखराव या संगठन पर इंसानी जेहन का अंदाजा किया जा सकता है। आज की समस्या है कि इंसानों के व्यवहार का भरोसा टूट रहा है। वह स्टॉक एक्सचेंज की तरह त्वरित लाभ- हानि के आकलन में गिरता उठता है ऐसे ही समस्याओ के प्रति संकेत करता नाटक " नजर लागी रामा" में निर्देशक ने ब्रेख्तियन शैली का प्रयोग बड़ी खूबसूरती से किया है। इसका मूल कथानक लोक कथा पर आधारित है वो कथा आज भी समाज में प्रासंगिक है। एक चरवाहा अपनी पत्नी के लिए राजा के महल में घुसकर रानी के आभूषण चुराता है। पर रानी की विद्वता पर वो चरवाहा मोहित हो जाता है उसके बाद अपनी पत्नी की मूर्खता पर उसे गुस्सा आता है वो पुन: राजा के दरबार में जाकर उन आभूषणों को लौटाता है। अंत में राजा चरवाहे को मौत की सजा सुनाता है। राजा की भूमिका में अरविन्द चौरसिया ने सहज अभिनय किया। रानी के भूमिका में मनन पाण्डेय ने सार्थक भूमिका करके दर्शकों का मन मोह लिया। चरवाहा और उसकी पत्नी की भूमिका में हरिकेश मौर्या व अंकित सिंह थे। नाटक अपनी प्रस्तुति में अपने प्रश्नों को दर्शकों के सामने छोड़ने में सफल रहा। इसका संगीत पक्ष बहुत प्रभावशाली रहा इस पक्ष को अंकित सिंह ' सनी ने सम्भाला था।

राजस्थान की माटी की सुगंध बिखेरी वहाँ के लोक कलाकारों ने। कालबेलिया नृत्य के द्वारा उन्होंने खत्म हो रही हमारी पुरानी लोक परम्पराओं को जहाँ गीतों के माध्यम से प्रदर्शित किया वहीं अपने करतब से लोगों को आश्चर्य चकित कर दिया। इसके साथ ही परदेशी बालम पधारो मारो देश, के बोल के जरिये भारत की अपनी स्वागत की संस्कृति का बोध कराया। आरगम का दूसरा दिन पहला सत्र संगोष्ठी "आज की औरत और उसकी चुनौतियाँ" के बाद मराठी लोक नृत्य व कौमी एकता पर नृत्य नाटिका के साथ ही हमारे हरियाणा से आये लोक कलाकारों ने हरियाणवी लोक कला के माध्यम से यह बताया कि हम अपनी परम्पराओं, मान्यताओं को नहीं बदल सकते हैं उनको साथ लेकर हम आधुनिकता के साथ कदम से कदम मिलाकर चलेंगे। पर हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है वही हमारा अस्तित्व है।

दूसरे सत्र में पटना की "कला संगम" द्वारा भीष्म साहनी की कहानी पर आधारित "साग- मीट" नाटक की चर्चा करते- करते एक महिला अपनी पड़ोसन को अपने नौकर "जग्गा" के बारे में बताती है। जग्गा बचपन से ही उसके यहाँ नौकर था बहुत ईमानदार, सीधा और मेहनती बड़ा होकर वह शादी करके अपनी पत्नी के साथ ही रहता है। दोनों इस घर की सेवा करते हैं, घर का मालिक किसी दफ्तर का बड़ा अफसर है। मालिक का भाई ' जग्गा ' की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर उसकी पत्नी का यौन शोषण करता है। यह बात जब महिला को पता चलता है तो वह अपने पति से यह बात बताना चाहती है। इसी बीच जग्गा, मालिक के भाई को एक दिन अचानक अपनी कोठरी से निकलते देख लेता है। यह घटना भी वो घर की मालकिन अपनी आँखो से देख लेती है। वह फिर वह तय करती है कि वो अपने पति से इस घटना की चर्चा करेगी। लेकिन इसी बीच जग्गा आत्महत्या कर लेता है। पुलिस को आत्महत्या के बारे में कुछ सुराग नहीं मिल पाता है और मामला रफा- दफा हो जाता है। एक दिन वह अपने पति से सारी घटना का जिक्र करती है परन्तु अपने पति के मुँह से यह जानकर कि उसे पहले से ही सारी बातो का पता है वह अवाक रह जाती है। मालिक जग्गा के घर के लोगों को पैसा देता है। वह यह सोचता है कि कुछ पैसे दे देने से गरीबो का मुँह बंद हो जाता है। निर्देशक ने बड़ी ही बारीकी से महानगरों की अपसंस्कृति की ओर इशारा करते हुए यह बताने के कोशिश की है कि किस तरह येनव धनाढ्य वर्ग आज भी नारी का शोषण करते चले आ रहे हैं।

मोना झा ने अपने एकल अभिनय से सारे पात्रों को जीवंत बना दिया। "साग मीट" दर्शकों के समक्ष बड़ा सवाल छोड़ गया।

आरगम का तीसरा दिन "इस बार आरगम ने एक नया प्रयोग किया गया जिसमे हमारे भारतीय वाद्ययंत्रों का शास्त्रीय पक्ष भी लोगों के बीच लाने का प्रयास किया गया। एकल शहनाई, पखावज, तबला सितार बाँसुरी वादन के जरिये इस एकल कलाकारों ने आरगम के पूरे बौद्दिक समाज को अपने इस फन से बाँधे रखा। पंजतन ने शहनाई से जब अपनी मधुर तान छेड़ी तो अनायास ही बिस्मिल्ला खाँ साहब याद आ गये। तबले ने भी अपनी थाप से लोगों को मोहित किया। अजय सिंह ने अपनी बाँसुरी के स्वर से राधे कृष्ण के याद दिला दी।

दूसरा सत्र भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर को समर्पित था। बताते चलें भिखारी ठाकुर अपने जीवन काल में ही ( भोजपुरी समाज के मिथक बन चुके थे ) पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की लोक संस्कृति के पहचान भिखारी ठाकुर से होती है। उनके बिना भोजपुरी- भाषी समाज की कल्पना असम्भव है। भिखारी ठाकुर उस दौर के उपज थे जब राजनीति के साथ आर्थिक विषमताओं और सामन्ती संस्कृति से जकड़े ग्रामीण समाज में एक तीव्र बेचैनी और छटपटाहट थी। उसी को भिखारी ठाकुर ने अपने गीतों और नाटको में रेखांकित किया है। संकल्प बलिया की प्रस्तुति- भिखारी ठाकुर की अमर कृति "गबरघिचोर",  रोजगार के अभाव में युवाओं का गाँव से शहर की ओर पलायन व स्त्री संघर्ष का जीवंत दस्तावेज है। गलीज नाम का पात्र अपनी पत्नी को छोड़कर शहर कमाने चला जाता है। इधर उसकी पत्नी का गांव के एक युवक गलीज से संबंध हो जाता है जिससे उसको एक लड़का होता है जिसका नाम है गबरघिचोर। जब गलीज को इस बात का पता चलता है तो वह लड़के को ले जाने के लिए गाँव आता है। लड़के को लेकर पत्नी से लड़ाई होती है तब तक गड़बड़ी आ जाता है और कहता है कि लड़का हमारा है तीनों में झगड़ होता है। लड़का किसका है इस बात का फैसला करने के लिए पंच को बुलाया जाता है। पहले तो लालच में फंस कर पंच बेतुका फैसला देता है कि लड़के को तीन टुकड़े में काट कर तीनों में बाँट दिया जाय। यह फैसला सुनकर माँ बिलख पड़ती है तब पंच का विवेक जागता है और वह फैसला सुनाता है कि वास्तव में लड़के पर माँ का हक है जिसने इसे नौ माह तक अपने गर्भ में रखा और पैदा होने पर उसे पाल पोसकर बड़ा किया। इस तरह एक महिला संघर्ष करके जीतती है। इस पूरे नाटक में आज भी स्त्री पर हो रहे अनाचार को उद्घाटित करके दर्शकों के मन मष्तिष्क को झकझोरने का काम किया। पंच की भूमिका रेनू सिंह, ने सार्थक अभिनय से दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दिया। इसके साथ ही अन्य पात्रों ने भी अच्छा अभिनय किया। नाटक का संगीत पक्ष बहुत ही मजबूत रहा जिससे नाटक के सम्प्रेषण को दर्शकों तक पहुंचाने में निर्देशक कामयाब रहा। संगीत, गायन- ओम प्रकाश, सोनू । संगीत निर्देशन-शैलेन्द्र मिश्र,इसका निर्देशन-रेनू सिंह . मंच परिकल्पऩा व निर्देशकीय सहयोग-आशीष त्रिवेदी ।

