BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Wednesday, August 7, 2013

बंगाल में पर्यटन संकट। अब कैसे जायेंगे दार्जिलिंग या सिक्किम?

बंगाल में पर्यटन संकट। अब कैसे जायेंगे दार्जिलिंग या सिक्किम?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

गोरखालैंड आंदोलन से निपटने के लिए सरकार सख्ती बरत रही है और हाईकोर्ट नें बी पहाड़ में अमन चैन बनाये रखने के लिए हरसंभव उपाय करने के निर्देश जारी कर दिये है।दिल्ली में सत्ता गलियारे से समर्थन हासिल करने लिए विमल गुरुंग दिल्ली रवाना हो रहे हैं तो उनके घनिष्ठ साथियों और महिला मोर्चा कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी शुरु हो गयी है। इधर कोलकाता और बाकी बंगाल में दुर्गा पूजा की उलटी गिनती शुरु हो गयी है। हरसाल बड़ी संख्या में पर्यटक इसी वक्त दार्जिलिंग और सिक्किम रवाना होते हैं। लेकिन पहाड़ में अभी फिजां बेहद गरम है। अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी है। जिससे संकट में है पर्यटन उद्योग।


बंद शुरु होने से पहले ही गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने पर्यटकों से दार्जिलिंग और पहाड़ छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया था।स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को घर वापसी के लिए दो दिन का वक्त दिया गया। बंगाल के पहाड़ों में बंद होने की वजह से सिक्किम का रास्ता भी अवरुद्ध हो गया है। जो लोग पूजा के मौके पर पर्यटन के लिए बुकिंग करा चुके हैं वे बुकिंग रद्द करा रहे हैं। किसी को समझ में नहीं ा रहा है कि हालात कब सामान्य होंगे और कैसे पहुंचेंगे दार्जिलिंग या सिक्किम। मालूम हो कि दार्जिलिंग के अलावा इस समय सिक्किम में भी पर्यटकों की भारी भीड़ होती है। लोग दार्जिलिंगसे गांतोक या गांतोक से दार्जिलिंग पहुंचते हैं। सिक्किम के विभिन्न इलाकों में पर्यटन खूब होता है। लेकिन अब सिक्किम के किसी पर्यटनस्तल तक पहुचना भी असंभव है।


मां माटी मानुष की सरकार बनने के बाद बंगाल के पहाड़ों में अमन चैन का माहौल दिखने लगा था। जीटीए बनने से पहले और उसके बाद गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और सत्तादल के बीच संबंध मधुर थे। विमल गुरुंग के साथ पहाड़ों में दीदी ने साझा बैठकें भी की । जाहिर है कि ज्यादातर पर्यटक इस माहौल में नजदीकी पर्यटन स्थल दार्जिलिंग के किफायती सफर की योजना बना चुके हैं। सिक्किम जाने वालों को सपने में भी आशंका नहीं थी कि इतनी तेजी से हालात बदल जायेंगे।


अब जिन्हें घूमने जाना है वे दूसरे विकल्प के बारे में सोचने लगे हैं। इसमें भी बारी दिक्कत है। पहले दार्जिलिंग में हवा गरम हो जाने पर लोग उत्तराखंड जाते थे। अब केदार घाटी में जलप्रलय के हादसे के बाद लोगों का जोश ठंडा पड़ गया है। कश्मीर में भी लोग उतने स्वच्छंद महसूस नहीं करते।


ऐसे हालात में पुरी के लिए रेलयात्रा के टिकट दुर्लभ हो गये हैं।लोग अब राजस्थान से लेकर दक्षिण भारत की ओर जाने का मन बना रहे हैं। जिनकी जेबें जरा भारी हैं वे सस्ती विदेश यात्रा के जरिये दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में जाने की जुगत लगा रहे हैं या फिर अंदमान। अब ये सारे लोग कार्यक्रम बदलनेकी कवायद में लगे हैं।


