BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Wednesday, August 7, 2013

By Rajiv Lochan Sah गिरदा की तीसरी पुण्यतिथि इस बार ‘गिरदा का पहाड़, पहाड़ का गिरदा’ के रूप में 22 अगस्त को देहरादून में मनाने का निर्णय किया गया है। पहले इसे अल्मोड़ा में किये जाने की बात चल रही थी। मगर फिर विचार बना कि हम चाहें या न चाहें, सत्ता का केन्द्र तो देहरादून में ही है। उत्तराखंड भयंकर आपदा से गुजर रहा है। सरकार-प्रशासन अपने दायित्व में पूरी तरह विफल हैं। अनेक इलाकों में लोग अतिवृष्टि की चोटों से कराह रहे हैं और अपने स्वयं के प्रयासों से या कुछ परदुःखकातर व्यक्तियों/संगठनों की छिटपुट मदद से अपनी लुटी-पिटी जिन्दगी को ढर्रे पर लाने की कोशिशोें में जुटे हैं। दूसरी ओर इस प्रदेश की राजनीति नियंत्रित करने वाले निहित स्वार्थ हैं कि प्रकृति के सामान्य व्यवहार के इतनी बड़ी त्रासदी बनने के बाद अब इसे अपने लिये लाभदायी अवसर बनाने के जुगाड़ में लग गये हैं। लूट-खसोट का गणित शुरू हो गया है। गिरदा जीवित होता और स्वस्थ होता तो अपनी बेचैनी के साथ न जाने कहाँ-कहाँ घूम चुका होता और अपने गीतों के साथ जनता का मनोबल बढ़ा रहा होता। फिलहाल उसकी याद ही उत्तराखंड के चिन्तित लोगों को एक साथ लाकर इस

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By Rajiv Lochan Sah
गिरदा की तीसरी पुण्यतिथि इस बार 'गिरदा का पहाड़, पहाड़ का गिरदा' के रूप में 22 अगस्त को देहरादून में मनाने का निर्णय किया गया है। पहले इसे अल्मोड़ा में किये जाने की बात चल रही थी। मगर फिर विचार बना कि हम चाहें या न चाहें, सत्ता का केन्द्र तो देहरादून में ही है। उत्तराखंड भयंकर आपदा से गुजर रहा है। सरकार-प्रशासन अपने दायित्व में पूरी तरह विफल हैं। अनेक इलाकों में लोग अतिवृष्टि की चोटों से कराह रहे हैं और अपने स्वयं के प्रयासों से या कुछ परदुःखकातर व्यक्तियों/संगठनों की छिटपुट मदद से अपनी लुटी-पिटी जिन्दगी को ढर्रे पर लाने की कोशिशोें में जुटे हैं। दूसरी ओर इस प्रदेश की राजनीति नियंत्रित करने वाले निहित स्वार्थ हैं कि प्रकृति के सामान्य व्यवहार के इतनी बड़ी त्रासदी बनने के बाद अब इसे अपने लिये लाभदायी अवसर बनाने के जुगाड़ में लग गये हैं। लूट-खसोट का गणित शुरू हो गया है। गिरदा जीवित होता और स्वस्थ होता तो अपनी बेचैनी के साथ न जाने कहाँ-कहाँ घूम चुका होता और अपने गीतों के साथ जनता का मनोबल बढ़ा रहा होता। फिलहाल उसकी याद ही उत्तराखंड के चिन्तित लोगों को एक साथ लाकर इस अंधियारे में रास्ता खोजने में मदद कर सकती है।
ज्यादा से ज्यादा लोग इस कार्यक्रम में आयेंगे तो आगे के लिये कुछ तय करने में सहूलियत होगी। लेकिन बाहर से आने वाले देहरादून के स्थानीय आयोजकों को पूर्व सूचना अवश्य दे दें और यदि आवास की व्यवस्था होनी है तो वह भी बता दें। अभी कार्यक्रम का अन्तिम खाका बनना शेष है। इस सूचना को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने में मदद करें, क्योंकि वक्त बहुत ज्यादा नहीं रह गया है।

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