आरगम का आखरी दिन आजमगढ़ के एक मस्त मौला फकीर पेशे से दर्जी " हादी आजमी" के उन दर्द भरे नज्मों से कार्यक्रम की शुरुआत हुई जिसमें उन्होंने आम आदमी होने के दर्द को बयाँ किया है और इसको अपना स्वर दिया पंडित विनम्र शुक्ल ने। उनके रिदम ने ये एहसास दिला दिए हादी आजमी के उस दर्द को जो उन्होंने अपने नज्मो में उकेरी है। इसके साथ ही आजमगढ़ से उभरता एक सितारा अंकित सिंह " सनी" जो गजल, गीत हो या शास्त्रीय संगीत का ठुमरी हो, दादरा हो उसने अपनी गायकी से यह सिद्द कर दिया कि वो आने वाले कल का बेहतरीन सितारा है। लोक रंग के इस आखरी शाम को "इन्द्रवती नाट्य समिति" सीधी मध्य प्रदेश की प्रस्तुति नाटक "स्वेच्छा" स्वेच्छा एक ऐसी लड़की की कथा है जो लगातार अपने अस्तित्व के तलाश में संघर्षशील है। लड़की का बचपन तरह- तरह के चरित्रों को महसूस करता है। उन्हें समझते या उनका रूप ग्रहण करते बीतता है। यह बात और है कि इन दिनों वो अपनी मर्जी का ऐसा कुछ भी नहीं कर पाती लेकिन कहीं न कहीं उसके आगामी जीवन पर उन चरित्रों का गहरा प्रभाव पड़ा है। अब वो बड़ी हो गयी है उसके सारे बचपन के दिनों के कोमल चरित्र अब बड़े हो गये हैं वो तमाम दुनियावी उतार– चढाव से वाफिक होने लगे हैं यह बात अब माँ बाप को ठीक नहीं लगती है लेकिन स्वेच्छा के चरित्र बुनने और उनके बीच रहना ही अच्छा लगता है। स्वेच्छा सूरज की पहली किरण लाल अरुण के यात्रा से शुरू होकर अस्त होते सूरज तक का सफर है। सफर वो जो कभी न खत्म न हो अनंत के ओर उन्मुख हो जिसकी पैदाइश ही प्रेम हो। कुछ ऐसे ही विचारधारा और चाहत को प्रगट करती है स्वेच्छा। यूँ तो आदमी वास्तविक जीवन में हजारो चरित्रों को जीता रहता है। लेकिन जब इन चरित्रों के मध्य जिन्दगी जीने की बात आती है इन्हीं चरित्रों के साथ सपने देखने की बात आती है तो हम कतराते हैं। तब हमे रंगों से और रंगो में शामिल चरित्रों से ऊब होने लगती है और न जाने किस जीवन दर्शन में डूबने उतराने लगते हैं। जहाँ शब्दों के मायने बदल जाते हैं। जरा सोचें क्या हम नन्ही मासूम शक्लों को गुमराह नहीं कर रहे होते। ऐसी स्थिति में सब कुछ अधूरा रह जाता है। विशाल अधूरापन मुहँ फैलाए खड़ा होता है। हमारा अस्तित्व लीलने को और हम बची- खुची जिन्दगी न चाहते हुए भी जीते चले जाते हैं। घिसटते चले जाते हैं अनायास ही मौत के मुहाने तक इस नाटक को निर्देशक ने अपने सम्पूर्ण कला दर्शन के जरिये एक मूर्त रूप में आकृति सिंह के जरिये साकार किया। इस छोटी सी कलाकार ने अपने शानदार अभिनय से इस पूरे कथानक को साकार स्वरूप देकर दर्शकों को निशब्द: बाँधे रखा। यही उसकी बहुत बड़ी सफलता रही। नाटक का निर्देशन व संगीत निर्देशन नरेन्द्र बहादुर सिंह ने किया था वो अपने नाटक के माध्यम से आज के समय की त्रासदी को बखूबी कह गये। इन चार दिनों के कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी व स्वतंत्र पत्रकार, समीक्षक एस. के. दत्ता ने सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। कार्यक्रम के अंत में समाज के विभिन्न क्षेत्रो में कार्य करने वालो को सम्मानित किया गया। वर्ष 2013 आरगम के सयोजक ममता पंडित ने अपने कुशल संचालन से इसे सफलता की दिशा दी, इसके साथ ही सूत्रधार संस्था के अध्यक्ष डॉ. सी के त्यागी, सचिव अभिषेक पंडित व डॉ. बद्रीनाथ, डॉ स्वस्ति सिंह, श्रीमती विनीता श्रीवास्तव, प्रवीन सिंह, नित्यानंद मिश्र, दीप नारायण, मनीष तिवारी, जनहित इंडिया के सम्पादक मदन मोहन पाण्डेय और साथ के सभी रंगकर्मियों के समर्पण से ही यह जन आदोलन, रंग आन्दोलन निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है। अश्वघोष की इन पक्तियों के साथ——– अभी तो लड़ना है तब तक/ जब तक मायूस रहेंगे फूल/ तितलियों को नहीं मिलेगा हक़/ जब तक अपनी जड़ों में नहीं लौटेंगे पेड़……………………..


चन्द्रशेखर करगेती

7 hours ago · Edited ·

  • हमारे राज्य के नेताओं में केजरीवाल जैसी शर्म भी नहीं.....
  • दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भले ही उंगली उठने पर अपना सरकारी आवास वहां जाए बगैर ही छोड़ दिया हो लेकिन देहरादून में जब-जब ऐसा कोई मुद्दा या विवाद खड़ा हुआ, अपने मंत्रियों को रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा । इस प्रकार के मामलों में भाजपा-कांग्रेस दोनों दलों के माननीय एक जैसे बेशर्म बने रहें हैं, सरकारी आवासों से जुड़े इनके कुछ प्रमुख किस्से आम लोगों में चर्चा बने पर इनके कान पर जूं नहीं रेंगी, इन्हें अपनी करनी नहीं दिखाई दी पर आज ये जुम्मा-जुम्मा चार दिन के राजनेता बने अरविन्द केजरीवाल पर फिकरे कसने से भी बाज नहीं आ रहें हैं !
  • नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट उनके लिए तय बंगले पर से कब्जा न छोड़ने पर मंत्री हरक सिंह रावत को कोसते रहे, लेकिन अब बड़ा बंगला मिलने के बावजूद विधायक हॉस्टल से दो कमरों वाला आवास नहीं छोड़ रहे हैं ।
  • निशंक दो दर्जन कमरों वाली एनेक्सी केसाथ ही यमुना कालोनी में दूसरी कोठी भी रखे हुए हैं ।
  • हरक सिंह रावत ने शुक्रवार को ही निशंक को एनेक्सी का अवैध आवास न छोड़ने पर खूब खरी-खरी सुनाई लेकिन अपने आवास के सामने चार कमरों वाले एक सरकारी बंगले को ही कैंप कार्यालय बनाए हुए हैं । यह कैंप कार्यालय कभी सीएम रहते हुए निशंक के पास था ।
  • महेंद्र सिंह माहरा पिछला विधानसभा चुनाव हारे और बाद में राज्यसभा पहुंचे । बतौर सांसद उन्हें दिल्ली में कोठी मिली है लेकिन विधायक हॉस्टल में अभी भी आवास संख्या 60 पर कब्जा है जबकि यह आवास भाजपा विधायक पूरण सिंह फर्त्याल को आवंटित है। वे दो साल से हॉस्टल के ही गेस्ट हाउस में पड़े हुए हैं ।
  • कांग्रेस विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैम्पियन के लिए विधायक हॉस्टल में आवास आवंटित है । वन निगम के चेयरमैन बने तो कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलते ही सुभाष रोड वाली वह कोठी अलॉट हो गई जिसमें पूर्व कैबिनेट मंत्री मातबर सिंह कंडारी रहते थे । अब कुंवर प्रणव का मंत्री का दर्जा नहीं है तो भी कोठी उनके कब्जे में है ।
  • भाजपा विधायक पुष्कर सिंह धामी को भाजपा सरकार में दायित्वधारी रहते टाइप-4 का एक बड़ा मकान यमुना कालोनी में आवंटित हुआ था, लेकिन वह आज भी काबिज है और विधायक हॉस्टल में भी आवास लिए हैं ।
  • एक और रोचक किस्सा । किशोर उपाध्याय ने मंत्री पद से हटने के बावजूद जब कोठी नहीं छोड़ी तो तत्कालीन भाजपा सरकार ने उन्हें जबरन बाहर किया था ।
  • हो सके तो वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में दिए गये विधायकों मंत्रियों के शपथ-पत्र भी देख लें, राज्य सरकार का खजाना संभालें मंत्री इंदिरा हृदयेश की दून में अपनी कोठी होने के बावजूद, राज्य सरकार पर अपनी सरकारी कोठी के खर्च का भार डाले हुई हैं, मंत्री दिनेश अग्रवाल खेल एंव युवा मंत्रालय में युवाओं के लिए भले ही कुछ खास ना कर पायें हों, लेकिन सरकारी कोठी लेने में वे भी अच्छा खेल कर गए, और भी बहुत से नाम हैं, गणेश जोशी, उमेश शर्मा काऊ, राजकुमार, प्रीतम सिंह, सुबोध उनियाल जैसे बहुत से राजनैतिक खिलाड़ियों के नाम हैं, जिनके चुनाव के समय दिए शपथ पत्र और जमीनी हकीकत का फर्क बहुत कुछ बयान करता है l
  • ये तो इन माननीयों के आवास से जुड़े ये छोटे कारनामें हैं, अगर इनके आम से खास बनने की चरणबद्ध परतें उधेड़ी जायें तो राजनीति के इन कारसाजों के बहुत से वैध-अवैध कामों की एक लंबी लिस्ट भी बननी तय है ! दूर पहाड़ के ग्याडू ने ठीक ही कहा है, नेताजी दिखने के और है, और हकीकत व्यवहार में कुछ और है ! यह ठीक वैसा ही है जैसा हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और !
  • अब आप परखते रहो कौन कैसा, ग्याडू का काम बताना था सो बता दिया !
  • खबर स्रोत : अमर उजाला
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    • Ajay Kanyal, मनोरथ कोठारी, Pan Bohra and 60 others like this.

    • Krishna Chandra Kharkwal कुछ तो शर्म करो नेताओ। छोड़ो ये नहीं सीखेंगे । तभी तो उम्र बीत गयी है दारु पिला कर विधायक और बहुत हाथ पाँव मारकर मंत्री ही बने है। सीखने वाले होते तो 1साल मे ही सी एम् नहीं बन जाते।

    • 7 hours ago via mobile · Like · 5

    • Prakash Bisht kya kare sir system he gadbad hain

    • 7 hours ago via mobile · Like · 1

    • Laxman Singh Mehta Congress or B J P dono dlo ke neta high profile ,Janta se dur ,V IP culture or janta ko thag kar neta bnte hai inhai AAP Se kuchh to sikh leni chahiye jnta ko dono dlo ko sbak sikhana chahiye

    • 7 hours ago via mobile · Like · 2

    • पल्लव जोशी छोड़ दिया क्या सच में कजरी वाल जी ने ददा ।तो वे अब कहाँ रहने वाले हैं।

    • 7 hours ago via mobile · Like · 1

    • Krishna Chandra Kharkwal थोडा छोटा घर । आम जनता को जो ठीक लगे

    • 7 hours ago via mobile · Like · 2

    • पल्लव जोशी कहाँ कहाँ ये भी तो बताओ खर्कवाल जी क्यूकी बहुत बोल रहे थे कुछ बुद्धि जीवी।

    • 7 hours ago via mobile · Like · 1

    • Krishna Chandra Kharkwal बोलने के कारण ही तो ये हुआ है। आपना हनुमान भी सत्ता मिलते ही अपना बल भूल ही गया था। जनता ने याद दिलाया । और उसे याद आ गया। जो अच्छी बात है।

    • 7 hours ago via mobile · Like · 4

    • पल्लव जोशी बहुत अच्छी बात है जी बहुत अच्छी

    • 7 hours ago via mobile · Like · 2

    • पल्लव जोशी करगेती ददा आपने ऑनलाइन आवेदन किया के नही।

    • 7 hours ago via mobile · Like · 3

    • चन्द्रशेखर करगेती पल्लव जोशी जी, हम तो तेल देखो तेल की घार देखो वाले हैं....देखते जाओ...

