BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Monday, May 6, 2013

शरणार्थी सैलाब अब फिर उमड़ने ही वाला है क्योंकि बांग्लादेश में एक करोड़ से ज्यादा हिंदुओं के लिए भारत में आने के सिवाय बचने की कोई दूसरी राह नहीं

शरणार्थी सैलाब अब फिर उमड़ने ही वाला है क्योंकि  बांग्लादेश में एक करोड़ से ज्यादा हिंदुओं के लिए भारत में आने के सिवाय बचने की कोई दूसरी राह नहीं


बंगाल की अर्थव्यवस्था के लिए ये बांग्लादेश में दिनोंदिन बिगड़ते हालात दर्जनों एटम बम के स्थगित विस्फोट की तरह टिकटिका रहे हैं।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


(कृपया इस स्टोरी में बाईलाइन अवश्य दें।इससे अकबार के लिे काम करने में सहूलियत होगी।)




बंगाल में शरणार्थी समस्या अभी सुलझी नहीं है। इसी बंगाल में दंडकारण्य में पुनर्वासित शरणार्थियों ने माकपा के आमंत्रण पर सुंदरवन के ​​मरीचझांपी में अपना उपनिवेश बनाने की कोशिश की तो कामरेड ज्योति बसु सरकार ने जनवरी, १९७९ में उन पर गोलीबारी करके उन्हें बेरहमी से बेदखल कर दिया। पिछले चुनावों में ममता बनर्जी ने जिस तरह मतुआ समुदाय और आंदोलन का खूब इस्तेमाल किया, उसी तरह शरणार्थी समस्या और मरीचझांपी कांड को भी भुनाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।लेकिन सरकार में आने के बाद दीदी ने मतुआ प्रमुख वीणापानी माता के सुपुत्र मंजुल कृष्ण ठाकुर को मंत्री बनाने के अलावा इस सिलसिले में कुछ किया नहीं है। बाकी तमाम प्रकरणों में जांच आयोग बैठाने के बावजूद मरीचझांपी कांड के अपराधियों को सजी दिलाने की उन्होंने कोई पहल ​​नहीं की।बंगाल में सत्ता संघर्ष इस वक्त चरम पर है। शारदा चिटफंड फर्जीवाड़े के बाद राजनीतिक हलचलें तेज हो गयी है। आरोप प्रत्यारोप और रैलियों में राजनेता और आम लोग व्यस्त हैं। लेकिन बांग्लादेश में दिनोंदिन बिगड़ते हालात के मद्देनजर निर्वासित लेखिका तसलिमा नसरीन के मशहूर `लज्जा' उपन्यास में दर्ज घटनाक्रम की फिर पुनरावृत्ति होने लगी है।शाहबाग आंदोलन की शुरुआत से ही बांग्लादेश में लगातार अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं।वहीं,सबसे खतरनाक बात तो यह है कि चुनाव व्यवस्था को लेकर सरकार विरोधी अभियान का नेतृत्व कर रही मुख्य विपक्षी पार्टी, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया ने एक बयान जारी कर पार्टी नेताओं से 'इस्लाम की रक्षा करने' के अभियान में हिफाजत-ए-इस्लामी का साथ देने के लिए कहा है। बहरहाल, देश में राजनीतिक तनाव तब और बढ़ गया जब आवामी लीग ने कहा कि उनके कार्यकर्ता भी हिफाजत-ए-इस्लामी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए सड़कों पर उतरेंगे।जबकि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ईशनिन्दा कानून बनाने की माँग ठुकरा दी है। इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों ने चेतावनी दी थी कि सरकार ने उनका 13 सूत्रीय एजेण्डा नहीं माना तो पाँच मई से देश भर में हिंसक प्रदर्शन होंगे। इस एजेण्डे में ईशनिन्दा कानून बनाना और नास्तिक ब्लॉगरों को फाँसी की सजा देना शामिल है।


