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Sunday, July 12, 2015
पढ़ रहा था हबीब जालिब की गजल का वो मिसरा है जिसमें ज़ुल्म की रात के बाद का नया सवेरा होगा नहीं इन मुल्कों में अमरीका का कोई डेरा फ़क़्र से कहेगे हिंदुस्तान भी मेरा पाकिस्तान भी मेरा गहन अंधेरे ने लेकिन फिर से हम सबको घेरा है पूरी दुनिया मे अब तो अमरीका का ही डेरा है अाया है जब से भूमंडलीकरण का दौर तीसरी दुनिया बन गया साम्राज्यवादी ठौर
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