BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Wednesday, March 9, 2016

अब हम आपके विचार साझा नहीं कर सकते,माफ करें! गुगल ,फेसबुक जैसे माध्यमों का आभार कि अबतक संवाद जारी है,अभिव्यक्ति पर अंकुश सेवा का दोष नहीं,सत्ता का हस्तक्षेप है। हमें गुगल की यूजर फ्रेंडली तकनीक और सपोर्ट सिस्टम से कई शिकायत है नहीं। पलाश विश्वास


अब हम आपके विचार साझा नहीं कर सकते,माफ करें!

गुगल ,फेसबुक जैसे माध्यमों का आभार कि अबतक संवाद जारी है,अभिव्यक्ति पर अंकुश सेवा का दोष नहीं,सत्ता का हस्तक्षेप है।

हमें गुगल की यूजर फ्रेंडली तकनीक और सपोर्ट सिस्टम से कई शिकायत है नहीं।


पलाश विश्वास

जरुरी सेवाओं के साथ साथ अपनी पहचान डिजिटल इंडिया की जरुरी सेवाओं से लेकर हमारे भविष्य की कुंजी भी अब गुगल बाबा के हाथ में है।हम अभिव्यक्ति की जिद पर अड़े रहे तो ईमेल खाता बंद हो जाने की सूरत में हमें पीेएफ से लेकर तमाम जरुरी सेवाओं की कुंजी खोनी पड़ सकती है।


इसलिए हमारे लिए गुगल और फेसबुक की शर्तें मान लेने के सिवाय जीने की दूसरी कोई वैकल्पिक राह नहीं है।

फिर भी हम माध्यम दूसरा तलाशेंगे,वायदा है।

गुगल से हमारी दोस्ती बनी रहे चाहकर भी यह दोस्ती बने रहने की सूरत नहीं है क्योंकि काजी बड़ा पाजी है।राजीनामा बेकार है।



हम गुगल से शुरु से जुड़े हुए हैं और पेशेवर पत्रकारिता और जनप्रतिबद्धता के मदुदों पर भारत में गुगल की सेवा चालू होने के बाद से हमें कोई खास दिक्कत नहीं हुई हैं।यह सिलसिला रोका जा रहा है,इसका हमें अफसोस है।


हमें गुगल की तरफ से सीमित सेवा की दो हफ्ते का नोटिस मिला है और आधिकारिक सूचना के अलावा बाकी सामग्री छापने का अपराध दुहराये जाने पर गुगल के तमाम खाते हमारे बंद हो जायेंगे।


गुगल से हमारी दोस्ती बनी रहे चाहकर भी यह दोस्ती बने रहने की सूरत नहीं है क्योंकि काजी बड़ा पाजी है।राजीनामा बेकार है।


हमें गुगल की यूजर फ्रेंडली तकनीक और सपोर्ट सिस्टम से कई शिकायत है नहीं।


हम गुगल से शुरु से जुड़े हुए हैं और पेशेवर पत्रकारिता और जनप्रतिबद्धता के मदुदों पर भारत में गुगल की सेवा चालू होने के बाद से हमें कोई खास दिक्कत नहीं हुई हैं।यह सिलसिला रोका जा रहा है,इसका हमें अफसोस है।


थोड़े दूसरे विकल्प खोजने होगें।यकीन मानिये,विक्लप बेहतर ही होगा।फिर बी दिल गुगल बाबा की सोहबत की आदत डुडने से बकरार है मगर मुहब्बत इकतरफा होती भी नहीं है।


गुगल का आभार कि वे हमें कमसकम इतनी मोहलत दे रहे हैं।

हम यथा संभव उनकी शर्तों का पालन करेंगे लेकिन शर्तें भी तो बार बार बदल रही हैं।


पत्रकारिता के स्रोत आधिकारिक नहीं होते या सत्ता के प्रति समर्पण भी माध्यम नहीं होता।सच के आयाम इतने जटिल है जो शर्तों के मुताबिक खुल ही नहीं सकते।शर्ते सच पर परदे हैं।


