BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Thursday, April 26, 2012

'उभार की सनक' में दिलीप जी का दलित उभार किधर गया?

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Details Category: [LINK=/article-comment.html]इवेंट, पावर-पुलिस, न्यूज-व्यूज, चर्चा-चिट्ठी...[/LINK] Published Date Written by B4M
Ashish Maharishi : बात बहुत पुरानी नहीं है। पत्रकारिता में नए-नए कदम रखे ही थे कि कई दिग्गजों का नाम सुनने को मिलता था। इसमें से एक थे पत्रकारिता, खासतौर से दबे, कुचले, दलितों के सबसे बड़े समर्थक दिलीप मंडल जी। कॉरपोरेट मीडिया और बाजार के सबसे बड़े विरोधी। वो वरिष्ठ पत्रकार और हम नए-नवेले। अच्छा लगता था उनके ब्लॉग को पढ़कर। उनकी राय जान कर। उनके विचार को जानकर। लेकिन एक दिन सबकुछ बदल गया। वो इंडिया टुडे हिंदी के संपादक हैं। संपादक बनने के साथ ही इनकी पत्रकारिता भी बदल गई। अब वह बड़े संपादकों में शुमार हो गए। खैर..पिछले दिनों इंडिया टुडे ने एक कवर स्टोरी की। जहां तक मैं दिलीप जी को जानता हूं, वो कभी भी ऐसी स्टोरी और कवर पेज के पक्ष में नहीं रहे होंगे लेकिन क्या करें बेचारे दिलीप जी। आखिर कॉरपोरेट मीडिया का जमाना है। कहां उनकी चलती होगी..तभी तो उभार की सनक के आगे दिलीप जी का दलित उभार कहीं खो सा गया।

Mohammad Anas हाँ भाई ,जमाना तो कारपोरेट का ही है Ashish Maharishi :)
 
[IMG]/images/april2012/ubhaar1.jpg[/IMG] Ajit Anjum दिलीप मंडल जी के संपादन में हिन्दी इंडिया टुडे का इतना शानदार अंक निकला है फिर भी न जाने लोग क्यों छाती पीट रहे हैं .....अरे भाई आप क्यों चाहते हैं कि नौकरी मिलने से पहले सेमिनारों -गोष्ठियों या फिर लेक्चर में दिलीप जी जो बांचते थे , वही मालदार नौकरी मिलने के बाद भी बांचते रहें ...आप क्यों चाहते हैं कि केबिन और कुर्सी से दूर रहने पर दिलीप जी जो बोलते रहे हैं , वहीं संपादक के पद पर पदायमान होने पर भी बोलें ....उनकी चिंता और चिंतन में देश है ..समाज है ..दलित विमर्श है ...मीडिया का पतन है ...कॉरपोरेटीकरण है ...लेकिन आप क्यों चाहते हैं कि जब वो इंडिया टुडे निकालें तो इन्हीं बातों का ख्याल भी रखें ....और आप कैसे मानते हैं कि 'उभार की सनक' जैसी कवर स्टोरी इन सब पैमाने पर खड़ी नहीं उतरती ...एक बार पढ़िए तो सही ...चिंता और चिंतन न दिखे तो बताइएगा ...वैसे भी दिलीप जी इसमें क्या कर लेते ...इंडिया टुडे में नौकरी करते हैं न , फेसबुक पर ज्ञान वितरण समारोह थोड़े न कर रहे हैं ...हद कर रखी है लोगों ने ....विपक्ष से सत्ता पक्ष में आ गए हैं लेकिन आप चाहते हैं कि अभी भी नेता विपक्ष की तरह बोलें -लिखें ...गलती तो आपकी है कि आप दुनियादारी समझने को तैयार नहीं ...दिलीप जी का क्या कसूर ..... हमने तो दिलीप जी रंग बदलते देखकर भी कुछ नहीं देखा है और आप हैं कि पुराने रंग भूलने को तैयार ही नही हैं ....अरे भाई , वक्त बदलता है ...मौसम बदलता है ...मिजाज बदलता है ...रंग बदलता है तो दिलीप जी न बदलें ...ये भी कोई बात हुई ...जरा सोचकर देखिएगा ....और हां, कुछ वेबसाइट वाले मेरी बातों को गलत ढंग से प्रचारित कर रहे हैं ...मैं एतत द्वारा एलान करता हूं कि मैं दिलीप जी के साथ हूं और तब तक रहूंगा , जब तक वो संपादक रहेंगे ...जिस दिन वो संपादक नहीं रहेंगे उस दिन दुनिया के सारे संपादकों के खिलाफ वो अकेले काफी होंगे , लिहाजा मेरी जरुरत उन्हें वैसे भी नहीं होगी ...
 
        Mohammad Anas अजीत अंजुम सर :) असहमत... दिलीप सर का विरोध /समर्थन लोग तब भी करते थे जब वो संपादक नही थे, आज वो संपादक है तो भी हाल वही है, तो सौ आने की बात ये है की ये विरोध/समर्थन की मशाल जलती रहेगी !
 
        Ajit Anjum अनस साहब ,हम तो बस दिलीप साहब की Flexibility के मुरीद हैं , बस...
 
        Ashish Kumar 'Anshu' वक्त के साथ मुहावरों के अर्थ भी बदलते हैं और कभी-कभी स्थान के साथ-साथ भी. आज-कल दिल्ली सर्वोच्च न्यायालय में मनुवादी होने का कुछ और अर्थ लगाया ज़ा रहा है, पटना उच्च न्यायालय में तो इसके शॉर्ट फॉर्म से ही काम चल रहा है. ''जानते हैं सर, बड़े बाबु तो साफे मनुआ गए हैं.'' वैसे यह मनु दौर है, देखिए ना मनु के रंग में ''इण्डिया टूडे'' भी मनुआ रहा है......
        
आशीष महर्षि के फेसबुक वॉल से साभार.

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