अब हेफाजती इस्लाम ने ढाका में जो तांडव मचाया और वहां तीस लोगों की जानें चली गयीं, यह आग पूरे बांग्लादेश में भड़क रही है।बांग्लादेश के कोने कोने में राजनीतिक संघर्ष और मौत की खबरें बाढ़ की तरह आ रही हैं।ढाका चटगांव राजमार्ग पर पुलिस और कट्टरपंथियों के संघर्ष में नारायण गंज में सात लोगों की मौत हो गयी। सिराजगंज में पांच लोगों के मारे जाने कीखबर है।इस आत्मघाती तांडव में पवित्र धर्मग्रंथ से लेकर धारिमिक पुस्तकों के स्टाल और यहां तक कि मस्जिद तक को निशाना बनाया जा रहा है।


फेसबुक पर पल प्रतिपल अपडेट हो रहे हैं।दो सौ साल से निरंतर चला आ रहा मतुआ अनुयायियों का ​​मुख्य पर्व बारुणि उत्सव इसबार आयोजित ही नहीं किया जा सका है। पूरे बांग्लादेश  में मूर्तिकारों के खिलाफ फतवा जारी हुआ है। धर्मस्थल व्यापक पैमाने पर पर ध्वस्त हो रहे हैं। अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं पर अत्याचार की वारदातें आम हो गयी हैं।


कुल मिलाकर, वहां अब भी रह गये एक करोड़ से ज्यादा हिंदुओं के लिए भारत में आने के सिवाय बचने की कोई दूसरी राह नहीं है। बंगाल सरकार, राजनेताओं  और सिविल सोसाइटी ने इस ओर से आंख मूंद ली है।शरणार्थी सैलाब अब फिर उमड़ने ही वाला है और बंगाल सरकार बेखबर है। भारत सरकार भी इसकी कोई परवाह नहीं कर रही है। बदहाल बंगाल की अर्थव्यवस्ता के लिए ये हालात दर्जनों एटम बम के स्थगित विस्फोट की तरह टिकटिका रहे हैं।


बांग्लादेश की राजधानी ढाका में क्लिक करें हिंसक इस्लामिक प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोलों और रबर की गोलियों का इस्तेमाल किया है।रविवार को देश में कड़े इस्लामिक क़ानून लागू करने की मांग को लेकर क्लिक करें हिफाजत-ए-इस्लाम के पांच लाख से अधिक समर्थकों ने रविवार को राजधानी ढाका में प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने दुकानों और वाहनों में आग लगानी शुरू कर दी।प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुई झड़पों में क़रीब 30 लोगों की मौत होने और 60 लोगों के घायल होने की खबर है। अस्पताल के सूत्रों का कहना है कि कुछ लोग सिर में गोली लगने से घायल डुए हैं।रात लगभग 10,000 दंगारोधी पुलिस, एंटी-क्राइम रैपिड एक्शन बटालियन (आरएबी) और अर्धसैनिक बल 'बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश' (बीजीबी) ने प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए एक संयुक्त अभियान चलाया।पुलिस के एक प्रवक्ता ने कहा, मोतीझील इलाका हमारे नियंत्रण में है। हिफाजत-ए-इस्लामी ने इलाका छोड़ दिया है। आरएबी के एक अधिकारी ने कहा, हमने रविवार को तीन शव बरामद किए। इसके बाद रात जब हमने मोतीझील में हिफाजत-ए-इस्लामी कार्यकर्ताओं के इलाके में छापेमारी की तो वहां चार और शव मिले जिन्हें कपड़ों में लपेटकर रखा गया था।


जाहिर है कि बांग्लादेशी इस्लामी राष्ट्रवाद का यह अभ्युत्थान वहां के अल्पसंक्यक हिंदुओं के लिए मौत का फरमान लेकर आया है लेकिन न बंगाल सरकार को और न भारत सरकार को सीमापार गहराते इस संकट की खबर लेने का होश है। भारतीय सत्तावर्ग कम से कम अपने अड़ोस पड़ोस मे लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता बर्दाश्त कर ही नहीं सकता और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिये हर कार्रवाई करता है। वरना क्या कारण है कि पाकिस्तान से अभी-अभी आनेवाले हिन्दुओं को नागरिकता दिलाने की मुहिम तो जोरों पर होती है, वहीं विभाजन पीड़ित हिन्दू शरणार्थियों की नागरिकता छीने जाने पर, उनके विरुद्ध देशव्यापी देशनिकाले अभियान के खिलाफ कोई हिन्दू आवाज नहीं उठाता।


