BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Wednesday, July 25, 2012

लोकपाल का लड्डू न सही जांच की जलेबी दे दो

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लोकपाल का लड्डू न सही जांच की जलेबी दे दो

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जंतर मंतर पर आज एक बार फिर सड़को पर तिरंगा लिए लोगों का हूजूम दिखा। सभी अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ है का नारा लगाए उस ओर चले जा रहे थे जिस ओर अरविन्द केजरीवाल अनशन करने वाले थे। मीडिय़ा के कैमरे आज एक बार फिर सिलसिलेवार तरीके से अन्ना के मंच की ओर मुंह किए खड़े नजर आए। सभी कुछ वैसा ही हो रहा था जैसे पहले भी कई बार हो चुका है। लेकिन इस बार टीम अन्ना की मांग में लोकपाल के लड्डू के साथ ही जांच की जलेबी शामिल है। उनका कहना है कि जब तक दागी सांसद जेल नहीं जाएंगे तब तक लोकपाल नहीं पास होगा।

देश में जब लोकपाल के लिए पहली बार इसी जंतर मंतर पर पिछली पांच अप्रैल को अन्ना ने अनशन किया था तब भी सरकार ने उन्हें लोकपाल का लड्डू नहीं दिया था। एक ड्राफ्टिंग कमेटी बनाकर सरकारी झुनझुना टीम अन्ना के हाथ में पकड़ा दिया था जिसे लेकर वे साल भर घूमते रहे लेकिन किसी ने उनकी कोई बात नहीं सुनी। आखिरकार झुनझुना भी हाथ से गया और अन्ना अबकी रामलीला मैदान में आ डटे। एक बार फिर लंबा प्रयास लेकिन झुनझुने की ही तरह इस बार संसद की बजाय सरकार ने लोकपाल की डुगडुगी बजा दी। अनशन एक बार फिर टूट गया लेकिन अन्ना या उनकी टीम के हाथ में कुछ नहीं आया। इस बीच लोकपाल का लड्डू तो टीम अन्ना को हासिल नहीं हुआ लेकिन पूरे अभियान को सरकार ने जलेबी की तरह गोल गोल घुमा दिया। इसके बाद अबकी एक बार फिर अनशन शुरू हुआ लेकिन अगुवाई अन्ना की बजाय टीम अन्ना कर रही है।

पिछली बार जब अनशन हुआ था तो केवल एक ही मांग सरकार के सामने रखी गई थी कि वे एक सख्त लोकपाल पारित कर दे। जिसके लिए सरकार और टीम अन्ना में कई दौर की बातचीत भी चली थी। बीते शीतकालीन सत्र में सख्त लोकपाल न सही लेकिन लोकपाल लोकसभा में पास भी हो गया था। लेकिन इस बार लोकपाल की जगह तीन मुख्य मांगों को रखा गया है। जिसमें पहली है सरकार जल्द उन 15 मंत्रियों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल से कराए जिन पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप है। उन मंत्रियों के नाम हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम, प्रणव मुखर्जी, शरद पवार, एसएम कृष्णा, कमल नाथ, प्रफुल पटेल, विलास राव देशमुख, वीरभद्र सिंह, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, जीके वासन, फार्रूख अब्दुल्लाह, एमके अलागिरी और सुशील कुमार शिंदे। विशेष जांच दल के अध्यक्ष के रूप में ईमानदार रिटायर्ड जज को रखा जाए।

दूसरी मांग है कि जिन पार्टी अध्यक्षों के खिलाफ सीबीआई के मामले चल रहे हैं। वह सीबीआई की बजाए विशेष जांच दल से कराई जाए। तीसरी और अंतिम मांग है कि जितने भी दागी सांसदों के खिलाफ मामले चल रहे हैं। उनके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाए जो 6 महीने में मामले का निपटारा करे। लोकसभा के 162 और राज्यसभा के 39 सांसद दागी हैं। जिनमें से 77 लोकसभा और 14 राज्यसभा के सांसदों के खिलाफ संगीन आपराधिक मामले दर्ज हैं।
यह तीनों ही मांगे लोकपाल से हटकर हैं। जंतर-मंतर पर बाटे गए पर्चों में भी इन्ही तीन मांगों का जिक्र है। लोकपाल का नामोनिशान कहीं नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार इन मांगों के बारे में गौर भी करेगी। सरकार पहले ही कह चुकी है कि उन्हें टीम से कोई सरोकार नहीं है। क्योंकि सरकार अगर इनमें से कोई भी मांग मानती है। तो उसकी कुर्सी खतरे में आ जाएगी। मसलन पहली मांग तो मानने का सवाल ही नहीं उठता कि वह अपने मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच विशेष जांच दल से कराए। अगर ऐसा होता है तो सरकार का मुश्किल में फंसना तय है। दूसरी मांग ती जिन नेता अध्यक्षों के खिलाफ सीबीआई जांच कर है उसे विशेष जांच दल को दे दिया जाए। इस मांग को भी सरकार मानेगी ऐसा लगता नहीं क्योंकि सभी को मालूम है सीबीआई प्रधानमंत्री के अंतर्गत आती है। उसका प्रयोग राजनीतिक हित साधने में होता ही रहता है। अगर टीन अन्ना के आरोप सही है कि प्रणव मुखर्जी के समर्थन के एवज में मुलायम सीबीआई जांच में राहत देने का वायदा कांग्रेस ने किया है तो सरकार ऐसे मोहरे को अपने हाथ से मुश्किल ही जाने देगी। जब किसी दल की गर्दन सरकार को हाथ में होगी तभी तो वह उससे राजनीतिक मोल-भाव कर सकती है।

तीसरी मांग को देखे तो उसमें संसद के शुद्धीकरण की बात कही गई है। यानी सांसदों के खिलाफ जो मामले चल रहे हैं, उसकी जांच फास्ट ट्रैक कोर्ट से करवाने की बात कही गई है। अगर ऐसा होता है तो 6 महीने के अंदर जिन 91 सांसदों के खिलाफ संगीन आरोप है वह जेल में होंगे। इस मांग से भला कौन सा दल सहमत होगा, क्योंकि लगभग सभी दलों में ऐसे सांसद हैं जिन पर आपराधिक मामले चल रहे हैं।

फिर भी टीम अन्ना ने इस बार अपने अनशन के दौरान जिन मांगों को रखा है, उसमें विपक्ष के लिए भी मुसीबते हैं। क्योंकि दूसरी और तीसरी मांग पर नजर डाले तो वह सरकार के साथ सभी दलों और सांसदों के लिए खतरा साबित हो सकती हैं। सरकार भले ही अभी कह रही हो कि उन्हें टीम अन्ना और उनकी मांगों को कोई लेना देना नहीं है, लेकिन लोगों का हुजूम बढ़ता गया तो देर-सवेर सरकार दबाव में आएगी। उस समय इन मांगों को मानने की बजाय लोकपाल पास करना सरकार के लिए ज्यादा अच्छा विकल्प होगा। फिर भी कह पाना मुश्किल है कि टीम अन्ना सरकार की जलेबी बना रही है या फिर सरकार टीम अन्ना को गोल गोल घुमा रही है?


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