BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Monday, July 30, 2012

वही जंतर-मंतर, वही अन्ना हजारे

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वही जंतर-मंतर, वही अन्ना हजारे

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वही जंतर-मंतर। वहीं अन्ना टीम। वहीं मांग। रास्ता कैसे निकलेगा। सुबह से आधी रात तक हरी दरी पर बैठे बदलते चेहरों के बीच यह एक सामान्य सा सवाल है? लेकिन वही सरकार, वही नेता, वही ताने। यह अनशन के दौरान उसी हरी दरी पर बैठे लोगों के नये सवाल है। तो रास्ता कैसे निकलेगा? अब तो सरकार के चेहरे खुलकर कहने लगे है कि दम है तो चुनाव लड़ लो, और मंच पर अनशन किये टीम अन्ना के सदस्यों के बीच भी यह सुगबुगाहट चल निकली है कि अब तो राजनीतिक विकल्प की बात सोचनी होगी। तो क्या अनशन से आगे का रास्ता पहली बार अनशन करते हुये दिखायी देने लगा है। शायद हां। शायद नहीं।

क्योंकि रास्ता राजनीतिक चुनौती की दिशा में जाता जरुर है लेकिन चुनाव का आधार सिर्फ अनशन से या जनलोकपाल की मांग के आसरे खोजना नामुमकिन है। बाहरी दिल्ली से पहुंचे रामनारायण हाथ में राशन दुकान से कैरोसिन तेल पाने की अर्जी है। राजस्थान से आये अशोक के हाथ में कागजों का पुलिन्दा, जिसमें उनकी जमीन पर सरकार ने ही बिना मुआवजे और सूचना दिये कब्जा कर लिया। बुदेलखंड से आई लक्ष्मी अपंग है लेकिन उसे दस्तावेजों में अपंग नहीं माना गया तो उसे नौकरी भी नहीं मिल रही। जाहिर है हरी दरी पर थके हारे जो चेहरे लगातार अपनी अपनी गठरी संभाले बैठे हैं, उनके भीतर अन्ना टीम को लेकर कोई उलझन नहीं है। वह माने बैठे हैं कि सरकार को अन्ना के संघर्ष के सामने झुकना होगा और सरकार झुकेगी या समझौता करेगी तो उनके लिये भी रास्ता निकलेगा। तो क्या राजनीतिक विक्लप की तैयारी के लिये अन्ना टीम को भी अब देश के असल हालात को अपने संघर्ष का हिस्सा बनाना होगा। शायद यह गुफ्तगु शुरु हो चुकी है।

मंच के बगल में टेंट से घेरकर दो बिस्तर बिछाये गये हैं। जहां हर आधे घंटे के अंतराल के बाद केजरीवाल, सिसोदिया और गोपाल राय बारी बारी से आकर लेटते हैं। क्योंकि प्राकृतिक इलाज करने वाले डाक्टरों ने इन्हे सुझाव दिया है कि अगर आप मंच से बोले कम और काफी देर लेट कर आराम करे तो अनशन दस दिन तो आराम से चल सकता है। और आराम के इस कमरे में ही बीच बीच में अन्ना हजारे भी अनशन कर रहे अपनी टीम के सदस्यों की पीठ ठोंक कर हौसला भी लगातार दे रहे हैं। लेकिन महत्वपूर्ण अब आराम के कमरे में बनते भविष्य के सपने हैं। जो खुद धीरे धीरे बुने जाने लगे हैं। सरकार चार दिन भी अनशन को लेकर नहीं देना चाहती है। जनता ने तो 60 बरस सत्ताधारी नेताओ को दे दिये। यह मंच के नीचे बैठे भोला साहू का सवाल है। बीते तीन दिनो में हर सुबह हरी दरी पर आकर बैठना। घर से ही खाने की पोटली ले कर आना। नारे लगाना। झूमना। और आधी रात को करोलबाग के अपने घर लौट जाना। 82 बरस की उम्र में जंतर मंतर पर आकर बैठने के पीछे कोई बड़ी वजह। इस सवाल पर भोला साहू की आंखों में आजादी का दिन ही आ जाता है। जो सपने पाले गये वह टूटे या बिखरे इससे इतर सपने अब भी बरकरार है और भारत को सपने की जरुरत है। जो जंतर मंतर पर उन्हें बार बार दिखायी देती है।