    • 7 hours ago · Like · 4

    • पल्लव जोशी धार भी देखते रहना पर हो सके तो विचार करना क्युकी बहुत हो चूका कुछ तो बदले ददा जी।

    • 7 hours ago via mobile · Like · 2

    • Mukesh Pant Aur toh Aur badii besharmi ke sath...humare rajya ke bjp and congress ke facebookiye....arvind kejriwal ko koste rehte hain

    • 7 hours ago via mobile · Like · 3

    • Puran Singh Bhandari भेजी इनको धक्के मार के भी निकालोगे तब भी नहीं निकलगें । बड़ी बड़ी जोंके है।

    • भेजी आम आदमी पार्टी एक नयी पार्टी है। जो कहती है हम राज नहीं करेगें। हम चाह्गें की फिर भी राज आपका रहे। और हम Excute करेगें आपके लिए।

    • 7 hours ago via mobile · Like · 1

    • चन्द्रशेखर करगेती ये लो भाई अपने अपने चहेतों/दुश्मनों के शपथ-पत्र खोल-खोलकर देखते रहो, जमीनी हकीकत में कुछ अंतर नजर आये तो पुख्ता सबूत भी ढूँढ लेना , एक दो की विधायकी तो खा ही जाओगे, याद रहें किसी भी कार्यवाही के प्रक्रम में झूठा शपथ-पत्र देना एक अपराध है..... आम आदमी पार्टी ने इतना जोश तो भर ही दिया है ग्याडूओं में....http://election.uk.gov.in/affidavi.../affidavlitcand2012.htm

    • Election 2012...List of Candidates

    • election.uk.gov.in

    • 7 hours ago · Edited · Like · 2

    • पल्लव जोशी ददा ये बल भेजी और ग्याडू क्या होता है

    • 7 hours ago via mobile · Like · 1

    • Puran Singh Bhandari ग्याडूओं को जवाब भी देना चाहिए फिर ग्याडू कोन नहीं

    • 7 hours ago via mobile · Like

    • Hemendra Singh Kargeti Ji gaudy ka matlab hame bhi batao. Please.

    • 7 hours ago via mobile · Like · 1

    • चन्द्रशेखर करगेती ये पूरण सिंह भंडारी जी बताएँगे, उन्होंने अभी नयी नयी दीक्षा ली है सो उन्हें अच्छे से मालूम है, ग्याडू कौन है ?

    • 6 hours ago · Like

    • Nandan Bisht Agle election me in sabko sabak sikha denge. Jago voter jago

    • 6 hours ago via mobile · Like · 1

    • Puran Singh Bhandari लोग मुझसे नहीं आपसे पूछना चाहते है? क्युकी ग्याडू शब्द का इस्तेमाल आप कर रहे हो करगेती जी मै नहीं। अगर किसी से कोई दीक्षा ले भी ली तो कोई गुनाह है क्या? खेर छोडिये पहले लोंग जो पूछ रहे है उसका जवाब दो।

    • 6 hours ago via mobile · Like · 1

    • Sanjay Swar BJP CONGRESS naitikta aur imaandari ke mamle main hamesha dohra charitra raha hai, inse aap kuch bhi apkesha kyon karte hain?

    • 6 hours ago via mobile · Like

    • Sanjay Bisht Sanju इन सब को झाडू मारकर बाहर करो ।

    • 6 hours ago via mobile · Like

    • चन्द्रशेखर करगेती Puran Singh Bhandari जी नाराज काहे होते हो दद्दा, ग्याडू शब्द गढवाली के है, इसलिए आप को बताने को बोला...खैर जिसे आज आम आदमी कहा जा रहा है, शायद वो ग्याडू के लिए फिर बैठेगा, वैसे ग्याडू को हम कुमाउनी में "लाटा" भी कहते हैं....

    • 6 hours ago · Like · 3

    • Ajay Kanyal morality ki class jaye bina sthapit dal aap ka samna kab tak karenge .

    • 6 hours ago via mobile · Like · 1

    • Hemendra Singh Dhanyavad

    • 6 hours ago via mobile · Like · 1

    • Pan Singh Mehta बहुत अच्छी जानकारी दी ककरेती जी धन्यवाद

    • 6 hours ago via mobile · Like · 1

    • Pooran Pandey Ganail dadda urf gyadu

    • 6 hours ago via mobile · Like

    • Sanjay Bisht Sanju परन्तु

    • जब इमानदारी की डोर पकड़कर और सादगी की कसमें खाकर मैदान में कूदे सूरमाओं का ईमान हफ्ता बीतते डोल गया , सुचिता की नई परिभाषाएं गढ़ी जाने लगी हैं तो ...ये बेचारे तो सिद्ध भ्रष्ट , बंग्लालोलुप , बत्ती लोलुप और कुर्सी लोलुप हैं , और इन्होंने तो कोई कसम भी ना उठा रक्खी है ।

    • 5 hours ago via mobile · Like · 2

    • Ravi Rawat Is baar aam janta ne khud hi unhe msg krke bola ...wada yaad dilaya...is dar se ki kahi kejriwaal ji unhe poochne k liye fir kahi drama na krne lge sms sms khelne ka...

    • 4 hours ago via mobile · Like

    • Bhim Prakash Gautam यहाँ तक पहुँचने को किए उन्होंने बहुत कर्म,

    • राज-पाट का आनन्द लेने में फिर,क्यूँ करें वो शर्म????

    • 4 hours ago via mobile · Like · 2

    • Hamar Nainital करगेती जी मोदी और राहुल के नाम पर गुंडाकर्दी का लाइसैन्‍स मिला है तो फिर अवधि खत्‍म होने तक ऐश ही ऐश, नहीं तो जमीर तो उस दिन ही मर गया जिस दिना माता धारी देवी की झूठी कसम खायी थी

Ashok Dusadh

केजरीवाल घी पकाकर कम्बल ओढ़कर पीयेंगे तो उनकी खांसी ठीक हो सकती है .

Like ·  · Share · 18 hours ago ·

Uday Prakash

कल कुमकुम आन लाइन सदस्य बन गयीं थीं. आज बाज़ार तो गयीं थीं सब्जी खरीदने, मगर साथ में ये तस्वीरें लेकर लौटीं. आप भी देखें यह ज़मीनी हक़ीक़त. 'रील' और 'रियल' का फ़र्क.

वैशाली/वसुंधरा में 'भाजपा' के लोग दुकान खोलकर बैठे हैं और ग्राहक नदारद........ और दूसरी ओर 'आप' के सदस्य बनने के लिए भीड़ जुटी है. क्या बात है! अभी तो दोपहर है शाम तक नज़ारा देखने लायक होगा। WHAT A CONTRAST SIR JI!!!!

Unlike ·  · Share · 28 minutes ago ·

  • You, Mohan Shrotriya, Santosh Kumar Valmeeki and 11 others like this.

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  • Harminder Singh Chahal यह बात गलत भी नहीं कि बहुत से लोग जिन्हें कोई पार्टी नहीं ले रही वे "आप ज्वाइन कर रहे हैं। लेकिन एक बात जरूर साफ देखी जा रही है कि "आप को लेकर लोगों में गजब का उत्साह है।

  • 11 minutes ago via mobile · Like · 1

  • Sanjay Bugalia बङा खतरनाक हाल है आज यूँही घूमने निकले ।

  • देखा दस दस रूपये में भीङ लगी है ...See More

  • 11 minutes ago · Like

  • Uday Prakash हां..! फिर भी दस रुपये देना एक तरह का 'कमिटमेंट' भी है. 'टोकेन' ही सही. जो ज़्यादा दे सकते हैं, वे भी देंगे ही. उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं.

  • 11 minutes ago · Like · 2

  • Sanjay Bugalia ji sir maine btaya to tha .....ab congress or khaaskar waampanthioy ki to aakhiri umeed kejriwal pe tik gyi hai.......congress ka hath sath hai....or ab modi khilaf party hai .......

  • 10 minutes ago · Like

Avinash Das

उधर से आती थी खुशबू, जिधर बेली थी

चांद बिस्‍कुट था, शकरपाले की ढेली थी


कई तरह के नाम में रिश्‍तों का साझा था

कोई चंपा थी, बहिनपा थी, चमेली थी


दोपहर जो हर हमेशा सनसनाती थी

आम के मौसम की आवारा सहेली थी


मुश्किलों में लोग सब जुटते थे मंदिर पर

बाढ़ की आफत सभी ने साथ झेली थी


कई बरस के बाद अबकी गांव जो पहुंचा

ढह रहे घर में मेरी दादी अकेली थी


Das Darbhangvi

Like ·  · Share · 23 hours ago ·


Ashok Dusadh

हमे संघर्ष मंजूर है मनुवादी संस्कृति के लोग नही .हमें चना बेचना मंजूर है मनुवादी संस्कृति से समझौता नहीं.

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Avinash Das

माछ भात वाली शायरी के असर में भाई Prashant Kashyap ने सबसे पहले निमंत्रित किया. इस अवसर के सर्वाधिक उपयोग के लिए मैंने कल से ही उपवास साध लिया था. मेरे घर से लगभग तीस किलोमीटर दूर प्रशांत जी के घर तक हबर हबर गाड़ी हांकते हुए पहुंचे और यहां खाने की मेज पर अलौकिक नजारा था. केले के पत्ते पर माछ-भात और बंगाल का विशेष मत्स्य व्यंजन पातुरी. आह, जीवन को यहीं पर ठहर जाना चाहिए.

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Mohan Shrotriya

क्या तो कोहरा है ! और क्या ठिठुरन है!

मुश्क बांधकर पटक देने का इरादा हो, जैसे मौसम का !

हरक़त ही न हो, जुंबिश न रहे, तो फिर जीना भी क्या जीना है !

निकलो सूरजजी महाराज ! ऐसे में पता चलता है, हम तो सूरजमुखी हो गए हैं !

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Mohan Shrotriya

*हर लुटेरा जिस सड़क को भागता है

वह सड़क दिल्ली शहर को जा रही है.*


(मित्र कैलाश नौरियाल का एक शेर, मेरे एक स्टेटस पर टीप के रूप में !) उम्दा शेर है न?

Like ·  · Share · 3 hours ago near Jaipur ·

Jayantibhai Manani

आम आदम पार्टी का मतलब ही जनरल केटेगरी का आदमी, जो ओबीसी, एससी और एसटी की खास केटेगरी के नहीं है. केजरीवाल क्यों ख़ास आदमी पार्टी बनायेंगे? भाजपा और कोंग्रेस भी आम आदमी पार्टिया ही है. खास आदमी पार्टियो में हम डीएमके, अन्ना डीएमके, सपा, बसपा, जेडीयू, आरजेडी, अपना दल और राजापा जैसी पार्टियो को गिना सकते है.

मित्रो, आप क्या कहेंगे?

