BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, March 3, 2012

अच्‍छी फिल्‍म के नशे में हम चंबल के बीहड़ तक पहुंच गये

अच्‍छी फिल्‍म के नशे में हम चंबल के बीहड़ तक पहुंच गये


 आमुखसिनेमा

अच्‍छी फिल्‍म के नशे में हम चंबल के बीहड़ तक पहुंच गये

2 MARCH 2012 2 COMMENTS

♦ संजय चौहान

रिकार्डधारी एथलीट से बागी और फिर डाकू बने पान सिंह तोमर की कहानी जानने के लिए करीब डेढ़ साल तक मध्य प्रदेश के ग्वालियर, भिंड, मुरैना सहित कई शहरों की खाक छाननी पड़ी थी हमें। तिग्मांशु धूलिया जब मिले तो उनके पास सिर्फ संडे मैग्जीन में छपी एक रिपोर्ट थी, जिसमें पान सिंह तोमर के धावक और बागी होने का एक लेख था। हमारे पास एक और सूचना थी कि उनके गांव का नाम भिड़ौसा है। ग्वालियर के नजदीक के इस गांव के अलावा और कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी। गूगल भी मदद में बेकार था और दौड़ के धावकों के नाम तक किसी खेल एसोसिएशन से नहीं मिल रहे थे।

सबसे पहले हमलोग उनके गांव गये। परिवार के बारे में पता चला, लेकिन कहां है, ये नहीं मालूम हो पा रहा था। चंबल में पुश्तों तक दुश्मनी चलने की बात सच लगी। कोई बताने को तैयार नहीं था। क्या पता दुश्मन के लोग पता करना चाह रहे हों?

पूर्व बागी मोहर सिंह से एक सरकारी गेस्ट हाउस में बात करते समय वहां के चौकीदार ने उस गांव का नाम बताया, जहां पान सिंह तोमर और उनके गैंग का एनकाउंटर हुआ था। उस गांव के लोगों से थोड़ी सूचना मिली। पुलिस वालों, पूर्व बागियों से मिलने का सिलसिला महीनों चलता रहा। मुंबई से दिल्ली, दिल्ली से रोड के जरिये ग्वालियर, मुरैना, भिंड, धौलपुर के सफर ऐसे होते थे, जैसे हम मुंबई में एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले को निकल रहे हों। बंगाल रेजीमेंट, रुड़की और स्पो‌र्ट्स एकेडमी, पटियाला के चक्कर अलग लगाने पड़े। धीरे-धीरे सूचनाएं मिलने लगीं और एक कहानी नजर आने लगी, लेकिन परिवार वालों से अभी तक मुलाकात नहीं हो पायी थी। तीन महीनों की जद्दोजहद के बाद पान सिंह तोमर के बेटे से मुलाकात हुई। फिर जानकारियां पुख्ता होती गयीं।

इस पूरे शोध में डेढ़ साल लग गये, लेकिन उसका फायदा यह हुआ कि पटकथा लिखने में समय नहीं लगा। चूंकि मैं भोपाल से हूं और बुंदेलखंड की बोली से अच्छी तरह वाकिफ हूं, इसलिए संवाद लिखने में भी दिक्कत नहीं हुई। हां, मैंने इस बात का ख्याल रखा कि ऐसे देशज शब्दों का ज्यादा उपयोग न हो, जिसे दूसरी बोली-भाषा वाले न समझ सकें।

इरफान और विपिन शर्मा के अलावा ज्यादातर कलाकार मंच के हैं, इसलिए संवाद अदायगी में दिक्कतें नहीं आयीं। हां, माही गिल चूंकि पंजाब से हैं, इसलिए संवाद समझने में उनकी थोड़ी मदद करनी पड़ी। वह भी तेजी से मिट्टी के रंग में रंग गयी।

चंबल के बीहड़ों में शूटिंग आसान नहीं थी। न मेकअप वैन वहां जा सकती थी और न आराम के साज-ओ-सामान, लेकिन सबको नशा था एक अच्छी फिल्म बनाने का, सो सबने दिल लगाकर काम किया। इतनी अच्छी फिल्म से जुड़ना मेरे लिए गर्व की बात है।

चवन्‍नी चैप से कॉपी-पेस्‍ट

(संजय चौहान। "पान सिंह तोमर" की कथा-पटकथा लिखी। "आई एम कलाम" की कहानी के लिए 2011 का फिल्मफेयर पुरस्कार। मैंने गांधी को नहीं मारा और साहब बीवी और गैंगस्‍टर की कथा-पटकथा भी लिखी।)

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