BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Tuesday, July 7, 2015

अब हमारे और आपके सड़क पर उतरने का वक्त है... पत्रकार हत्याओं के खिलाफ नोएडा से दिल्ली तक पैदल प्रोटेस्ट मार्च 8 जुलाई को यानि कल है... आप भी आइए... चुप रहने, घर बैठे का वक्त नहीं है अब.


Yashwant Singh


अब हमारे और आपके सड़क पर उतरने का वक्त है... पत्रकार हत्याओं के खिलाफ नोएडा से दिल्ली तक पैदल प्रोटेस्ट मार्च 8 जुलाई को यानि कल है... आप भी आइए... चुप रहने, घर बैठे का वक्त नहीं है अब.

पत्रकारों की लगातार जघन्य हत्याओं और उत्पीड़न के खिलाफ देश भर के मीडियाकर्मियों में गुस्सा है. ये मीडियाकर्मी तरह तरह से अपने गुस्से का इजहार कर रहे हैं. दिल्ली एनसीआर के कई पत्रकारों ने तय किया है कि वो चौथे खंभे को जमींदोज करने की साजिशों के खिलाफ पैदल ही प्रोटेस्ट मार्च निकालेंगे और गृहमंत्री से मिलकर ज्ञापन देने के साथ उन्हें अपनी चिंता से अवगत कराएंगे.

दिल्ली एनसीआर के मीडियाकर्मी 8 जुलाई 2015 को गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) के सेक्टर 14 स्थित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय से दिन में 11 बजे प्रोटेस्ट मार्च की शुरुआत करेंगे. यह पैदल प्रोटेस्ट मार्च अक्षरधाम, आईटीओ, मंडी हाउस होते हुए केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के सरकारी आवास 17 अकबर रोड तक पहुंचेगा. वहां राजनाथ सिंह को 5 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन सौंपा जायेगा. इस आयोजन में हर मीडियाकर्मी आमंत्रित है.

यह प्रोटेस्ट मार्च मीडियाकर्मियों के सड़क पर उतर कर गुस्से का इजहार करने के लिए है. इसलिए इसमें हर उस मीडियाकर्मी और संवेदनशील नागरिक को शामिल होना चाहिए जो देश के चौथे खंभे की आवाज खामोश कराने की साजिशों के खिलाफ है.

ज्ञात हो कि इस पदयात्रा को रोकने के लिए गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस की तरफ से लगातार फोन पत्रकारों के पास आ रहे हैं लेकिन मीडियाकर्मियों ने तय कर लिया है कि चाहें जो हो, वो हर कीमत पर पदयात्रा करते हुए अपने विरोध को गृह मंत्री तक पहुंचाने के लिए उनके आवास पर पहुचेंगे. http://goo.gl/YlKhI7
Abhishek Srivastava Rajeev Sharma Shravan Shukla Kunaal JaiszwalPradeep Mahajan Rahul Pandey Janardan Yadav Sanjay Tiwari Rajat Amarnath Mukesh Kumar Vikas Mishra Supriya Prasad Supriya RoyPadampati Sharma Mohammad Anas Samar Anarya Samarendra SinghAnil Pandey Anil Singh Siddharth Kalhans Sheetal P Singh Yogesh Kumar Sheetal Sumant Bhattacharya Satyendra Ps Dayanand Pandey Nadeem Ahmad Kazmi Nadim S. Akhter Sanjaya Kumar Singh Vinit Utpal Vineeta Yadav Kumar Sanjay Tyagi Mayank Saxena


  • July 7, 2015
  • Published in सुख-दुख
  • कानपुर में एक पत्रकार को गोली मार कर गंभीर रूप से घायल कर दिया। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। 

    घटना मंगलवार को नौबस्ता थानाक्षेत्र में हुई। एक दैनिक समाचारपत्र में कार्यरत दीपक मिश्र को गोली मार कर घायल कर दिया गया। उन्हें हमलावरों ने दो गोलियां मारी। उन्हें गंभीर हालत में हैलट अस्पताल में भर्ती कराया गया है। घटना की सूचना मिलते ही नौबस्ता थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई। गोली मारने के बाद भाग निकले हमलावरों को पुलिस दीपक से मिली जानकारी के आधार पर तलाश रही है।आनंद शर्मा, शिमला। 2015-07-07 21:58

