BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Wednesday, February 5, 2014

ब्रिगेड रैली से नमो सुनामी का अंदाजा लगाइये लेकिन मोदी मिसाइलों का दूरगामी असर तय

ब्रिगेड रैली से नमो सुनामी का अंदाजा लगाइये लेकिन मोदी मिसाइलों का दूरगामी असर तय

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


बंगाल में न भाजपा की सरकार है और न सत्तादल से उसका कोई गठबंधन है। संगठन के लिहाज से भी बंगाल में भाजपा की ताकत नगण्य है। बुधवार को कोलकाता में प्रधानमंत्रित्व के दावेदार नरेंद्र मोदी की ब्रिगेड रैली की भीड़ की तुलना निश्चय ही हाल में 31 जनवी को ममता बनर्जी की रैली से कतई नहीं की जा सकती। नहीं की जानी चाहिए। लेकिन बंगाल में अपनी ताकत के हिसाब से यह ऐतिहासिक रैली है,जिसमें सड़कों से बसें हटाये बिना टाटा सुमो, मैटाडोर से दूर दूर से लोग सिर्फ नरेद्र मोदी को सुनने हाजिर हो गये। ऐसा भी नहीं है कि बाहरी राज्यों से लोग ट्रेनों में भरकर लाये गये हैं। इससे चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों का आकलन सही साबित हो रहा है कि बंगाल में गुपचुप केशरिया लहर है और भाजपा के वोटों में भारी इजाफा तय है।


कोलकाता ब्रिगेड रैली को प्रतिमान मानें तो बाकी देश में जहां नमोमय माहौल है,सत्ता है,सहयोग है और संगठन भी वहां नमो सुनामी का असर क्या होने वाला है,इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।कांग्रेस की सीटें सैकड़े तक पहुंचेगी या नहीं, शक है।आप फिर सड़क पर लौटने की हालत में दीख रही है। क्षत्रपों का जो तीसरा विकल्प है ,उसमें सबसे मजबूत क्षत्रप यानी ममता बनर्जी है ही नहीं। जो दल और नेता वाम अगुवाई में नमो तूपान रोकने को संकल्पबद्ध है, उनका जनाधार और राजनीतिक भविष्य दोनों दांव पर है।


गुजरात के मुख्यमंत्री ने आर्थिक तौर पर खतस्ताहाल बंगाल में गुजरात माडल की बहुत अच्छी मार्केटिंग की, परिवर्तन का हिसाब मांगा तो बंगाली राष्ट्रीयता का आवाहन भी खूब कायदे से कर डाला। दिल्ली की गतिविधियों पर तीखी नजर रखने वाले मोदी ने बाकी दलों से, गठबंदनों से एकम अलग खड़ी ममता बनर्जी के प्रति बंगाल के भाजपा नेताओं की तरह आक्रामक रवैया न अपनाकर बेहद रणनीतिक भाषण दिया है। तृणमूल से टरकराने के बजाय तृणमूल समर्थकों के परिवर्तन के हक में तारीफों के पुल बांधते हुए,वाम व धर्म निरपेशक्ष ताकतों पर पुरजोर प्रहार करते हुए बंगाल को वंचित करने के सबूत बतौर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्रित्व से दूर रखने के लिए सीधे तौर पर कांग्रेस को जिम्मदार ठहराने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। इससे भाजपा को कोई फायदा हो या न हो,कांग्रेस के लिए भारी मुश्किल हो गयी है।


दीदी को मुख्यमंत्री बनाये रखते हुए अपने प्रधानमंत्रित्व में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के अभिभावकत्व में बंगाल के विकास का जो त्रिभुज नरेंद्र मोदी ने रच दिया,उसके दूरगामी नतीजे होने हैं।आम तृणमूल मतदाताओं को संधेस गया कि केंद्र में कांग्रेस के सफाये के लिए मोदी ही एकमात्र विकल्प हैं। वहीं इसी फार्मूला के जरिये उन्होंने लोकसभा के आगामी चुनावों में एकमुश्त ममता बनर्जी और प्रणव मुखर्जी दोनों की भूमिका संदिग्ध बना दी है।वामपक्ष और धर्मनिरपेक्षता पर खुल्ला हमले से उन्होंने विपक्ष को यह मौका दे दिया है कि ममता दीदी की नीति ौर रणनीति दोनों की आलोचना कर सकें और खासतौर परअल्पसंखकों में दीदी की साख पर सवाल उठा सकें। इसके साथ ही उन्होंने केंद्र की राजनीति में भी प्रणव मुखर्जी की संभावित भूमिका को लेकर भूचाल खड़ा कर दिया है।


बंगाल पर लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा के अतीत के महिमामंडन से उन्होंने वामशासन की जहां धुलाी कर दी,वहां दीदी के परिवर्तन के औचित्य पर भी सवालिया निशान खड़े कर दिये ।


वे बांग्ला में गुजराती उच्चारण से खूब बोले ौर बांगाल राष्ट्रीयता कोवंचना के सवाल पर केंद्र में परिवर्तन के लिए खूब उकसाया।विवेकानंद,टैगोर और नेताजी के साथ श्यामाप्रसाद मुखर्जी के अवदान की चर्चा भी उन्होंने निश्चित रणनीति के साथ की।


मोदी ने बंगाल पर केंद्रित भाषण के मार्फत दिल्ली की सत्ता पर मिसाइली निशाने साधे,जो बंगाली मतदाताओं के लोकप्रिय मुद्दे हैं।गाय पट्टी के ध्रूवीकरण समीकरण के विपरीत अपनी धर्मनिरपेक्षता बतौर राष्ट्रहित के देश भक्त एजंडा पेश किया और उसकी पुष्टि के लिए कविगुरु की चित्त जेथा भयहीन का पाट भी किया।


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