हम गुगल और फेसबुक के सहारे वर्षों से संवाद करते रहे हैं और हमारा बोला लिखा भी अब इन्हींकी प्रापर्टी है,खाता बंद होते ही वह सबकुछ डिलीट हो जायेगा।


हमारे बोले लिखे से जो सबसे परेशां हैं,ऐसे मित्रों की सेहत सुधर जायेगी।उन्हें हमारी शुभकामनाएं।


गुगल और फेसबुक ने इतने अरसे तक हमें बने रहने की इजाजत दी है लेकिन कारोबार भारत में चलाना है तो भारत सरकारे के थोंपे नियम भी मानने होंगे,यह उनकी मजबूरी है।यह भी हम समझते हैं।


हमे हंसी आती है उन लोगों पर जो समझते हैं कि आलोचकों को नेट से बाहर कर देने से उनकी सत्ता निरंकुश हो जायेगी।

जब नेट नहीं था,तब भी हम संवाद कर रहे थे।


अब फिर नेट न होगा तो संवाद का सिलसिला थम जायेगा ,ऐसा भी नहीं है।फिर किसी आदमी या औरत की औकात आखिर कितनी होती है कि कयामत सुनामियों को रोक दें।


जनता से डरिये।

अततः सड़कें बोलती हैं।बोलते हैं जल जंगल जमीन पहाड़ और समुंदर।बोलती हैं सड़कें।


जो सर्व शक्तिमान है,वे हमारे लिखे से, बोले से मुयाये जा रहे हैं कैसे चलेगी इनका राजकाज,उनका ईश्वर जानें।


बहरहाल नेट से विदाई का वक्त है शायद नौकरी से रिटायर हो जाने से पहले ही।अब माद्यम दूसरा कोई रचना होगा।


डिजिटल  इंडिया में एंड्रायड मोबाइल से लेकर पेंशन पीएफ इनकाम टैक्स,बैकिंग इत्यादि हर जरुरी सेवा ईमेल आईडी से लिंक है।


वे खाते खुलेंगे तभी जब वहां दर्ज ईमेल खाते  पर आये कोड को आप चाबी बनाकर घुमायें।


मुश्किल यह है कि ब्लाग या दूसरे रचनाकर्म के अपराध में गुगल बार बार हमरा मेल आईडी डिलीट कर रहा है और मेहरबानी उनकी कि अपील पर फिर बहाल कर रहा है।इसका धन्यवाद।


जरुरी सेवाओं के साथ साथ अपनी पहचान डिजिटल इंडिया की जरुरी सेवाओं से लेकर हमारे भविष्य की कुंजी भी अब गुगल बाबा के हाथ में है।हम अभिव्यक्ति की जिद पर अड़े रहे तो ईमेल खाता बंद हो जाने की सूरत में हमें पीेएफ से लेकर तमाम जरुरी सेवाओं की कुंजी खोना पड़ सकता है।


इसलिए हमारे लिए गुगल और फेसबुक की शर्तें मान लेने के सिवाय जीने की दूसरी कोई वैकल्पिक राह नहीं है।


हम आहिस्ते आहिस्ते अब तक ब्लागों पर किसी का भी जो भी प्रासंगिक लिखा है या जो जरुरी बेसिक मुद्दा है,उसको प्रकाशित करते रहने की अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रह नही सकते,इसके लए हम शर्मिंदा हैं।


गुगल बाबा की जब तककृपा है,बहरहाल हम नेट पर बने रहेंगे और जहां तक संभव है,संवाद का प्रयास जारी रखेंगे।


मित्रो ंके लिए सूचना  हैकि अबतक पिछले करीबपंद्रह सोलह सालों से  हमेन जो कुछ लिखा पढ़ा बोला है,हमारा गुगल खाता हमेशा के लिए डिलीट हो जाने पर वह सबकुछ आटोमेटिक गायब हो जायेगा।