    उत्तराखंड में व्यापम नरसंहार तो यूपी में मीडिया संहार...। आम जनता में व्यवस्था के खिलाफ जब आक्रोश बढ़ने लगाता है तो तानाशाही सरकारें आक्रोश को कुचलने के लिए इसी तरह के हथकंडे अपनाती हैं। या इन सरकारों के दिन थोड़े रह गए या फिर लोकतंत्र के....।

    मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व्यापमं घोटाले की सीबीआई से जांच कराने का घोषणा कर दी है। प्रदेश सरकार इसके लिए हाईकोर्ट में सिफारिश करेगी। गत दिनो इसी घोटाले की कवरेज करने मध्य प्रदेश गए आज तक के रिपोर्टर अक्षय सिंह की संदिग्ध हालात मे जान चली गई थी। अब तक लगभग 46 लोग इस घोटाले के षड्यंत्रकारियों के खूनी कारनामों की भेट चढ़ चुके हैं। चौहान ने एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस कर कहा कि मैं रातभर नहीं सोया और जागता रहा। उन्‍होंने कहा कि मेरा निवेदन है कि सीबीआई से जांच कराई जाए। उनका कहना है कि व्‍यापम घोटाले की सीबीआई जांच के लिए वो हाईकोर्ट से अपील करेंगे।

    गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के व्यापमं घोटाले में मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब इस मामले से जुड़े एक कांस्टेबल की मौत हो गयी है। इससे पूर्व कल एक महिला ट्रेनी सब इंस्पेक्टर अनामिका कुशवाहा ने खुदकुशी कर ली थी। उसने सागर में पुलिस एकेडमी के सामने तालाब में कूदकर जान दे दी थी। इसे व्यापम घोटाले से देखा जा रहा है क्‍योंकि भर्ती व्यापमं के तहत ही हुई थी और उसी में घोटाले पर एसआईटी जांच चल रही है। कांग्रेस ने सीएम शिवराज सिंह चौहान पर हमला बोलते हुए मामले पूरी जांच सीबीआई से कराने की मांग की है लेकिन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सीबीआई जांच से इंकार करते हुए कहा कि वह मामले में एसआईटी जांच से संतुष्ट हैं,लेकिन अगर कोर्ट का आदेश होगा तो वह जरूर इस पर विचार करेंगे। 

    • July 7, 2015
    • Published in सुख-दुख
    • जयदीप कर्णिक : मैं अक्षय सिंह को नहीं जानता। ऐसे ही मैं निर्भया, आरुषि और जेसिका लाल को भी नहीं जानता था। मैं तो तेजस्वी तेस्कर को भी नहीं जानता। इन सबमें क्या समानता है? और इस सबका राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म रंग दे बसंती से क्या लेना-देना है? अगर आपने फिल्म देखी है और पिछले दो दिन में अचानक व्यापमं घोटाले को मिली राष्ट्रव्यापी कवरेज को आप देख रहे हैं तो आप ख़ुद ही तार आपस में जोड़ लेंगे।

      बहरहाल, सबसे पहले तो अक्षय को श्रध्दांजलि। जो कुछ उनके बारे में पढ़ा, देखा सुना- वो एक समर्पित पत्रकार थे। ऐसे समय जब चेहरा दिखाने और बाय लाइन पाने की होड़ मची हो, वो अपनी खोजी पत्रकारिता के जुनून में लगे हुए थे। आखिरी पलों में उनके साथ मौजूद रहे उनके कैमरामैन और साथी संवाददाता राहुल करैया इन दोनों की पूरी दास्तां भी सुनें तो लगता है कि वो अपना काम बेहतर जानते थे और व्यापमं घोटाले में हो रही मौतों की कड़ियों को जोड़ने की कोशिश कर रहे थे। जो दास्तां सुनी उससे ये पता लगाना और कठिन होता जा रहा है कि अक्षय की मौत महज एक हादसा थी या कि इसमें कोई षडयंत्र भी हो सकता है। पर जिन परिस्थितियों में और जिस घोटाले के कवरेज के दौरान उनकी मौत हुई है, ये बहुत ज़रूरी हो गया है कि इस पूरी घटना की हर कोण से गहन जांच की जाए और ये पता लगाया जाए कि हमने 36 साल के इस युवा और होनहार पत्रकार को यों अचानक क्यों खो दिया?

