BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Wednesday, July 18, 2012

होनहार छात्र या खतरनाक नक्सली

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/2880-bijapur-muthbhed-kaka-nagesh-basaguda

बीजापुर मुठभेड़ की खुल रही परत दर परत हकीकत

पिछले नौ सालों से यहां पढऩे वाला यह छात्र पुलिसकर्मियों और एसपीओ के साथ थाने के सामने रोज क्रिकेट खेला करता था, इसके बावजूद भी यह बासागुड़ा थाने के रिकॉर्ड के अनुसार एक खतरनाक नक्सली है...

सारकेगुड़ा से देवशरण तिवारी

बस्तर में सलवा जुडूम के बाद से आया तूफान लगातार तेज होता चला गया. इस तूफान पर नियंत्रण के लिये केन्द्रीय बलों का सहारा भी लिया गया. पूरी ताकत झोंक दी गई, लेकिन हालात सुधरने की जगह बिगडऩे लगे. बुरी तरह से बिगड़ चुके हालात अब नियंत्रण से बाहर होने लगे हैं. सलवा जुडूम से जुड़े लोगों की रोज हत्या हो रही है.

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काका नागेश के प्रमाणपत्र

सरकारें इनकी सुरक्षा कर पाने में पूरी तरह नाकामयाब साबित हुई है , जनप्रतिनिधियों के ग्रामीण इलाकों में जाने पर जैसे प्रतिबंध लगा हुआ है. ऐसे में सारकेगुड़ा में मुठभेड़ के नाम पर मारे जाने वाले लोगों और उनके परिवारों की हालत देख कर ये लगता है कि दस साल पुराना बस्तर अब से लाख गुना बेहतर था. एक लाख करोड़ रूपये जिस समस्या से उबरने के लिये पानी की तरह बहाये गये उन रूपयों से बस्तर संभाग का एक-एक गांव चमन बन सकता था.

फिलहाल सारकेगुड़ा मुठभेड के बारे में कांग्रेस, सीपीआई, सर्व आदिवासी समाज, आदिवासी महासभा, मानवाधिकार से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता और मीडिया सभी की बातें एक समान हैं और सभी इस मुठभेड़ को सुरक्षाबलों की भूल और लापरवाही बता रहे हैं. शासन प्रशासन आज भी  इस बड़ी गलती को छिपाने के भरसक प्रयास कर रहा है, लेकिन एक झूठ को छिपाने सौ झूठों का सहारा ले रही सरकारों को आनेवाले समय में कई मुश्किलों से गुजरना होगा.

 इस घटना को लेकर सरकारी सुलह सफाई जारी है, लेकिन एक-एक कर सरकारी दावों की पोल भी खुलती जा रही है. उदाहरण के तौर पर मुठभेड़ में जिन नक्सलियों के मारे जाने की बात सरकार कह रही है उन्हीं में से एक का नाम काका नागेश है. काका नागेश का दूसरा नाम राहुल भी है. यह छात्र बासागुड़ा बालक आश्रम का दसवीं कक्षा का विद्यार्थी था. बहुत ही प्रतिभावान विद्यार्थी के रूप में इसकी गिनती होती थी. इसका सहपाठी रामबिलास भी इस घटना में सीआरपीएफ की गोलियों का शिकार हो गया. 

बासागुड़ा बालक आश्रम के अधीक्षक राजेन्द्र नेताम ने अफसोस के साथ कहा कि अगर घटना दो दिनों बाद होती तो ये बच्चे बच गये होते क्योंकि एक जुलाई से ये दोनों बच्चे आश्रम आ गये होते. उन्होंने बताया कि लगातार नवमीं तक काका नागेश का रिजल्ट सर्वश्रेष्ठ रहा. काका नागेश को अंग्रेजी और गणित विषय पढ़ाने वाले श्री नेताम ने बताया कि ये दोनों छात्र हमेशा साथ रहते थे. आश्रम में मौजूद अन्य बच्चों ने भी इन दोनों छात्रों की तारीफ की और अफसोस जताया. इधर कलेक्टर रजत कुमार ने कहा है कि उनको अभी तक इसके विद्यार्थी होने का कोई प्रमाण नहीं मिला है. 