हमें कोई फर्क इसलिए नहीं पड़ता कि हमारा कुछ भी लिखा कालजयी नहीं है,जैसे आम बोलचाल में हम बातचीत का कोई रिकार्ड नहीं रखते।


बात आयी गयी हुई रहती है।


हमारा बोला लिखा हमारे सिधार जाने से पहले ही मिटा दिया जाये तो ऐसा भी नहीं है कि हम तुरंते मर जायेंगे या संवाद का सिलसिला बंद हो जायेगा।वजूद अगर है तो कोई मिटाकर तो देख लें।


गुगलऔर फेसबुक के बिना भी दुनिया आबाद रही है और उस दुनिया में भी हम बोलते लिखते रहे हैं।


हद से हद ब्लागिंग रोक देंगे,ब्लाग मिटा देंगे,मेल रोक देंगे,स्टेटस अपडेट नहीं होने देंगे।


कबीर दास का कोई ईमेल खाता नहीं रहा है।हमारे तमाम संतों और पुरखों का लिखा ही नहीं है कोई और उनकी वाणी या शबद हमारी विरासत है।


हम शुरु से मानते हैं कि ब्लाग या फेसबुक की दीवाल चेलीफोन का विकल्प है।संवाद का माध्यम है।


संवाद शुरु ही नहीं हो सका और हम विमर्श शुरु ही नहीं कर सके तो वैसे ही सारी कवायद बेकार है।


संवाद हुआ हो या न हो,हमारी अभिव्यक्ति बंद दरवाजों और खिड़कियों पर महज दस्तक है।


दरवाजे अब तक न खुले तो वक्त गुजर जाने के बाद खुल जाये तमाम खिड़कियां तो भी वक्त की चुनौतियां तो छूटगया कैच बाउंड्री पार है।


अत्याधुनिक तकनीक और सर्वत्र पहुंच वाली सूचना क्रांति अब कंपनी राज है।


अबाध पूंजी प्रवाह ने वैकल्पिक तमाम सर्विस को खत्म कर दिया है और भारत में सूचना के माध्यमों पर एकाधिकार पूंजी का कब्जा है।


मसलन हम किसी भी तरह नेट पर मौजूदगी के लिए गुगल पर निर्भर हैं या फेसबुक पर।तमाम दूसरे प्लैटफार्म सिरे से गायब हैं।




हम जिन दूसरी वैकल्पिक सेवाओं से जुड़े हुए थे , वे बाजार से गायब हैं या गुगल के मुकाबले वहां सूचना को विभिन्न माध्यमों में साझा करने के विकल्प हैं ही नहीं।


नेट निरपेक्षता जारी रखने के दावों के बीच भारत सरकार का निरंकुश हस्तक्षेप से सर्विस देने वाली कंपनियों की सेवा शर्ते सिरे से बदल गयी हैं।


इससे उन्हें कोई तकलीफ नहीं है जो हिंदू राष्ट्र के घृणा वीर हैंवे सूचना तंत्र के डाल डाल पात पात हैं।


चुनिंदा जो लोग सीधे मुद्दों को संबोधित करते रहे हैं,उनके लिए इन सेवा शर्तों की आड़ में सूचना पर बंदिश के अलावा अभिव्यक्ति पर लगाम का संकट घनघोर हैं।


आधिकारिक सूचना की पेंच एफआईआर की अनिवार्यता जैसी है।एफआईआर दर्ज न हो,तो मामले की रपटकहीं से जारी नहीं हो सकती या सुनवाई भी नहीं हो सकती।


आधिकारिक सूचना का सबसे बड़ा मामला मास डेस्ट्राक्शन के आधिकारिक झूठ के मुकाबले अमेरिका और पश्चिमी दुनिया की आजाद मीडिया के सच का आत्मसमर्पण है।

