BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Tuesday, September 16, 2014

बंगाल के केसरियाकरण से भारत में प्रतिरोध का आखिरी किला भी ध्वस्त नंदीग्राम सिंगुर भूमि आंदोलन समर्थक भद्र बंगीय समाज और तथाकथित सुशील समाज का केसरिया कायाकल्प हो रहा है। सितारे पहले तृणमूली आकाश में चमके और चमकते चमकते काजल की कोठरियों में तब्दील होते रहे और जेल की कोठरियों में स्थानांतरित होने को हैं। बाकी बचे सितारे और आइकन केसरिया होने को बेताब है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

बंगाल के केसरियाकरण से भारत में प्रतिरोध का आखिरी किला भी ध्वस्त

नंदीग्राम सिंगुर भूमि आंदोलन समर्थक भद्र बंगीय समाज और तथाकथित सुशील समाज का केसरिया कायाकल्प हो रहा है।


सितारे पहले तृणमूली आकाश में चमके और चमकते चमकते काजल की कोठरियों में तब्दील होते रहे और जेल की कोठरियों में स्थानांतरित होने को हैं।


बाकी बचे सितारे और आइकन केसरिया होने को बेताब है।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

उपचुनावों के नतीजे के आधार पर यह मान लेने की कोई वजह नहीं है कि मोदी लहर थम गयी है और केसरिया एजंडा के कार्यान्वयन में कोई ढील होगी।


संघ परिवार चाहे सत्ता में हो या सत्ता से बाहर,उसके एजंडे को अंजाम देने की निष्ठा,प्रतिबद्धता और रणानीति के जवाब में धर्मनिरपेक्ष खेमा बार बार मात खाती रही है।


चुनावी हार जीत की बात छोड़िये,आपातकाल में प्रतिबंधित संघ परिवार ने इंदिरा गांधी के साथ साथ सोवियत परस्त समाजवादी माडल के एप्पिल कार्ट उलटाने और भारत को अमेरिका इजराइल जापान का उपनिवेश बनाने की नींव कारसेवा शुरु कर दी थी।


इंदिरासमय में ही आपरेसन ब्लू स्टार मारफ्त हिंदुत्व का सबसे बड़ा ध्रूवीकरण हुआ तो राजीव की जमीन तोड़ बहुमति सरकार को हिंदुत्व साम्राज्यवादी अभिमुख देने में संघ परिवार की निर्णायक भूमिका रही है।


बांग्लादेश मुक्तिसंग्राम और श्रीलंका में सैन्य हस्तक्षेप भी संघी सक्रियता का परिणाम है तो सुपरतकनिीक काल,नवउदारवाद और मुक्तबाजार भी संघी एजंडा का जायनी कारोबार है।


कांग्रेस की जीत से यह समझ लेने की भूल न कीजिये कि संघपरिवार का जनादेश खत्म हो गया।


इतिहास लेकिन गवाह है कि कांग्रेस की राजनीति गांधी वर्चस्व काल से हिदुत्व की राजनीति रही है,समाजवादी माडल के वक्त जो देवरस समरस समय था।


कमंडल के खिलाफ मंडल कार्यक्रम में भी कांग्रेस की बराबर हिस्सेदारी रही है।तो कुल मिलाकर कांग्रेस वही है जो संघ परिवार ।


एक ही सिक्के के दो पहलू।कांग्रेस और संघ परिवार।


इन उपचुनावों में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की भाजपा को खंडित शिकस्त से शाही राजकाज में कोई फर्क पड़ेगा,इसके ज्यादा आसार नहीं है नही पूरे देश को समग्र गाजापट्टी में तब्दील करने का एजंडा वापस होने वाला है और न लव जिहाद और धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण का सिलसिला खत्म होने वाला है।


अस्मिता राजनीति अब पूरी तरह केसरिया है,इसे साबित करने के लिए हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने की जरुरत नहीं है।


बहुजन राजनीति के कफन में जो आखिरी कीलें ठुक गयी हैं।


अखिलेश की जीत की खबर में मायावती कहीं नहीं है।समाजवाद बहुजन वैमनस्य के बावजूद धर्म निरपेक्ष खेमे के लिए यह खास पड़ताल का मुद्दा है।


बहुजन प्रतिनिधित्व के केसरियाकरण का सिलसिला लेकिन थमा नहीं है।


सबसे बुरी खबर बंगाल से है जो बहुजन और प्रगतिशील आंदोलन का गढ़ है। साथ ही बौद्धमय भारत का आखिरी मुक्तांचल भी है,जिसका कुछ हिस्सा अब विदेश है और खुशखबरी यह है कि उस विधर्मी विदेश में अब भी बौद्धमय भारत का अवशेष है जो नेपाल में गौतम बुद्ध के जन्मस्थल से लेकर सिक्किम और लेह  तक में केसरिया हुआ जा रहा है।


