BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Monday, August 26, 2013

चंडीगढ़ से अच्छी खबर नहीं है दोस्तों! फुटेला ब्रेन स्ट्रोक के बाद खतरे से बाहर हैं,लेकिन बोलने की हालत में भी नहीं हैं।

चंडीगढ़ से अच्छी खबर नहीं   है दोस्तों! फुटेला ब्रेन स्ट्रोक के बाद खतरे से बाहर हैं,लेकिन बोलने की हालत में भी नहीं हैं।


पलाश विश्वास


मैं रोज जनर्लिस्ट क्म्युनिटी का साइट खोलता हूं इस उम्मीद के साथ कि फुटेला फिर सक्रिय हो गया होगा। ग्रोवर साहब अब नोएडा आ गये हैं और उन्होंने फोन पर आश्वस्त किया था कि फुटेला खतरे से बाहर हैं। फुटेला किछा से हैं और ठीक 16 कुमी दूर मेरा घर बसंतीपुर में। किछा में हमारे पुराने मित्र कवि मदन पांडे भी शिक्षक थे। किछा से हैं बीबीसी हिंदी के हारे मित्र राजेश जोशी भी। राजेश लंदन से दिल्ली आ गये हैं, यह हमारे फिल्मकार मित्र राजीव कटियार से मालूम हुआ। हिमालयी आपदा के बेहतरीन कवरेज के लिए उसे बधाई देना बाकी था। फिर उसका फोन आया। वहीं पुराना जनसत्ताई अंदाज।लंबी चौड़ी बातें हुईं। उसने बताया कि फुटेला के घर में बात हुई है और अभी हालत बैहतर है।


मैं बार बार रिंग किये  जा रहा था और उधर से स्विच आफ।बेचैनी बढ़ती जा रही थी।हारकर सविता ने कहा कि घर पर भाई पद्दोलोचन से कहो कि पता लगाये कि क्या हाल है।हमने फेस बुक और ब्लागों के जरिये दिल्ली और चंडीगढ़ के पत्रकारों से फुटेला का ख्याल रखने का आवेदन किया था। भड़ास में कबर आ गयी थी।उसके बाद भी सोशल मीडिया में खबरें आती रही। लेकिन अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि चंडीगढ़ और दिल्ली के पत्रकारों ने फुटेला के परिजनों से संपर्क नहीं साधा।इतने लंबे पत्रकारिता जीवन में हमारे सहकर्मी कम नहीं होते। विडंबना है कि हर पत्रकार अकेला होता है।आज फुटेला इस अकेलेपन का शिकार है। कल हम भी होंगे।


हमारे प्रिय कवि गिरदा अक्सर बूढ़ी रंडी की मिसाल दिया करते थे।उस कविता की हालत से पत्रकारों की दुर्गति कोई अलहदा नहीं होती।सारे संपर्क और कनेक्शन धरे के धरे रह जाते हैं। बाकी पेशाओं में लोग एक दूसरे की खबर लेते हैं।साथ भी खड़ा होते हैं।पर मीडिया में यह मिसाल कम ही है। इस धारा को पलटने की कोशिश में हैं यशवंत जैसेय युवा तुर्क।हमारी दुनिया की खबरें भी रोशन होने लगी है।लेकिन हालात नहीं बदले हैं।


फुटेला मिसाल हैं। तेज तर्रार यह पत्रकार ब्रेन स्ट्रोक के बाद पैरालिसिस के शिकार हैं। बेटा हरियामा में मजिस्ट्रेट है।उसकी पत्रकारिता की दुनिया में कोई पहचान नहीं है। पत्रकारिता के तनाव और समस्याओं के बारे में भी मालूम नहीं है।


आज शाम फिर कोशिश की तो उसने फोन उठाया। फुटेला को मधुमेह भी है। इंसुलिन लगता है सुबह शाम। दिमाग में क्लोटिंग की वजह से ब्रेन स्ट्रोक हुआ। बीपी नार्मल है। बाकी कोई दिक्कत भी नहीं है। जितनी जल्दी हो दिमाग की क्लोटिंग हटाये जाने की जरुरत है। अभी फीजियोथेरापी चल रही है।


गनीमत है कि फुटेला होश में हैं और सबको पहचान भी रहे हैं। मित्रों को भी पहचान लेंगे। हमारी दिक्कत यह है कि चंडीगढ़ कोलकाता से पहुंचना हमारे लिए अब हर मायने में असंभव है। हमारे साधन भी इतने नहीं हैं कि पहुंचकर वहां हम उसकी या परिजनों की कोई मदद कर सकते हैं।लेकिन मीडिया अभी कारपोरेट हैं। हमारे कई मित्र बड़े बड़े संपादक और समर्थ लोग हैं। वे चाहे तो फुटेला और उनके परिजनों के सात खड़े हो सकते हैं।


हाल में कैंसरको जीतकर लौया है फुटेला।अब हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि जल्द ही वह बोलने ौर लिखने लगेगा। इसके साथ ही अपनी भी खैर मना रहे हैं हम कि न जाने कौन कहां फुटेला की तरह ऐसा अकेला हो जाये कि उसकी दुनिया को न उसकी खबर हो और न परवाह।यह नौबत हममें से किसी के साथ भी आ सकती है।छंटनी के बाद जैसे हमारे लोग सड़कों पर आ रहे हैं और हमारे तमाम महामहिम खामोश है ं तो परिजनों का ही भरोसा है।


एकबार फिर,दिल्ली और चंडीगढ़ के मित्रों से आवेदन है कि अगर वे फुटेला के साथ खड़े हो सकें तो मेहरबानी होगी। कम से कम हमें अच्छी बुरी खबरें मिलती रहेगी।


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