Like ·  · Share · 7 hours ago · Edited ·

Ashok Kumar Pandey feeling annoyed

अगर आप दस कमरों के मकान पर बवाल मचाते हैं और कई करोड़ के बुलेटप्रूफ दफ़्तर पर गौरवान्वित होते हैं.


तो....आप असल नामोवादी हैं.

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Aaj Tak

अरविंद केजरीवाल: नायक जो चलता रहा अकेला...http://aajtak.intoday.in/video/arvind-kejriwal-a-man-of-steel-1-751318.html

Like ·  · Share · 13,6941,314603 · 12 hours ago ·

Vijendra Rawat

साथियो,

मैं पहाड़ में घूम रहा हूँ आपदा ग्रस्त क्षेत्रों में कोई काम नहीं हो रहा है. 6 माह बाद फिर बारिश का मौसम आयेगा तब क्या होगा। हम तेजी से दूसरी आपदा के करीब जा रहे हैं. तारों के सहारे नदी पार करते स्कूली बच्चे, सड़कों पर दम तोड़ती गर्भवती बेटियों को देखकर लगता है कि इन सत्ता के दलालों का क्या करें? आपदा के दौरान एक खबर के अनुसार, हर्षिल में एक जवान गर्भवती महिला प्रशव पीड़ा से तड़फ रही थी लोगों ने पास खड़े हेलीकाप्टर के पायलट से उसको अस्पताल ले जाने की गुहार लगाई। पायलट बोला यह एक नेता पुत्र का है वह जाएगा? हेलीकाप्टर ने उड़ान भरी और दर्द से कराहती पहाड़ की बेटी ने वहीं दम तोड़ दिया। अब आप ही बताइये क्या उस कमीने तथाकथित नेता पर ह्त्या का मुकदमा नहीं चलना चाहिए?

कल ही मैं राज्य सचिवालय में एक उत्तराखंडी आई ए एस अधिकारी के पास बैठा था राज्य के विकास की बात आई तो विफर गए बोले हम सब चोर, डरपोक और साथ -साथ खुदगर्ज भी हैं. हम राज्य को लुटता हुआ देख रहे हैं पर कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि हमें भी बिना किसी ख़ास काम के मुफ्त का लाखों रुपये का वेतन मिल रहा है! जिस भी अधिकारी को उत्तराखंड के प्रति थोड़ा भी प्रेम है उसे खुड्डे लाइन लगा रखा है और जिन्हे राज्य से कोई मोह नहीं है

उनके पास इतने विभाग थोपे जा रहे हैं कि उन्हें खुद ही पता नहीं होगा कि उनके पास कितने विभाग हैं?. उत्तराखंड में बेरोजगारी है पर ठेकेदार बाहर से लाये जा रहे हैं. कई विभागों के इंजीनियर बिना काम के खाली वेतन ले रहे हैं.उन्हें जान बूझ कर काम नहीं दिया जा रहा है?

राज्य के बारे में सोचते हैं तो नींद नहीं आती.। क्या करें सब जानने के वाबजूद कुछ नहीं कर सकते। अब तो तभी कुछ हो सकता है जब सच्चे उत्तराखंडियों और लुटेरों के बीच सीधी टक्कर हो और यह आंदोलन, राज्य आंदोलन से भी बड़ा होना चाहिए।

मैं उस अधिकारी की बात सोचते - सोचते देहरादून स्थित "आम आदमी पार्टी" के दफ्तर पहुंचा, वहाँ कालेज के कुछ लड़के आप की सदस्यता ले रहे थे। … गजब का जज्बा दिखा उनमें। मैंने भी उनके साथ 10 रुपये की सदस्यता की पर्ची कटवाई। आफिस में बैठे एक हाथ से विकलांग युवक ने कहा, सर.। ये चंदे की रसीद है कुछ देना चाहो तो..... मैंने 501 रूपये निकाले और दे दिए.… इस आशा के साथ कि ये नये लड़के दो-दो, तीन-तीन पीढ़ियों के लुटेरे नेताओं से उत्तराखंड को बचाएंगे और तबाह और उजड़े उत्तराखंड से एक नया और समृद्ध उत्तराखंड बनायेंगे।

-------------------------------जय हिन्द, जय उत्तराखंड।--------------------------------------

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  • घुघूती बासुती, Jayprakash Panwar and 39 others like this.

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  • Rajeiv Panwar Rawatji bahut badiya margdarshan kar rahe hai aap uttarakhandvasio ka thank's and shub raatri....

  • 19 hours ago · Like

  • Yaswant Rana Uttarakhand ke badlaw ke liye rajjya me AAP ka hona aniwarya h...... So join aam aadmi party

  • 18 hours ago via mobile · Like

  • Manoj Semwal रावत जी आप भी इस उत्तराखणड मे उस क्रान्ति को उग्ररुप दे दो जो दिल्ली मे श्री अरविन्द केजरीवाल जी ने दी है हमारी शुभकामनाऐँ आपके साथ है.. जय भारत जय उत्तराखण्ड!

  • 6 hours ago via mobile · Like

  • Shoorvir Rawat You are great Rawat ji. I'm also a small part of this maschenrey and nothing can do. No one is thinking for this state and everybody wants fill their pocket. ....... for save to Uttarakhand a revolution must be there........ but, is it possible?

  • 2 hours ago · Like

Pushya Mitra

आने वाले महीने आम आदमी पार्टी के लिए बहुत कठिन हैं.


- उसे हर रोज साबित करना है कि कांग्रेस से मिले समर्थन का मतलब उसके भ्रष्टाचार के खिलाफ सुस्त पड़ जाना नहीं है.

- दिल्ली की आवाम से उसने जितने वादे किये थे, उसे पूरा करना है.

- सादगी और इमानदारी की मिसाल बनकर दिखाना है. पूरी टीम को सजग रखना है, क्योंकि वे लगातार मीडिया की निगाहों में है.

- लोकसभा चुनाव की तैयारियां भी करनी है, अच्छे उम्मीदवार भी चुनने हैं और यह भी साबित करना है कि वह भोटकटुआ नहीं बनने जा रहे हैं.


उनकी एक गलती आम आदमी की राजनीति के सपने का बैंड बजा सकती है.

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Girija Pathak shared Vks Gautam's album: मुजफ्फर नगर के दंगाइयों के खिलाफ.

सपा-यूपीए-भाजपा के नापाक गंठडोड़ के खिलाफ जंतर मंतर, दिल्ली में विरोध प्रदर्शन

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aibhavkumar Shinde

Everybody talks of ending reservation but nobody talks of ending Casteism...Why???


Here one must try to understand that Casteism is the root Cause & Reservation is it's affirmative effect to counter the injustice done due to Casteism. So those who don't have any guts to end Casteism has no right to speak on this subject.


Casteism & Injustice must be finished first then there will be no requirment of reservation to anybody

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BBC Hindi

छत्तीसगढ़ में मज़दूर एक ऐसा अस्पताल चलाते हैं जिसका इलाज पाने के लिए लोगों की लाइनें लगती हैं. ग़रीबों को यहां इतना अच्छा इलाज मिलता है कि लोग सरकारी अस्पताल तक नहीं जाते. पढ़िए ख़ास रिपोर्ट

http://bbc.in/19IOkKk

Like ·  · Share · 1,38574250 · 6 hours ago ·

Ashok GajbhiyeSanvidhankarte group

*यदि तीस करोड़ की संपत्ति की मालकिन शाज़िया इल्मी,

*एनजीओ में अरबो रूपये का चंदा लेने वाले मनीष सिसोदिया,

*बच्चो की लाखो रूपये की स्कूल फीस देने वाले केजरीवाल,

*बिज़नेस क्लास में सफ़र करने वाले और फाइव स्टार के सुइट्स में रुकने वाले कुमार विश्वास,

*अरबो की संपत्ति वाले शांति भूषण और प्रशांत भूषण,

*एयर डेक्कन जैसी एयरलाइन्स के मालिक गोपीनाथ,

और कई अरबपति लोग, इस देश के "आम आदमी" कहलाते हैं,

.

.

.

तो हे भगवान पूरे देश को "आम आदमी" बनादे

Like ·  · 18 hours ago ·

Ashutosh Kumar

दंगे गाँवों और शहरों में होते हैं , लेकिन दरारें दिलों और दिमागों में पड़ती हैं . बस्तियों में लगी आग एक दिन बुझ जाती है , लेकिन दिमागों की आग फैलती जाती है . ये आग अचानक नहीं फूटती . झूठे इतिहास और झूठे समाजशास्त्र की मदद से इसे धीरे -धीरे लहकाया जाता है . इसका मुकाबला अकादमिक वादों और बयानों से नहीं किया जा सकता. इसका एक ही जवाब है -जनसहयोग और जनप्रतिरोध का देशव्यापी आन्दोलन . हर किस्म की सम्प्रदायवादी सियासत पर जोरदार सियासी हमला . यह यहाँ -वहाँ इस -उस की लड़ाई नहीं , हिन्दोस्तान को फिर से हासिल करने की लड़ाई है . साथ आइये .--


मुजफ्फरनगर दंगों और बलात्कार के नामजद अभियुक्तों को गिरफ्तार करो !

दंगा पीडि़तों व विस्थापितों के तत्काल राहत और पुनर्वास की गारंटी करो !

पीडि़तों की मदद में आगे आयें ! राहत, पुनर्वास और न्याय के लिए संघर्ष में उनके साथ खड़े हों !


आइसा का देशव्यापी प्रतिरोध और राहत संग्रह अभियान


दोस्तो,

कड़कड़ाती ठंड में राहत कैम्पों में रह रहे मुजफ्फरनगर दंगा पीडि़तों के हालात से हमारी चेतना काँप जा रही है.


हजारों लोग जिन्होंने अपनो को मरते देखा, जिनपर बहशियाना बलात्कार हुए, जिनका घर-बार, रोजी-रोटी सब छिन गए वे राहत शिविरों का कठिन जीवन जीने के लिए मजबूर हैं. ठंड से उपचार के अभाव में शाहपुर, बुधना, और मलारपुर आदि शिविरों में 34 बच्चे मर चुके हैं, पर दंगा रोकने में विफल उत्तरप्रदेश सरकार आज न सिर्फ राहत शिविरों के दर्दनाक हालात से आंखे मूंदे हुये है बल्कि उसने पीड़ितों को राजनीतिक षड्यंत्रकारी घोषित कर दिया है और उसके आला अफसर ठंढ से हो रही मौतों पर बेशर्म बयान दे रहे हैं.


