अभिषेक मनु सिंघवी via हाईकोर्ट… अब बहुत हुआ सम्मान!
♦ दिलनवाज पाशा
न्याय व्यवस्था में आये इस सशक्त बदलाव की पुष्टि वाहन चालक संहिता और कैमरोपनिषद के धतकर्माख्यान में उल्लिखित है कि कैसे समस्त विवाद आपसी सहमति से निपटाये जाते थे, जो इस बात का परिचायक है कि सुदृढ़ न्यायिक व्यवस्था राज्य में सुख और शांति बनाये रखने में सहायक थी!
(सतीश पंचम द्वारा लिखी जा रही सन् 2069 में इतिहास की उत्तर पुस्तिका का अंश)
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हांमैंने अभिषेक मनु सिंघवी की सेक्स सीडी देखी है… और कम से कम दस बार देखी है। मैं पूरी प्रमाणिकता (अगर मेरी आंखें सही हैं, मेरे बयान को झूठा साबित करने के लिए उनका टेस्ट भी कराया गया जा सकता है) के साथ कहता हूं कि कोर्ट चैंबर में कानून की मोटी-मोटी किताबों के साये में सेक्स कर रहा व्यक्ति अभिषेक मनु सिंघवी ही है।
और मैं यह भी कहता हूं कि सिंघवी ने न सिर्फ देश से झूठ बोला है बल्कि अपने पद और प्रतिष्ठा का गलत इस्तेमाल करते हुए अपने ड्राइवर को हाईकोर्ट में झूठा हलफनामा पेश करने के लिए मजबूर किया है।
हाईकोर्ट ने जो फैसला दिया है मैं उसका सम्मान करता हूं, लेकिन सीडी देखने के बाद मैं हाईकोर्ट का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूं कि अभिषेक मनु सिंघवी, जो कि एक प्रतिष्ठित अधिवक्ता और देश के सर्वोच्च मंदिर संसद के सदस्य हैं, ने न सिर्फ कोर्ट बल्कि देश से झूठ बोला है।
और मैं भारत का एक नागरिक होते हुए, अपनी समझ से सिंघवी के झूठ को मानने से इंकार करता हूं और मेरी आत्मा कहती है कि सिंघवी के झूठ के आधार पर दिये गये हाईकोर्ट के फैसले में खामी हो सकती है, तो व्यक्तिगत तौर पर मैं हाईकोर्ट के फैसले को भी शक की निगाह से देखने पर मजबूर हूं।
चूंकि मैं भारत का आम नागरिक हूं, इसलिए मेरी मजबूरी यह भी है कि मैं हाईकोर्ट के फैसले, चाहे वो जिस भी परिस्थिति में, जिस भी प्रायोजन से दिया गया हो, का सम्मान करूं।
इसलिए आम नागरिक की मजबूरियों का सम्मान करते हुए मैं भी हाईकोर्ट के फैसले का सम्मान करने के लिए मजबूर हूं।
(दिलनवाज पाशा दैनिक भास्कर से जुड़े पत्रकार हैं।
संतीश पंचम और दिलनवाज की टिप्पणी फेसबुक से उठा कर यहां चिपकायी गयी है।)
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