BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Thursday, October 9, 2014

फारवर्ड प्रेस कार्यालय में आज सुबह पुलिस ने छापा मारा।फारवर्ड प्रेस पर पुलिस छापे की निंदा करते हैं हम।सहमति असहमति के प्रसंग संगर्भ भिन्न है।लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष समाज में विचार विमर्श के लिए,सभ्यता ,विकास और प्रगति के लिए सबसे जरुरी है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता।उस पर कुठाराघात के किसी भी कदम का हर भारतीय नागरिक को विरोध करना चाहिए।किसी पत्रिका का अंक जब्त करके आप किसी विमर्श को ख्तम तो नहीं ही कर सकते हैं। पलाश विश्वास

फारवर्ड प्रेस पर पुलिस छापे की निंदा करते हैं हम।सहमति असहमति के प्रसंग संगर्भ भिन्न है।लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष समाज में विचार विमर्श के लिए,सभ्यता ,विकास और प्रगति के लिए सबसे जरुरी है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता।उस पर कुठाराघात के किसी भी कदम का हर भारतीय नागरिक को विरोध करना चाहिए।किसी पत्रिका का अंक जब्त करके आप किसी विमर्श को ख्तम तो नहीं ही कर सकते हैं।

पलाश विश्वास

फारवर्ड प्रेस के प्रमोद रंजनजी ने जो मेल भेजा है,हुबहू पेश है।

फारवर्ड प्रेस कार्यालय में आज सुबह पुलिस ने छापा मारा तथा हमारा 'बहुजन-श्रमण परंपरा विशेषांक' (अक्‍टूबर, 2014) के अंक जब्‍त करके ले गयी। हमारे ऑफिस के ड्राइवर प्रकाश व मार्केटिंग एक्‍सक्‍यूटिव हाशिम हुसैन को भी अवैध रूप से उठा लिया गया है। मुझे भूमिगत होना पडा है। मैं जहा हूं, वहां मेरे होने की आशंका पुलिस को है। इस जगह के सभी गेटों पर गिरफ्तारी के लिए पुलिस तैनात कर दी गयी है। शायाद वे जितेंद्र यादव को भी गिरफ्तार करना चाहते हैं ताकि आज (9 अक्‍टूबर) रात जेएनयू में आयोजित महिषासुर दिवस को रोका जा सके। हमें अभी तक किसी भी प्रकार के एफआइअार की कॉपी भी नहीं मिल पायी है। लेकिन जाहिर है कि यह कार्रवाई 'महिषासुर' के संबंध में फारवर्ड प्रेस द्वारा लिये गये स्‍टैंड के कारण कार्रवाई की गयी है।

मैं इस संबंध में अपना पक्ष मैं प्रेमकुमार मणि के शब्‍दों में रखना चाहूंगा। प्रेमकुमार मणि की यह निम्‍नांकित टिप्‍पणी 'महिषासुर' नामक पुस्‍तक में संकलित है। इस पुस्‍तक का भी विमोचन आज रात जेएनयू में आयो‍जित 'महिषासुर दिवस' पर किया जाना था/ है। इस आपधापी के सिर्फ इतना कहूंगा कि आप इसे पढें और अपना पक्ष चुनें। हमें आपसे नैतिक बल की उम्‍मीद है।

हत्‍याओं का जश्‍न क्‍यो? 
प्रेमकुमार मणि
जब असुर एक प्रजाति है तो उसके हार या उसके नायक की हत्या का उत्सव किस सांस्कृतिक मनोवृति का परिचायक है? अगर कोई गुजरात नरसंहार का उत्सव मनाए या सेनारी में दलितों की हत्या का उत्सव, भूमिहारों की हत्या का उत्सव तो कैसा लगेगा? माना कि असुरों के नायक महिषासुर की हत्या दुर्गा ने की और असुर परास्त हो गए तो इसे प्रत्येक वर्ष उत्सव मनाने की क्या जरूरत है। आप इसके माध्यम से अपमानित ही तो कर रहे हैं।

महिषासुर की शहादत दिवस के पीछे किसी के अपमान की मानसिकता नहीं है। इसके बहाने हम चिंतन कर रहे हैं आखिर हम क्यों हारे? इतिहास में तो हमारे नायक की छलपूर्वक हत्या हुई, परंतु हम आज भी छले जा रहे हैं। दरअसल, हम इतिहास से सबक लेकर वर्तमान अपने को उठाना चाहते हैं। महिषासुर शहादत दिवस के पीछे किसी के अपमानित करने का लक्ष्य नहीं हैं।
हमारे सारे प्रतीकों को लुप्त किया जा रहा है। यह तो इन्हीं कि स्रोतों से पता चला है कि एकलव्य अर्जुन से ज्यदा धनुर्धर था। तो अर्जुन के नाम पर ही पुरस्कार क्यों दिए जा रहे हैं एकलव्‍य के नाम पर क्यों नहीं? इतिहास में हमारे नायकों को पीछे कर दिया गया। हमारे प्रतीकों को अपमानित किया जा रहा है। हमारे नायकों के छलपूर्वक अंगूठा और सर काट लेने की प्रथा से हम सवाल करना चाहते हैं। इन नायकों का अपमान हमारा अपमान है। किसी समाज, विचारधारा, राष्‍ट्र का। वह मात्र कपड़े का टुकड़ा नहीं होता।

