BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Wednesday, July 18, 2012

सहमी हुई जिंदगियों पर वन्य जीवों का भय

सहमी हुई जिंदगियों पर वन्य जीवों का भय


पहाड़ों में जिन्दगी और मौत के बीच फासला हमेशा से ही महीन धागे की तरह है। धागा टूटा नहीं कि मौत जिन्दगी को गले लगाने के लिए दस्तक देने को बेताब नजर आती है। कभी भूकंप, कभी नदी, कभी बादल तो कभी बदरा मौत के पुराने नाम हैं। हालिया कुछ दशकों से इंसानों के जंगलो के भीतर तक दस्तक देने और दावानल के चलते जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास, जल स्त्रोत और शिकार बडे़ तेजी से नष्ट हुए हैं, नतीजतन जंगली जानवर अब बस्तियों की ओर मुड़ने लगे हैं...

गौरव नौडियाल

बीते शनिवार की रात गुलदार (लैपर्ड) ने मंडल मुख्यालय पौड़ी से तकरीबन 70 किलोमीटर दूर तुनाखाल के पास एक राशन ड़ीलर पर हमला कर मार ड़ाला। गुलदार के हमले का पता ग्रामीणों को सुबह चला, जब राशन ड़ीलर की दुकान के सामने खून के छींटे, डीलर की घड़ी, चप्पल और दुकान की चाबी जमीन पर पड़ी मिली। घटना से पूरे क्षेत्र में दहशत का माहौल है।

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पौड़ी स्थित ननकोट गांव में ग्रामीणों के गुस्से का शिकार गुलदार्

चौबट्टाखाल तहसील में इसोटी गांव निवासी संजय इष्ट्वाल शाम को हर रोज की तरह अपने घर से खाना खाने के बाद तुनाखाल स्थित अपनी दुकान पर सोने के लिए आया। संजय जब दुकान के शटर के बाहर लगे चैनल गेट को खोलने लगा तो गुलदार ने उस पर हमला कर दिया। गुलदार के साथ हुए इस संघर्ष में संजय की जिंदगी हार गई, लेकिन घटना ने पूरे इलाके में दहशत फैला दी है।

गुलदार के हमले में पौड़ी में बीते एक साल में 40 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। अकेले तुनाखाल क्षेत्र में इस अवधि में दस लोग घायल हुए हैं। हाल ही में गुलदार के हमले से घायल हुई तुनाखाल के निकट पुसोली गांव की प्रभा देवी आज भी जिन्दगी और मौत के बीच दून अस्पताल में संघर्ष कर रही है। पिछले एक साल की अवधि में गुलदार तुनाखाल इलाके में सात लोगों को मार चुका है। ग्रामीणों ने वन महकमे से गुलदार को नरभक्षी घोषित करने की मांग की है।

सात जुलाई को वन महकमे की लापरवाही और लेटलतीफी के चलते दो जिंदगियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। पहले गुस्साए ग्रामीणों ने उन्माद में गुलदार को वनकर्मियों के सामने ही लाठी डंडों और पत्थरों से पीट-पीट के मार ड़ाला और बाद में गुलदार के हमले में घायल हुई पिच्चासी वर्षीय रामचन्द्री देवी ने जिला चिकित्सालय पौड़ी में ईलाज के दौरान दम तोड़ दिया। दोनों ही घटनाएं दिल दहला देने वाली हैं। रामचन्द्री देवी तो मर गई, लेकिन अपने पीछे कई अहम सवाल भी छोड़ गई है।

यह घटना मंडल मुख्यालय पौड़ी से महज 13 किलोमीटर दूर ननकोट गांव की है, जहां गांव के गब्बर सिंह रावत के खंडहर घर में रात को घायल और शिकार करने में अशक्त गुलदार छुप गया। सुबह गांव की ही एक महिला की नजर जब गुलदार पर पड़ी तो गांव में अफरातफरी का माहौल फैल गया। धीरे-धीरे गुलदार को देखने के लिए तमाशबीनों का हुजूम जुटने लगा। भीड़ को देखकर गुलदार ने वहां से निकलने की कोशिशें भी की] लेकिन भीड़ ने तेंदुए को घेर लिया।

ग्रामीणों के मुताबिक वनकर्मियों को सुबह ही गुलदार के गांव में घुसे होने की सूचना दे दी गई थी, लेकिन वनकर्मी समय से गांव में नहीं पंहुचे। इस घटना से ग्रामीणों और वनकर्मियों में काफी नोंक झोंक भी हुई। गुस्साए ग्रामीणों ने गुलदार को वनकर्मियों के सामने ही मौत के घाट उतार दिया। ऐसे में विभाग यदि समय पर पंहुचकर गुलदार को बाहर निकालने में कामयाब हो जाता तो शायद दो जिंदगियां बेवजह यूं दम न तोड़ती। दोनों ही पहलू कई अहम सवाल खड़े करते हैं।