एक तरफ जहाँ शिविरों में हो रहे बलात्कार और हत्या के मामलों में प्राथमिकी दर्ज होने के बावजूद अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं वहीं नरेद्र मोदी दंगों के आरोपी विधायकों का सार्वजनिक सम्मान करते चल रहे हैं.


अखिलेश सरकार ने राहत शिविरों से दंगा पीडि़तों को जबरन हटाने का आदेश दे दिया है. दंगा पीडि़तों पर दबाव बनाया जा रहा है कि 5 लाख रुपये लेकर अपने गांव-घर जाने के बजाय वे कहीं और चले जाएँ. शपथ दिलाया जा रहा है कि 'मैं और मेरे परिवार के सदस्य अपने ग्राम में हुई हिंसात्मक घटनाओं से भयाक्रांत होकर अपना घर छोड़कर आये हैं तथा इन परिस्थितियों में अब अपने मूल गांव नहीं लौटेंगे. 'शिविर लगाने के लिए हजारों दंगा पीडि़तों पर सरकारी वन विभाग ने जमीन कब्जाने का मुकदमा दर्ज कर दिया है।


राज्य सरकार के मंत्रियों की 10 सदस्यीय कमेटी ने हालात को 'सामान्य' बताते हुए शिविरों के संचालन के लिए मदरसों को कटघरे में खड़ा कर दिया है और जांच के लिए बनायी गयी एस.आई.टी. खानापूरी करने में ऐसी मशगूल है कि पीड़ितों से बात करने की उसे फुर्सत नहीं.


संकट की इस घडी में हमें और आपको मुजफ्फरनगर के इन लोगों के न्याय-संघर्ष में साथ खड़ा होना होगा.

आइये, हम दंगा -बलात्कार के अपराधियों को तत्काल गिरफ्तार करने और सजा देने की मांग करते हुए विस्थापित व पीडि़तों के


राहत व पुनर्वास के लिए मजबूत आवाज बुलंद करें.


आइसा द्वारा चलाये जा रहे देशव्यापी राहत संग्रह अभियान से जुड़कर आप अपनी मदद इन तक जरूर पहुचाएं ताकि उन्हें गर्म कपड़े, कम्बल, जलावन, भोजन आदि व्यवस्था में सहयोग मिल सके. तीसरी बार राहत की खेप लेकर हम जल्द ही उन के बीच होंगे.



ALL INDIA STUDENTS' ASSOCIATION (AISA)

AISA - All India Students' Association

Political Party

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Girija Pathak shared Kas Turi's album: Protests in the aftermath of Madhyamgram rape-murder.

The Madhyamgram rape-murder incident and its aftermath - abduction of the victim's body and attempts by police to forcibly cremate it against the parents' consent - the sheer inhumanness, brutality and indignity of it - the role of the police and administration - has shaken the conscience of the society. We are all shattered. Yet we will not let the murderers, culprits and colluders get away. We mourn her death and we will fight till the very end for justice. Not just for her, the 16-year old girl of a migrant worker. But for all the victims of patriarchy, state terror and state apathy. Some of the upcoming programs are below. Appeal to all to join in large numbers. This can't go on. It must STOP. WE must make it stop. Hand in hand. 3rd jan - AIPWA national level deputation to Women's Commission and team visit with girls' parents by AIPWA GS Meena Tiwari, State secretary Chaitali Sen and others 4th Jan - Press Conference at 3 pm, Street Corner at 4 pm in front of Moulali Dargah. Addressed by Kavita Krishnan, Meena Tiwari, women, student and worker comrades. AISA-AIPWA protest demonstration in front of Banga Bhavan in Delhi. 5th Jan - 1 pm to 5 pm Mass gathering, sit-in demonstration + street meeting at Madhyamgram 4-point crossing. To be addressed by Kavita Krishnan, Meena Tiwari among others. 6th Jan - All-India Protest Day. Observe this as a black day everywhere in memory of the Madhyamgram victim and all other victims of gender violence. 7th Jan - Student protest rally, Jadavpur University 9th Jan - Mass protest rally to Dharmatala called by CPIML-Liberation. Meet at College Sq at 1 pm The program will go on.......We will see the end of it.

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Navbharat Times Online

बाप ने रेप किया, पंचायत ने पति बना दिया!


पहले बाप ने अपनी नाबालिग बेटी से रेप किया, फिर जब मामला पंचायत तक पहुंचा तो पंचों ने रेपिस्ट बाप को लड़की का पति बना दिया। मामला यूपी का है। अब कहां सुरक्षित रहेंगी बेटियां?


पढ़ें खबर- http://nbt.in/C7LZ7Y

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BBC Hindi

आम आदमी पार्टी के नेता योगेन्द्र यादव का सपना है कि आप नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भारत के प्रधानमंत्री बनें. साथ में वो ये भी कहते हैं कि इसके लिए पार्टी को अपनी ताक़त का सही मूल्यांकन करना होगा. आपको क्या लगता है नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल में से कौन बेहतर प्रधानमंत्री साबित हो सकता है.

http://bbc.in/193FdDa

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Mulnibasi Samiti Sundarban

CULTURE


era mod kai, ganja kai, chullu kai, abar rape o kre tabuO era sadhu, baba, mohan. manus chute jai eder ka6e punnir asai.

obak lage ei saniskriti ke.

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BBC Hindi

संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए भारत में विकसित क्रायोजेनिक रॉकेट का परीक्षण किया जा है. भारत के लिए ज़रूरी क्यों है ये रॉकेट? पढ़िए इस रिपोर्ट में.

http://bbc.in/JTWBhL


‪#‎ISRO‬

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नामवर सिंह हिंदी साहित्य के नेल्सन मंडेला हैं

January 5, 2014 at 8:50am

   Jagadishwar Chaturvedi      

फेसबुक पर मैंने जब नामवर सिंह को हिंदी साहित्य का नेल्सन मंडेला कहा तो हमारे कुछ घनिष्ठ मित्र नाराज हो गए। मैं अपनी राय को स्पष्ट करने के लिहाज से यह लेख लिख रहा हूँ। पहले वह जानें कि फेसबुक पर क्या हुआ ?

मैंने नेल्सन मंडेला की मौत पर मैंने लिखा-

'आज सुबह खबर आई कि नेल्सन मंडेला नहीं रहे। मन को विश्वास ही नहीं हुआ। मंडेला कभी मर नहीं सकता। यह बात छात्र जीवन से मन में बैठी हुई है।हाल ही में उनको जब अस्पताल में भर्ती कराया तब भी मन नहीं माना और यह बात मन में आ रही थी कि मंडेला को कुछ नहीं होगा। पता नहीं क्यों मौत हमेशा मंडेला के सामने हार मानती रही।मंडेला ने अपने कर्म और त्याग से जो चीजें हासिल की हैं। उसने त्याग और कुर्बानी को आधुनिकयुग का बेशकीमती मूल्य बनाया है।

  मंडेला की जनप्रियता में किसी मीडिया या विज्ञापन एजेंसी या कारपोरेट घरानों का हाथ नहीं था। मंडेला ने खुद इतनी शक्ति अर्जित कर ली थी कि उनका हर वाक्य कीमती होता था। वे खेल के मैदान में जाएं या संगीत समारोह में जाएं राजनीतिक रंगमंच पर हों या सैलीब्रिटी लोगों के बीच में हों। मंडेला इतने बड़े और महान थे कि सब उनसे मिलकर धन्य महसूस करते थे।

मंडेला पहले ऐसे नायक हैं जिसके लिए कोई चीज अछूत नहीं थी। वे किसी चीज से दूर नहीं थे।वे अछूत जन्मे लेकिन सबको अछूतपन से मुक्त करके मरे।मंडेला बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे। फुटबाल, सिनेमा, संगीत,गायन,राजनीति सबको विभिन्न रंगतों के साथ जानते और महसूस करते थे। उनके लिए आजादी सबसे बड़ा मूल्य था।

मंडेला की जनप्रियता का आलम यह था कि वे सभी बड़े फिल्मी हस्तियों से लेकर खिलाडियों तक लोकप्रिय थे, मंडेला का सहयोग या आशीर्वाद पाने के लिए सभी सैलीब्रिटी तरसते थे। मंडेला का कद स्क्रीन के कद से बड़ा।आमतौर पर नेताओं का कद स्क्रीन में फिट हो जाता है। मंडेला का कद किसी स्क्रीन में फिट नहीं बैठता था। स्क्रीन के मिथ को मंडेला ने तोड़ा।

त्याग,संघर्ष और मानवता के प्रति अगाध प्रेम ने मंडेला को एक साधारण नागरिक से असाधारण नायक बना दिया। मंडेला के जीवन से हम सब बहुत कुछ सीख सकते हैं ।

खासकर भारत में जिस तरह की घृणा की बयार समाज में बह रही है। उससे मुक्ति के लिए मंडेला हमारे लिए आदर्श हैं। रंगभेदीय और जातीय विद्वेष को किस तरह प्रेम और भाईचारे साथ खत्म कर सकते हैं,यह चीज हमें मंडेला से सीखनी चाहिए।'

नामवर सिंह की नेल्सन मंडेला के साथ तुलना करने के कारण हमारे अनेक फेसबुक मित्र नाराज हैं। मैंने जो लिखा है मैं उस पर कायम हूँ। मैंने फेसबुक पर लिखा-

'कल तक जो हिंदी लेखक मंडेला पर प्रशंसात्मक लिख रहे थे ।वैचारिक सहिष्णुता का परिचय दे रहे थे । काले-गोरे के भेद के परे जाकर मंडेला को देख रहे थे।वही लेखक नामवर सिंह को इसी नजरिए से क्यों नहीं देख पाते ? नामवरसिंह के लोकतांत्रिक व्यक्तित्व की यह खूबी है कि वे विचारधारा-दल आदि से परे जाकर "लेखक सबका होता है", नजरिए से सबके साथ व्यवहार करते हैं। हमारे यह कैसे पैमाने हैं जो मंडेला के लिए अलग और नामवर सिंह के लिए अलग !!नामवर हमारे मंडेला हैं।'

   इस पर कुलदीप कुमार ने लिखा-'This is the most idiotic statement I have ever come across in my life. "Namwar Singh is our Mandela". You have no right to insult Mandela's memory in this manner. I strongly protest and object. I do hope you will withdraw your words and will try to maintain some balance.' कुलदीप कुमार ने फिर अपनी वॉल पर लिखा ' जगदीश्वर चतुर्वेदी ने आज फेसबुक पर एक हैरतअंगेज बयान दिया है: "नामवर सिंह हमारे मंडेला हैं". आशा है फेसबुक पर उपस्थित लोग इसका नोटिस लेंगे और युगपुरुष नेल्सन मंडेला की स्मृति का अपमान करने वाले इस बयान की भर्सना करेंगे .'निराला' के शब्दों को याद करें : "कहाँ बिहारीलाल और कहाँ दुलारेलाल .....", बाद में कुलदीप कुमार ने यह भी लिखा-

'Sorry, Jagadishwar Chaturvediji, I flew off the handle because you compared a man like Nelson Mandela, who spent 27 golden years of his youth in the most horrible dungeons of the South African prisons, with a man whose sacrifices must be known only to you while the world at large is completely in the dark about them. Anyway, virtual space is free-for-all where anybody can say anything about anybody. And in this, you are only emulating your own Mandela who also has become famous for saying one thing today and completely opposite thing tomorrow. I have not been able to understand even modernism, what to say about post-modernism and other new fangled theories about literature and media etc. Perhaps Namwar Singh is really our Karl Marx, Ulayanov Lenin, Mao Ze Dong, Mahatma Gandhi, Martin Luther King, Che Guevara, Nelson Mandela and Yasser Arafat rolled into one. You can compare him with anybody. You are well within your rights. In fact, I withdraw my strong words about your post. If your post is "idiotic", it is so strictly and profoundly in the Dostoyevskyian sense.'