गंगा को बचाने की बात हो रही है। तो इसका तात्पर्य यह थोड़े ही है कि नर्मदा, गंडक या अन्य नदियों को तबाह किया जाय। अगर गंगा के किनारे जीवन बसता है तो नर्मदा, गंडक आदि नदियों के किनारे भी तो उसी तरह जीवन है। गंगा को स्वच्छ करना है तो इसका तात्पर्य थोडे हुआ कि नर्मदा को गंदा कर देना है। हम तो एक पोखर को भी उतना ही जरूरी मानते हैं जितना कि गंगा। गाय की पूजनीय है तो इसका अर्थ यह थोडे निकला कि भैस को मारो। जितना महत्वपूर्ण गाय है उतनी ही महत्वपूर्ण भैंस भी है। हालांकि भैंस का भारतीय समाज में कुछ ज्यादा ही योगदान है। भौगोलिक कारणों से भैस से ज्यादा परिवारों का जीवन चलता है। अगर गाय की पूजा हो सकती है तो उससे ज्यादा महत्वपूर्ण भैंस की पूजा क्यों नहीं? भैंस को शेर मार रहा है और उसे देखकर उत्सव मना रहे हैं। क्या कोई शेर का दूध पीता है। शेर को तो बाडे में ही रखना होगा। नहीं तो आबादी तबाह होगी। आपका यह कैसा प्रतीक है? प्रतीकों के रूप में क्या कर रहे हैं आप?

यह किस संस्कृतिक की निशानी है। पारिस्थितिकी संतुलन के लिए प्रकृति में उसकी भी जरूरत है परंतु खुले आबादी में उसे खुला छोड दिया तो तबाही मचा देगा।

हम अपने मिथकीय नायकों में माध्यम से अपने पौराणिक इतिहास से जुड़ रहे हैं। हमारे नायकों के अवशेषों को नष्‍ट किया गया है। बुद्ध ने क्या किया था कि उन्हें भारत से भगा दिया। अगर राहुल सांकृत्यायन और डॉ अम्बेडकर उन्हें जीवित करते हैं तो यह अनायास तो नहीं ही है।महिषासुर के बहाने हम और इसके भीतर जा रहे हैं। अगर महिषासुर लोगों के दिलों को छू रहा है तो इसमें जरूर कोई बात तो होगी। यह पिछडे तबकों का नवजागरण है। हम अपने आप को जगा रहे हैं। हम अपने प्रतीकों के साथ उठ खड़ा होना चाहते हैं। दूसरे को तबाह करना हमारा लक्ष्य नहीं हैं। हमारा कोई संकीर्ण दृष्टिकोण नहीं है। यह एक राष्‍ट्रभक्ति और देश भक्ति का काम है। एक महत्वपूर्ण मानवीय काम।

महिषासुर दिवस मनाने से अगर आपकी धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं तो हों। आपकी इस धार्मिक तुष्टि के लिए हम शुद्रों का अछूत, स्त्रियों को सती प्रथा में नहीं झोंकना चाहते। हम आपकी इस तुच्छ धार्मिकता विरोध करेंगे। ब्राम्हण को मारने से दंड और दलित को मारने से मुक्ति यह कहां का धर्म है? यह आपका धर्म हो सकता है हमारा नहीं। हमें तो जिस प्रकार गाय में जीवन दिखाई देता है उसी प्रकार सुअर में भी। हम धर्म को बड़ा रूप देना चाहते हैं। इसे गाय से भैंस तक ले जाना चाहते हैं। हम तो चाहते हैं कि एक मुसहर के सूअर भी न मरे। हम आपसे ज्यादा धार्मिक हैं।

आपका धर्म तो पिछड़ों को अछूत मानने में हैं तो क्या हम आपकी धार्मिक तुष्टि लिए अपने आप को अछूत मानते रहे। संविधान सभा में ज्यादातर जमींदार कह रहे थे कि जमींदारी प्रथा समाप्त हो जाने से हमारी जमींने चली जाएगीं तो हम मारे जाएंगे। तो क्या इसका तात्पर्य कि जमींदारी प्रथा जारी रखाना चाहिए। दरअसल, आपका निहित स्वार्थ हमारे स्वार्थों से टकरा रहा है। वह हमारे नैसर्गिक स्वार्थों को भी लील रहा है। आपका स्वार्थ और हमारा स्वार्थ अलग रहा है, हम इसमें संगति बैठाना चाहते हैं।

दुर्गा का अभिनंदन और हमारे हार का उत्सव आपके सांस्कृतिक सुख के लिए है। लेकिन आपका सांस्कृतिक सुख तो सती प्रथा, वर्ण व्यवस्था, छूआछूत, कर्मकाण्ड आदि में है तो क्या हम आपकी संतुष्टि के लिए अपना शोषण होंने दें। आपकी धार्मिकता में खोट है।

महिष का तात्पर्य भैंस। असुर एक प्रजाति है। असुर से अहुर और फिर अहिर बना होगा। जब सिंधु से हिन्दु बन सकता है तो असुर से अहुर क्यों नहीं। आपका भाषा विज्ञान क्यों यहां चूक जा रहा है। हम तो जानना चाहते है कि हमारा इतिहास हो क्या गया? हम इतने दरिद्र क्यों पड़े हुए हैं।

मौजूदा प्रधानमंत्री गीता को भेट में देते हैं। गीता वर्णव्यवस्था को मान्यता देती है। हमारे पास तो बुद्धचरित और त्रिपिटक भी है। हम सम्यक समाज की बात कर रहे हैं। आप धर्म के नाम पर वर्चस्व और असमानता की राजनीति कर रहे हैं जबकि हमारा यह संघर्ष बराबरी के लिए है।

(अगर आप फारवर्ड प्रेस का पुलिस द्वारा उठाया गया अंक पढना चाहते हैंं तो इस लिंक पर जाएं - https://www.scribd.com/doc/242378128/2014-October-Forward-Press-PDF

​- प्रमोद रंजन, सलाहकार संपादक फारवर्ड प्रेस 

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