BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Wednesday, July 18, 2012

विस्थापन मांगता एक गांव

http://www.janjwar.com/society/1-society/2868-vishthapan-ghad-pulinda-uttarakhand-paudi

हर वर्ष यहां बारिश से लोग महीनों तक अपने ही घर में वंचित कैद बैठे रहते हैं. हालात इतने बेकाबू हो जाते है कि आसपास के इलाको से सपंर्क टूट जाने के कारण उनके घरों में राशन तक नहीं रहता और उनके खाने तक के लाले पड़ जाते है...

नवीन सिंह नेगी 

सुनने में आश्चर्यजनक लग सकता है लेकिन सच है कि उत्तराखंड के कुछ गावों के लोग बारिश नहीं चाहते और वह विस्थापन की बाट जोह रहे हैं. बारिश के इंतज़ार में बेकल इलाकों और विस्थापन के दंश से लड़ रहे देश में यह उलटबांसी इसलिए सुनने को मिल रही है क्योंकि इन गावों के लोगों के लिए बारिश एक त्रासदी की तरह है और जिंदगी बचाए रखने विस्थापन ही एक मात्र उपाय है.

bhooskhlan-pulinda-uttrakhand

जी हाँ सत्तर दशक से भुस्खलन का दंश झेलता ये है पौड़ी गढ़वाल का घाड़ क्षेत्र, जहां के बाशिंदे बारिश की एक बूंद पड़ते ही सिहर उठते है. 1996 में हुये भीषण भूस्खलन की जद में आने से 30 से अधिक परिवार काल के मुंह में समा गये.इससे बावजूद शासन प्रशासन इस गंम्भीर मसले पर पूरे तरह असंवेदनशील रवैया अपनाया हुआ है.

सरकारी प्रयासों की बात करें तो महज 40 हजार रूपये प्रति परिवार मुआवजा थमा कर कर्तव्यों की इतिश्री कर दी है. पुलिंडा और अन्य गांवों बचे 80 परिवारों के सैकड़ों लोग अपने विस्थापन की बाट जोह रहे है क्योंकि मानसून आने के साथ घाड़ क्षेत्र में जिंदगी सहम उठी है. 

सरकार इनके विस्थापन के प्रति कितनी गंम्भीर है इसे विडम्बना ही कहेगें की उत्तराखण्ड राज्य गठन के पूर्व से ही पुलिंडा गांव के विस्थापन की बात स्थानीय लोगों द्वारा लगातार उठाई जा रही है ,कितुं सरकारें आती और जाती रही पर किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया . 1996 में उत्तरप्रदेश सरकार में मुख्य सचिव सुभाष कुमार और मण्डल मुख्यालय पौड़ी के तत्कालीन डी0एम के निर्देशन में एक टीम ने यहां सर्वे कर इस इलाके को अतिसवेंदनशील घोषित किया और प्रभावी रूप से यहां के बाशिंदो के विस्थापन की बात कहीं . 

नौकरशाहों की हीला-हवाली और अधिकारियों के गैर जिम्मेदाराना रैवये से मामला अधर में ही लटका रह गया . इतना ही नहीं यहां के लोगों के लिए खाम क्षेत्र के पापी डांडा पर भूमि का चयन भी हो चुका था, इसे विडम्बना ही कहेगें की इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी ये योजना परवान नहीं चढ़ पाई हैं.

प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में यहां भूस्खलन होता ही है. हैरत की बात ये है कि कोटद्वार नगर से महज 25 किमी0 की दूरी पर बसा ये पुलिंडा गांव आज तक उपेक्षित हैं. हर वर्ष यहां बारिश से होने वाले भूस्खलन से आसपास के इलाको से गांव का संपर्क टूट जाता है, और लोग महीनों तक अपने ही घर में सुविधाओं से वंचित कैद बैठे रहते हैं. हालात इतने बेकाबू हो जाते है कि आसपास के इलाको से सपंर्क टूट जाने के कारण उनके घरों में राशन तक नहीं रहता और उनके खाने तक के लाले पड़ जाते है.

सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए यहां के लोगों ने 'पुर्नवास संघर्ष समिति ' का गठन भी किया . समिति के अध्यक्ष केसर सिंह नेगी से बातचीत में उन्होंने बताया कि 'उनकी आधी उम्र तो एपलिकेशन फाइल इधर से उधर करने में ही कट गई हैं. अगर तत्कालीन कांग्रेस सरकार उन्हें जल्द ही विस्थापित नहीं करेगी तो वो आत्मदाह के लिए भी मजबूर होगें '. यहां के लोगों ने धरने प्रदर्शन और ज्ञापन लेकर कितनी बार शासन-प्रशासन का ध्यान इस ओर खींचना चाहा किन्तु परिणाम 'ढाक के तीन पात' ! 

यदि भौगोलिक परिदृश्य से कहे तो पुलिंडा और इसके आसपास के गांव कच्ची पहाडि़यों पर बसे हैं, हल्की बारिश से भी यहां भूधसाव और भूस्खलन होने लगता है . लैंडस्लाइड और रोड़जाम यहां के लोग अब अपनी नियति बना बैठे हैं. ऐसे में काल की गर्त में बैठे ये लोग कब तक सुरक्षित हैं कहां नही जा सकता . 

ऐसा नहीं है कि नौकरशाह और अधिकारी मामलों से वाकिफ न हो किंतु इनके नकारात्मक रैवये ने स्थिति को और भी भयावह बना दिया हैं. बस यहां के बाशिदों का रोष इस बात को लेकर है कि दोनों ही शीर्ष पार्टियों की सरकार राज्य में रही पर उनके विस्थापन के लिए चले आ रहे संघर्ष को किसी ने भी तबज्जों नहीं दिया और उनका इस्तेमाल हमेशा वोट बैंक के रूप में किया जाता रहा . 

गांव की वृद्ध महिला बंसती देवी उम्र के आखिरी पड़ाव पर है और उसकी चिंता इस बात को लेकर है कि उसके जाने के बाद उसके नौनिहालों को भी इसी डर के साये में जीवन व्यतीत करना होगा या उनको किसी सुरक्षित स्थान पर विस्थापित कर दिया जायेगा. उसके जीवन के ये अंतिम पल इसी दुविधा मे कट रहे हैं. 

बहरहाल पुलिंडा गांव और इसके आसपास का क्षेत्र साल दर साल काल के गर्त में धंसता जा रहे हो. अब जरूरत ये है कि सरकार द्वारा यहां के बाशिंदो के लिए कोई ठोस नितिं बनाई जा ,अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब पुलिंडा गांव का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा .

naveen-singh-negiनवीन सिंह नेगी पत्रकारिता  के छात्र हैं.

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