लेकिन इस बार भीड़ नहीं है। लोग कम हैं। क्यों भीड को खोज रहे हैं आप। क्या घरों में अपने काम में उलझे लोगो के भीतर सपने नहीं पल रहे हैं। और अगर भीड ही सबकुछ है तो फिर दिल्ली की सड़कों पर 84 में क्या हुआ था। तब तो भीड़ ही भीड़ थी। लेकिन उस भीड़ की हरकतों पर कांग्रेस ने माफी क्यों मांगी। अयोध्या की भीड़ पर वाजपेयी ने माफी क्यों मांगी। यह सब कहते हुये भोलाराम के चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं बल्कि सुकून ही रहा। पीठ पर हाथ रखकर बोले, सपने जब पलते हैं तो वह भीड़ की शक्ल में सामने नहीं आते। तो क्या भीड को लेकर जो आवाज मीडिया लगा रहा है वह बेमानी है। जो सवाल सरकार के मंत्री उठा रहे है और कम भीड़ देखकर नेताओ ने कसीदे गढने शुरु कर दिये हैं। क्यों इससे अन्ना हजारे बेखबर है। मंच के नीचे आराम के कमरे में इस सवाल का जवाब केजरीवाल के पास अगर रणनीति को लेकर है तो अन्ना हजारे भोलाराम की तरह इसे अपने सपनो में ही तौलते हैं।

अन्ना का साफ कहना है कि अब देश जाग चुका है और जागा हुआ देश बार बार भीड़ नहीं बनता। वहीं केजरीवाल यह मान रहे है कि भीड़ से आंदोलन को तौलना मीडिया और सरकार के लिये सबसे बडी भूल और आंदोलन के लिये सबसे लाभ वाला है। क्योंकि वक्त बीतना तो अभी शुरु भी नहीं हुआ। अब लोग आयेंगे तो वही इन्हें समझायेंगे कि शुरु में ही हमले के हथियार बेकार कर देने का मतलब क्या होता है। लेकिन अब राजनीतिक लडाई की बिसात बिछनी शुरु होगी। मंत्रियों और नेताओ के वही वक्तव्य सरकार को भारी पड़ेंगे जो हमें वह चुनाव लडने के लिये उकसाने वाले दे रहे हैं। केजरीवाल को भरोसा है कि चुनाव की बिसात सरकार ही बिछा रही है और पहली बार अब आम लोग भी सोचेंगे कि क्या वाकई चुनाव में जीत-हार ही देश का भविष्य है। ऐसे में अन्ना तो अनशन पर बैठ जायेंगे और उसके बाद निर्णय तो लोगो को लेना होगा कि अब वह सरकार से जनलोकपाल मांगे या सरकार को बदलने के लिये राजनीतिक तौर पर सोचना शुरु कर दें।

जंतर मंतर पर राजनीतिक तौर पर सोचने का यह ककहरा कैसे हवा में धुल गया है इसका अंदाज हाथ में हाथ डाल कर मंच पर जाने से रोकने वाले युवा वालेटिंयरो के इन सवालो से भी समझा जा सकता है जो समूह में आते लोगो के धक्के खाते हुये यह कहने से नहीं चूक रहे कि अब धक्का तो शहर शहर, गांव गांव खाना है। मगर संसद नहीं देखना है। वहीं मंच के पीछे जिस घर में नहाने और शौचालय की व्यवस्था है, वहां अन्ना को आते जाते देखकर करीब 70 बरस की रमादेवी भी कहने लगी हैं, अन्ना के अनशन साथ साथ वे भी एक वक्त भोजन पर रहेंगी। जैसे शास्त्री जी के कहने पर 1965 में छोडा था। तब तो युद्ध था। यह भी युद्ध से कम नहीं है।


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