BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Monday, April 30, 2012

प्‍लीज प्‍लीज … विकी डोनर अब तक नहीं देखी तो देख आइए!

http://mohallalive.com/2012/04/30/sarang-upadhyay-recommended-to-watch-vicky-donor/

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प्‍लीज प्‍लीज … विकी डोनर अब तक नहीं देखी तो देख आइए!

30 APRIL 2012 4 COMMENTS

♦ सारंग उपाध्‍याय

मुंबई से सटे एक उपनगर में रात तकरीबन साढ़े दस बजे विकी डोनर देखने पहुंचा। हॉल में कुल जमा 20 लोग भी नहीं थे। संभवत: रविवार होने और दूसरे दिन ऑफिस जाने की जल्‍दी के चलते आमतौर पर लोग देर रात का शो देखने से बचते हैं। वैसे फिल्‍म के भी दो ही शो थे। पहला दिन में साढ़े बारह बजे और दूसरा रात को साढ़े दस बजे। साढ़े दस की फिल्‍म को तकरीबन एक बजे के आसपास छूटना था। मैंने काउंटर पर टिकिट लेते हुए बंदे को टोका भी था कि भाई इतनी रात का शो क्‍यों रखते हो? रात को घर लौटते दो बजेगा? क्‍या फिल्‍म अच्‍छी नहीं है? उसने कहा कि फिल्‍म तो बहुत अच्‍छी है, मैंने तड़ से कहा – अच्‍छी तो मैंने भी सुनी है, फिर भी तुमने केवल दो ही शो रखे। दिन में एकाध तो फिट कर ही सकते थे। मेरी बात सुनकर उसके चेहरे पर दैनिक वेतन भोगी वाली वैरागी मुस्‍कान फैल गयी।

बहरहाल, हिंदी सिनेमा में एक बेहद नये विषय पर बनी विकी डोनर जैसी बेहतरीन, संजीदा और अभिनय के प्रति समर्पित कलाकारों के मंझे हुए अभिनय से लबरेज इस फिल्‍म को देखकर लगा कि हद हो गयी, कमबख्‍त एक नये तरह के अन्‍याय ने सिनेमा के पर्दे पर इतनी तेजी से पैर पसारे हैं कि इतनी शानदार फिल्‍म उसके लिए यहां केवल दो ही शो हैं। ऊपर से इन "तेज" तर्राट फिल्‍मों के प्रचार की चाशनी के बीच इसके एकाएक गायब होते जाने के लक्षण ठीक नहीं हैं। यही हाल रोड टू संगम का भी था। उस जैसी फिल्‍म की भी यही हालत हुई। न तो दशकों को पता चला कि वह कब आयी, और न ही उसके बारे में किसी तरह की चर्चा की गयी।

वैसे विकी डोनर के बारे में अपन को भी इतना पता नहीं था। सिवाय इसके कि यूटीवी में काम करने वाली अपनी ग्राफिक डिजाइनर पत्‍नी इसे देखने के बहुत पीछे पड़ी थी, सो वहीं दूसरी बात इस फिल्‍म के बारे में यह पता चली कि विकी डोनर को देखने के बाद सलीम खान ने इसके निर्देशक शुजित सरकार को घर बुलाया और खुश होकर अपनी फिल्‍म फेयर की ट्रॉफी उठाकर दे दी। इस हिदायत के साथ कि जब किसी दूसरे का काम उन्‍हें अच्‍छा लगे और दिल को छू जाए तो इसे उसे दे देना, तब तक इसे विरासत की तरह संभालो। खैर, एक अच्‍छी फिल्‍म तक पहुंचाने के लिए कई बार विज्ञापन और समीक्षा काम नहीं आती, बहुत सामान्‍य और घरेलू नुस्‍खे भी काम आ जाते हैं, सो यह काम कर गया।

वैसे इस फिल्‍म के बारे में किसी तरह की कोई समीक्षा लिखने के मूड में नहीं हूं और न ही जरूरी समझता हूं। बस इन शब्‍दों के लिए समय निकालने का यही हेतु है कि जो लोग अच्‍छा सिनेमा देखना पसंद करते हैं, उन्‍हें इस फिल्‍म को जरूर देखना चाहिए।

हां, फिल्‍म के बारे में बस इतना ही कि अन्‍नू कपूर को सलाम करना होगा जिनके हर अंग से पर्दे पर अभिनय का वह कुशल अनुभव आकार लेता है कि लगता ही नहीं कि मैं उस आदमी को देख रहा हूं जो इस समय बेहद कम फिल्‍में कर रहा है। यमी गौतम की खूबसूरती मैंने डेस्‍कटॉप पर चस्‍पां कर ली है, एकदम सई वाली एक्‍टिंग के साथ कायल कर देने वाली उनकी खूबसूरती आगे बहुत कहर ढा सकती है। आयुष्‍मान के अंदर उतरी दिल्‍ली ने वाकई में पानी में रंग दिखा दिये हैं। बाकी कलाकारों को भी बधाइयां दूंगा। और हां, इस फिल्‍म के विषय के बारे में मौन रहते हुए आखिरी में केवल यही कि स्‍पर्म डोनेशन जैसे बेहद संवदेनशील व गंभीर मुद्दे को छूने वाली पटकथाकार जूही चतुर्वेदी और शुजित सरकार द्वारा निर्देशित इस शानदार फिल्‍म को प्‍लीज प्‍लीज जरूर देखा जाना चाहिए।

(सारंग उपाध्‍याय। युवा कवि, लेखक एवं पत्रकार। दैनिक भास्‍कर, वेबदुनिया और लोकमत समाचार के बाद इस समय मंबई में रेडिफ मनी से जुड़े हैं। उनसे sonu.upadhyay@gmail.com पर सपंर्क किया जा सकता है।)


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