BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Friday, June 7, 2013

मोटेराम का सत्याग्रह: आज भी प्रासंगिक हैं प्रेमचन्द

मोटेराम का सत्याग्रह: आज भी प्रासंगिक हैं प्रेमचन्द

moteram-ka-satyagrahअनुकृति रंगमंडल कानपुर द्वारा सिने अभिनेता स्व. निर्मल पांडे की स्मृति में 4 मई 2013 को शैले हॉल नैनीताल में नाटक 'मोटेराम का सत्याग्रह' का मंचन किया गया। नाटक की प्रस्तुति से पहले नगरपालिका परिषद नैनीताल के नवनिर्वाचित अध्यक्ष श्यामनारायण व उक्रांद के पूर्व विधायक डॉ. नारायण सिंह जन्तवाल द्वारा दीप प्रज्वलित कर निर्मल को याद किया गया।

प्रसिद्ध कहानीकार मुशी प्रेमचनद्र की इस कहानी का नाट्य रूपान्तरण 90 के दशक में रंगकर्मी सफदर हाशमी द्वारा किया जा रहा था लेकिन उनकी हत्या के बाद प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने इसे पूरा किया। नाटक भारत में अंग्रेजों के शासनकाल में अफसरों के तौर-तरीकों पर आधारित है। जब वायसराय के आगमन की तैयारी-व्यवस्था से त्रस्त दुकानदार व आमजन हड़ताल की चेतावनी देते हैं तो बौखलाये मजिस्ट्रेट व अफसर मिलकर वायसराय के सामने सब ठीक-ठाक होने की तरकीब तलाशते हैं। तय किया जाता है कि हड़ताल को कुचलने के लिए पं. मोटेराम शास्त्री को सत्याग्रह (भूख हड़ताल) पर बैठाया जाये। रसिक-मिजाज कलक्ट्रेट साहब इस काम में शहर की मशहूर तवायफ चमेलीजान की सेवाएं भी लेते हैं। सड़कें चौड़ी कराने, इमारतों के रंग-रोगन आदि की फिजूलखर्ची में सरकारी धन का दुरुपयोग किया जाता है। इधर खाने-पीने के शौकीन मोटेराम शास्त्री की भूख हड़ताल तुड़वा दी जाती है। रायसाहब की आवभगत की तैयारियों में सरकारी खजाना खाली हो जाने से कर्मचारियों अफसरों को वेतन देने के लिए फूटी कौड़ी भी नहीं बचती।

ब्रिटिश हुकुमत के दौरान अफसरों की जैसी कार्यशैली वर्तमान में भी मौजूद है। केन्द्र व प्रदेश सरकारें व उनके अफसर आज भी अपने अधिकारों का दुरपयोग करते हैं। राजनीतिक दलों की आपसी खींचतान व भ्रष्ट नेताओं से सारा देश त्रस्त है। नाटक के जरिये यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि जनता द्वारा विभिन्न करों के रूप में दिये गये सरकारी खजाने को जनहित में खर्च किया जाये न कि सत्ता में बैठे नेता-अफसर इसका बेजा इस्तेमाल करें। लोकतंत्र में यह लूट उचित नहीं है। सरकारी धन का दुरपयोग बन्द होना चाहिए।

नाटक के गीत-संगीत उत्तर प्रदेश की नाट्यशैली नौटंकी पर आधारित है। परम्परागत वाद्ययंत्रों में नक्कारा, नाल व हारमानियम का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन नक्कारा के तेज स्वरों में कभी सूत्रधार व अन्य पात्रों की आवाज दब जा रही थी। कभी रंगकर्म के लिए विख्यात नैनीताल नगर को पिछले चार-पाँच वर्षों से हो रहा दर्शकों का अकाल इस नाटक में भी रहा। इस बार तो नगर के बहुत सारे रंग कर्मी भी हॉल में मौजूद नहीं थे। शायद यही कारण रहा हो कि नाटक भी अपना वह प्रभाव नहीं छोड़ पाया जिसकी उससे अपेक्षा थी। बावजूद इसके उपस्थित गणमान्य दर्शकों ने कानपुर से आई इस रंग मंडली की खूब हौसला-अफजाई की। कलाकारों का अभिनय कमोबेश ठीक-ठाक रहा। नाटक की परिकल्पना व निर्देशन किया था डॉ. ओमेन्द्र कुमार ने और संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी मिथिलेश पांडे ने किया।

http://www.nainitalsamachar.in/moteram-ka-satyagrah-at-nainital/

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