इसी आश्रम की चहार दीवारी से लगा बासागुड़ा थाना है. इस थाने के रिकॉर्ड में यही काका नागेश बेहद खतरनाक नक्सली है. इसके खिलाफ दो गंभीर मामले हैं. पुलिस रिकॉर्ड में काका नागेश उर्फ काका राहुल के खिलाफ स्थाई वारंट जारी किया गया है. फिलहाल मुठभेड़ के बाद पुलिस ने जो जानकारी सरकार को दी सरकार उस जानकारी पर पूरा भरोसा दिखाते हुए पुलिस इस बात पर अडिग है कि काका नागेश वाकई नक्सली था. 

पिछले नौ सालों से यहां पढऩे वाला यह छात्र पुलिसकर्मियों और एसपीओ के साथ थाने के सामने रोज क्रिकेट खेला करता था. इसके बावजूद भी यह बासागुड़ा थाने के रिकॉर्ड के अनुसार एक खतरनाक नक्सली है. घटना के बाद मुठभेड़ की हकीकत के सामने आने पर आनन फानन में यह साबित करना भी जरूरी था कि मारे गये लोग ग्रामीण नहीं बल्कि नक्सली थे. इसी हड़बड़ी में मरने वाले मडक़म सुरेश, मडक़म नागेश, माड़वी आयतू, मडकम दिलीप, कोरसा बिज्जे और इरपा नारायण के साथ काका नागेश को भी नक्सली बता दिया गया. 

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बेटे का आईडी कार्ड दिखाती मां लक्ष्मी

सारकेगुड़ा में इन सभी के परिजनों से बात की गई सभी ने यही कहा कि सारे लोग सप्ताह में 2-3 बार बासागुड़ा जाते रहते थे. कई बार बीजापुर जाने के समय रास्ते में मौजूद सीआरपीएफ के आधा दर्जन चेक पोस्ट में उनके आने जाने का रिकॉर्ड लिखा जाता रहा है, लेकिन पुलिस की बातों पर सरकार को जितना भरोसा है उतना भरोसा किसी पर नहीं है. 

बासागुड़ा के थाना प्रभारी वीके तिवारी से बासागुड़ा थाने में मुलाकात हुई. श्री तिवारी से जब इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे घटना के दिन अपने गृहग्राम अंबिकापुर गये हुए थे. घटना के दो दिन बाद जब वे रांची में थे तब उन्हें घटना की जानकारी टीवी के माध्यम से मिली. उन्होंने कहा कि उनकी गैर मौजूदगी में बीजापुर से भेजे गये एएसआई खान ने ही सारी जानकारी तैयार कर शासन को प्रेषित की है. उन्हें नहीं मालूम की यह सातों कौन हैं और इन पर कौन-कौन से मामले दर्ज हैं. 

बीजापुर जिले के उसूर ब्लॉक के चिपुरभट्टी पंचायत के कोत्तागुड़ा गांव की एक झोपड़ी में काका नागेश की मां लक्ष्मी और भाई काका रविन्द्र इस होनहार बच्चे का जिक्र आते ही फफक कर रो-पड़े. रविन्द्र ने बताया कि घटना के दिन वह मजदूरी करने आंध्र के कोसबागा गया हुआ था. वह अपने छोटे भाई को आखिरी बार देख भी न सका. मां लक्ष्मी को जब बताया गया कि बासागुड़ा थाने में उसके मृत बेटे के खिलाफ स्थाई वारंट जारी है तो उसने रोते हुए कहा कि यहां से बासागुड़ा थाना सिर्फ कुछ किलो मीटर की दूरी पर है. आज तक उसके बेटे को पकडऩे पुलिस यहां क्यों नहीं आई. अगर पुलिस उसे पकड़ कर ले गई होती तो कम से कम उसकी जान तो बच गई होती. 

काका नागेश की कहानी की तरह ही उन छ: लोगों की कहानियां हैं जिन्हें सरकार खतरनाक नक्सली बता रही है. लगभग इसी तरह की कई कहानियों को जोड़ कर सारकेगुड़ा मुठभेड़ की सरकारी कहानी पूरी ताकत के साथ आम लोगों के सामने पेश की जा रही है, लेकिन आम लोग कुछ खास लोगों द्वारा बनाई गई इस सरकारी कहानी को मानने तैयार ही नहीं हैं.

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