      अब सवाल ये है कि क्या देश की राजधानी में बैठा तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया राज्यों और शहरों में होने वाली बड़ी-बड़ी घटनाओं को लेकर तभी यों जागेगा जब उसके तार दिल्ली से जुड़ेंगे? क्या इस पूरे घोटाले को यों जोर-शोर से उठाने के लिए अक्षय की मौत ज़रूरी थी? आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 25 और कांग्रेस तथा अन्य स्वतंत्र दावों के मुताबिक 43 से ज़्यादा ऐसे लोग मारे जा चुके हैं जो इस घोटाले से जुड़े थे। मौत के इन आंकड़ों की भी क्या ज़रूरत है। क्या ये आंकड़े काफी नहीं हैं कि इस घोटाले के सुराग 2006 से ही मिलने शुरू हो गए थे? या ये कि इसके जरिए 2200 से ज़्यादा ग़लत भर्तियां हुई हैं। 1700 से ज़्यादा गिरफ्तारियां हुई हैं और 500 से ज़्यादा आरोपी फरार हैं?

      -व्यापमं: व्यावसायिक परीक्षा मंडल, भोपाल

      -जिम्मेदारीः डॉक्टर, नाप-तौल निरीक्षक, शिक्षक सहित अन्य पदों पर भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित करना

      -मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) की परीक्षाओं में हुई कथित धांधलियों में राज्य के राज्यपाल रामनरेश यादव से लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक सभी आरोपों के घेरे में हैं।

      -इस घोटाले की जांच हाइकोर्ट के निर्देश पर एसटीएफ कर रही है। कांग्रेस इस पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग कर रही है।

      -मामले की जांच कर रही एसटीएफ ने हाल ही में अदालत को बताया कि इस मामले से जुड़े 30 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि मीडिया में करीब 46 की मौत का आंकड़ा सामने आ रहा है। जबकि नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे का कहना है कि इस मामले में 156 लोगों की मौत हो चुकी है।

      -मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा में स्वीकारा कि 1000 सरकारी नियुक्तियों में गड़बड़ी हुई है।

      -भाजपा पदाधिकारी, कई सरकारी अधिकारी, कई नेताओं और उनके रिश्तेदारों के नाम अभियुक्तों की सूची में हैं। मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा इस घोटाले में गिरफ्तार हो चुके हैं।

      -अब तक करीब 1700 लोग गिरफ़्तार किए जा चुके हैं और 500 के लगभग और गिरफ्तार किए जाने हैं।

      -पुलिस सूत्रों का कहना है कि एसटीएफ ने अब तक जान गंवा चुके सभी 32 लोगों को आरोपी माना है और इन्हें 'रैकेटियर्स' कहा है।

      -अब तक 55 मामले दर्ज, 27 में चालान पेश

      -7 जुलाई, 2013 को इंदौर में पीएमटी की प्रवेश परीक्षा में कुछ छात्र फर्जी नाम पर परीक्षा देते पकड़े गए। छात्रों से पूछताछ के दौरान डॉ. जगदीश सागर का नाम सामने आया। सागर को पीएमटी घोटाले का सरगना बताया गया। सागर पैसे लेकर फर्जी तरीके से मेडिकल कॉलेजों में छात्रों की भर्ती करवाता था। जगदीश सागर से एसटीएफ की पूछताछ में खुलासा हुआ कि यह इतना बड़ा नेटवर्क है जिसमें मंत्री से लेकर अधिकारी और दलालों का पूरा गिरोह काम कर रहा है। जांच और पूछताछ में यह सामने आया कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापमं का ऑफिस इस काले धंधे का अहम अड्डा था।

