BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Friday, July 20, 2012

Fwd: फ्रांत्स फैनन को याद करते हुए उनका एक भाषण



---------- Forwarded message ----------
From: reyaz-ul-haque <beingred@gmail.com>
Date: 2012/7/20
Subject: फ्रांत्स फैनन को याद करते हुए उनका एक भाषण
To: reyazul haque <tahreeq@gmail.com>


फ्रांत्स फैनन ने अश्वेतों समेत पूरी दुनिया के वंचित मेहनतकशों, आदिवासियों, उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं की अनेक पीढ़ियों को लड़ना सिखाया, उनको लड़ने की ऊर्जा, जरूरत, औचित्य और विचारधारा दी. वे पीड़ा और व्यथा के बुद्धिजीवी नहीं थे. उन्होंने धरती के अभागों की व्यथाओं को क्रांतिकारी व्यवहार की रोशनी में समझा, उनकी गलतियों को भी और उनकी कमजोरियों को भी. और फिर लड़ने की एक क्रुद्ध, गंभीर और सचेत की विचारधारा दी जिसे और हिंसक संघर्ष से कोई परहेज नहीं है और जिसके दूरगामी और मजबूत संबंध मार्क्स, लेनिन, स्टालिन, माओ, एमी सीजर और अमिल्कर काबराल से बनते हैं. यह भी दिलचस्प है कि वे माओ की तरह ही जटिल और अबूझ शब्दावलियों से बचते हैं और सीधे अपनी जनता को संबोधित करते हैं. उनकी किताबें द रेचेड ऑफ द अर्थ, ब्लैक स्किन व्हाइट मास्क्स, टुवर्ड्स द अफ्रीकन रिवॉल्यूशन और अ डाइंग कोलोनियलिज्म हर तरह के उपनिवेशवाद के खिलाफ जनता के हाथ में मौजूद सबसे धारदार हथियारों में से हैं और उनको भारत की दलित और आदिवासी जनता की स्थिति और उनकी मुक्ति के संघर्षों की रोशनी में जरूर ही पढ़ा जाना चाहिए.

पेशे से मनोचिकित्सक रहे फैनन ने अपना अधिकतर लेखन अल्जीरियाई मुक्ति आंदोलन की हिमायत में लिखा. और अल्जीरिया की क्रांतिकारी पार्टी एफएलएन (नेशनल लिबरेशन फ्रंट) के साथ मिल कर काम भी किया. पार्टियों की सदस्यता को अपनी व्यक्तिगत ख्याति की राह में बाधा समझने वाले बुद्धिजीवियों के बरअक्स फैनन एक शानदार मिसाल थे, जिन्होंने अपना जीवन अल्जीरियाई जनता की मुक्ति के कठिन संघर्ष को सौंप दिया और फ्रंट के साथ मिलकर उसकी क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेते रहे. वे पार्टी और संगठन से नफरत करने वाले बुद्धिजीवी नहीं थे. उन्होंने फ्रंट पर होनेवाले हमलों के जवाब दिए, अल्जीरियाई मुसलिम जनता पर लगाए जानेवाले 'पिछड़ेपन' और 'मजहबपरस्ती' के आरोपों को बेमानी बताते हुए औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ संघर्ष में इस 'पिछड़ेपन' और 'मजहबपरस्ती' की हिमायत की, फ्रंट को एक मजबूत वैचारिक आधार दिया. वे 1954 में फ्रंट से जुड़े और 1956 में इसके अखबार अल मुजाहिद के संपादक बने. चार साल बाद जब अल्जीरिया में एक बागी क्रांतिकारियों ने प्रोविजनल सरकार बनाई तो फैनन को उन्होंने घाना में अपना राजदूत बना कर भेजा.

फ्रांत्स फैनन को याद करते हुए



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