BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Tuesday, July 18, 2017

प्रांजय को हटाने के पीछे अडानीवाला केस तो बहना है,असल वजह तेल की धार है पलाश विश्वास

प्रांजय को हटाने के पीछे अडानीवाला केस तो बहना है,असल वजह तेल की धार है
पलाश विश्वास
भड़ासी यशवंत के सौजन्नय से खबर यह है कि एक बड़ी खबर ईपीडब्ल्यू (इकनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली) से आ रही है। कुछ महीनों पहले इस मैग्जीन के संपादक बनाए गए जाने माने पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। माना जा रहा है कि अडानी ग्रुप केे गड़बड़ घोटाले से जुड़ी एक बड़ी खबर छापे जाने और इस खबर पर अडानी ग्रुप द्वारा नोटिस भेजे जाने को लेकर परंजॉय के साथ EPW के प्रबंधन का मतभेद चल रहा था।

समझा जाता है कि प्रबंधन के दबाव में न झुकते हुए परंजॉय गुहा ठाकुरता ने संपादक पद से त्यागपत्र दे दिया। इस घटनाक्रम को कारपोरेट घराने और केंद्र सरकार द्वारा मिलकर EPW प्रबंधन पर बनाए गए दबाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। सच कहने सच लिखने वाले पत्रकारों पर हाल के वर्षों में प्रबंधन का काफी दबाव पड़ता रहा है जिसके फलस्वरूप ऐसे पत्रकारों को इस्तीफा देने को बाध्य होना पड़ा है।

यशवंत ने हाल में घोषणा की है कि भड़ास बंद करने जा रहे हैं।इस खबर के खुलासे से जाहिर है कि वे अपनी आदत से बाज नहीं आयेंगे और मालिकान का सरदर्द बने रहेंगे।प्रांजय को हटाये जाने का अफसोस है।प्रभाष जोशी जब किनारे कर दिये गये और प्रतिबद्ध पत्रकारों का गला जिसतरह काटे जाने का सिलसिला चला है,इसमें नया कुछ नहीं है।बहरहाल यशवंत के जरुरी भड़ासीपन के जारी रहने की उम्मीज जगने से मुझे खुशी है।

 नब्वे दशक की शुरुआत में भी पत्र पत्रिकाओं में संपाद सर्वसर्वा हुआ करते थे।आर्थिक सुधारों में शायद सबसे बड़ा सुधार यही है कि संपादक अब विलुप्त प्रजाति है।बिना रीढ़ की संपादकी निभाने वाले बाजीगरों की बात अलग है,लेकिन प्रबंधन का हिस्सा बनने के सिवाय अभिव्यक्ति की कोई आजादी संपादक को भी नहीं है।

1970 में आठवीं में ही तराई टाइम्स से लिखने की शुरुआत करने के बाद आज 2017 में भी हम जैसे बूढ़े रिटायर पत्रकार की कोई पहचान,इज्जत ,औकात नहीं है क्योंकि संपादकीय स्वतंत्रता खत्म हो जाने के बाद पत्रकारिता की साख ही सिरे से खत्म है।

ईपीडब्लू के गौरवशाली इतिहास और भारतीय पत्रकारिता में उसकी अहम भूमिका के मद्देनजर उसके संपादक के ऐसे हश्र के बाद मिशन के लिए पत्रकारिता करने का इरादा रखने वाले लोग दोबारा सोचें।पत्रकार के अलावा कुछ भी बनें तो कूकूरगति से मुक्ति मिलेगी।

प्रांजय हिंदी में ईपीडब्लू निकालने की तैयारी कर रहे थे।इस सिलसिले में उनसे संवाद भी हुआ है।उनकी पुस्तक गैस वार अत्यंत महत्वपूर्ण शोध है और भारत के राष्ट्रीय संसाधनों की खुली लूट की अर्थव्यवस्था को समझने के लिए यह पुस्तक जरुरी है।

मैंने थोड़ा बहुत कांटेंटशेयर करने की कोशिश की थी,जिसके तुरंत बाद वह सारा का सारा रोक दिया गया।इस पुस्तक का सर्कुलेशन भी रोक दिया गया है।

जाहिर है कि मामला सिर्फ अडानी का केस नहीं है,इसमें तेल की धार का भी कुछ असर हो नहो,जरुर है।यही तेल की धार देश की निरंकुस सत्ता है।

मुश्किल यह है कि प्रबुद्ध जनों को सच का सामना करने से डर लगता है और वे अपने सुविधाजनक राजनीतिक समीकरण के मुताबिक सच को देखते समझते और समझाते हुए झूठ के ही कारोबार में लगे हैं।
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