चन्द्रप्रकाश झा ने लिखा 'AAPKO ISKE LIYE PUBLICLY MAAPHI MAANGNI CHAHIYE , AAP KE IS VAKTAVY SE HAM SAB SHARMINDA HAIN ' ,जबरीमल पारख ने लिखा ' जगदीश्वर चतुर्वेदी खुद अपने कहे को गंभीरता से नहीं लेते आप लेते हैं. बधाई हो.'

मैंने फेसबुक पर लिखा था ' हिंदी के अधिकांश वाम लेखक अपनी दलीय विचारधारा के लेखकों के होकर रह गए हैं। यह लेखक का अवसान है। लेखक जब विचारधारा के बंधन में बंधकर रह जाए ,उसी में जीने लगे,अपनी विचारधारा के ही लेखकों से मिले-जुले तो इससे लेखक के जीवन में गतिरोध पैदा हो जाता है। बड़ा लेखक वह है जो विचारधारा के दायरों से निकलकर मानवीय संबंधों के दायरे में जीना सीखे।

लेखक का घर सभी वर्ग के लोगों और लेखकों के लिए वैसे ही खुला रहना चाहिए जैसे मैक्सिम गोर्की का खुला रहता था। 1917 की सोवियत अक्टूबर क्रांति के बाद आम जनता की शिकायतें,लेखकों-वैज्ञानिकों आदि की शिकायतों और जरुरतों की पूर्ति के लिए गोर्की का घर सबके लिए खुला रहता था, लोग गोर्की के पास शिकायतें लेकर आते थे और फिर सप्ताह में एकदिन सीधे शिकायतों का थोक बस्ता वे लेनिन को सौंप आते थे। लेनिन उनके लाए पत्रों पर गंभीरता से एक्शन लेते थे।'

   पप्पूयादव की पुस्तक के नामवर सिंह द्वारा किए लोकार्पण पर मैंने कई स्टेटस लिखे थे,वे ये हैं,

  'मार्क्सवादी आलोचक नामवर सिंह ने पुस्तक लोकार्पण को अर्थहीन और मीडिया इवेंट बनाया है। मौजूदा लोकतंत्र में मीडिया इवेंट बनाना सबसे बड़ी बात है और नामवर सिंह ने यह काम बड़े कौशल और उदारता के साथ किया है।'

'नामवर सिंह का कद किसी लेखक या माफिया या अपराधी या राजा या संघी की किताब के उनके द्वारा लोकार्पण से तय नहीं हो सकता । ये सब साहित्य के घास-फूंस हैं।'

  'नामवर सिंह हम सबकी कमजोरी है और ताकत भी है। हम सब उनको बेइन्तिहा प्यार भी करते हैं। नामवर ऐसा नाम है जिसे उसके दुश्मन भी प्यार करते हैं ।'

  'नामवर सिंह हिंदी का सबसे बडा और मंहगा ब्राण्ड है। नामवर जैसी ख्याति,क्षमता और लोच पैदा करना हिंदी में किसी के लिए संभव नहीं है।'

'  "कविता के नए प्रतिमान "के प्रकाशन के साथ नामवर सिंह ने अपना वाम विचार बैंकखाता बंद कर दिया था। हम सबकी मुश्किल है कि हम अब भी उनमें वाम रंग देखते हैं। नामवर सिंह वाम नहीं हैं, लोकतांत्रिक हैं ।'

  'व्यक्ति की पहचान के कई स्तर होते हैं। उसी तरह लेखक की पहचान के भी कई स्तर हैं। नामवर सिंह लंबे समय से खुले उदार विचारों की हिमायत करते रहे हैं। वामपंथी झुकाव के बावजूद वे हमेशा सत्ता के साथ रहे हैं लेकिन लेखक के तौर पर उन्होंने कभी सत्ताधारियों के पक्ष में नहीं लिखा।

मेरे लिए नामवर के लिखे का महत्व है,बोले का नहीं । लेखक के नाते नामवरसिंह तब ही सामने आते हैं जब वह किसी पर लिखते हैं । हमें वाचिक-दुनियादार नामवर और आलोचक-लेखक नामवर में अंतर करना चाहिए।'

'फेसबुक पर आज पप्पूयादव की आत्मकथा के आयोजन में नामवर सिंह के जाने को लेकर मित्रलोग नाराज हैं! मित्रो, नामवरजी मित्र के मित्र हैं ! किताब के सबसे पहले मित्र हैं! किताब किसी की हो उनको बुलाया जाएगा तो वे मना नहीं करते । पुस्तक के साथ उनकी मित्रता लेखक की विचारधारा या पार्टी से ऊपर है । वे आलोचक पीछे और किताब मित्र पहले हैं !!'

उपरोक्त बातें फेसबुक पर मित्रों के साथ संवाद के क्रम में ही लिखी गयीं और मित्रों ने उदारतावश मेरे कथन पर अपने कमेंटस दिए हैं । मैं इस बहस को आगे बढ़ाना चाहता हूँ इसलिए यह लेख लिख रहा हूँ। इस लेख का मकसद किसी मित्र की आलोचना करना नहीं है।

इस लेख को लिखने का एक मकसद और भी है कि मुझे लिखने के पहले गुरुदेव याद बहुत आते हैं। यह सच है मैं उनके 'प्रिय सुपात्रों' में नहीं आता । मैं उनसे पढ़ा हूँ ,और ऋणी हूँ। सवाल उठा है  नामवर सिंह में ऐसा क्या है जिसके कारण उनकी मंडेला के साथ तुलना की जाए ? वे तो महान भी नहीं हैं ।यह सच है वे महान नहीं हैं। यह भी सच है कि उनसे अनेक सुधीजन नाराज रहते हैं, और उनकी नाराजगी के अपने –अपने कारण हैं । जितनी एक व्यक्ति में बुराईयां हो सकती हैं वे किसी हद तक नामवरजी में भी हैं ।मंडेला में भी थीं।

व्यक्ति का मूल्यांकन बुराईयों के आधार नहीं किया जा सकता। किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन करते समय उसकी अच्छाईयों को केन्द्र में रखा जाना चाहिए। मैं निजी तौर पर नामवरजी का अकादमिक कर्जगीर हूँ । मुझे उनसे न तो कोई लाभ मिला है और नहीं उन्होंने कभी मेरे लिए पक्षपात किया है और नहीं कहीं उनकी सिफारिश से मुझे नौकरी ही मिली है। मेरा उनसे विलक्षण संबंध है। मैं न उनका कभी करीबी था और न कभी उनसे दूर था । मैं जितना उनका स्वभाव जानता हूँ,उन्होंने कभी भी मेरी लिखी कोई किताब नहीं पढ़ी और न मैंने कभी उनसे किसी पुस्तक का लोकार्पण कराया और न उनसे कभी कहा कि मेरी पुस्तकें सरकारी खरीद में बिकवा दो। मेरा उनसे निजी तौर पर शिक्षक के नाते रागात्मक संबंध रहा है।

  नामवर सिंह महान नहीं हैं। वे सामान्य मनुष्य हैं। सामान्य मनुष्य को जो करना चाहिए वही वे जीवनभर करते रहे हैं ।व्यक्ति को सामान्य से महान बनाने का काम तो उसके काम करते हैं। नेल्सन मंडेला भी सामान्य मनुष्य थे,उनको महान तो उनके कर्मों और विचारों ने बनाया । मंडेला के व्यक्तित्व के अनेक गुण हैं जो अनेक महान लोगों में देखने को मिल जाएंगे।

मंडेला को नए युग का क्रांतिकारी उदारतावादी कहना ज्यादा समीचीन होगा। अफ्रीकी समाज में सामाजिक परिवर्तन का नया और सटीक पैराडाइम बनाना असामान्य काम था।  उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी जनता को नस्लवादी शोषण और औपनिवेशिक गुलामी से मुक्ति दिलाई। मुक्ति के नए मानवाधिकार राजनीतिक पैराडाइम में समूचे राजनीतिक परिदृश्य को स्थानांतरित किया।

  उल्लेखनीय है दक्षिण अफ्रीकी समाज में जनजातीय चेतना और क्रांतिकारी चेतनाओं का सीधे शोषकवर्गों के साथ टकराव था। शोषकवर्गों के नस्लवादी शासन से निकलकर दक्षिण अफ्रीका किस दिशा में जाए इसे लेकर व्यापक मतभेद थे । खासकर दक्षिण अफ्रीका की कम्युनिस्ट पार्टी और अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के बीच में स्वाधीनता संघर्ष के दौरान जिस तरह की घनिष्ठता थी उसमें नए शासन को कम्युनिस्टों से पृथक करके रखना संभव नहीं था। कम्युनिस्टों की लंबे समय से मांग थी कि वे यदि शासन में आते हैं तो बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संपत्ति का राष्ट्रीयकरण करेंगे। जिनलोगों ने जुल्म किए हैं उनको दण्डित करेंगे । दूसरी ओर जनजातीय समूहों में भी हथियारबंद समूह थे जो पुरानी परंपराओं को बचाते हुए दक्षिण अफ्रीका को पुराने जनजातीय मार्ग पर ले जाना चाहते थे। इन दोनों के वैचारिक और सशस्त्र समूहों के बीच में दक्षिण अफ्रीका में उदार बुर्जुआ परंपरा बहुत ही क्षीण रुप में मौजूद थी।

