अथ पौड़ी कथा.11 , आन्दोलनों की धरती-3
लेखक : एल. एम. कोठियाल :: अंक: 10 || 01 जनवरी से 14 जनवरी 2012:: वर्ष :: 35 :January 17, 2012 पर प्रकाशित
http://www.nainitalsamachar.in/story-of-pauri-part-11/
अथ पौड़ी कथा.11 , आन्दोलनों की धरती-3
लेखक : एल. एम. कोठियाल :: अंक: 10 || 01 जनवरी से 14 जनवरी 2012:: वर्ष :: 35 :January 17, 2012 पर प्रकाशित
1941 में पौड़ी मात्र 1,834 की आबादी का कस्बा था। इसमें ज्यादातर संख्या सरकारी कर्मचारियों व उनके परिजनों की थी। इनके अलावा दुकानदार व अधिवक्ता थे। सन् 1930 के ईबटसन काण्ड के बाद हुए दमन और आन्दोलनकारियों को लम्बी सजायें दिये जाने के कारण स्थानीय लोगों की आजादी के आन्दोलन में भागीदारी कम हो चली थी। राजनीतिक रूप से जागरूक व्यक्तियों में डर घर कर गया था और अंग्रेजपरस्त लोग सक्रिय हो उठे। इसी कारण पहाड़ के दौरे पर निकले गवर्नर मैल्कम हैली को पौड़ी में सम्मानित करने की योजना बनी, लेकिन कमजोर पड़ने के बावजूद कांग्रेस ने इसका जवाब देने का निश्चय किया और जयानन्द भारती ने अत्यन्त चातुर्य और वीरता के साथ हैली की स्वागत सभा में तिरंगा फहराकर रंग में भंग कर दिया। इन दो घटनाओं के अलावा पौड़ी में आजादी के आन्दोलन तक कोई उल्लेखनीय घटना प्रकाश में नहीं आई। आन्दोलनकारी शक्तियों में बिखराव आने लगा था और पुराने नेता थक गये थे या उदासीन हो चले थे।
जिले में कांग्रेस की स्थापना के बाद से ही राजनैतिक गतिविधियाँ चलती रहती थीं। 1930 के बाद जिले में कई स्थानों पर सम्मेलन आयोजित हुए। सन् 1937 तक गढ़वाल को यू.पी. लेजिस्लेटिव काउन्सिल की दो सीटें मिल गयी थीं। एक पौड़ी व चमोली तहसील के लिये व दूसरी लैंसडौन तहसील के लिये। इस चुनाव में कांग्रेस ने पार्टी के रूप में चुनाव लड़ा और दोनों सीटें जीत लीं। इस विजय के उपलक्ष्य में 5 एवं 6 मई, 1938 को श्रीनगर में हुए राजनैतिक सम्मेलन में पंडित जवाहर लाल नेहरू भी पहुँचे। हरिद्वार से वे मोटर से देवप्रयाग आये, जहाँ रात्रि विश्राम कर अगले दिन 4 मई को घोड़े से श्रीनगर पहुँचे। उनके साथ युवा नेता भक्तदर्शन एवं कोतवाल सिंह नेगी प्रमुख थे। दो दिवसीय कार्यक्रम में पण्डित नेहरू गढ़वाल के असंख्य कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से मिले। उन दिनों प्रताप सिंह नेगी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, भक्तदर्शन सचिव तथा हरेन्द्र सिंह, जिला परिषद के अध्यक्ष थे। नेहरू जी ने राष्ट्रव्यापी स्वाधीनता संग्राम को गढ़वाल हिमालय में तीव्र करने को कहा।
7 मई को पण्डित नेहरू पैदल मार्ग से पौड़ी आये। अनुसूया प्रसाद बहुगुणा, सकलानन्द डोभाल, प्रताप सिंह नेगी, कोतवाल सिंह नेगी एवं हरेन्द्र सिंह रावत उनके साथ थे। भक्तदर्शन रास्ते भर नेहरू को स्थानीय इतिहास व अन्य जानकारियाँ दे रहे थे। पौड़ी में मेसमोर हाईस्कूल में कालेज प्रबन्धन की ओर से नेहरू का भव्य स्वागत किया गया। वे नगर के दूसरे विद्यालय डी.ए.वी. स्कूल भी गये। रामलीला मैदान में उन्होंने एक बड़ी सभा को सम्बोधित किया। उन्हें सुनने के लिये दूर-दूर से ग्रामीण एकत्रित हुए थे। अगले दिन नेहरू जी देवप्रयाग को प्रस्थान कर गये। उनके इस दौरे ने कई लोगों को ऊर्जा से लबरेज किया।
