अथ पौड़ी गाथा-8
लेखक : एल. एम. कोठियाल :: अंक: 20 || 01 जून से 14 जून 2011:: वर्ष :: 34 :July 17, 2011 पर प्रकाशित
http://www.nainitalsamachar.in/story-of-pauri-eight/
अथ पौड़ी गाथा-8
लेखक : एल. एम. कोठियाल :: अंक: 20 || 01 जून से 14 जून 2011:: वर्ष :: 34 :July 17, 2011 पर प्रकाशित
नगर में किया गया रचनाकर्म (ग)
वर्तमान शताब्दी के प्रथम दशक में नगर में मात्रात्मक दृष्टि से सबसे अधिक पुस्तकों का लेखन हुआ। तकनीक के सर्वसुलभ होने व लिखने वालों का आगे आना भी इसका एक कारण रहा। सन् 2000 से 2011 के बीच कई प्रकार की विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हुईं। कविता संग्रह, कहानी, संग्रह, खण्ड काव्य, व्यंग्य संग्रह, नाटक, उपन्यास के अलावा संपादित पुस्तकें व विषयगत पुस्तकें सामने आईं। लेकिन इनमें सबसे अधिक संख्या कविता संग्रहों की रही।
पुस्तकों में हिन्दी व गढ़वाली में समान रूप से लेखन हुआ तो गिनी चुनी अंग्रेजी में भी लिखी र्गइं। पौड़ी से इतना सृजन होने के बावजूद दुःखद बात यह रही है कि अब नई पीढ़ी में न लिखने वाले आगे आ रहे हैं और न पुस्तकें पढने वाले। इसका कारण नई पीढ़ी में पढ़ने के प्रति घटता रुझान व उनकी प्राथमिकतायें बदलना ही लगता है। दूरसंचार क्रान्ति के प्रभाव से युवा पढ़ने-लिखने की प्रवृत्ति से दूर हटता चला गया। युवा ही नही पढ़ने-लिखने का काम करने वाला शिक्षक समुदाय भी आज मात्र पाठ्य पुस्तकों तक सिमट कर रह गया है।
गीतकार एवं गायक नरेन्द्र सिंह नेगी से पौड़ी की पहचान है। एक गीतकार व गायक के रूप में वे ख्यातनाम हैं और एक कवि के रूप में भी वे हृदय के भावों को कलमबद्ध करते रहे हैं। उनका पहला कविता संग्रह 'खुचकन्डी' 1991 में, 'गाण्यों की गंगा स्याणों को समोदर' 1999 में व 'मुट्ठ बोटिक रख' 2002 में प्रकाशित हुए। जब गढ़वाली की बात कोई भी नहीं करता था, तब चिकित्सा विभाग में कार्यरत वीरेन्द्र पँवार ने न केवल गढ़वाली में लेखन किया, बल्कि वे इस भाषा को मान्यता देने के लिये लगातार मंचों से बात उठाते रहे। सन् 2004 में उनका चर्चित काव्य संग्रह 'इनमा कनक्वे आण बसन्त' का प्रकाशन हुआ। इसकी एक कविता 'सब्बि धाणी देरादूण' काफी लोकप्रिय हुई, जिसे नरेन्द्रसिंह नेगी ने स्वर दिया था।
इसी दौर में आकाशवाणी में तैनात नरेन्द्र कठैत ने गढ़वाली में अनेक विधाओं में पुस्तकें लिखीं। बगैर किसी आर्थिक सहायता के अपने ही संसाधनों से अब तक कठैत 6 पुस्तकें लिख चुके हैं। उन्होंने गढ़वाली भाषाई लेखन में कई प्रयोग किये। इनमें नाटक, खण्ड काव्य व व्यंग्य आदि हैं। मूलतः व्यंगात्मक शैली के माध्यम से अपनी बात कहने वाले लेखक नरेन्द्र कठैत निरन्तर लेखन में निमग्न रहे हैं। उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं एक गढ़वाली नाटक 'डॉ. आशाराम' (2003), कविता संग्रह 'टुप-टप' (2006), व्यंग्य संग्रह 'कुळा पिचकरि' (2007), 'पाणि' खण्ड काव्य (2008) व व्यग्य संग्रह 'लग्या छां' (2008) तथा 'अड़ोस-पड़ोस' (2009)। संपादित पुस्तकों में एक लोक बाराखड़ी भी थी जिसका संपादन श्रद्धम संस्था व पौड़ी परिसर के राजनीति विज्ञान विभाग के बिमल गैरोला द्वारा किया गया। इसी संस्था के द्वारा मालचन्द रमोला द्वारा लिखित 'हिन्दी गढ़वाली शब्दकोश' का प्रकाशन करवाया गया। 2001 में डॉ. श्यामधार तिवारी एवं गणेश खुगशाल 'गणी' के संयुक्त संपादन में 'मेले और उत्सव परम्परा' का प्रकाशन पौड़ी से हुआ।