दक्षिण अफ्रीका में नए दौर की मांग थी कि उदार बुर्जुआ परंपराओं और मूल्यों का विकास किया जाय। बुर्जुआ सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक संरचनाओं का निर्माण किया जाय। क्रांतिकारी-जनजातीय अतिवादी ध्रुवों से राजनीति को स्थानांतरित करके उदार बुर्जुआ पैराडाइम में लाया जाय ।यह काम बेहद कठिन और मुश्किलों भरा था। इसके लिए लंबी छलांग की जरुरत थी और यही वह बिंदु है जहां नेल्सन मंडेला ने नायक की भूमिका अदा की। क्रांतिकारी-जनजातीय वैचारिक ध्रुवों से छलांग लगाकर मुक्ति के मानवाधिकार पैराडाइम को निर्मित किया ।

     सामाजिक परिवर्तन के लिए छलांग जरुरी होती है यह बात फ्रेडरिक एंगेल्स ने सबसे पहले रेखांकित की थी और मंडेला इसे भली-भांति जानते थे। मंडेला के सामने सारी दुनिया के क्रांतिकारी और समाजवादी समाज व्यवस्थाओं का गाढा अनुभव था। वे समाजवादी व्यवस्था के पराभव को भी देख चुके थे और जानते थे कि किन कारणों से समाजवादी व्यवस्था गिरी है ।

  मंडेला ने बताया कि नया दौर उदार बुर्जुआ मूल्यों के विकास की मांग करता है । यही नया बिंदु है जहां पर वे अपने को लेनिन-माओ से अलगाते हैं और मार्क्स-गांधी के करीब आते हैं । बीसवीं सदी में अनेक देशों का सामंती या जनजातीय समाजों से सीधे समाजवाद में रुपान्तरण हुआ । यह रुपान्तरण अस्वाभाविक ढ़ंग से हुआ । कबीलाई या सामंती जीवन व्यवस्था से समाजवाद में सीधी छलांग का दुष्परिणाम था कि उदार बुर्जुआ मूल्यों को वहां लोग जान ही नहीं पाए।

कबीलाई-सामंती समाजों में आधुनिक अर्थ में लोकतंत्र नहीं होता यही वजह है कि जिन देशों में समाजवाद आया वहां पर उसने लोकतंत्र विरोधी रुख अख्तियार किया ।सर्वहारा अधिनायकवाद के नाम पर कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही स्थापित की गयी और बडी संख्या में आम जनता को उत्पीडन-दमन का शिकार बनाया गया।बिना उदार पूंजीवादी मूल्यों का विकास किए बिना सर्वहारा के अधिनायकवाद की स्थापना की अवधारणा का  मार्क्स–एंगेल्स के नजरिए या कम्युनिस्ट घोषणापत्र से कोई संबंध नहीं है ।

मार्क्सवाद का अर्थ अन्य के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन नहीं है । मार्क्सवाद मुक्ति का विज्ञान है और इसकी बुनियादी  लक्ष्य है 'वर्चस्व' और 'शोषण' के सभी रुपों का खात्मा करना । समाज में शोषक-शोषित के संबंधों का खात्मा करने का अर्थ यह नहीं है कि शोषकवर्ग के लोगों को शारीरिकतौर पर खत्म किया जाय । बल्कि इस संबंध को खत्म करने का अर्थ है कि समाज में स्वाभाविक लोकतांत्रिक विकास प्रक्रियाओं के जरिए सामाजिक परिवर्तन को संभव बनाया जाय । जिस तरह शोषकवर्ग एकदिन में पैदा नहीं होता वैसे ही उसका खात्मा भी रातों-रात संभव नहीं है। शोषक सत्ता को क्रमशः जीवन के सभी स्तरों से खत्म किया जाय और यह काम धैर्य के साथ और जनता का दिल जीतकर किया जाय । समाजवादी देशों में विकास के उच्च रुपों का निर्माण हुआ लेकिन जनता की शिरकत के बिना और राज्यतंत्र के दमन-उत्पीडन के जरिए। यही वह प्रस्थान बिंदु है जहां पर नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में कम्युनिस्टों के साथ संघर्ष करते हुए जो कार्यक्रम स्वीकार किया था ,उस कार्यक्रम को स्वाधीनता मिलने के साथ  बदला । इस बदलाव की प्रक्रिया समानांतर चली।

   मसलन् एक तरफ गोरों के साथ समझौते की शर्तें तय हो रही थीं वहीं दूसरी ओर दक्षिण अफ्रीका की कम्युनिस्ट पार्टी और अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के कार्यक्रम और राजनीतिक कार्यक्रम में बदलाव किया गया । नेल्सन मंडेला का सबसे बड़ा योगदान है कि मानवाधिकारों के आधार पर दक्षिण अफ्रीकी समाज का निर्माण करो।

  मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य के कारण नए स्वतंत्र दक्षिण अफ्रीका के निर्माण के लिए नए मानकों, मूल्यों और सामाजिक संबंधों को निर्मित करने की दिशा में विचार-विमर्श शुरु हुआ । नेल्सन मंडेला का महान योगदान यही है कि वे पुराने वैचारिक सोच-विचार-एक्शन से सभी दलों को बाहर लेकर आते हैं और सभी दलों को नए सिरे से कार्यक्रम बनाने के लिए मजबूर करते हैं ।

 नेल्सन मंडेला 1994-99तक दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने।पहली लोकतांत्रिक सरकार बनायी । इस सरकार का पहला मुख्य लक्ष्य था नस्लभेदीय राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक संरचनाओं को नष्ट करना ।मंडेला सरकार का लक्ष्य था नस्लभेदीय संरचनाओं को नष्ट करके उनके स्थान पर समानतावादी सामाजिक-राजनीतिक संरचनाओं का निर्माण करना।महज पांच सालों में यह काम उन्होंने सभी स्तरों पर संपन्न किया । इसके अलावा गरीबी,भुखमरी,हिंसा,अपराध आदि से जुड़ी समस्याओं को भी केन्द्र में रखा गया था लेकिन नस्लभेदीय संरचनाओं को खत्म करने पर सबसे पहले मुख्य जोर दिया गया । मंडेला सरकार के  पांच साल के शासन के बाद गरीबी,भुखमरी,हिंसा,स्वास्थ्य और शिक्षा को केन्द्र में रखा गया है। बडे पैमाने पर भूमिसुधार कार्यक्रमों को लागू किया गया जिससे आम नागरिकों को गरीबी के खिलाफ लड़ने में मदद मिले ।  

अब जरा ठहरकर हिंदी में नामवर सिंह फिनोमिना, भूमिका और योगदान पर विचार करें। यह सच है नामवर सिंह का कद नेल्सन मंडेला से तुलना योग्य नहीं है। मंडेला एक राजनीतिक नेता हैं, और नामवर सिंह लेखक हैं । जिस तरह मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य में मंडेला पर चर्चाएं हो रही हैं उसी तरह मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य में नामवर सिंह पर चर्चाएं होनी चाहिए।

मंडेला हमारे लिए एक रुपक है। काले लोगों के नायक के रुप में मंडेला ने जो यश अर्जित किया और न्यायपूर्ण समाज के संस्थापक नायक की पहचान बनायी। ठीक यही काम अपने तरीके से नामवर सिंह ने आलोचना के जरिए हिंदी भाषा और साहित्य के लिए किया है। उनके लिखे की हमने तीखी आलोचना अन्यत्र की है ,लेकिन उनके सकारात्मक योगदान पर भी हमारी नजर होनी चाहिए।

हिंदी साहित्य में  अनेक प्रोफेसर हैं।अनेक आलोचक हैं। लेकिन अपने बयानों और लेखन और उपस्थिति से हिंदी के परिवेश में सक्रियता और जोश पैदा करने का जो काम नामवर सिंह ने किया है वह विरल है । आज भी वे फेसबुक पर नहीं हैं लेकिन उनके चाहने वाले सैंकडों लोग फेसबुक पर हैं। वे बूढ़े हो गए हैं ,कम बोलते हैं, लेकिन जनता को गोष्ठी में खींचकर लाने में वे आज भी सब पर भारी पड़ते हैं । सब लेखक चाहते हैं कि एकबार नामवर उन पर कुछ बोल दें । नए लेखकों के लिए उनके प्रशंसा में कहे गए कथनों का बड़ा महत्व है ।मैं तो आज तक तरस रहा हूँ कि वे मेरे बारे में एक अच्छा वाक्य कह दें। नए लेखक लंबे समय तक उनकी कही बातों के नशे में रहते हैं । कथन के नशे का नायक बनना आसान काम नहीं है। मंडेला और उनमें यह विलक्षण संयोग है।

मंडेला कथन के नायक हैं और नामवर भी । मंडेला सबसे मिलते हैं और बिना किसी पूर्वाग्रह के मिलते हैं,नामवर सिंह भी यही काम करते हैं । मंडेला से मिलकर लोग भावविभोर होकर लौटते हैं और नामवर सिंह से मिलकर भी अपूर्व सुख मिलता है। मंडेला और उनके बीच में सादगी भी एक सेतु है।

दोनों का मार्क्सवाद और कम्युनिस्ट पार्टी से संबंध रहा है । दोनों ने एक अवधि के बाद मार्क्सवाद के दायरे के बाहर निकलकर काम किया और सोचा है ।दोनों की मार्क्सवाद के प्रति पुख्ता,सर्जनात्मक और पूर्वाग्रहरहित धारणाएं हैं ।दोनों के लिए मार्क्सवाद सामाजिक परिवर्तन का विज्ञान है।विश्व दृष्टिकोण है ।  दोनों ने अपने से भिन्न विचारधारा के लेखकों-कलाकारों-राजनेताओं आदि के कार्यक्रमों-पुस्तक समर्पण-जलसे आदि में जाकर उदारमना के रुप में ख्याति पायी है । दोनों ने मार्क्सवाद के दायरे के बाहर निकलकर मानवाधिकार के परिप्रेक्ष्य को अपने आचार- व्यवहार का हिस्सा बनाया है ।

मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य में साहित्य को देखने की मार्क्सवादियों को आदत नहीं है। हमारी आलोचना ने मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य विकसित नहीं किया है ।नामवर सिंह द्वारा वर्णित 'दूसरी परंपरा' ,'वर्ग' की बजाय 'मनुष्य' को केन्द्र में रखती है। नामवर सिंह की व्यापक अकादमिक अपील और सामाजिक-साहित्यिक स्वीकृति का आधार भी यही है। 'दूसरी परंपरा' मानवाधिकार परंपरा है ।