सन् 1941 का व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन पौड़ी जिले में तो चला, किन्तु नगर के अन्दर कोई बड़ी हलचल नही देखी गयी। इस अवधि में गढ़वाल के कई भागों में डोला-पालकी आन्दोलन चला परन्तु नगर निवासियों पर इसका प्रभाव नगण्य ही रहा। सन् 1942 मे सम्पूर्ण देश में भारत छोडो आन्दोलन पूरे वेग से चला। वह भी कोटद्वार, लैसडौन, डांडापानी, दुगड्डा, चमोली, नन्दप्रयाग आदि तक ही सीमित रहा, पौड़ी नगर में उसका विशेष प्रभाव नहीं देखा गया। एक ही घटना का उल्लेख है कि यहाँ के छात्रों ने देश मे चल रहे आन्दोलन से उत्साहित होकर एक जलूस नगर के मुख्य मार्गों पर निकाला, जिसका नेतृत्व एक रायबहादुर के पुत्र ने किया। जलूस की नारेबाजी से क्रुद्ध डिप्टी कमिश्नर गढवाल आर. वी. वर्नेडी ने आन्दोलनकारियों पर कार्यवाही का आदेश दे दिया, परन्तु फिर सलाहकारों की राय पर कि इस कार्यवाही से स्थिति गम्भीर हो जायेगी, अपना आदेश वापस ले लिया और नगर का चक्कर लगा कर जलूस स्वतः ही समाप्त हो गया।
सन् 1941 एवं 1942 के आन्दोलन में ब्रिटिश गढ़वाल के विभिन्न भागों से आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर जिला जेल पौड़ी लाया जाता था। फिर डिप्टी कमिश्नर की अदालत द्वारा दण्ड दे दिये जाने पर सजा काटने बरेली, लखनऊ, फैजाबाद अथवा फतेहगढ़ की जेलों को भेज दिया जाता था। पौड़ी जिला जेल में मात्र पैंतीस कैदियो के रहने की व्यवस्था थी एवं यातना केन्द्र की भी समुचित व्यवस्था नहीं थी। शारीरिक श्रम कराने के लिये कुछ दूरी पर जेल का एक बगीचा था, जिसमें कैदियों से सब्जी उत्पादन का कार्य लिया जाता था।
26 अक्टूबर 1942 को जब पेशावर काण्ड के नायक चन्द्रसिंह गढ़वाली कारागार से मुक्त हुए तो उनके गढवाल प्रवेश पर प्रतिबन्ध रहा। वे कुछ समय तक आनन्द भवन व तत्पश्चात् सपरिवार महात्मा गांधी के साथ वर्धा आश्रम में रहे। लेकिन गांधी जी से वे बहुत प्रभावित नहीं हुए। वहाँ कुछ समय बिताने के बाद उनका झुकाव कम्युनिज्म की ओर होने लगा। इससे कांग्रेसी उनसे कट गये। प्रतिबन्ध समाप्त होने के बाद गढ़वाली जी 22 दिसम्बर 1946 को कुछ कम्युनिस्ट साथियों की सहायता से गढ़वाल आये। गढ़वाल में सर्वत्र उनका भव्य स्वागत हुआ। पौड़ी में पत्रकार जयबल्लभ खण्डूड़ी के नेतृत्व में जनता द्वारा उनका स्वागत किया गया। गढ़वाली जी ने काफी समय पौड़ी में काटा। यहाँ वे कांग्रेसी नेता अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के काण्डई ग्राम में रहने लगे। अपर बाजार में कम्युनिस्ट पार्टी का एक कम्यून भी चलने लगा था।
अन्ततः देश आजाद हुआ। 15 अगस्त 1947 को पौड़ी जिला कार्यालय में तत्कालीन जिलाधिकारी एम.ए. कुरेशी द्वारा ब्रिटिश ध्वज को उतार कर तिरंगा फहराया गया। इस ऐतिहासिक मौके पर समस्त पौड़ीवासियों के साथ जगमोहन सिंह नेगी, भक्तदर्शन, भैरवद्त्त धूलिया, अचलानन्द डोभाल, सकलानन्द डोभाल, ललिता प्रसाद नैथानी, कृपाराम मिश्र एवं उमरावसिंह अधिकारी आदि नेता भी उपस्थित थे। कोतवालसिंह नेगी को रुग्णावस्था के कारण समारोह में लाया गया था। आज भी जिलाधिकारी कार्यालय, जिला जेल पौड़ी, कण्डोलिया मैदान, कण्डोलिया स्थित डिप्टी कमिश्नर का आवास तथा बन्दोबस्त कार्यालय आदि अनेक भवन एवं स्थान स्वतंत्रता संग्राम में पौड़ी के योगदान की याद दिलाते हैं।
(जारी है)
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