हम न घृणा अभियान चला रहे हैं और न अश्लील वीडियो या जालसाजी का कारोबार चला रहे हैं।


हम विचारों को जनता तक संप्रेषित करने के लिए नेट पर हैं क्योंकि प्रिंट में अब न जनसरोकार की बातें पूंजी वर्चस्व की वजह से संभव है और न वहां जनता के साहित्य या संस्कृति के लिए कोई स्पेस है।


लघु पत्रिका आंदोलन भी अब मुक्त बाजार के कारोबार में तब्दील है।


हम सन 2000 के बाद छपने के लिए कुछ नहीं लिख रहे हैं और हम यह मानकर चल रहे ते कि सीमित संख्या में ही सही कुछ लोगों से हम बुनियादी मुद्दों पर विचार विमर्श का सिलसिला जारी रख सकते हैं।जिन विविध प्लेटफार्म पर हम काम कर रहे थे,उनमें देशी प्लेटफार्म भी इफरात थे।



गुगल के चालू होने के बाद तकनीक के जरिये विभिन्न भाषाओं में एक मुश्त संवाद का विकल्प खुल गया तो हम गुगल काल में उसी के माध्यम से लिक पढ़ बोल रहे हैं।


इसके लिए हम गुगल के आभारी हैं।


मुश्किल यह है कि इस पूरी कवायद में नेट निरपेक्षता और सूचना का अधिकार,अभिव्यक्ति की आजादी गुलग,फेसबुक,माइक्रोसाफ्ट जैसी कंपनियों की शर्तों पर निर्भर हैं।

दरअसले ये शर्ते तेल युद्ध के आधिकारिक वर्सन की ही शर्तें है,जिसके तहत दुनियाभर का मीडिया झूठ का प्रसारण प्रकाशन करते हुए जनसंहार अश्वमेध के भागीदार बनते रहे हैं।


हम यह मानते हैं कि अंततः सूचना क्रांति पर अंकुश सत्ता वर्ग के हितों और उनके कार्यक्रम के तहत सत्ता के सीधे हस्तक्षेप की वजह से ही हो रहे हैं।


गुगल और फेसबुक जैसे उपयोगी और लोकप्रिय  माध्यमों का इस्तेमाल भारत सरकारी के हस्तक्षेप से ही असंभव हो रहा है और बार बार शर्तं बदल रही हैं।


हम गुगल ,फेसबुक या दूसरी सेवाओं का आभार जताना चाहे हैं कि उनने हमें इतने वर्षों से अभिव्यक्ति की आजादी दी है और अब वे ऐसा कर नहीं सकती तो यह उनका दोष नहीं है,यह सरासर नागरिक और मानव अधिकार और जनसुनवाई पर अंकुश का आपातकालीन कार्यक्रम हैं।


हम ब्लागिंग रोक देंगे,इसमें कोई दिक्कत की बात नहीं है।

हमारा कालजयी लिखा कुछ भी नहीं है,गुगल की जो प्रापर्टी हमने बना दी है,वह सिरे से उसे मिटा दें तोयकीनमानिये कि हमारे पेट में दर्द नहीं होगा।


झारखंड के कोयलाखानों में बाकायदा माइनिंग इंजीनियरिंग सीखकर में कोयला खानों और माइनिंग पर अस्सी के दशक में जितना प्रिंट में लिखा है,उसे किताबी शक्ल देना तो दूर,हमने उसकी कतरनें भी नहीं रखीं।

अमेरिका से सावधान भी संवाद का एक सिलसिला था और उसके लिखा छपा जाना बंद होते ही हम उसे कहीं और दर्ज कराने या कमसकम किताब छाप देने के चक्कर में नहीं पड़ें।


हमारा मामला कुल मिलाकर यह है कि हम सन्नाटा को तोड़ें,हर चीख को दर्ज करायें।गुगल फेसबुक नेट वगैरह हो या न हो,यह सिलसिला हरगिज नहीं रुकने वाला है।

--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...