कोलकाता। सेंसर बोर्ड ने बांग्ला भाषा की एक फिल्म को अपनी अनुमति देने से इंकार कर दिया है क्योंकि इसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के शपथ ग्रहण समारोह और सिंगूर आंदोलन का उपहास उड़ाया गया है। सिंगूर आदोलन के कारण ही राज्य से टाटा को बाहर निकलना पड़ा था। विद्रोही तृणमूल कांगे्रस सांसद कबीर सुमन अभिनीत फिल्म कांगाल मालसात :गरीबों का युद्धघोष: का निर्देशन सुमन मुखोपध्याय ने किया है। फिल्म प्रख्यात साहित्यकार महाश्वेता देवी के पुत्र नवारून भट्टाचार्य द्वारा लिखी गयी पुस्तक पर आधारित है। फिल्म निर्माता के नाम जारी केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के पत्र में कहा गया है, ''जिस तरह सम्मानित मुख्यमंत्री के शपथग्रहण समारोह को दिखाया गया, ऐसा प्रतीत होता कि इतिहास को विकृत करके पेश किया गया। इससे पश्चिम बंगाल के कई आम आदमी आहत हो सकते हंै और सनसनी :हिंसा: फैल सकती है।'' फिल्म में एक व्यक्ति को शपथ ग्रहण समारोह को अवेहलना के साथ देखते हुए प्रदर्शित किया गया है। इसमें कबीर सुमन का एक विवादास्पद दृश्य भी दिखाया गया जिसमें वह बंगाली में कहते हैं, ''टाटा को शर्मिन्दा होना पड़ा। अब कई सारी समितियां हैं। वे लंदन को कोलकाता में तब्दील कर रहे हैं।'' पत्र में कहा, ''फिल्म में टाटा कंपनी की रवानगी के बारे में जो कहा गया, ऐसा प्रतीत होता है कि उससे समाज के एक महत्वपूर्ण आंदोलन की छवि खराब करने या कम से कम उसे नीचा करके दिखाया गया।'' सेंसर बोर्ड ने पत्र में कहा, ''फिल्म के विषय को पेश करने के लिए अपमानजनक भाषा के अनावश्यक इस्तेमाल, यौनाचार के दृश्य दिखाने करने का तरीका तथा सामाजिक आंदोलन को बेहद अगंभीर तरीके से पेश करने से हमारे समाज के कई लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं।'' पत्र में यह भी दावा किया गया है कि पूर्व सोवियत संघ के शासक स्टालिन को फिल्म में गैर जिम्मेदार ढंग से पेश किया गया है और उनके बारे में जो कड़ा बयान दिया गया है, उससे उनके कई समर्थकों की भावनाएं आहत हो सकती हैं तथा इसको सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने से अशांति फैल सकती है। फिल्म के निर्देशक ने सरकार पर राजनीतिक भेदभाव का आरोप लगाते हुए सेंसर बोर्ड के निर्णय को फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण में चुनौती दी है। उन्होंने कहा, ''एक फिल्मकार के रूप में मैने अपनी पसंद के अनुरूप फिल्म बनायी है। लेकिन यदि इसमें कोई राजनीतिक संकेत हैं तो इसका यह मतलब नहीं है कि सत्ता में बैठे लोगों के पास फिल्म को प्रतिबंधित करने की भी शक्ति है। वे हमारा मुंह बंद करवाना चाहते हैं।'' इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक सेंसर बोर्ड की समीक्षा समिति की सिफारिशों पर लगायी गयी है। इसके सदस्यों को राज्य सरकार नियुक्त करती है। फिल्मकार हरनाथ चक्रवर्ती इस समिति के अध्यक्ष हैं। चक्रवर्ती ममता बनर्जी के संस्कृति विचारों के समूह के प्रमुख सदस्य हैं। फिल्म निर्देशक ने कहा, ''यह स्पष्ट है कि किसके निर्देश पर रिलीज को रोका गया।'' |
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