गौरतलब है कि पिछले दिनों राजधानी नयी दिल्ली में बांग्लादेश के  धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक शाहबाग आन्दोलन के समर्थन में देश भर के शरणार्थियों ने निखिल भारत शरणार्थी समन्वय समिति के आह्वान पर धरना दिया और प्रदर्शन किया।इस कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में पूर्वी बंगाल के स्वतन्त्रता सेनानियों की मार्मिक याद दिलाते हुये शरणार्थी नेता सुबोध विश्वास ने सवाल खड़े किये कि पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों पर बहस हो सकती है तो क्यों नहीं पूर्वी बंगाल के विभाजन पीड़ित शरणार्थियों को लेकर कोई सुगबुगाहट है


अब इसका असर पूरे बांग्लादेश में हो रहा है। सर्वत्र इस्लामी कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आये हैं।ढाका में जारी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक आंदोलन के केंद्र शहबाग से गणजागरण मंच का मंच पुलिस ने जबरन हटा दिया है। ढाका शहर में थीरी तनाव है और वहां निषेधाज्ञा जारी है।


ढाका के 'डेली स्टार' अखबार का कहना है कि प्रदर्शनकारियों को ढाका पहुंचाने के लिए संगठन ने क़रीब तीन हज़ार बसों, मिनीबसों और लारियों को किराए पर लिया था।अन्य प्रदर्शनकारी रेलगाड़ियों पर सवार होकर पहुंचे।शहर के मध्य में स्थित ढाका की सबसे बड़ी मस्जिद के आसपास का इलाका उस समय युद्धक्षेत्र में बदल गया, जब पुलिस ने पत्थरबाजी कर रहे दंगाइयों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे, रबर की गोलियां चलाईं और डंडे बरसाए।


भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश जल रहा है। हालात कुछ-कुछ 1971 के मुक्ति संग्राम जैसे ही हैं। 1971 के मुक्ति संग्राम में इस्लामी कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों ने आन्दोलन के दमन में तत्कालीन पाकिस्तानी हुकूमत की मदद की थी लेकिन राजनीतिक कारणों से इसके नेता अब तक बचते आ रहे थे। अब नई पीढ़ी इन्हें सजा-ए-मौत दिलाने पर आमादा है जिसके लिये ढाका में शाहबाग मूवमेंट चल रहा है।


बांग्लादेश में एक बार फिर बदलाव की बयार बह रही है। फरवरी में ढाका का शाहबाग चौक तहरीर स्क्वायर बन गया। नौजवानों की ऊर्जा और गुस्से ने इस इलाके को प्रोजोन्मो छॉतोर करार दिया। प्रोजोन्मो छातोर यानि नई पीढ़ी का चौराहा। इस चौक में वो युवा पीढ़ी उमड़ती रही जिसमें आक्रोश है उन अपराधों को लेकर जिन्हें उनके जन्म से भी पहले 1971 के मुक्ति संग्राम में अंजाम दिया गया। पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी इसी मुक्ति संग्राम की देन थी। लेकिन इस मुक्ति संग्राम के दौरान कुछ घर के भेदिए भी थे जिन्होंने पाकिस्तानी फौज का साथ दिया। जमात ए इस्लामी को उन्हीं कट्टरपंथी संगठनों में से एक माना जाता है। लोगों का ये गुस्सा तब और भड़क उठा जब इस मूवमेंट से जुड़े एक ब्लॉगर राजीव हैदर का घर लौटते हुये कत्ल कर दिया गया। लोगों ने जमात के नेताओं को सजा देने की माँग और तेज कर दी।



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