      -जगदीश सागर से खुलासे में पता चला कि परिवहन विभाग में कंडक्टर पद के लिए 5 से 7 लाख, फूड इंस्पेक्टर के लिए 25 से 30 लाख और सब इंस्पेक्टर की भर्ती के लिए 15 से 22 लाख रुपये लेकर फर्जी तरीके से नौकरियां दी जा रही थीं। सागर भी मोटी रकम लेकर फर्जी तरीके से बड़े मेडिकल कॉलेजों में छात्रों को एडमिशन दिलवा रहा था। जगदीश सागर की गवाही इस पूरे घोटाले में अहम साबित हुई

      इस सारी फेहरिस्त और इन आंकड़ों की भी क्या ज़रूरत है? क्या इतना ही काफी नहीं है कि सरकार की नाक के ठीक नीचे, सरकार के ही लोगों की मिलीभगत से एक पूरा ऐसा तंत्र काम कर रहा था जो समाज में ऐसे डॉक्टर, इंजीनियर और अधिकारी भेज रहा था जिनके पास कोई योग्यता नहीं है! इनमें से डॉक्टर को लेकर ज़्यादा चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि समाज डॉक्टर को भगवान मानता है। हमारी सेहत और हमारी जान उनके हाथ में है। ऐसे में जो नाकाबिल लोग हमारा इलाज करने चले आए हैं उनको लेकर क्या समाज भीतर तक हिल नहीं जाएगा? और इन्हीं के बरअक्स उन होनहारों का क्या जो काबिल होते हुए भी डॉक्टर नहीं बन पाए? जैसे भोपाल की तेजस्वी तेस्कर जो पढ़ने में होशियार थी पर उसका पीएमटी में चयन नहीं हुआ और उसने झील में कूद कर जान दे दी। क्या उसकी और ऐसी तमाम अन्य हत्याओं का दोष व्यापमं के आरोपियों के सिर नहीं होना चाहिए? क्या प्रतिभा की हत्या नापने और उसके लिए सजा देने का कोई तरीका या पैमाना भी हमारे पास है?

      क्या इतना सब काफी नहीं था जो इस पूरे मामले पर हमारा 'राष्ट्रीय मीडिया' लगातार धारदार ख़बरें देता, मजबूर करता की जांच सही और तेज़ हो? उसके लिए अक्षय की मौत का इंतज़ार क्यों? जैसा रंग दे बसंती के नौजवान थे जो अपने साथी की मौत के बाद देश में हो रहे रक्षा घोटाले को लेकर जागे और फिर बागी हो गए!! मीडिया तो उन नौजवानों से समझदार मानता है ख़ुद को? निर्भया कांड दिल्ली में ना हुआ होता तो क्या इतना कवरेज मिलता? दिल्ली के ही सेंट स्टीफन कॉलेज के यौन प्रताड़ना प्रकरण को इतनी अधिक तवज्जो क्यों? क्योंकि वो 'बड़े-बड़ों' का कॉलेज है? जब आरुषि हत्याकांड की जांच सीबीआई से हो सकती है तो फिर इतने बड़े और इतनी मौतों वाले घोटाले की जांच सीबीआई से क्यों नहीं?

      क्या मीडिया इस बात का भी ईमानदार विश्लेषण करेगा कि क्यों मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में ये मुद्दा ख़बरों से ग़ायब था? हमें दिल्ली में पानी, बिजली और कचरे की समस्या के बारे में तो ठीक-ठीक पता है पर देश के ह्रदय प्रदेश में कैसे समाज की शिराओं में ज़हर घोल दिया गया उसकी कोई ख़बर क्या हम नहीं लेंगे? या उसे बस कुछ जगह देकर छोड़ देंगे?

      उम्मीद है कि अक्षय की मौत के बहाने से ही सही इस लड़ाई को आख़िर तक लड़ा जाएगा और एक पूरी पीढ़ी की मौत के लिए ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा मिलेगी...।

      आईबीएन लाइव से साभार

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