BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Monday, May 6, 2013

नलवन को जमीन वापस करने के लिए नोटिस।तो वाम जमाने हुए अनुबंध पर आधारित सारे उद्योग धंधे क्या राज्य सरकार अब बंद कर देगी?

नलवन को जमीन वापस करने के लिए नोटिस।तो वाम जमाने हुए अनुबंध पर आधारित सारे उद्योग धंधे क्या राज्य सरकार अब बंद कर देगी?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​



अभूतपूर्व राजनीतिक संकट में फंसी ममता बनर्जी की राज्य सरकार अर्थव्यवस्था का हाल सुधारने की सर्वोच्च प्राथमिकता भूल गयी है। अब तो वह विपक्ष की नेता की तरह नये सिरे से भूमि आंदोलन शुरु करने पर उतारु है। भूमि आंदोलन की वजह से ही उन्हें सत्ता मिली है और इसीलिए शायद भूमि ​​आंदोलन के जरिये जनाधार मजबूत करने का रामवाण चलाते रहना उनकी नीति बन गयी है। टाटा समूह ने नैनो कारखाना गुजरात के सानंद में शिफ्ट कर दिया।इस पर तुर्रा यह कि गुजरात के मुक्यमंत्री यह से निवेश लूटकर ले गये। शालवनी से जिंदल की विदाई हो गयी। कोलकाता वेस्ट इंडरनेशनल सिटी में अंधेरा के सिवाय कुछ नहीं है। अंडाल विमानगरी का काम भूमि आंदोलन की वजह से आगे नहीं बढ़ रहा। उन्हीं की शुरु की हुई मेट्रो और रेलवे की दूसरी परियोजना के साथ साथ सड़क निर्माण की परियोजनाएं भी खटाई में हैं।​​राज्य में कोई निवेश नहीं करना चाहता कयोंकि हवा में उद्योग लगाये नहीं जा सकते। बल्कि इस राज्य के निवेशक अन्यत्र निवेश करने लगे हैं। ​​राज्य  की न कोई जमीन नीति है और न कोई उद्योग नीति ।


इसी के मध्य कोलकाता महानगर के मनोरंजन पार्क नलबन की जमीन वापस करने के लिए राज्य सरकार ने नोटिस जारी की है। क्योंकि यह जमीन पूर्ववर्ती वाम सरकार ने वंशीलाल लिजार पार्क्स को दी थी। अब दो साल पुरानी हो चुकी राज्य सरकार को इस अनुबंध में भारी अनियमितता दीख रही है। प्रतिपक्ष को सबक सिखाने के लिए अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की यह कार्रवाई हो रही है। जमीन वापसी की कार्यवाही उतनी आसान भी नहीं है। सिंगुर के अनिच्चुक किसानों को नया कानून बनाकर भी राज्य सरकार जमीन वापस दिलाने में नाकाम रही है। अब सिंगुर विवाद की तरह यह मामला भी अदालत में चला जायेगा। लेकिन इससे निवेशकों को संकेत यह जरुर जायेगा कि राज्य सरकार राजनीतिक कारणों से कभी भी निवेश हो जाने के बाद औद्योगिक इकाई के नुकसान की परवाह किये बिना जमीन वापस मांग सकती है।


१९९० में बाकायदा निविदाऐं आमंत्रिक करके यह जमीन लीज पर दी गयी थी। इसके बाद फिर २०१० में इस जमीन को ३० साल की लीज मासिक तीन लाख के किराये पर दी गयी है। जहां भारत सरकार की ओर से आज भी केंद्रीय वाणिज्य मंत्री कमलनाथ ने  दावा किया है कि सरकारें बदल जाने से आर्थिक नीतियां और औद्योगिक नीतियां बदल नहीं जाती। केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बावजूद १९९१ से नीतियों की निरंतरता बनी हुई है। बंगाल में उल्टी गंगा बहने लगी है। अगर यही हाल है तो वाम जमाने हुए अनुबंध पर आधारित सारे उद्योग धंधे क्या राज्य सरकार अब बंद कर देगी?


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