ट्रावेल एजंसियों के लिए मुश्किल यह हैकि एक मुश्त भारी संख्या में लोगों के कार्यक्रम बदलने से वैकल्पिक इंतजाम के लिए उनके पसीने छूट रहे हैं। आधे से ज्यादा लोगों नेता सीधे बुकिंग रद्द करके इस बार कहीं जाने से तोबा कर लिया है। सालाना 30- 40 करोड़ का कारोबार करने वाली बड़ी एजंसियों की हालत खराब है। गली मोहल्लों में छोटी सी एजंसियां चलाकर जो लोग गुजारा कर रहे हैं, उनका तो सर्वनाश ही समझिये।


और तो और राज्य के पर्यटन मंत्री कृष्णेंदु चौधरी के मुताबिक पहाड़ और सिलिगुड़ी में छह के छह सरकारी ट्यूरिस्ट लाज बंद होने के कगार पर हैं।


गौरतलब है कि दार्जिलिंग को विशेष दर्जा देने और उत्तर पूर्वी राज्यों के बराबर ऋण उपलब्ध कराए जाने की पुरजोर सिफारिश करते हुए संसद की एक समिति ने कहा है कि इस पर्वतीय क्षेत्र की अर्थव्यवस्था सुधारने तथा इसे पर्यटकों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए यह कदम जरूरी है ।     

संसद की पर्यटन और संस्कृति संबंधी समिति ने लोकसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दार्जिलिंग में छोटे होटलों के निर्माण के लिए राज सहायता नहीं दिए जाने के कारण वहां केवल पंचतारा होटलों का ही निर्माण हो रहा है, जिससे मध्यम वर्ग के पर्यटकों की आवाजाही प्रभावित हो रही है।

   

दार्जिलिंग और सिक्किम में पर्यटन का विकास पर आधारित इस रिपोर्ट में समिति ने सिफारिश की है कि दार्जिलिंग को विशेष दर्जा दिया जाए और उत्तर पूर्वी राज्यों के समान ही ऋण की व्यवस्था की जाए, ताकि उसे भी करों आदि में छूट मिल सके। समिति का कहना है कि दार्जिलिंग को सिक्किम से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है और यदि समय से कार्रवाई नहीं की गयी तो दार्जिलिंग में पर्यटकों की संख्या धीरे धीरे कम हो जाएगी।

  

पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध मिरिक क्षील की अनदेखी किए जाने पर भी समिति ने गंभीरता से संज्ञान लेते हुए कहा है कि इस झील तथा आसपास के दार्जिलिंग के इलाके में मल-जल निकासी के लिए उचित तंत्र स्थापित किया जाए, ताकि मिरिक झील को प्रदूषित होने से रोका जा सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि दार्जिलिंग अपने सुंदर चाय बागानों के लिए प्रसिद्ध है और ये पर्यटन को बढ़ावा दे सकते हैं। इसी के मद्देनजर समिति ने चाय पर्यटन की अवधारणा की खोज करने की सिफारिश की है।


यह सारी तैयारी अब गुड़ गोबर है। जबकि दार्जिलिंग और सिक्कम की यात्रा पर्यटकों के लिए कोई हसीन ख्वाब से कम नहीं है। बागडोगरा से कोर्सियांग होते हुए दार्जिलिंग का सफर करीब साढ़े तीन घंटे का होता है। दार्जिलिंग में गंगा मैया, जापानी मंदिर, म्यूजियम वगैरह तो दर्शनीय थे ही, लेकिन वहां से करीब दो घंटे की दूरी पर स्थित मिरिक झील तक पहुंचने का रास्ता ही मानो ख्वाब जैसा है। हल्के हरे गलीचे की तरह बिछे चाय के खेत और गहरे हरे पर्दे की तरह खड़े ऊंचे पाइन ट्री किसी पोस्टर का-सा आभास देते हैं। वहां के हर घर के बाहर बेशुमार रंगबिरंगे फूल वहां की घनी प्राकृतिक संपदा की कहानी स्वयं बयान कर रहे आते हैं।यहां टाइगर हिल पर सूर्योदय का दिलकश नजारा देखने के लिए पर्यटकों की भीड लगती है।यहां से करीब 110 किमी की दूरी पर इस पूरे रास्ते साथ-साथ चली पहले रिम्बी नदी, फिर रंगित नदी और पेंलिग पहुंचते-पहुंचते ये दोनों तिस्ता नदी से जा मिलीं।। गंगटोक में विशेषकर आर्किड गार्डन और दूसरे दिन छांगू झील होते हुए नाथूला पास जाते हैं पर्यटक। छांगू झील जहां पथरीली, बर्फ जमी चट्टानों से आच्छादित है। वहीं कंपकंपाती ठंड में नाथूला समुद्र सतह से 15,000 फुट की ओर बढ़ते हुए प्रकृति के श्वेत धवल रंग में डूबे जा सकत हैं।  लाचेन से अगला पड़ाव लाचुंग है। जहां से फूलों की घाटी होते हुए युमथांग जाना पर्यटकों की पहली पसंद होती है। जो जीरो पॉइंट भी है (वहां भारत-चीन की सीमा थी)।