स्मारिकाओं में 2000 में गढ़कला मंच द्वारा पौड़ी में आयोजित नरेन्द्र सिंह नेगी के सम्मान समारोह के अवसर पर प्रकाशित 'अक्षत' तथा 2002 में मूर्धन्य लेखक डॉ. गोविन्द चातक के सम्मान समारोह के अवसर पर अक्षत नाम से 'गढ़वाली लोक साहित्य में गोविन्द 'चातक' का योगदान' प्रमुख हैं। इनका संपादन गणेश खुगशाल 'गणी' द्वारा किया गया। 2005 में गढ़वाली के भजनंसिंह सिंह के शताब्दी समारोह के अवसर पर उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट द्वारा उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाशित की गई स्मारिका का संपादन इतिहासकार यशवन्त सिंह 'कटोच' ने किया। पौड़ी परिसर के अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष सतीश एकान्त ने 'इम्पे्रशन' नामक पुस्तक गढ़वाल विश्वविद्यालय के श्रीनगर में हुए दीक्षान्त समारोह के लिये तैयार की, जिसमें देश की पाँच प्रमुख हस्तियों वैज्ञानिक जे.वी.नार्लिकर, उद्योगपति एस.के मुंजाल, उत्तराखण्ड के एन.आर.आई कैलाश जोशी, लेखक रस्किन बान्ड व जैन मुनि को मानद डाक्टरेट की उपाधि राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने प्रदान की थी।
सतीश एकान्त ने 'क्रिटिकल स्पैक्ट्रम-एसेज इन लिटरेरी कल्चर' भी लिखी। अध्यापक वीरेन्द्र खंकरियाल ने 2009 में 'पौड़ी पर्यटन: आस-पास' का प्रकाशन किया। 'उत्तराखण्ड खबरसार' के संपादक बिमल नेगी ने 2009 में अखबार के दस साल का सफर पूरा होने के अवसर पर 'दस सालैक खबरसार' पुस्तक का प्रकाशन किया। 2010 में बिमल नेगी ने गढ़वाली में लिखी कविताओं को लेकर एक संग्रह 'प्रधान जिवरो' का प्रकाशन किया।
उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट द्वारा स्मारिकाओं के अतिरिक्त चार पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। पहली पुस्तक उमेश की अप्रकाशित कविताओं का संग्रह 'जागो बसन्त दस्तक दे रहा है' थी, जिससे पहली बार उमेश के कवि हृदय का पता चला। 2005 में सुदामाप्रसाद प्रेमी द्वारा रचित 'गढ़वाली आणा पखाणा' के माध्यम से 300 दुर्लभ गढ़वाली लोकोक्तियों को व्याख्या सहित प्रकाशित किया गया। ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष राजेन्द्र रावत के रचनाकर्म पर केन्द्रित 'सर उठाकर जीना का' उनके मरणोपरान्त 2010 में प्रकाशन किया गया। इसके संपादक बिमल नेगी थे। 2011 में जनकवि गिरीश तिवारी 'गिर्दा' की रचनाओं पर केन्द्रित पुस्तक 'गिरदा कहता है' का प्रकाशन-संपादन गोविन्द पंत 'राजू' द्वारा किया गया।
दिल्ली में अध्यापक रहे कुलदीप रावत द्वारा सेवानिवृत्ति के बाद 2007 में प्रकाशित दो पुस्तकें ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इनमें से एक 'नकटी राणी' कर्णावती पर तथा दूसरी शराब के विरुद्ध आन्दोलन के लिये सत्तर के दशक में चर्चित रहीं टिचरी माई पर है। पेशे से बिजली विभाग में अभियन्ता बिहारीलाल दनौसी ने 'गढ़वाल के शिल्पकारों का इतिहास' व 'ऊर्जा प्रदेश: उत्तराखण्ड के आधार स्तम्भ' नामक पुस्तकें