ग्रामीणों पर वन महकमा मुकदमे दायर करने का मन बना चुका है। दूसरी ओर रामचन्द्री देवी की मौत के बाद गांव में सन्नाटा पसर गया है। ऐसे ही यदि इंसानों और वन्य जीवों के बीच संघर्ष चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब एकान्तप्रिय जानवर गुलदार महज किताबों के पन्नो पर ही नजर आए और न जाने कितनी रामचन्द्री गुलदार के का शिकार बनेंगी। घटते जंगलों, भोजन, प्राकृतिक आवास की कमी के चलते गुलदार अब पहले से अधिक बस्तियों की ओर रूख करने लगे हैं।

गढ़वाल वन प्रभाग के अधिकांश गाँवों में शाम ढ़लते ही लोगों के जेहन में वन्यजीवों का ड़र अब आम बात हो चुकी है। लगातार हो रहे वनों के अवैध रूप से कटान व वन्य क्षेत्रों के घटते दायरे के चलते वन्य जीव अब लोगों के घरों की मुंडेरों तक दस्तक देने लगे हैं। आलम यह है कि गढ़वाल वन प्रभाग के कई गाँवों के लोग अब जंगल में अपने मवेशियों को ले जाने या लकड़ी के लिए जाने से भी कतराते हैं।

पिछले कुछ वर्षों में जहां एक ओर जंगली जानवरों ने सैकड़ों लोगों को घायल किया है, वहीं दूसरी ओर कई लोगों को जानवरों के हमले में अपनी जान तक गंवानी पड़ी है। इन वन्य जीवों में मुख्यतः गुलदार, भालू और जंगली सूअर शामिल हैं। जंगली सूअर जहां ग्रामीणों को घायल करने में सबसे आगे हैं वहीं दूसरी ओर फसलों को नुकसान पंहुचाने में भी आगे है, जबकि गुलदार इन्सानों के साथ ही मवेशियों के लिए भी बड़ा खतरा बनता जा रहा है।

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दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे जंगली जानवरों के हमले के चलते लोगों में जंगली जानवरों के प्रति ख़ौफ साफ तौर पर देखा जा सकता है। घटते वन क्षेत्रों के चलते जानवरों के सामने भोजन के अभाव में ग्रामीणों को निवाला बनाना अब आम हो चुका है। इस पूरे घटनाक्रम में यदि किसी का नुकसान हो रहा है, तो वो ग्रामीण ही हैं, जिन्हें वन्यजीवों के हमले में अपनों को गंवाना पड़ता या फिर घायल होकर जिन्दगीभर के जख्म जिस्म पर पीड़ा देते है।

वन महकमा तो सिर्फ मुआवजे के तौर पर कुछ सिक्के ग्रामीणों की ओर उछाल कर आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेता है, लेकिन पीछे छूट जाती हैं तो सिर्फ अपनों की यादें और सहमे हुए उदास चेहरे। वन्य जीवों के हमले में घायल या मारे जाने वालों में बच्चों और महिलाओं की संख्या ही अधिक होती है। फिर भी ग्रामीण महिलाएं हर रोज जान हथेली पर रखकर ही घास, लकड़ी के लिए घर से निकलने को मजबूर हैं।

वन्य जीवों के लगातार बढ़ते हुए हमलों को लेकर कांड़ई गांव के महिपाल सिंह कहते हैं ''जंगली जानवरों के बस्ती की ओर आने का मुख्य वजह जंगलो में भोजन की कमी है। हर साल फायर सीजन में जंगलों का एक बड़ा हिस्सा जल जाता है इससे वन सम्पदा को तो नुकसान होता ही है, साथ ही हजारों वन्य जीव भी जलकर मर जाते हैं। ऐसे में जंगली जानवरों का गाँवों की ओर रुख करना लाजमी है। आम आदमी को तो इनसे खतरा बना ही रहता है, साथ ही मवेशियों और फसलों को भी नुकसान पंहुच रहा है। यदि जंगलो को बढ़ाया जाए और दावानल से बचाया जाए तो काफी हद तक जानवरों को ग्रामीण हिस्सों में पंहुचने से रोका जा सकता है।''

गुलदार के बढ़ते हमलों की घटनाओं पर रोक लगाने के बारे में गढ़वाल वन प्रभाग के वनाधिकारी एमबी सिंह कहते हैं कि ''गुलदार को आदमखोर घोषित करने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को पत्र लिखा जा चुका है। साथ ही क्षेत्र में गुलदार की एक्टिविटी को देखने के लिए एक दल रवाना कर दिया गया है। निश्चित तौर पर इंसानों की जंगलो में धमक और गुलदारों के प्राकृतिक आवास और शिकार की कमी उन्हें मानव बस्तियों की ओर खींच रही है. ''

gaurav-nauriyal गौरव नौडि़याल उत्तराखंड में पत्रकार हैं. 

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