मानवाधिकार के परिप्रेक्ष्य में साहित्य में काम करने का अर्थ है उपेक्षित विषयों, सामाजिक समूहों , लेखकों आदि की ओर लौटना।लेखकों को सामाजिक-साहित्यिक शिरकत के लिए प्रेरित करना । नामवर सिंह ने अपने भाषणों ,पुस्तक लोकार्पण और लेखों के जरिए यह काम खूब किया है। लेखक के लिए प्रोत्साहित करना, उत्साह वर्धन करना मूलतः मानवाधिकार के साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में आता है ।

समस्या यह है कि हम सभी सब्जैक्टिविटी के शिकार हैं । लेखक या कृति या साहित्यादोलनों पर बातें करते समय आत्मग्रस्त रहते हैं। साहित्य और मानवीय जीवन में सब्जैक्टिविटी की भूमिका है लेकिन इस भूमिका को जितना कम कर सकें उतना ही बेहतर होगा । नामवर सिंह पर बातें करते समय भी सब्जैक्टिविटी रहती है ।

   नामवर सिंह के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है उनके वक्तव्य और उदार मानवीय व्यवहार। वे जब भी कोई बयान देते हैं तो उस पर सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान जाता है और साहित्यकारों में उस पर व्यापक चर्चा होती है । ये हमेशा 'मनुष्य के भविष्य' को ध्यान में बयान देते हैं । लेखकों पर दिए बयानों पर सबसे ज्यादा विवाद हुआ है और सबसे ज्यादा उनकी आलोचनाएं भी हुई हैं। वस्तुगत तौर पर देखें तो इस तरह के बयानों को प्रोत्साहन बयान कहें तो बेहतर होगा। ये संबंधित साहित्यकार के साहित्येतर मनोभावों और लक्ष्यों को प्रेरित करते हैं । इन बयानों में कहीं -कहीं द्विवेदीजी की तरह ही 'उच्छन्न भावुकता' ,आत्मविश्वास और सत्यनिष्ठा भी है।

दूसरी परंपरा की धुरी है 'पीड़ा में आशा' की खोज करना, यह मंडेला के नजरिए की भी धुरी है। इसी पहलू को नामवर सिंह ने भी काफी पहले 'दूसरी परम्परा की खोज' में रेखांकित किया था। यह परंपरा जब अपने को कबीर से जोड़ती है तो मूलतः साहित्य के मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य को ही सामने लाती है ।

   आलोचना की बहसों में मानवाधिकार खो गए और हजारीप्रसाद द्विवेदी बनाम रामविलास शर्मा या रामचन्द्र शुक्ल आदि केन्द्र में आ गए । जबकि 'दूसरी परंपरा' का लक्ष्य है 'जागना और विवेक के साथ सोचना'।

'दूसरी परम्परा की खोज' का मकसद है साहित्य के मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य का निर्माण करना । भारत में मानवाधिकारों के साथ जोड़कर या उनके नजरिए से चीजों, घटनाओं, कृतिकार आदि को देखने या विवेचित करने की परंपरा नहीं है । वे 'परम्परा की खोज' के लिए इस कृति को लिखते हैं ।

संयोग देखें परम्परा की खोज के नाम पर जो मसले किताब में उठाए गए वे मानवाधिकार के सामयिक मसले हैं । 'दूसरी परम्परा' उनकी है जो आलोचना में उपेक्षित रहे हैं। दूसरी परंपरा 'खोज' पर जोर देती है,'निर्णय' सुनाने पर नहीं । यह खुली परम्परा है ।आप इसका यथासंभव दिशा में विकास कर सकते हैं । इसमें लेखक का साहित्यिक और गैर-साहित्यिक कर्म शामिल है। मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य की बुनियादी विशेषता है हर चीज को अन्तर्विरोधों की कसौटी पर परखना और विश्लेषित करना । अन्तर्विरोधों के बिना कोई भी विषय नहीं खुलता । मानवाधिकारवादी में आत्मविश्वास और सत्यनिष्ठा होनी जरुरी है। कबीर और अन्य लेखकों की ओर नामवर सिंह ने इसी बुनियादी परिप्रेक्ष्य के आधार पर विचार किया है ।

  मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य में वह सारा साहित्य आएगा जो सभी किस्म के भेदभाव और वर्चस्व का विरोधी हो,आत्म-सम्मान पर जोर देता हो, सामाजिक स्वत्व-रक्षा के सवालों पर हमें सोचने को उदबुद्ध करे।अन्याय का प्रतिवाद करे। मानवाधिकारों के बारे में सबके प्रति समान नजरिया रखता हो। स्त्री,अल्पसंख्यक और दलितों के हकों की हिमायत करे। सभी भाषा और बोलियों को समान अधिकार दे। शांति के पक्ष और युद्ध के विरोध में लिखा गया हो। साम्प्रदायिकता, पृथकतावाद,आतंकवाद आदि के विरोध में लिखी रचनाएं भी मानवाधिकार के परिप्रेक्ष्य में आएंगी।


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  • Priyankar Paliwal, Gyanendra Pandey, Ashutosh Singh and 14 others like this.

  • Priyankar Paliwal आपको अपनी राय रखने का पूरा हक है . रही बात 'ईडियॉसी' की तो सभी विद्वान जीवन में कभी न कभी करते ही हैं. दूसरों को नसीहत देने वाले भी .

  • 7 hours ago · Like · 2

  • Navneet Bedar इस तरह की तुलनाएं हमेशा विवाद पैदा करने के लिए ही की जाती हैं और अगर लोग इस पर उखड़ते हैं तो विवाद पैदा करने वाले सफल होते हैं। दरअसल, इस तरह की तुलनाएं करना मुझे एक किस्‍म की राजनीति लगती है जो हिन्‍दी विभागों में असरे से होती आई है। ये एक किस्‍म का '...See More

  • 7 hours ago · Like · 2

  • Shripati Pandey Aapko Nelson Mandela nahin America ka Barack Obama kahna chahiye tha .

  • 7 hours ago · Like · 2

  • Jagadishwar Chaturvedi नवनीतजी, कब तक तुलना के पुराने रुपों में फंसे रहोगे, थोडा बाहर भी निकलो तो कुछ बात बने।

  • 7 hours ago · Edited · Like · 1

  • Jagadishwar Chaturvedi ओबामा कोई ऐसा काम करे तो देखें साहित्य में किससे तुलना करें ।

  • 7 hours ago · Edited · Like

  • Navneet Bedar बेशक सर, मैं तो कह रहा था कि ये तुलना उस पुराने रूप की तुलना से कमतर ही है कोई बेहतरहो तो बत बने...

  • 7 hours ago · Like · 1

  • Jagadishwar Chaturvedi नवनीत, यहां हिंदी विभाग की कोई राजनीति नहीं है। जिन मित्रों ने मेरी राय पर तीखा लिखा वे मेरे घनिष्ठ मित्र हैं और संयोग से उनमें से दो नामवरसिंह के छात्र रहे हैं।

  • 7 hours ago · Like · 1

  • Shripati Pandey Pratikriyavad ki upaj chhaya - chhavi Sahitykar .

  • 7 hours ago · Like

  • Jagadishwar Chaturvedi पाण्डेजी, आपकी बात सही नहीं है।

  • 7 hours ago · Like

  • Navneet Bedar उनका छात्र बनने का भाग्‍य नहीं बन पाय लेकिन उसी केंद्र में रहते हुए और इस तरह की साहित्‍य चर्चा को बड़े करीब से देखते हुए यही समझ बनी कि ये एक किसम की राजनीति ही होती है जो माठाधीशों के निमित्‍त होती है ताकि उसके फल मिल सकें। अब ये 'फल' की व्‍याख्‍या करना शुरूकरेंगे तो बात दूर तक निकल जाएगी... इसलिए मैं विदड्रॉ करता हूं...

  • 6 hours ago · Like · 1

  • Shripati Pandey Savinay aur saprem aagrah hai ki Hindi ke shreshth sahitykaron ki suchikram mein kahan rakhna chahenge .

  • 6 hours ago · Like

  • Jagadishwar Chaturvedi नामवर सिंह आलोचना में पहली कोटि में हैं

  • 6 hours ago · Like · 1

  • Shashi Bhooshan असहमत

  • 6 hours ago via mobile · Like · 1

  • Hitendra Patel नामवर सिंह किसी भी महान से तुलनीय हैं. आपने ऐसा कहके कोई गलती नहीं की.

  • 3 hours ago · Like

  • Arun Maheshwari https://www.facebook.com/arun.maheshwari.982

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Unita Sachidanand like Garhwal!!

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Jagadishwar Chaturvedi अरुणजी, आपने सही कहा है हमें इस बहस के बहाने नए विमर्शों को खोलना चाहिए । असल में मार्क्सवाद के पुराने रुपों से आगे निकलकर भारतीय संदर्भ में नए परिप्रेक्ष्यों के निर्माण की जरुरत है।

  • 2 hours ago · Like

  • Gyanendra Pandey Naamvar aur Mandela kee yah tulna ek dum sateek aur samay saapeksh hai .

  • 2 hours ago · Like

  • Urmilesh Urmil कुलदीप और सीपी ने तो टिप्पणी करके आपके कथन को खारिज किया पर मैं हतप्रभ हूं, आपकी तुलना से। टिप्पणी के लायक भी नहीं समझ पा रहा हूं।

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Jagadishwar Chaturvedi उर्मिलेशजी, हमें हिंदी विभाग और दलीय राजनीति के बाहर निकलकर चीजों पर विचार करना चाहिए। नामवर सिंह तो बहाना हैं ।

  • 2 hours ago · Like

Vallabh Pandey

फूल तो बहुत प्यारे लगते हैं लेकिन ये कैक्टस भी कम सुन्दर नहीं है..... गौर से देखिये तो सही...

Like ·  · Share · 7 hours ago ·

Jagadishwar Chaturvedi

अरविंद केजरीवाल को पापुलिज्म के चक्कर से बाहर निकलकर दिल्ली में सरकारी घर में आकर रहना चाहिए । मुख्यमंत्री हैं तो मुख्यमंत्री की तरह रहें। इसमें कोई दोष नहीं है । समस्या यह नहीं है कि वे कितने बड़े घर में रहते हैं। समस्या यह है कि वे यूपी में रहते हैं और दिल्ली में शासन करना चाहते हैं । दिल्ली के मुख्यमंत्री को दिल्ली में ही रहना चाहिए और अपने उन विधायकों को भी दिल्ली में रहने के लिए कहें जो यूपी में रहते हैं । कम से कम दिल्ली की राजनीतिक मान-मर्यादा का ख्याल करें। पता नहीं आपको कैसा लगता है लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगता कि दिल्ली का विधायक-मंत्री-मुख्यमंत्री दिल्ली में न रहे । घर का पापुलिज्म बोगस पापुलिज्म है ।

Like ·  · Share · 9 hours ago near Calcutta ·


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