लिखीं। पौड़ी परिसर के भौतिकी विभाग की विभागध्यक्ष कुसुम नैथानी के द्वारा संयुक्त रूप से गढ़वाली कविता संग्रह 'बसुति' निकला। बेचैन कन्डियाल के स्थानीय प्रकाशन शिखर साहित्य के द्वारा 2005 में सचिन केन्तुरा का एक कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। समर्पित गढ़वाली लेखक सुदामा प्रसाद प्रेमी की पुस्तक 'घंधतोळ' 2008 में निकली। गढ़वाली कवि नेत्र सिंह रावत की 'जागृति' व 'आणा पखाणा' पुस्तकें भी चर्चित रहीं। 2004 में कवि मथुराप्रसाद डोभाल के सुपु्रत्र भगवती प्रसाद डोभाल ने अपना कविता संग्रह क्षितिज के उस पार' छपा। छात्र संघ के विजय रतूड़ी के द्वारा एक कविता सग्रह 'खैरि' 2009 में निकला। वहीं चित्रकार बी.मोहन नेगी के द्वारा पहाड़ पर अनेक कवियों की कविताओं पर बनाये गये कविता पोस्टरों पर 'पहाड़ और पहाड़' 2010 में छपी। कविता पोस्टरों पर यह अपने प्रकार की अकेली पुस्तक है। इसका प्रकाशन विनसर प्रकाशन ने किया।
गढ़वाली भाषा में रूपान्तरण का काम बहुत कम हुआ है। डेढ़ सौ साल पहले मिशनरी के द्वारा अंग्रेजी की बाईबिल का गढवाली अनुवाद पुस्तक रूप में प्रकाशित कराया था। लेकिन हिन्दी से गढ़वाली में शायद ही किसी पुस्तक का पौड़ी में अनुवाद प्रकाशित हुआ हो। लेकिन अभी-अभी पेशे से अध्यापक मदनमोहन नौडियाल ने एक कदम आगे बढ़ कर संस्कृत टीका 'रुद्राष्टाध्यायी' का गढ़वाली भाषा में अनुवाद करने का साहस किया। धार्मिक पुस्तकों में मोलखण्डी के गोवर्धन प्रसाद मैठानी द्वारा लिखित 'कर्मकाण्ड' भी एक थी।
1998 के दौर में युवा नवीन दर्द ने मात्र 20 साल की आयु में एक गज़ल संग्रह 'करबे फुरकत' प्रकाशित करवाया जो हिमवन्त प्रेस से प्रकाशित हुआ। हालांकि इसके बाद उनकी रचनाधर्मिता देखने में नहीं आई। लेकिन दुःखद यह है कि कई पाण्डुलिपियाँ प्रोत्साहन या धन के अभाव अथवा लेखकों के देहावसान के कारण छप ही नहीं सकीं। इनमें डब्लू.सी. चौफीन द्वारा लिखी चौफीन परिवार के योगदान पर केन्द्रित 'चॉफीन्स आफ गढ़वाल' एक है। भजनसिंह 'सिंह' की अनेक पुस्तकें और गीतकार मथुराप्रसाद डोभाल के गीत भी इन लेखकों के देहावसान के बाद प्रकाशित नहीं हो सके। कई अन्य पुस्तकें भी हो सकती हैं, जिनका नामोल्लेख इस श्रृंखला में लेखक के प्रयासों के बावजूद नहीं हो सका। पाठक सूचित करेंगे।
संबंधित लेख....
- अथ पौड़ी कथा – 3: रचनाकारों की भी धरती है पौड़ी
पहाड़ का शीतल, शान्त व सुकून भरा वातावरण रचनाधर्मिता के लिये मुफीद माना जाता है। यही कारण है कि हिल स... - अथ पौड़ी कथा- 6 : पौड़ी में रची पुस्तकें (क)
आजादी पूर्व के दौर में पौड़ी में रहते हुए जहाँ लेखकों ने इतिहास, संस्कृति पर लिखा वहीं आजादी के बाद ... - अथ पौड़ी कथा-4: लेखन की प्रेरणा रहे जो पत्र
आजादी से पहले के दौर में पौड़ी से जो भी लेखन हुआ वह एक खास वर्ग तक ही सीमित था। इस वर्ग में या तो अधि... - अथ पौड़ी कथा: 1
अनमने ढंग से बसाया अंग्रेजों ने यह शहर पौड़ी नगर ने अपने 170 साल की आयु में कई उतार चढ़ाव देखे हैं।... - अथ पौड़ी कथा.11 , आन्दोलनों की धरती-3
1941 में पौड़ी मात्र 1,834 की आबादी का कस्बा था। इसमें ज्यादातर संख्या सरकारी कर्मचारियों व उनके परि...
No comments:
Post a Comment