दार्जिलिंग के समीप बसे एक पहाड़ी गांव लामाहत्ता की हरियाली, नदियां और खूबसूरत नजारे पर्यटकों को जल्द ही लुभाएंगे। पश्चिम बंगाल सरकार भी लामाहत्ता के सौंदर्य को निखारने और उसके विकास में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।लेकिन सारी तैयारी धरी की धरी रह गयी।


गौरतलब है कि दार्जिलिंग शहर से 23 किलोमीटर दूर करीब 1700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लामाहत्ता गांव इस माह के आखिर तक पर्यटकों के लिए तैयार हो जाएगा। यहां एक 'हनीमून प्वॉइंट' तैयार किया गया है जहां पांच कुटिया और 44 बिस्तरों की व्यवस्था है।


मंत्री रछपाल सिंह ने हाल में दावा किया था  कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हालिया दौरे में लामाहत्ता की पहचान की थी। अब इसे एक आकर्षक पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जा रहा है। यह पहल गैर वन खासमहल क्षेत्र में इको टूरिज्म गांव के विकास के तौर पर की जा रही है और इसमें स्थानीय वन सुरक्षा समिति की सक्रिय भागीदारी है।


सिंह ने कहा कि इससे स्थानीय पर्यावरण की पारिस्थितिकी और जैव विविधता को व्यवधान पहुंचाए बिना ग्रामीणों के सतत विकास में मदद मिलेगी।


लामाहत्ता दार्जिलिंग..कलिमपोंग राज्य राजमार्ग से जुड़ा है और यहां का मौसम ठंडा लेकिन खुशनुमा है। मंत्री ने बताया कि दार्जिलिंग..लामाहत्ता..ताकदाह परिपथ (सर्किट) के विकास के तहत लामाहत्ता के करीब ताकदाह में छह पुराने कमरों का नवीनीकरण और आसपास का सौंदर्यीकरण किया गया है।


सिंह के अनुसार, आठ माह में करीब 1.5 करोड़ रुपए की लागत से विकसित लामाहत्ता पर्यटकों के स्वागत के लिए इस माह के आखिर तक तैयार हो जाएगा। यहां सड़क के किनारे बगीचे, क्यारियां, मौसमी फूल, तथा और भी बहुत कुछ है जिसे देख कर दार्जिलिंग, कलिमपोंग और सिक्किम जा रहे पर्यटक जरूर यहां रूकना चाहेंगे।


लामाहत्ता के खास आकर्षणों में एक वॉच टॉवर भी है जहां से कंचनजंगा, सिक्किम की पहाड़ियों, बहती तीस्ता और रांगित नदियों का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। साथ ही यहां से दार्जिलिंग का सौंदर्य भी नजर आएगा।


सिंह ने बताया कि यहां कई ट्रैकिंग मार्गों की पहचान की गई है और ट्रैकिंग के लिए आवश्यक सुविधाओं तथा प्रशिक्षित गाइडों की व्यवस्था की गई है।



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