संघ परिवार के लिए बंगाल को सर्वोच्च प्राथमिकता बहुत दीर्घकालीन रणनीति है।भारत में कृषिजीवी जनसमुदायों की विरासत आदिवासी जनविद्रोहों से लेकर संन्यासी विद्रोह,नील विद्रोह,1857 की क्रांति और तेभागा से लेकर वाम भूमि सुधार और नक्सल किसान विद्रोह तक के अनंत कैनवास पर बंगाल की अनार्यभूमि है जिस पर सहस्राब्दियों बाद यह आर्यावर्त का निर्णायक हमला है,जिसका असर संपूर्ण जियो पोलिट्कस पर होने वाला है।


सबसे मायनेखेज और सनसनीखेज तथ्य तो यह है कि बंगाल के केसरियाकरण से भारत में प्रतिरोध का आखिरी किला भी ध्वस्त होने जा रहा है।


संशोधनवादी पूंजीपरस्त संसदीय वाम का आत्मघाती विचारधाराविरुद्धे अस्मिता बंगाली मलयाली सौदेबाज मुक्तबाजारी  राजनीति का हश्र यह कि दिनोंदिन तेज होरहे ममता विरोधी तूफान और जनरोष के बावजूद तेजी से सत्ता विकल्प बतौर पद्म प्रलय है तो चौरंगी में वाम जमानत भी जब्त है।


ग्रामीण बशीरहाट में उसे तृणमूल और भाजपा के मुकाबले आधे वोट भी नहीं मिले हैं।


इसीके मध्य नंदीग्राम सिंगुर भूमि आंदोलन समर्थक भद्र बंगीय समाज और तथाकथित सुशील समाज का केसरिया कायाकल्प हो रहा है।


सितारे पहले तृणमूली आकाश में चमके और चमकते चमकते काजल की कोठरियों में तब्दील होते रहे और जेल की कोठरियों में स्थानांतरित होने को हैं।


बाकी बचे सितारे और आइकन केसरिया होने को बेताब है।


बालीवूड टालीवूड केसरिया है तो मीडिया साहित्य और संस्कृति भी केसरिया।


सबसे बड़ा अखबार अब पांच्यजन्य है और प्रोफेशनल साख और टीआपरपी संपन्न सामना भी वह।ऐसे समय में जाल बहेलिया का दाना डाले पसर रहा है सर्वत्र।


कारपोरेट जनादेश सुनिश्चित होने से पहले सौरभ गांगुली को भारत का खेलमंत्री बनने की पेशकश की थी तब प्रधानमंत्रित्व के दावेदार प्रधान स्वयंसेवक ने।


बसीरहाट में जीत से पहले उन्हीं सौरभ गांगुली से एकांत वार्ता हुई है भारत के सबसे चतुर कारबारी कप्तान की।


संघपरिवार दादागिरि के मार्फत दीदीगिरि का जवाब खोज रहा है और इसी सिलिसिले में फुटबाल लीग में गले गले डूबे सौरभदादा का बंगाल में भाजपा कमान सौंपने को कहा गया है।


गनीमत है कि चारा अभी निगला नहीं है अति बुद्धिमान सौरभ दादा ने।


आवेग सर्वस्व व्यक्ति पूजक बंगाल में केसरिया दादा यकीनन भारी होंगे दीदी के टूट रहे करिश्मे पर,इसपर आप आंख मूंदकर दांव लगा सकते हैं।


जो अंध बंगाली राष्ट्रवादी वाम अस्मिता भारत में वाम आंदोलन के अवसान का कारण बनी है,उसे ही अब संघ परिवार हिंदुत्व का,हिंदू राष्ट्र का सबसे अचूक हथियार बनाने के फिराक में है।


कामयाबी मिल गयी तो संसदीय वाम के मुख्यधारा में लौटने के निराधार सपने का पटाक्षेप हो जायेगा जो सत्ता से बेदखल होने के बावजूद नेताओं कार्यकर्ताओं के बहिस्कार के रास्ते आत्मालोचना के सारे दरवाजे बंद करके बिना प्रतिरोध संघ पिरवार के लिए मैदान छोड़ चुका है।


जाहिर है कि उत्तरप्रदेशीय शाही समरस सोशल इंजीनियरिंग के मुकाबले वाम बेदखली के साथ दीदी को निपटाने की शरदा पृष्ठभूमिया यह बुनकरी कुछ ज्यादा ही महीन है और एशिया के नये रेशमपथ का शिलान्यास भी है।


अब गायपट्टी के सिंह द्वार से नहीं बल्कि सूर्योदयी पूर्व से भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का अभियान अश्वमेधी कर्मकांड से शुरु कर चुका है और बेखटके निर्मायक बढ़त बना चुका है।


सौरभ दादा को भारत क सारी खेल गतिविधियों की जिम्मेदारी लेने की पेशकश भी कर दी गयी है।अब देखें कि दादा अराजनीतिक  कारोबारी आइकन हैसियत के मुकाबले इस राजनीतिक विक्लप को कब तक टालते रहते हैं।


दादा नहीं भी मिले तो चमकप्रद विकल्प भी केसरिया तैयार है जिनका पूरे देश पर असर होना है।


No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...